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सोमवार, 10 अगस्त 2009

समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं व टेलिविज़न की वेबसाइट्स / राजेश कश्यप

समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं व टेलिविज़न की वेबसाइट्स / राजेश कश्यप
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5abi
Aajkaal Bengali, Kolkata
Aaj Tak
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Anandabazar Bengali, West bengal
Aaraamthinai
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Accommodation Times Agra of Taj Agra
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Ajir Asom Assamese, Assam
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Amar Ujala
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Anandabazar Patrika
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Asian Age English
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The Assam Tribune English, Guwahati
Aurangabadtimes Urdu daily Urdu, Maharashtra
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BBC Hindi
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Bhaskar Hindi, Haryana
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Cochin2day Kerala
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Daily Dasar Katha Bengali, Tripura
The Daily Etalaat English & Urdu, Srinagar
Daily Excelsior English, Kashmir
Daily Kesari
The Daily Milap
Daily News & Analysis English
Daily Roshni Urdu, Srinagar
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Dainik Agradoot Assamese, Assam
Dainik Aikya Satara
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Dainik Jagran
Dainik Sach Kahoon Haryana
Dainik Suprovat Calcutta
Dakshin Bharat Hindi, Karnataka
Darjeeling Times Darjeeling
Dateline India (Subscription Only) Hindi
The Day After English, New Delhi
Deccan Chronicle Andhra Pradesh
Deccan Herald Bangalore
Deepika Malayalam & English
Deepika Global South India
Deshabhimani Daily Keralam
Deshbandhu Hindi, Delhi
Deshdoot Nasik, Jalgaon, Dhule, Nandurbar
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Dinakaran English, Tamil Nadu
Divya Bhaskar Gujrat
DLA Hindi, Uttar Pradesh
DNA Mumbai
E-pao
The Economic Times English
The Echo of India English
Eenadu Telugu, Andhra Pradesh
The Etemaad Daily Urdu, Hyderabad
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Ganashakti English, Kolkata
General Daily Malayalam, Thrissur (Kerala)
Gold News Bengali, Kolkata
Gomantak Times Goa
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Haalkhabar Sikkim
Headlines India English
Himgiri Nepali & English, Sikkim
Him Giri News Nepali Nepali
Him Times Himachal
Hindi Milap
The Hindu
The Hindu South States
The Hindustan Times
India Abroad
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Kashmir Observer English
Kashmir Times English
Kaumudi Online
Kerala Kaumudi
Kerala Online Malayalam
KhabarExpress.com Hindi & English, Rajasthan
Khas Khabar Rajasthan
Kochin Today Malayalam
Kumudam
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Loksatta
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Madhyamam Daily Malayalam, Kerala
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Mangalorean Times Kannada & English
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Manorama Online Malayalam, Kerala
Marathi News Daily Pune
Mathrubhumi Malayalam, Kozhikode
Mawphor Shillong, Meghalaya
Media Newsline English
Mera Chandigarh English, Chandigarh
Mid-Day
The Milli Gazette
The Morung Express English, Nagaland
Mumbai Mirror English, Bombay
Munsif Daily Hyderabad
Myjhunjhunu.com Jhunjhunu, Rajasthan
Nagaland Post English, Nagaland
Naidunia Indore
Nav Bharat Times Hindi
Navhind Times Goa
Neindia.com English, Tripura
Newindpress.com
NewKerala English, Kerala
News Today
News Wing Hindi & English, Jharkhand
Newstrack India English, Delhi
Nida-I-Mashriq Urdu, Jammu and Kashmir
Nobat Jamnagar, Gujarati
Northern News Lines Hindi & English
Northlines English, Jammu & Kashmir
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Online Newspaper Hindi & English
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Orissa India
Orissa Infoline English & Oriya
Orissa Sambad
(Orissa) [Oriya] Outlook India
Panchjanya
Parabaas
Pathirika Online.com English, Chennai
Patna Daily
Phayul English (Tibetian International)
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Prabha Sakshi
Prabhat Khabar Hindi
Pragativadi
Pratahkal Hindi (Rajasthan Mumbai Delhi)
Prajavani Kannada Daily Bangalore
Prajodaya Kannada
Pramukhandhra
Pudhari Kolhapur
Punecity.com
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Quami Ekta
Ranchi Express English, Jharkhand
Rajasthan Patrika
Rajdhani Times New Delhi
Rajmangal Times Hindi & English
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Rohini Times English
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Sahara Samay (Uttar Pradesh)
Sahil Online Urdu (Karnataka)
Sahil Online English, Karnataka
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The Samaj Oriya (Orissa)
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Sangbad Pratidin Calcutta
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Sanjh Savera
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The Shillong Times (Shillong, Meghalaya)
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Sikkim Express English (Sikkim)
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The Statesman English (Delhi)
Suddi Bidugade Kannada (Puttur , Sullia , Belthangady)
Suprovat
Swatantra Vaartha (Andhra Pradesh)
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Tarun Bharat
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Uttarbanga Sambad (Wesl Bengal, Entire North Bengal)
Vikatan
Vishva Kannada
Voice of Assam
The Voice of Millions English
Web Dunia
Web India English
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शनिवार, 27 जून 2009

