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सोमवार, 29 जून 2015

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शुक्रवार, 26 जून 2015

कब मिलेगा शहीद उदमी राम के वंशजों को सम्मान?

27 जून/शहीदी दिवस विशेष
कब मिलेगा शहीद उदमी राम के वंशजों को सम्मान?
- राजेश कश्यप

क्रांतिवीर उदमी राम और उसकी पत्नी रत्नी देवी
          बड़ी विडम्बना का विषय है कि जिस नंबरदार उदमी राम ने 1857 की क्रांति के दौरान अपने देश के लिए अपनी जान को कुर्बान कर दिया, उसी नंबरदार उदमी राम के वंशज भूखों मरने के लिए विवश हैं। शहीद उदमी राम के वंशज हरदेवा सिंह (50 वर्ष) सोनीपत जिले के लिवासपुर गाँव में अपने बच्चों के साथ बड़ी मुश्किल से जीवन निर्वाह कर रहा है। गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में शामिल हरदेवा कर्ज से डूबा पड़ा है, खाने के लिए दो वक्त की रोटी, पहनने के लिए कपड़ा और सिर छिपाने के लिए एक अदद पक्का मकान भी नहीं है। जर्जर मकान कब गिर जाए, कोई पता नहीं। ऐसे हालातों के बीच शहीद उदमीराम के इस वंशज को कितनी पीड़ा हो रही होगी, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। हरदेवा बेहद पीड़ा के साथ अपनी आप बीती सुनाते हुए बताता है कि वह सरकार से सहायता पाने के लिए खूब धक्के खा चुका है, लेकिन उसकी सहायता करने वाला कोई नहीं। इसके साथ ही सबसे बड़ी विडम्बना की बात तो यह भी है कि आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी आज लिबासपुर गाँव की मल्कियत के वंशजों के नाम ही है और शहीद उदमीराम एवं उसके क्रांतिकारी शहीदों के वंशज आज भी अंग्रेजी राज की भांति अपनी ही जमीन पर मुजाहरा करके गुजारा कर रहे हैं। लिबासपुर के ग्रामीण अपनी जमीन वापिस पाने के लिए दशकों से कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिला है। 
          सन् 1857 की क्रांति के दौर में उदमी राम अपने गाँव लिबासपुर के नंबरदार थे और दूर-दूर तक उनकी देशपरस्ती के किस्से मशहूर थे। उनके नेतृत्व में लगभग 22 नौजवान क्रांतिकारियों का एक संगठन ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध काम करता था। इस संगठन में उदमी राम के अलावा गुलाब सिंह, जसराम, रामजस सहजराम, रतिया आदि युवा क्रांतिकारी शामिल थे। यह संगठन गाँव के नजदीक लगते राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले अंग्रेजी अफसरों को ठिकाने लगाने के मिशन में लगा रहता था। इस संगठन के युवा क्रांतिकारी भूमिगत होकर अपने पारंपरिक हथियारों मसलन, लाठी, जेली, गंडासी, कुल्हाड़ी, फरशे आदि से यहां से गुजरने वाले अंग्रेज अफसरों पर धावा बोलते थे और उन्हें मौत के आगोश में सुलाकर गहरी खाईयों व झाड़-झंखाड़ों के हवाले कर देते थे। क्योंकि उदमी राम व उसके साथियों को पहले ही पता था कि हथियार उठाए बिना हमें आजादी कभी नहीं मिल सकती। इसीलिए उन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित करके हमेशा के लिए सिर पर कफन बांध लिया था।  इन युवा क्रांतिकारियों की इस घातक रणनीति ने अंग्रेजी सरकार में हडक़ंप मचाकर रख दिया था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि अंग्रेजी सरकार लाख हाथ-पैर पटकने के बावजूद इन खूनी वारदातों को अंजाम देने वालों का सुराग तक नहीं पा रही थी।
          एक दिन एक अंग्रेज अधिकारी  लिबासपुर के नजदीक जी. टी. रोड़ से निकल रहा था। जब इसकी सूचना उदमी राम को लगी तो उन्होंने अपनी टोली के साथ उस अंग्रेज अफसर को भी घात लगाकर मार डालने की योजना बना डाली। उदमी राम ने साथियों सहित अफसर पर घात लगाकर हमला बोल दिया और उस अंग्रेज अफसर को मौत के घाट उतार दिया। अंग्रेज अफसर के साथ उनकी पत्नी भी थीं। भारतीय संस्कृति के वीर स्तम्भ उदमी राम ने एक महिला पर हाथ उठाना पाप समझा और काफी सोच-विचार कर उस अंग्रेज महिला को लिबासपुर के पड़ौसी गाँव भालगढ़ में एक ब्राहा्रणी के घर बड़ी मर्यादा के साथ सुरक्षित पहुंचा दिया और बाई को उसकी पूरी देखरेख करने की जिम्मेदारी सौंप दी। उदमी राम के कहेनुसार अंग्रेज महिला को अच्छा खाना, कपड़े और अन्य सामान दिया जाने लगा।
कुछ दिन बाद इस घटना का समाचार आसपास के गाँवों में फैल गया। कौतुहूलवश लोग उस अंग्रेज महिला को देखने भालगढ़ में ब्राहा्रणी के घर आने लगे और तरह-तरह की चर्चा करने देने लगे। यह चर्चा राठधाना गाँव के रहने वाले अंग्रेजों के मुखबिर ने भी सुनी। उदमी राम एवं उनके साथियों से संबंधित नया समाचार सुनकर वह भी घटना का पता लगाने के लिए पहले लिबासपुर गाँव में पहुंचा और फिर सारी जानकारी एकत्रित करके भालगढ़ में बाई के घर जा पहुंचा।
