त्वरित टिप्पणी/
-राजेश कश्यप
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों, किसानों और श्रमिकों आदि को कोरोना संकट से उभरने के लिए बीस लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह देश की कुल जीडीपी का लगभग दस प्रतिशत है। इसे प्रत्याशित कदम के साथ-साथ अप्रत्याशित भी कहा जायेगा। प्रत्याशित इसलिए, क्योंकि केन्द्र सरकार परे आर्थिक पैकेज की घोषण करने का निरन्तर दबाव बढ़ रहा था। अप्रत्याशित इसलिए, क्योंकि शायद ही किसी ने इतने बड़े पैकेज की घोषण की उम्मीद की हो। कुल मिलाकर, यह आत्मनिर्भर भारत पैकेज देश के हर वर्ग के लिए बहुत बड़ी राहत लेकर आयेगा। इस आर्थिक पैकेज की मुक्तकंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत आर्थिक पैकेज के जरिए कुटीर, लघु और मंझोले कुटीर उद्योगों को खड़ा करने का विजन प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही लोकल प्रोडक्ट को अपना जीवन मंत्र बनाने के लिए जनता से आह्वान भी किया है। गरीबों, मजदूरों और किसानों को आर्थिक संबल देकर कृषि व उद्योग जगत में नई जान फूंकने का प्रयास होगा। इस आर्थिक पैकेज की प्रबल मांग थी। इस आर्थिक पैकेज का खाका जल्द देश के सामने आयेगा। लेकिन, प्रधानमंत्री ने पूरा भरोसा दिलाया है कि यह आर्थिक पैकेज भ्रष्टाचार की भेंट नहीं चढ़ेगा और हर जरूरतमंद को उसका सीधे लाभ मिलेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाउन के चौथे चरण का ऐलान जिस रूप में लागू करने की घोषणा की है, वह समय के अनुरूप ही कहा जायेगा। प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा है कि हमें कोरोना से बचना भी है और आगे बढ़ना भी है। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का जो संकल्प व्यक्त किया और जिन जिम्मेदारियों का अहसास करवाया, वह अति सराहनीय है। हालांकि, प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों को पन्द्रह मई तक अपने सुझाव देने के लिए कहा है और उसी के आधार पर लॉकडाउन-4 के नियम तय करने का ऐलान किया है। लेकिन, उन्होंने स्पष्ट कहा है कि लंबे समय तक कोरोना का संकट बना रहेगा। इसलिए, सिर्फ हम सब कोरोना के इर्द-गिर्द ही हम बंधकर नहीं रह सकते। इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमें कोरोना संकट में भी साहस और समझदारी के साथ आगे बढ़ते रहने की आवश्यकता है।
कोरोना संकट से उबरने के लिए केन्द्र सरकार ने अब तक हर कदम फूंक फूंककर उठाया है और दुनिया में अपनी सूझबूझ का लोहा मनवाया है। कोरोना को विस्फोटक होने से रोका है। इसके लिए देश का हर नागरिक साधुवाद का पात्र है। लॉकडाउन के तीन चरणों में लोगों ने जिन विकट परेशानियों का सामना करना पड़ा और जिस संयम व समझदारी का परिचय दिया, वह अभूतपूर्व है। इसके बावजूद, यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना के कारण आर्थिक रूप से निम्न व मध्य वर्ग के लोगों की कमर पूरी तरह से टूट चुकी है। गरीबी, बेरोजगारी और बेकारी चरम पर पहुंच चुकी है। श्रमिक विभिन्न राज्यों में फंसे हुए हैं। प्रवासी मजदूरों की हालत अति दयनीय हो चली है। उन्हें इन हालातों से निकालने के लिए अनेक स्तर पर गम्भीरता के साथ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
देश बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है। इस कटू तथ्य से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता कि एक तरफ देश में कोरोना का संकट निरन्तर गहराता जा रहा है और दूसरी तरफ लॉकडाउन के तीन चरणों के दौरान लोग घरों में कैद होकर ऊब गए हैं। इसके साथ ही यह भी बेहद चिंता एवं चुनौती का विषय है कि आज भी बहुत बड़े स्तर पर कोरोना को हल्के में लिया जा रहा है। बड़े पैमाने पर लापरवाहियां देखने को मिल रही हैं। बड़े स्तर पर मुंह पर मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सेनेटाईजिंग जैसी जरूरी हिदायतों का पालन करने में कोताही बरती जा रही है। यदि कुछ समय ये कोताही व लापरवाहियां जारी रही तो निश्चित तौरपर कोरोना की महामारी देश में विस्फोटक रूप ले सकती है।
एक तरफ जहां कोरोना संकट से निपटने के लिए जन-जन को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, वहीं दूसरी तरफ केन्द्र व राज्य सरकारों को भी तीव्र गति से आर्थिक स्तर पर आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। आर्थिक पैकेज के एक-एक पैसे को पूरी पारदर्शिता के साथ खर्च करना बेहद जरूरी है। यदि ऐसा होता है तो यह आर्थिक पैकेज कायापलट करने वाला सिद्ध हो सकता है। गरीब लोगों के जनधन खातों में सीधे धनराशी डाली जाये तो भ्रष्टाचार की संभावनाए न के बराबर रहेगी। न जाने क्यों गरीब लोगों को अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा है कि उन्हें इस आर्थिक पैकेज का कोई लाभ मिलने वाला है। आम लोगों के मन में संशय है कि इस आर्थिक पैकेज का अधिकतर लाभ उद्योगपतियों को मिलने वाला है।
प्रधानमंत्री ने देश को जो आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया है, वह देश के लिए बहुत बड़ा सन्देश और संकेत है। देश को हर स्तर पर आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है। मेक न इंडिया का मूल मंत्र भी आत्मनिर्भरता का मूल आधार है। लेकिन, विडम्बना का विषय है कि इस मूल मंत्र का असर अभी तक उम्मीदों के अनुरूप परिणाम लेकर नहीं आया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्षेत्रीय उत्पादों का प्रयोग करने और उनका प्रचार-प्रसार करने का आह्वान किया है। उन्होंने खादी का उदाहरण दिया। इसी तर्ज पर हर लोकल प्रोडक्ट को महत्व देने की अपील की गई है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि ग्रामीण संस्कृति का मूल आधार कृषि, पशुपालन और लघु कुटीर उद्योग रहा है। लेकिन, इनकीं निरन्तर घोर उपेक्षा हो रही है। यदि प्रधानमंत्री का आह्वान रंग लाता है तो कहने की आवश्यकता नहीं है कि न केवल देश आर्थिक रूप से सशक्त होगा, अपितु गरीबी, बेरोजगारी और बेकारी से भी काफी हद तक मुक्ति मिल सकती है।
-राजेश कश्यप
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
टिटौली (रोहतक)
हरियाणा-124005
मोबाईल/वाट्सअप नं.: 9416629889
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