कैरिअर लेख

कैरियर और अकादमिक विषयक्षेत्र के रूप में - रक्षा अध्ययन
भूभौतिकी में रोज़गार
खाद्य विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में शिक्षा और रोजगार की संभावनाए
न्यायालयीय विज्ञान में रोज़गार के अवसर - डॉ. के. जयप्रकाश
एनिमेशन और मल्टीमीडिया में रोज़गार
भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर - डॉ. सीमिन रुबाब
खुदरा प्रबंधन में रोजगार की संभावनाएं
खगोल-भौतिकी में रोजगार के अवसर
गेट परीक्षा की तैयारी कैसे करें
पर्यावरणीय विज्ञान तथा इंजीनियरिंग में रोजगार की संभावनाएं
रोजगार बाजार में चुनौतियां और अवसर
बीपीओ क्षेत्र में रोजगार के अवसर
भ्रमण, पर्यटन और आतिथ्य उद्योग एक लाभप्रद रोजगार का विकल्प
बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग में रोजगार के अवसर
अर्द्ध-चिकित्सा व इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों में कॅरिअर
कम्पनी सचिव के रूप में रोज़गार के अवसर
पुस्तकालय और सूचना विज्ञान में कॅरिअर
वानिकी में रोजगार के अवसर
भारत में व्यवसाय प्रबंधन में रोजगार के उत्कृष्ट अवसर
विजुअल आर्ट अर्थात सफलता का कॅनवास
मूर्तिकला के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं
कार्यात्मक हिंदी में कॅरिअर
कम्प्यूटर फॉरेंसिक के क्षेत्र में रोजगार
फूलों की खेती में रोजगार के अवसर
कम्पनी सचिव के रूप में रोज़गार के अवसर - अनुपम लाहिडी
कार्यात्मक हिंदी में कॅरिअर - हिना नक्वी
फूलों की खेती में रोजगार के अवसर - डॉ. पी. सी. ठाकुर
मानव संसाधन प्रबंधन में कॅरिअर - डॉ. रचना केत्र गोडम
कार्यात्मक हिंदी में कॅरिअर - हिना नक्वी
वानिकी में रोजगार के अवसर
कम्प्यूटर फॉरेंसिक के क्षेत्र में रोजगार - डॉ. ए. जी. मरानी
युवाओं के लिए रोजगार के आकर्षक अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
भारत में वन्यजीव शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य और संभावनाएं (भाग - I) - डॉ. सोमेश सिंह, डॉ. बी.एम. अरोड़ा
फार्मेसी व्यवसाय के विस्तृत क्षेत्र - राकेश आर. सोमानी
गृह विज्ञान में कॅरिअर - विभु लाल
जैव - चिकित्सा इंजीनियरी में रोजगार के अवसर - डॉ. के. जयप्रकाश
युवाओं के लिए रोजगार के आकर्षक अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
भारत में वन्यजीव शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य और संभावनाएं (भाग - I) - डॉ. सोमेश सिंह, डॉ. बी. एम. अरोड़ा
होटल प्रबंध से जुड़े कार्यक्रम और रोजगार के अवसर - आशीष दहिया एवं पुष्कर नेगी
होटल प्रबंध से जुड़े कार्यक्रम और रोजगार के अवसर - आशीष दहिया एवं पुष्कर नेगी
फार्मेसी व्यवसाय के विस्तृत क्षेत्र - राकेश आर. सोमानी
कार्यात्मक हिंदी में कॅरिअर - हिना नक्वी
गृह विज्ञान में कॅरिअर - विभु लाल
जैव - चिकित्सा इंजीनियरी में रोजगार के अवसर - डॉ. के. जयप्रकाश
सफलता के सूत्र - अंजन कुमार बराल
वानिकी में रोजगार के अवसर
फार्मेसी व्यवसाय के विस्तृत क्षेत्र - राकेश आर. सोमानी
साक्षात्कार की तैयारी - कर्नल डॉ. प्रदीप के. वैद्य