अंग्रेजों के मुखबिर ने बंधक अंग्रेज महिला से मिला और लिबासपुर से एकत्रित की गई सारी जानकारी उस महिला को दे दी। उसने अंग्रेज महिला को उदमी राम एवं उनके सभी साथियों गुलाब सिंह, जसराम, रामजस, जसिया आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी। केवल इतना ही नहीं, ने उस अंग्रेज महिला को बताया कि लिबासपुर गाँव ही अंग्रेजी सरकार के विद्रोह का केन्द्र है और उसी के निवासी ही नंबरदार उदमी राम के नेतृत्व में अंग्रेज अफसरों की घात लगाकर हत्या कर रहे हैं। मुखबिर ने अंग्रेज महिला को यह कहकर और भी डरा दिया कि बहुत जल्द वे क्रांतिकारी उसे भी मौत के घाट उतारने वाले हैं। यह सुनकर अंग्रेज महिला भय के मारे कांप उठी। उसने चालाकी से काम लेते हुए मुखबिर और ब्राहा्रणी को बहुत बड़ा लालच दिया और कहा कि यदि वह उसकी मदद करे और उसे पानीपत के अंग्रेजी कैम्प तक किसी तरह पहुंचा दे तो उसे मुंह मांगा ईनाम दिलवाएगी।
          मुखबिर ने झट अंग्रेज महिला की मदद करना स्वीकार कर लिया। मुखबिर ने बाई की मदद से रातोंरात उस अंग्रेज महिला को लेकर पानीपत के अंग्रेजी कैम्प में पहुंचा दिया। कैम्प में पहुंचकर अंग्रेज महिला ने मुखबिर की दी हुई सभी गोपनीय जानकारियां अंग्रेजी कैम्प में दर्ज करवाईं और यह भी कहा कि विद्रोह में सबसे अधिक भागीदारी लिबासपुर गाँव ने की है और उसका नेता उदमीराम है। इसके बाद अंग्रेजों का कहर लिबासपुर एवं उदमीराम पर टूटना ही था। सन् 1857 की क्रांति पर काबू पाने के बाद क्रांतिकारियों एवं विद्रोही गाँवों को भयंकर दण्ड देना शुरू किया। इसी क्रम में अंग्रेजी सरकार ने विद्रोह में भाग लेने वाले लिबासपुर व उसके आसपास के गाँवों को भी जमकर लूटा, तबाह किया और लोगों को भयंकर यातनाएं दीं। कई क्रांतिकारियों को काले पानी जैसी कठोर सजाएं भी दीं। कई गाँवों को नीलाम भी कर दिया और वहां के लोगों पर नौकरी के लिए प्रतिबन्ध भी लगा दिया। इसके साथ ही अंग्रेजों ने भोर होते ही लिबासपुर गाँव को घेर लिया और लोगों को चुन-चुनकर सजा देनी शुरू कर दी। नंबरदार को बंधक बना लिया गया। अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों की शिनाख्त के लिए देशद्रोही एवं गद्दार मुखबिर और भालगढ़ की बा्रहा्रणी बाई, जिसके घर अंग्रेज महिला को सुरक्षित रखा गया था को भी चौपाल में बुलवाया गया। उन्होंने क्रांतिकारियों को पहचानने में अहम भूमिका निभाई। जिस-जिस व्यक्ति का नाम लिया, अंग्रेजों ने उन सबको तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया। 
        इसके बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को जो दिल दहलाने वाली भयंकर सजाएं दीं, उन्हें शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। क्रान्तिवीर उदमी राम को उनकी पत्नी श्रीमती रत्नी देवी सहित गिरफ्तार करके राई के कैनाल रैस्ट हाऊस में ले जाकर उन्हें पीपल के पेड़ पर लोहे की कीलों से ठोंक दिया गया। अन्य क्रांतिकारियों को जी.टी. रोड़ पर लेटाकर बुरी तरह से कोड़ों से पीटा गया और सडक़ कूटने वाले कोल्हू के पत्थरों के नीचे राई के पड़ाव के पास भालगढ़ चौंक पर सरेआम बुरी तरह से रौंद दिया गया। इस खौफनाक मौत को देखकर आसमान भी थर्रा उठा। इनमें से एक कोल्हू का पत्थर सोनीपत के ताऊ देवीलाल पार्क में आज भी स्मृति के तौरपर रखा हुआ है। 
          उधर राई के रैस्ट हाऊस में पीपल के पेड़ पर लोहे की कीलों से टांगे गए क्रांतिवीर उदमी राम और उसकी पत्नी रत्नी देवी को तिल-तिल करके तड़पाया जा रहा था। उन दोनों को खाने के नाम पर भयंकर कोड़े और पीने के नाम पर पेशाब दिया जाता था। कुछ दिनों बाद उनकी पत्नी ने पेड़ पर कीलों से लटकते-लटकते ही जान दे दी। क्रांतिवीर उदमी राम ने 35 दिन तक जीवन के साथ जंग लड़ी और 35वें दिन 27 जून, 1858 को भारत माँ का यह लाल इस देश व देशवासियों को हमेशा-हमेशा के लिए आजीवन ऋणी बनाकर चिन-निद्रा में सो गया। उदमी राम की शहादत के बाद अंग्रेजी सरकार ने उनके पार्थिव शरीर का भी बहुत बुरा हाल किया और उसके परिवार को भी नहीं सौंपा। अंग्रेजों ने इस महान क्रांतिकारी के शव को कहीं छिपा दिया और बाद में उसे खुर्द-बुर्द कर दिया। क्रांतिवीर उदमी राम की स्मृति में एक स्तम्भ सोनीपत के ही ताऊ देवीलाल पार्क में बनाया गया है। इससे बड़ी विडम्बना का विषय और क्या हो सकता है कि शहीद उदमी राम के वंशज एवं उनके गाँव लिवासपुर वाले आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी स्वयं को परतंत्र मानते हैं और वे अपने हकों की लड़ाई आज भी बदस्तूर लड़ रहे हैं, लेकिन, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ऐसे में यक्ष प्रश्र यह है कि आखिर, कब मिलेगा शहीद उदमीराम के वंशजों को सम्मान और उनका हक?