भारत में तकनीक आधारित रोजगार के अवसर - प्रो. ( डॉ. ) पी. के. दत्ता
फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी-एक उभरता व्यवसाय - सूरज कुमार तथा मीता सिंघल
होटल प्रबंध से जुड़े कार्यक्रम और रोजगार के अवसर - आशीष दहिया एवं पुष्कर नेगी
जैव - प्रौद्योगिकी एक उदीयमान कॅरिअर - डॉ. अरुण निनावे
एनसीसी कैडेटों के लिए रोजगार के अवसर - आसिफ अहमद
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
डिजाइनिंग के क्षेत्र में रोजगार - डॉ. विजय देशमुख
राजनीति शास्त्र में रोजगार के अवसर --- उपेंद्र चौधरी
डिजाइनिंग के क्षेत्र में रोजगार - डॉ. विजय देशमुख
भारत में तकनीक आधारित रोजगार के अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
साक्षात्कार की तैयारी - कर्नल डॉ. प्रदीप के. वैद्य
फार्मेसी व्यवसाय के विस्तृत क्षेत्र - राकेश आर. सोमानी
युवाओं के लिए रोजगार के आकर्षक अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
सफलता के सूत्र - अंजन कुमार बराल
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
एनसीसी कैडेटों के लिए रोजगार के अवसर - आसिफ अहमद
मानव संसाधन प्रबंधन में कॅरिअर
ग़ैर सरकारी संगठनों के प्रबंधन में रोजगार के अवसर - सदाकत मलिक
जैव - चिकित्सा इंजीनियरी में रोजगार के अवसर - डॉ. के. जयप्रकाश
होटल प्रबंध से जुड़े कार्यक्रम और रोजगार के अवसर - आशीष दहिया एवं पुष्कर नेगी
युवाओं के लिए रोजगार के आकर्षक अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
राजनीति शास्त्र में रोजगार के अवसर --- उपेंद्र चौधरी
फूलों की खेती में रोजगार के अवसर - डॉ. पी. सी. ठाकुर
एनसीसी कैडेटों के लिए रोजगार के अवसर - आसिफ अहमद
साक्षात्कार की तैयारी - कर्नल डॉ. प्रदीप के. वैद्य
फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी - एक उभरता व्यवसाय - सूरज कुमार तथा मीता सिंघल
फार्मेसी व्यवसाय के विस्तृत क्षेत्र - राकेश आर. सोमानी
मानव संसाधन प्रबंधन में कॅरिअर - डॉ. रचना केत्र गोडम
युवाओं के लिए रोजगार के आकर्षक अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
वानिकी में रोजगार के अवसर
भारत में वन्यजीव शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य और संभावनाएं (भाग - I) - डॉ. सोमेश सिंह, डॉ. बी. एम. अरोड़ा
सफलता के सूत्र - अंजन कुमार बराल
मुक्त और दूरस्थ शिक्षण प्रणाली की जन - जन तक पहुंच - अभिजीत बोरा
डिजाइनिंग के क्षेत्र में रोजगार - डॉ. विजय देशमुख
जैव - चिकित्सा इंजीनियरी में रोजगार के अवसर - डॉ. के. जयप्रकाश
फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी-एक उभरता व्यवसाय - सूरज कुमार तथा मीता सिंघल
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
वनस्पति विज्ञान में कॅरिअर - भाग - I - - ममता सिंह और यतेन्द्र सिंह
भारत में तकनीक आधारित रोजगार के अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
साक्षात्कार की तैयारी - कर्नल डॉ. प्रदीप के. वैद्य
होटल प्रबंध से जुड़े कार्यक्रम और रोजगार के अवसर - आशीष दहिया एवं पुष्कर नेगी
फार्मेसी व्यवसाय के विस्तृत क्षेत्र - राकेश आर. सोमानी
फूलों की खेती में रोजगार के अवसर - डॉ. पी. सी. ठाकुर
भारत में वन्यजीव शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य और संभावनाएं (भाग - I) - डॉ. सोमेश सिंह, डॉ. बी. एम. अरोड़ा
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
सही कॅरिअर के लिए सही पाठ्यक्रम का चयन - हिना नकवी एवं सलमान हैदर
विधि के क्षेत्र में कॅरिअर - के. एल. अद्लखा
ग़ैर सरकारी संगठनों के प्रबंधन में रोजगार के अवसर - सदाकत मलिक
राजनीति शास्त्र में रोजगार के अवसर --- उपेंद्र चौधरी
वनस्पति विज्ञान में कॅरिअर - भाग - I - ममता सिंह और यतेन्द्र सिंह
मुक्त और दूरस्थ शिक्षण प्रणाली की जन - जन तक पहुंच - अभिजीत बोरा
भारत में तकनीक आधारित रोजगार के अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
डिजाइनिंग के क्षेत्र में रोजगार - डॉ. विजय देशमुख
होटल प्रबंध से जुड़े कार्यक्रम और रोजगार के अवसर - आशीष दहिया एवं पुष्कर नेगी
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावना - डॉ. सीमिन रूबाब
वनस्पति विज्ञान में कॅरिअर ( भाग - II ) - ममता सिंह और यतेन्द्र सिंह
राजनीति शास्त्र में रोजगार के अवसर --- उपेंद्र चौधरी
सही कॅरिअर के लिए सही पाठ्यक्रम का चयन - हिना नकवी एवं सलमान हैदर
जैव - प्रौद्योगिकी एक उदीयमान कॅरिअर - डॉ. अरुण निनावे
फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी-एक उभरता व्यवसाय - सूरज कुमार तथा मीता सिंघल
पर्यटन प्रशासन में कॅरिअर - प्रो. एस. सी. बागड़ी, श्री ए. सुरेश बाबू
समुद्री इंजीनियरी में रोजगार की संभावनाएं - डॉ. के. जयप्रकाश
राजनीति शास्त्र में रोजगार के अवसर - उपेंद्र चौधरी
तकनीकी लेखक के रूप में कॅरिअर - प्रदीप कुमार नाथ एवं हेमप्रभा चौहान
सही कॅरिअर के लिए सही पाठ्यक्रम का चयन - हिना नकवी एवं सलमान हैदर
मुक्त और दूरस्थ शिक्षण प्रणाली की जन - जन तक पहुंच - अभिजीत बोरा
ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावना - डॉ. सीमिन रूबाब
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
सफलता के सूत्र - अंजन कुमार बराल
ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावना - डॉ. सीमिन रूबाब
फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी-एक उभरता व्यवसाय - सूरज कुमार तथा मीता सिंघल
भारत में तकनीक आधारित रोजगार के अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
सफलता के सूत्र - अंजन कुमार बराल
अशक्तता पुनर्वास विज्ञान में कॅरिअर - विनय कुमार सिंह
मुक्त और दूरस्थ शिक्षण प्रणाली की जन - जन तक पहुंच - अभिजीत बोरा
पर्यटन प्रशासन में कॅरिअर - प्रो. एस. सी. बागड़ी, श्री ए. सुरेश बाबू
राजनीति शास्त्र में रोजगार के अवसर --- उपेंद्र चौधरी
भारत में तकनीक आधारित रोजगार के अवसर - प्रो. (डॉ.) पी. के. दत्ता
फूलों की खेती में रोजगार के अवसर - डॉ. पी. सी. ठाकुर
ग़ैर सरकारी संगठनों के प्रबंधन में रोजगार के अवसर - सदाकत मलिक
विधि के क्षेत्र में कॅरिअर - के. एल. अद्लखा