गुरुवार, 25 जून 2015

देखिये, आडवाणी व अन्य नेता आपातकाल में रोहतक की इस जेल में रहे थे कैदी

देखिये, आडवाणी व अन्य नेता आपातकाल में 
रोहतक की इस जेल में रहे थे कैदी
-राजेश कश्यप 
         40 साल पहले आपातकाल की स्मृतियां आज भी भाजपा के वरिष्ठ व वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी को बैचेन कर रही हैं। आपातकाल के दौरान उन्हें हरियाणा जिले की राजनीतिक राजधानी कहलाने वाले जिले रोहतक की जेल में कैद किया गया था। हालांकि, उस जेल को स्थानांतरित करके पिछले साल सुनारियां चौक पर पहुंचा दिया गया है और पुरानी जेल के स्थान पर हुडा विभाग ने एक भव्य पार्क का निर्माण किया है।  
         रोहतक की वह पुरानी जेल, जिसमें वर्ष 1975 के आपातकाल के दौरान पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य कई राज्य व राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक हस्तियों को कैद किया गया था, वह अब दुर्लभ दस्तावेजी धरोहर में शामिल हो चुकी है। उस पुरानी जेल का दुर्लभ फोटो मैंने कई साल पहले अपने कैमरे में कैद कर लिया था। 
         चूंकि, लाल आडवाणी सहित जो भी नेता उस रोहतक की उस पुरानी जेल की टीस याद करके आज भी सिहर उठते हैं, आज आपको भी उस जेल के दर्शन करवा रहा हूँ। 
रोहतक की पुरानी जेल। (छाया चित्र: राजेश कश्यप)
         गौर से देखिये, यही है वह रोहतक की वह पुरानी जेल, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय नेता लाल कृष्ण आडवाणी के अलावा, मधु दण्डवते, चौधरी देवीलाल, डॉ. मंगलसेन, चौधरी ओम प्रकाश चौटाला, सिकन्दर बख्त जैसी महान सख्शियत कैद की गईं थीं।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की जुबानी 
आपातकाल के दौरान रोहतक जेल की पुरानी टीस
‘‘आपातकाल के दौरान जब हमें रोहतक लाया गया तो मध्य रात्रि हो चुकी थी और भारी बारिश हो रही थी। जेल अधिकारियों के साथ रोहतक में पहला सामना कोई सुखद नहीं रहा। जेल के उप-अधीक्षक, जिसका नाम सैनी था, ने एक अपराधी हमारे सामान की जांच-पड़ताल करने को कहा। हमारे कपड़ों और पुस्तकों को देखने के बाद  निराशा हाथ लगने पर वार्डर ने हमारी चप्पलों के तल्ले में ढ़ूंढ़ना शुरू कर किया कि हमने वहां कोई गुप्त कागजात तो नहीं छुपा रखे हैं।’’ (दैनिक ट्रिब्यून 25 जून, 2015)

शुक्रवार, 19 जून 2015

योग का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

21 जून, 2015/ प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस विशेष
योग का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व
-राजेश कश्यप 
21 जून, 2015/ प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस विशेष
        पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार भारत प्राचीनकाल में 'विश्वगुरू' कहलाता था और इसका स्थान विश्व में ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला व संस्कृति के क्षेत्र में हमेशा अग्रणीय रहता था। विश्व के सभी देश यहाँ आकर ज्ञान-विज्ञान की दीक्षा लेते थे और भारत को अपने आध्यात्मिक गुरू एवं मार्गदर्शन के रूप में स्वीकार करते थे। इस सन्दर्भ में मनुस्मृति में इस प्रकार उल्लेख किया गया है :-
'ऐतद्देश्प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मन:।
स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवा:।।'
        12 दिसम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जैसे ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव एवं आह्वान को दुनिया के 170 देशों की ऐतिहासिक स्वीकृति के बाद प्रतिवर्ष 21 जून को 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' मनाने की घोषणा की तो भारत एक बार फिर इक्कीशवीं सदी में 'वैश्विक गुरू' की भूमिका में आ गया। अध्यात्म और योग भारत की मूल पहचान रही है। अनेक विद्वानों का मानना है कि योगाभ्यास सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही चला आ रहा है। योग की सर्वव्यापकता 2700 ई.पूर्व सिंधु सरस्वती घाटी की सभ्यता में देखने को मिली और एक 'अमिट सांस्कृतिक विरासत' बनी।  'विश्व योग दिवस' से इस पहचान व प्रतिष्ठा को अपार बल मिलेगा। इसके साथ ही पूरा विश्व योग के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व से रूबरू होगा और साथ ही उसके लाभों से युक्त होकर एक नई दिशा में अग्रसित होगा। पूरी दुनिया में योग पर शोध को बढ़ावा मिलेगा, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
        'योग' क्या है? इसे संक्षिप्त रूप में परिभाषित करना सहज संभव नहीं है, क्योंकि 'योग' शब्द का व्यवहारिक अर्थ बेहद व्यापक है। लेकिन, साधारण शब्दों में 'योग' का मतलब 'जुडऩा', 'मिलना', 'युक्त होना', 'एकत्र होना' आदि होता है। संस्कृत में योग की उत्पत्ति 'युज' धातु से मानी गई है। 'युज' धातु में 'धञ' प्रत्यय जुडऩे से 'योग' शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। संस्कृत में 'युज' धातु का प्रयोग रूधादिगण में 'संयोग' के लिए, दिवादिगण में 'समाधि' के लिए और चुरादिगण में 'संयमन' के लिए प्रयुक्त हुआ है। 
        महर्षि पंतजलि ने अपने 'योगदर्शन' नामक ग्रन्थ में योग को चित को शांत करने व शरीर को रोगों से मुक्त करने वाला अचूक मंत्र कहा है। उन्होंने 'योग दर्शन' के समाधि पाद के द्वितीय सूत्र में योग को इस तरह से परिभाषित किया है :-
'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।। 2।।
तदा द्रष्टु: स्वरूपेऽस्थानाम्।। 3।।
वृत्तिसारूप्यमितरत्र।' ।। 4।।
        अर्थात्, चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। तब द्रष्टा के स्वरूप में अवस्थिति होती है। दूसरी अवस्था में द्रष्टा वृत्ति के समान रूप वाला प्रतीत होता है। 
        वेदान्त के अनुसार, 'जीवात्मा और परमात्मा को संपूर्ण रूप से मिलना योग है।' 
        योग वशिष्ठ के अनुसार, 'संसार सागर से पार होने की युक्ति को ही योग कहते हैं।'
        भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवदगीता के छठे अध्याय के 16वें व 17वें श्लोक में योग का जिक्र करते हुए कहा है :-
'नात्यश्रतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्रत:।
न चाति स्वप्रशीलस्य जाग्रतो नैवचार्जुन।।
युकृाहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु।
युक्त स्वप्रावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।।'
        अर्थात्, जो बहुत भोजन करता है, उसका योग सिद्ध नहीं होता। जो निराहार रहता है, उसका भी योग सिद्ध नहीं होता। जो बहुत सोता है, उसका भी योग सिद्ध नहीं होता और न ही उसका योग सिद्ध होता है, जो बहुत जागता है। जो मनुष्य आहार-विहार में, दूसरे कर्मों में, सोने-जागने में परिमित रहता है, उसका योग दु:खभंजन हो जाता है। 
        एक महायोगी ने योग को इस तरह से परिभाषित किया है :-
'योगं वदान्यै बल बुद्धि श्रेष्ठं,
पौरूष भवेत सदचित्त सौख्यं।
आत्मं परमात्मं भवतां नरेणं,
क्षेम च श्रेय योगं सुधीन:।।'
        अर्थात्, सम्पूर्ण जीवन में योग ही एक ऐसा मार्ग है, जिसके द्वारा पुरूष को बल, बुद्धि, श्रेष्ठता, पौरूष एवं सच्चरित्रता, ये पाँच सर्वोत्तम गुण प्राप्त होते हैं। योग के द्वारा ही व्यक्ति सामान्य स्तर से ऊपर उठकर आत्मा और परमात्मा तक पहुँचने की क्षमता प्राप्त कर लेता है और इसके माध्यम से ही व्यक्ति को कल्याण, शुभत्व और सुधि की प्राप्ति होती है। 