बुधवार, 24 जून 2009

हरियाणा कश्यप राजपूत सभा , रोहतक का पदाधिकारियों के लिए आवेदन आमंत्रित हैं....

हरियाणा कश्यप राजपूत सभा , रोहतक का पदाधिकारियों के लिए आवेदन आमंत्रित हैं....
आगामी पन्द्रह दिन के अंदर अंदर आवेदन करें :
जिला रोहतक के लिए निम्नलिखित पदों पर चुनाव करवाए जाने हैं....
१-वरिष्ठ उप प्रधान - एक
२-सह सचिव - एक
३-ऑडिटर - एक
४-प्रेस सचिव - एक
५-प्रचार सचिव -तीन
जिला रोहतक के प्रत्येक ब्लाक (रोहतक, लाखनमाजरा , महम , कलानौर, सांपला ) के लिए निम्नलिखित एक एक पदाधिकारियों का चुनाव करवाया जाना है :
१- प्रधान
२-सचिव
३-खजांची
समस्त कश्यप बंधुओं से नम्र निवेदन है की उपर्युक्त पदों के इच्छुक उमीदवार अपने आवेदन निम्नलिखित पते पर १५ दिनों के अंदर अंदर शीघ्रातिशीघ्र भेजें :

राजेश कश्यप (जिला प्रधान )
कश्यप भवन, टीटोली (रोहतक )
हरियाणा-१२४००५

मोबाइल नम्बर : ९४१६६२९८८९

गुरुवार, 18 जून 2009

नहीं हो पाया सबको पढ़ाने का सपना पूरा

'सब पढ़ें, सब बढ़ें।' यह वह नारा है जो सर्व शिक्षा अभियान का सहारा लेकर पूर्ण साक्षरता के लिए आज से पांच वर्ष पूर्व दिया गया था, लेकिन पांच वर्ष पूरे बीतने के बाद भी यह नारा सार्थक नहीं हो पाया। इसके पीछे कारण चाहे जो भी रहे हों, लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए पानी की तरह पैसे बहाए गए। पैसों की गंगा बहा कर भी सरकार इस सपने को पूरा नहीं कर पाई। यह बात दीगर है कि शिक्षा विभाग के साथ सरकार भी फर्जी आंकड़ों का सहारा लेकर अपनी पीठ थपथपा सकती है, लेकिन दोनों ही हकीकत से अच्छी तरह परिचित हैं कि उनके प्रयास साक्षरता दर को बढ़ाने के लिए कितने कारगर साबित हुए।
वर्तमान में सरकारी आंकड़ों के आधार पर अक्षर ज्ञान से वंचित की संख्या पर नजर डाले तो अकेले गुड़गांव में यह संख्या साढ़े पांच हजार के पार है। यह संख्या किसी भी दावे को झुठलाने के काफी है। अंदर खाते न जाने कितने ही नर-नारी अक्षर ज्ञान से अनजान है। यह दीगर बात है कि इन अक्षर ज्ञान देने की योजनाओं से साक्षरता दर में कुछ वृद्धि हुई है, लेकिन कितनी वृद्धि हुई इसके आंकड़े विभाग के किसी अधिकारी के पास नहीं। ग्रामीण क्षेत्र में करीब-करीब 85 प्रतिशत जबकि शहरी क्षेत्र में यह प्रतिशत बमुश्किल अस्सी का ही आंकड़ा पार करता है। इसका कारण यहां माइग्रेट पापुलेशन को माना जा रहा है। पूर्ण साक्षरता के लिए सबसे पहले नब्बे के दशक में ग्रामीण साक्षरता मिशन अभियान चलाया गया। सर्वे के आधार पर यह तय किया गया कि शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्र में अक्षर से परे लोगों की संख्या काफी है, लिहाजा ग्रामीण साक्षरता मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का उजियारा किया जाए। इसकी शुरूआत पूरे प्रचार के साथ उत्साह से की गई। इसका मकसद प्रौढ़ शिक्षा (बूढ़ों को पढ़ाना) का था। गांवों में अनपढ़ बुजुर्गो की तलाश कर उन्हें अक्षर ज्ञान कराने का अलख जगाया गया, लेकिन दो-तीन साल में ही यह मामला