        योगशास्त्र में शिव को प्रथम योगी माना गया है और उसे 'आदियोगी' की संज्ञा दी गई है। कई अन्य पौराणिक सन्दर्भों में भी शिव को प्रथम योग गुरू व आदि गुरू माना गया है। माना जाता है कि कई हजार वर्ष पूर्व, हिमालय में 'कांति सरोवर' के तट पर आदियोगी ने योग का ज्ञान-विज्ञान 'सप्तऋषियों' (सात ऋषियों) को दिया था। बाद में इन्हीं सप्तऋषियों ने आदिगुरू द्वारा दिये गए योग-ज्ञान को धरती के कोने-कोने में पहुँचाने का कार्य किया। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भारतीय प्रायद्वीप व उसके आसपास योग संस्कृति जीवन का मूल आधार बनी। इसका साक्ष्य पुरास्थलों की खुदाई के दौरान मिलीं ऐसी अनेक मूर्तियां, मुहरें एवं तरह-तरह की सामग्रियां हैं, जिनमें योग की विभिन्न मुद्राएं अंकित हैं। योग की विशिष्ट महिमा का उल्लेख अमृताशीति, योग तत्वोपनिषद, योगकुण्डल्योपनिषद, योग चूड़ामण्युपनिषद, हठयोग प्रदीप, कूर्म पुराण, ज्ञानार्णव, मरण्यकण्टिका, समाधितंत्र, लिंग पुराण, देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण, वायु पुराण, शिव पुराण, विष्णु पुराण, स्कंध पुराण, नारद पुराण, श्रीमदभगवत, अग्रि पुराण आदि प्राचीन ग्रन्थों में विस्तार से मिलता है। पंतजलि जैसे महर्षियों, मुनियों, साधु-सन्तों, योगाचार्यों और महायोगियों ने योग को सर्वव्यापी बनाने में उल्लेखनीय भूमिकाएं निभाईं हैं। आधुनिक युग में 'योग गुरू' के रूप में मशहूर स्वामी रामदेव ने देश-विदेश में योग का परचम फहराया है। उनके अलावा, अन्य अनेक धर्माचार्य, योगी, साधू, सन्त और विद्वानों ने भी योग संस्कृति को समृद्ध बनाने में अतुलनीय योगदान दिया है। 
        महर्षि पंतजलि ने 'योगदर्शन' में कुल आठ प्रकार के योग बतलाए  गए  हैं,  जोकि इस प्रकार हैं:-1.यम,  2.नियम,  3. आसन्न, 4. प्राणायाम, 5.प्रत्याहार, 6.धारणा, 7.ध्यान और 8.समाधि। इन सबको मिलाकर अष्टांग योग कहा जाता है। योग को किसी धर्म, मजहब अथवा साम्प्रदायिकता के नजरिये से आंकना, मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है। योग का तो एक ही मूलधर्म है, श्रेष्ठ जीवन निर्माण। योग और अध्यात्म को गहराई से समझने की आवश्यकता है। दोनों का मूल काम है व्यक्ति को शारीरिक रूप से निरोग बनाना और मानसिक रूप से मजबूती प्रदान करना। योग के साथ आयुर्वेद भी जुड़ता है। यदि योग और आयुर्वेद को एक-दूसरे का पूरक कहा जाये तो कदापि गलत नहीं होगा। योग व आयुर्वेद तीन गुणों सत्व, रज व तमस और मंचमहाभूत पृथ्वी, वायु, अग्रि, जल और आकाश के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।
        सर्वमान्य रूप से कहा जा सकता है कि योग का बहुत महत्व है और यह एक श्रेष्ठ जीवन जीने की कला है। योग करने से शरीर एकदम स्वस्थ व सुन्दर बनता है। योग करने से शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है। इससे शरीर सुडौल व मजबूत बनता है और किसी तरह का कोई रोग नहीं होता है। योग से बुद्धि तेज होती है और स्मरण शक्ति बढ़ती है। योग से श्वसन तंत्र मजबूत होता है और ध्यान से मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। इससे एक उद्देश्यपूर्ण जीवन का निर्माण होता है और व्यक्तित्व में व्यवस्थित व योजनाबद्ध तरीके से काम करने की प्रवृत्ति पैदा होती है। योग से तमाम कुप्रवृत्तियों, दुव्र्यसनों और दुर्गुणों से निजात पाई जा सकती है। योग हर प्रकार से शक्तिशाली बनाने के साथ-साथ हमें बुद्धिमान व कार्यकुशल बनाता है। कुल मिलाकर, योग से ही सर्वांगीण विकास संभव हो सकता है। यदि एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण करना है और नकारात्मक ऊर्जा से निजात पाकर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है तो योग ही एकमात्र उपाय हो सकता है। शारीरिक एवं मानसिक विकारों को योग जड़ से मिटाता है और शरीर में एक नई ताजगी, स्फूर्ति एवं उमंगता का संचार करता है। 
        योग को मैडीकल साईंस ने भी स्वास्थ्य के लिए वरदान माना है। मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली के डॉ. प्रदीप चौबे के अनुसार योग की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता शरीर व मन का समन्वयन करना है। योग का रोगों की रोकथाम में सर्वाधिक महत्व है। योग तनाव से मुक्ति पाने का सशक्त माध्यम है। मेदांत दि मेडिसिटी, गुडग़ाँव के डॉ. अम्बरीश मित्तल का मानना है कि योग में 'युक्तिÓ यानी तरीका और 'मुक्ति' यानी तनाव व थकान से छुटकारा, इन दोनों का ही महत्व है। जीवन में संतुलन और सांमजस्य बनाये रखना योग सर्वोत्तम उपाय है। नियमित योग करने से रक्तचाप और मधुमेह जैसी बिमारियों को सहजता से नियंत्रित किया जा सकता है। केजीएम यूनिवर्सिटी, लखनऊ के डॉ. सूर्यकांत कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने सन 1947 में स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया था, ''दैहिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ होना ही स्वास्थ्य है।" योग इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है। केजीएम यूनिवर्सिटी और लखनऊ विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार यदि प्रतिदिन 30 मिनट योग किया जाये तो अस्थमा के मरीजों के जीवन स्तर में सुधार आता है। मेट्रो हॉस्पिटल व हार्ट इंस्टीच्यूट, नोएडा के निदेशक डॉ. पुरूषोत्तम लाल कहते हैं कि योग रक्तचाप को घटाने और हृदय की धडक़न को नियमित करने में सहायक है। दरअसल, योग केवल कुछ आसनों का नाम नहीं है, बल्कि यह जीने का सम्पूर्ण विज्ञान है। योग न केवल हृदय की बिमारियों की रोकथाम करने के लिए, बल्कि बाईपास सर्जरी और एंजियोप्लास्टी कराने के बाद भी लाभदायक सिद्ध होता है। वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. उन्नति कुमार का निष्कर्ष है कि योग शरीर के आटोनॉमिक नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को सशक्त करता है।         इसके साथ ही मनोरागों को दूर करने में बेहद सहायक सिद्ध होता है।
आधुनिक युग में तो योग अति आवश्यक हो गया है। लोगों की जीवनशैली में व्यापक बदलाव आ चुका है। भयंकर प्रदूषण, रासायनिक खेती, फास्ट-फूड संस्कृति और अनियमित दिनचर्या ने लोगों को शारीरिक व मानसिक रूप से बेहद कमजोर करके रख दिया है। हृदय संबंधी रोगों की बाढ़ आ चुकी है। दुनिया में भयंकर और असाध्य रोगों की कतार लगी हुई है। लोगों में धैर्य और सहनशीलता की भारी कमी आ चुकी है। बौद्धिक स्तर का निरन्तर हा्रस हो रहा है। मानवता पर पाश्विकता हावी हो रही है। यदि यह क्रम निरन्तर चलता रहा तो मानवीय जीवन के भविष्य की कुरूपता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। कहना न होगा कि योग का अनुसरण ही इन समस्त समस्याओं एवं विकारों का निराकरण संभव है।

(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।
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e-mail : rajeshtitoli@gmail.com

गुरुवार, 18 जून 2015

स्वर्गीय चांदराम : स्मृति शेष by -राजेश कश्यप

स्वर्गीय चांदराम : स्मृति शेष
-राजेश कश्यप
स्वर्गीय चांद राम
     पूर्व केन्द्रीय मंत्री, हरियाणा प्रदेश के पहले उपमुख्यमंत्री और दलितों-पिछड़ों के दिग्गज व अग्रणीय नेता चौधरी चांद राम का 92 वर्ष की आयु में गत 15 जून, 2015, सोमवार की दोपहर बाद 3ः35 बजे पीजीआई रोहतक के लाला शामलाल सुपरस्पेशिलिटी वार्ड में हार्टअटैक से देहावसान हो गया। वे गुर्दे के रोग से पीड़ित थे। उन्हें सुबह 11 बजे डायलिसिस के लिए भर्ती करवाया गया था। जैसे ही उनके निधन का समाचार लोगों को मिला, चारों तरफ शोक की लहर दौड़ पड़ी। चौधरी चांदराम अपने पीछे अपनी पत्नी, दो पुत्र व चार पुत्रियों सहित भरापूरा परिवार छोड़कर गये हैं।
    चौधरी चांदराम का जन्म 24 जून, 1923 को झज्जर जिले के खरहर गाँव में हुआ था। पिता खेत जोतते थे। वे पहली बार वर्ष 1952 में संयुक्त पंजाब के विधायक बने। उस समय वे दलितों के मसीहा डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के बाद दूसरे ऐसे दलित नेता थे, जो स्नातकोत्तर (एमए) उत्तीर्ण थे। उन्होंने वर्ष 1945-47 की अवधि में लाहौर से ‘अर्थशास्त्र’ में एमए की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने वर्ष 1937 से 1945 तक जाट स्कूल व राजकीय कालेज से स्नात्तक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी और प्रथम स्थान हासिल किया था। वे मेधावी छात्र थे। उनकीं मेधा से प्रभावित होकर दीनबन्धु सर छोटूराम ने उन्हें वजीफा भी दिया था। उनसे वजीफा पाकर बालक चांदराम ने हर परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया। चांदराम जी बचपन से ही चौधरी छोटू राम से प्रभावित थे। उन्हीं से प्रभावित होकर ही वे राजनीति में आये। 
    चौधरी चांदराम वर्ष 1948 में जिला वेलफेयर अफसर और डिस्ट्रीक्ट बोर्ड रोहतक के सदस्य बने। इसके उपरांत वे वर्ष 1950 से 1952 तक नगरपालिका रोहतक के ई.ओ. रहे। उस समय उनका वेतन 900 रूपये था। इसके बाद वे चुनावी राजनीति में कूद गए और दोहरी सदस्यता वाले झज्जर हल्के से वर्ष 1952 में विधायक का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। उन्होंने भीमसेन सच्चर की वजारत में उपमन्त्री बनने से इंकार कर दिया। बाद में उन्होंने बाद में सच्चर के इस्तीफे के बाद सरदार प्रताप सिंह कैरों की वजारत में उपमंत्री बनना स्वीकार किया। वे वर्ष 1956 में 5 माह पूरे वजीर रहे। इसके बाद वर्ष 1958 से 1962 तक उपसभापति रहे। तदुपरांत, वर्ष 1962 में 6 माह राज्यमंत्री और वर्ष 1965-66 में 4 माह पूरे वजीर रहे।
    1 नवम्बर, 1966 को हरियाणा प्रदेश का निर्माण हुआ। संयुक्त पंजाब विधानसभा में चुने गए हरियाणा के नेताओं से मिलकर नई हरियाणा विधानसभा का गठन हुआ। पंडित भगवत दयाल शर्मा के नेतृत्व में सरकार बनी। अगले वर्ष 1967 में हरियाणा प्रदेश विधानसभा के पहले चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को 46 सीटें मिलीं। उस समय चौधरी चांदराम कांग्रेस के नेता थे। उनके साथ चौधरी देवीलाल और चौधरी छोटूराम के भतीजे श्रीचन्द भी कांग्रेस पार्टी में ही शामिल थे। जब चौधरी चांदराम को पता चला कि चण्डीगढ़ में होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें केबिनेट मंत्री नहीं बनाया जा रहा है तो वे तुरंत पंडित भगवत दयाल से मिले और दो टूक शब्दों में चेतावनी दे डाली कि, ‘‘यू ंतो राम-लछमण की जोड़ी टूट जायेगी।’’ इसके जवाब में पंडित भगवत दयाल शर्मा ने कहा कि, ‘‘चांदराम सब ग्रह दशा और नक्षत्रों का खेल है।’’ इस पर चौधरी चांदराम ने स्पष्ट तौर कह दिया कि ‘‘पंडित जी, अब अपने ग्रह देख लेना।’’
    जब 12 दिन बाद विधानसभा स्पीकर का चुनाव होना था तो चौधरी चांदराम सहित 17 कांग्रेसी विधायकों ने बगावत कर दी। इसके परिणामस्वरूप पंडित भगवत दयाल शर्मा को इस्तीफा देना पड़ा। इस तरह चौधरी चांदराम प्रदेश के इतिहास में पहले ऐसे नेता के रूप में दर्ज हो गये, जिन्होंने कांग्रेस की सरकार को गिराया। कांग्रेस सरकार गिरने के बाद राव बीरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के इन 17 कांग्रेसी नेताओं के सहयोग से अपने पिता राव इन्द्रजीत सिंह द्वारा बनाई गई ‘हरियाणा विशाल पार्टी’ के बैनर तले नई सरकार का गठन किया, जिसमें चौधरी चांदराम को प्रदेश के पहले उप-मुख्यमंत्री के पद से नवाजा गया। 
    मुख्यमंत्री राव बीरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में सभी विधायकों ने लोटे में नमक डालकर शपथ ली थी कि वे पूंजीपति लोगों के घर कभी खाना नहीं खाएंगे। लेकिन, इस कसम को 249 दिन बाद स्वयं मुख्यमंत्री राव बीरेन्द्र सिंह ने यमुनानगर शुगर मिल के मालिक के घर खाना खाकर इस शपथ को तोड़ दिया। इसके खिलाफ श्रीमती इन्दिरा गांधी से परामर्श के बाद चौधरी चांदराम ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और नवम्बर, 1967 में ही राव बीरेन्द्र सिंह की सरकार भी गिर गई। यह दौर प्रदेश की राजनीति में ‘आया राम गया राम’ के नाम से बेहद चर्चित रहा। प्रदेश की सरकार थोड़े-थोड़ समयांतराल के उपरांत ही गिर गईं, जिसमें चौधरी चांदराम की प्रमुख भूमिका रही।
    वर्ष 1967 के अंत में चौधरी चांदराम ने कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल की पार्टी ‘हरियाणा लोकदल’ में शामिल हो गये। वे वर्ष 1977 तक रादौर-बाबैन से विधायक चुने जाते रहे। वर्ष 1977 में उन्हें जनता पार्टी का हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने 90 में से 76 सीटें जीतकर तहलका मचा दिया और साथ ही चौधरी चांदराम का कद पार्टी में कई गुना बढ़ा दिया। इन चुनावों में चौधरी चांदराम ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए रिकार्ड़ 11 पिछड़ी जाति के लोगों को टिकट दिलवाईं। उन्होंने सिरसा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज करके पहली बार 21.03.1977 को लोकसभा पहुंचे। चौधरी चांदराम की कद को देखते हुए जनता पार्टी ने उन्हें केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री बना दिया। वे 18 माह तक केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री पद पर पदासीन रहे। चौधरी चांदराम कुल मिलाकर 7 बार विधायक और एक बार सांसद बने।
    चौधरी चांदराम ने दलितों के उत्थान के लिए दिनरात एक कर दिया। उन्होंने दलितों को जमीनों में हिस्सेदारी भी दिलवाई। अपने विभिन्न कार्यकालों के दौरान दलितों को सरकारी व पंचायती जमीनों का आवंटन करवाने से लेकर उनके मकान बनाने तक के कार्य किये। उन्होंने दलितों के लिए डटकर संघर्ष किया। दलितों की एकता व अटूटता बनाने में चौधरी चांदराम काफी हद तक कामयाब रहे थे। दलितों के हकों की लड़ाई के लिए वे 1975 में जेल में भी गए। चौधरी चांदराम ने दलितों को शिक्षा और रोजगार के मामले में आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। देहात में ‘ऊपर राम, नीचे चांदराम’ की लोकोक्ति प्रचलित हो उठी। चौधरी चांदराम ने शुरू से ही भाई-भतीजावाद और परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ आवाज उठाई और स्वयं भी उस पर अमल किया। उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि उनके परिवार से राजनीति में न कोई है और न ही भविष्य में कोई आयेगा।
    चौधरी चांदराम एक उच्चकोटि के नेता, प्रखर प्रवक्ता, बुद्धिजीवी, उत्कृष्ट पत्रकार, विशिष्ट समाजसेवी, पराक्रमी और दूरदृष्टा थे। वे 1954 से ‘जागता इन्सान’ नामक साप्तिाहिक समाचार पत्र भी निकालते थे। इन समाचार-पत्रों में उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों, विचारों और अभिलाषाओं को मूर्त रूप दिया। 
    चौधरी चांदराम एक दलित, पिछड़े, शोषित और बेसहारा की आवाज बने। क्योंकि वे उनके दुःख-दर्द और भावनाओं को बेहद गहराई से समझते थे। जीवन के अंतिम पड़ाव में भी उन्होंने दलितों व पिछड़ों को एक मंच पर लाने के अथक प्रयत्न किये। गत 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनावों से पूर्व ‘सुराज पार्टी’ का गठन भी किया और उसके संरक्षक के रूप में पार्टी के विधानसभा चुनावों में भाग लेने का ऐलान कर दिया। लेकिन, स्वास्थ्य कारणों के चलते ऐसा संभव नहीं हो सका। 
    चौधरी चांदराम ने अपने राजनीतिक कैरियर में कई दल बदले। इस समय वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके थे। उन्होंने दलितों व पिछड़ों को एक मंच पर लाने के लिए अपने 93वें जन्मदिन पर ‘सुशासन मंच’ स्थापित करने और दलितों-पिछड़ों के हकों की लड़ाई जमीनी स्तर पर लड़ने की घोषणा कर दी थी। इस कार्यक्रम की रूपरेखा 31 मई, 2015, रविवार को उनके आर्य नगर, रोहतक स्थित उनके निवास स्थान पर बुलाई गई एक उच्च स्तरीय सदस्यों की बैठक में तैयार की गई। इस बैठक में चौधरी चांदराम ने अपने भावी ‘सुशासन मंच’ के लिए जिन 11 सदस्यीय कमेटी के गठन का प्रस्ताव पास किया था और यह कार्यक्रम 28 जून को गुरू रविदास होस्टल, आर्य नगर, रोहतक में रखा गया था। लेकिन, इस कार्यक्रम के 13 दिन पहले ही चौधरी चांदराम इस दुनिया को अलविदा कह गए। परमपिता परमात्मा से याचना है कि वे उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें। इस महान आत्मा को कोटि-कोटि प्रणाम। 
आर्य नगर रोहतक स्थित चौधरी चांदराम का आवास

स्वर्गीय चौधरी चांदराम: यादें
बेहद आत्मिक लगाव भरी मुलाकातें
    मुझे स्वर्गीय चौधरी चांदराम जी से कई बार मिलने का सौभाग्य मिला। वे हर बार गले लगाते और बड़ी आत्मियता से मिलते तो मैं बेहद भाव-विभोर हो उठता। हर जिज्ञासा को बेहद अनूठे व सहज भाव से शांत करना, अपने विजन और मिशन से अवगत करवाना, दलितों-पिछड़ों के कल्याण के लिए जमीनी स्तर पर लड़ने के लिए प्रेरित करना और पुरानी राजनीतिक यादों को जीवंत करना आदि सब चौधरी चांदराम की अनुपम विशेषता थी। उनमें तनिक भी किसी भी प्रकार का घमण्ड नहीं था। वे छोटे-बड़े व उम्र आदि के किसी भी भेद को नहीं मानते थे। मुझे उनकी बराबर में बैठकर आत्मिय चर्चा करने का परमसौभाग्य कई बार मिला। वे बेहद साधारण स्वभाव की असाधारण शख्सियत थे। जब मैं 5 वर्ष पूर्व उनके निवास स्थान पर 88वें जन्मदिन की शुभकामनाएं देने पहुंचा तो यह देखकर दंग रह गया कि उन्होंने बेहद साधारण ढ़ंग से जन्मदिन मनाना तय किया था। उन्होंने सिर्फ एक फूलमाला ही उपहार स्वरूप ग्रहण की थी और मुझे गले लगाकर असीम दुआएं और आशीर्वाद दिया था। उसके बाद काफी समय तक उन्होंने अपने साथ सोफे पर बैठाकर कई विषयों पर लंबी चर्चा की और अनेक चुटीली व रोमांचक बातें सांझा कीं। उन गौरवमयी ऐतिहासिक पलों को और चौधरी चांदराम की बेहद आत्मिक लगाव वाली मुलाकातों को मैं आजीवन भूला नहीं सकता। 
चौधरी चांदराम को 88वें जन्मदिन पर बधाई देते हुए राजेश कश्यप 

चौधरी चांदराम के साथ गहन वार्तालाप करते हुए राजेश कश्यप

पुरानी यादों को राजेश कश्यप के साथ सांझा करते हुए चौधरी चांदराम
लाखनमाजरा में समाजसेवी मनजीत दहिया के घर पर चौधरी चांदराम के साथ राजेश कश्यप 

विशिष्ट अतिथि के रूप में...
विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधन करते हुए चौधरी चांदराम, साथ में खड़े हैं राजेश कश्यप 
    हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक के प्रधान के रूप में 18 जुलाई, 2010 को रोहतक जिले के महम में ‘सामाजिक सद्भावना एवं विकास महासम्मेलन’ का आयोजन किया जाना तय किया तो मैंने स्वर्गीय चौधरी चांदराम से महासम्मेलन में बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल होने का अनुरोध किया। मैं यह देखकर दंग रह गया कि चौधरी साहब ने इस अनुरोध को स्वीकार करने में एक मिनट भी नहीं लगाई। केवल इतना ही नहीं जब उन्होंने इस महासम्मेलन के उद्देश्यों के बारे में पूछा तो वे एकदम खुश हो गए और महासम्मेलन की कामयाबी के लिए अग्रिम शुभकामनाएं भी दीं। 
चौधरी चांदराम जी बतौर विशिष्ट अतिथि ‘सामाजिक सद्भावना एवं विकास महासम्मेलन’ में पहुंचे और अपने सम्बोधन में दलितों व पिछड़ों को एकता का पाठ पढ़ाया। चौधरी चाँद राम ने अपने संबोधन में कहा कि सामाजिक विकास के लिए शिक्षा पर जोर देना बहुत जरूरी है। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि वे एससी व बीसी का आरक्षण हर स्तर पर लागू करे, ताकि देश की ११३ दलित एवं पिछड़ी जाति का भला हो सके। उन्होंने अपने सम्बोधन के दौरान मंच पर मेरी तारीफों के पुल बांधकर मेरी अभूतपूर्व हौंसला अफजाई भी की।
महासम्मेलन में माला पहनाकर स्वागत करते वरिष्ठ समाजसेवी महेन्द्र सिंह कश्यप 

चौधरी चांदराम के साथ स्वागत प्रक्रिया के दौरान राजेश कश्यप

महासम्मेन के स्मृति-चिन्ह को स्वीकार करते हुए चौधरी चांदराम

अंतिम उच्च स्तरीय बैठक
उच्चस्तरीय बैठक लेते हुए चौधरी चांदराम
चौधरी चांदराम ने अपने जीवन की अंतिम उच्च स्तरीय बैठक दिनांक 31 मई, 2015 रविवार को प्रातः 11 बजे आर्य नगर, रोहतक स्थित अपने निवास स्थान पर बुलाई थी। इस बैठक की अध्यक्षता उन्होंने स्वयं की थी। इस बैठक का हिस्सा बनने का सौभाग्य मुझे भी मिला। चौधरी चांदराम ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में ‘सुराज मंच’ की योजना, स्थापना, उद्देश्य एवं रणनीति के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। बाद में इस बैठक में यह तय हुआ कि चौधरी चांदराम के 93वें जन्मदिवस के अवसर पर 28 जून, 2015 को गुरू रविदास होस्टल, आर्य नगर, रोहतक के प्रांगण में दलितों व पिछड़ों का एक विशाल सामाजिक महासम्मेलन आयोजित किया जायेगा। इस महासम्मेलन में चौधरी चांदराम द्वारा दलितों व पिछड़ों के हकों की आवाज उठाने के लिए ‘सुराज मंच’ बनाने की घोषणा किया जाना प्रस्ताव पारित किया जाना तय किया गया। इसके लिए चौधरी चांदराम ने एक 11 सदस्यीय कमेटी बनाने का सुझाव भी दिया और यह मेरा परमसौभाग्य रहा कि उन्होंने इस कमेटी में दो सदस्यों, मुझे (राजेश कश्यप) और दूसरे हरलाल जांगड़ा जी को विशेष तौरपर शामिल करने की सिफारिश की। (इस बैठक की विडियो क्लिपिंग के अंत में 25:14 मिनट पर आप भी सुन सकते हैं।)। निःसन्देह, स्वर्गीय चौधरी चांदराम जी का यह आत्मिक लगाव व आशीर्वाद मेरे लिए आजीवन अविस्मरणीय रहेगा।
बैठक को संबोधित करते हुए चौधरी चांदराम
उच्चस्तरीय बैठक की प्रति


अंतिम उच्चस्तरीय बैठक की वीडियो क्लिपिंग द्वारा राजेश कश्यप 

बैठक के उपरांत चौधरी चांदराम के साथ राजेश कश्यप
‘जागता इन्सान’ 
स्वर्गीय चौधरी चांदराम वर्ष 1954 से अपने संरक्षण में ‘नया समाज और कमाऊ का उत्तराधिकारी’ की टैगलाईन के साथ साप्ताहिक क्रांतिकारी समाचार-पत्र ‘जागता इन्सान’ निकालते थे। इस समाचार की प्रति को वे अपने आशीर्वाद स्वरूप मुझे जरूर भेजते थे। देखिए उनके आशीर्वाद स्वरूप एक प्रति:
साप्ताहिक क्रांतिकारी समाचार-पत्र ‘जागता इन्सान’

अंतिम यात्रा
    चौधरी चांदराम का अंतिम संस्कार 17 जून, 2015 की शाम को 5 बजे खोखराकोट स्थित शमशानघाट में राजकीय शोक के साथ मातमी धुन व बन्दुकों की सलामी के बीच किया गया। मुखाग्नि उनके सुपुत्र संजय ने दी। इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर, केन्द्रीय मंत्री श्री बीरेन्द्र सिंह, रोहतक लोकसभा सांसद श्री दीपेन्द्र हुड्डा, हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष एवं दलित नेता डॉ. अशोक तंवर, हिसार लोकसभा सांसद दुष्यन्त चौटाला, रोहतक विधायक श्री मनीष ग्रोवर सहित सभी पार्टियों के नेता, वरिष्ठ समाजसेवी और हजारों गणमान्य लोग उपस्थित थे। 
चौधरी चांदराम की अंतिम यात्रा के हर लम्हें को मैंने अपने कैमरे में कैद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उनकीं इस अंतिम यात्रा, किसी पुण्य-यात्रा से कम महसूस नहीं होतीं। दलितों-पिछड़ों के दिग्गज व महापैरोकार स्वर्गीय चौधरी चांदराम की अंतिम यात्रा के महत्वपूर्ण लम्हें उस महान आत्मा को कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए खास तौरपर आपके लिए सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

स्वर्गीय चांदराम का अमर सन्देश व अंतिम आह्वान:

    चौधरी चांदराम ने अपने क्रांतिकारी समाचार पत्र ‘जागता इन्सान’ के अंतिम अंक में अपने दो लेखों के जरिये अपना अमर सन्देश दिया और समाज से आह्वान भी किया। उन्होंने इसे 31 मई, 2015 की उच्च स्तरीय बैठक में पढ़कर भी सुनाया। तब उन्हें क्या, किसी को भी यह आभास नहीं था कि ये उनके अंतिम शब्द सिद्ध होंगे। आप भी पढ़िये उनका अमर सन्देश एवं अंतिम आह्वान:-

स्वर्गीय चांदराम का अंतिम अमर सन्देश

स्वर्गीय चांदराम का अंतिम आह्वान:

कैमरे की जुबानी







































अंतिम यात्रा : जीवन्त दर्शन



श्रद्धांजलियां
श्री मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार

‘‘चौधरी चांदराम ने अपना पूरा जीवन गरीब व पिछड़े वर्ग के लोगों की भलाई के लिए लगा दिया। चौधरी चांदराम द्वारा समाजहित में किए गए कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। चौधरी चांदराम के निधन से उन्हें व्यक्तिगत रूप सं भी दुःख पहुंचा है। दुःख की इस घड़ी में भारतीय जनता पार्टी व राज्य सरकार उनके परिवार के साथ खड़ी है।’’
-श्री मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार।
चौधरी बीरेन्द्र सिंह, केन्द्रीय मंत्री, भारत सरकार

‘‘जब भी गरीबों पर अत्याचार हुआ तो चौधरी चांदराम अग्रिम पंक्ति मे ंखड़े हुए मिले। चौधरी चांदराम के साथ पारिवारिक संबंध रहे हैं और वे उनके सहयोग से ही अपना पहला चुनाव जीत पाने में सफल हुए थे।’’
-चौधरी बीरेन्द्र सिंह, केन्द्रीय मंत्री, भारत सरकार।
श्री दीपेन्द्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस सांसद, रोहतक लोकसभा क्षेत्र

‘‘समाज ने आज महान नेता खो दिया। उन्होंने हमेशा कमजोर वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ी, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।’’
-श्री दीपेन्द्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस सांसद, रोहतक लोकसभा क्षेत्र।
डॉ. अशोक तंवर, अध्यक्ष, हरियाणा कांग्रेस पार्टी

‘‘चौधरी चांदराम की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता। उनके निधन से देश के बहुत बड़े वर्ग को क्षति पहुंची है। उनके संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता।’’
-डॉ. अशोक तंवर, अध्यक्ष, हरियाणा कांग्रेस पार्टी।
श्री दुष्यन्त चौटाला, इनेलो सांसद, हिसार लोकसभा क्षेत्र

‘‘उनके जाने से जो स्थान रिक्त हुआ है, उसे राजनीतिक रूप से कभी भरा नहीं जा सकता। वे एक मिलनसार व हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें हमेशा याद रखा जायेगा।’’
-श्री दुष्यन्त चौटाला, इनेलो सांसद, हिसार लोकसभा क्षेत्र।


प्रस्तुति: राजेश कश्यप (मोबाईल नंः 09416629889)