टांय-टांय फिस्स हो गया। इसके लिए पैसा तो खूब खर्च किया गया, इसके बावजूद संसाधन पर्याप्त उपलब्ध नहीं हो पाए। योजना घपलों, घोटालों में उलझकर रह गई। बताते हैं कि गुड़गांव में इसमें बड़ा घोटाला सामने आया था, जो अदालत में विचाराधीन है। इसके बाद कई वर्षो तक इसे पटरी पर लाने के प्रयास किए जाते रहे, लेकिन योजना लौटकर पटरी पर नहीं आ पाई। ग्रामीण साक्षरता मिशन के फेल होने से सकपकाई सरकार ने वर्ष 2003 में 'सब पढ़ें, सब बढ़ें' का नारा देकर सर्व शिक्षा अभियान की शुरूआत कर दी। इस पर ग्रामीण साक्षरता मिशन से कई गुना अधिक राशि खर्च की गई। इसके तहत स्कूलों में कमरों का निर्माण, पढ़ने लिखने के लिए कागज, कलम, दवात की व्यवस्था के साथ स्कूलों का भी बंदोबस्त किया गया, लेकिन पूरे पांच साल बाद भी सबको पढ़ाने का सपना सच नहीं हो पाया। पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई स्वयं सेवी संस्थाओं को। इसके बदले उन्हें मोटे फंड दिए गए, लेकिन नाम के मुताबिक शिक्षा का उजियारा करने की बजाय स्वयं सेवी संस्थाओं ने अधिकांश पैसे से अपनी ही सेवा की। गुड़गांव की बात करें तो शुरूआत में यहां सावा सौ के करीब ऐसे स्कूलों की स्थापना की गई जिनमें घुमंतू बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था की जा सके। लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या कम होती चली गई। फिलहाल महज आठ केंद्रों पर ही घुमंतू परिवारों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की औपचारिकता प्रदान की जा रही है। सर्व शिक्षा अभियान को संचालित करने वाले विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो गुड़गांव में साढ़े पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे स्कूलों में नहीं पहुंच पा रहे हैं। जबकि हकीकत में यह आंकड़ा कुछ और ही है।
सर्व शिक्षा अभियान की तो हकीकत यहां तक है कि योजना खत्म होने को है और अभी तक इसमें एवीआरसी की नियुक्ति भी नहीं हो पाई। अब ऐसी योजना का जिक्र करते हैं जिसके बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी मालूम नहीं।
वह है जिस्ट्रक्ट प्लान फार एजुकेशन प्रोग्राम (डीपीईपी)। योजना कब आई कब गई किसी को नहीं पता। इतना जरूर है कि इसके तहत भी पूरे जिला को चरण बद्धतरीके से साक्षर करने का दावा किया गया था। सेवानिवृत जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सरिता चौधरी इनके फेल होने का कारण इसकी देखभाल में बरती गई कोताही को मानती हैं। उनके मुताबिक अगर सरकार इस पर पैनी नजर रखती तो शायद सपने को सच किया जा सकता था, लेकिन सरकार पैसा खर्च करने तक ही सीमित रही और योजनाएं ठंडे बस्ते में जाती रही। सरिता चौधरी के मुताबिक इस पर पुनर्विचार कर दोबारा से कोई ठोस योजनाएं बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि घुमंतू व गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उनके लिए रेजिडेंशियल स्कूल स्थापित किए जाएं। स्कूल उनकी सुविधा अनुसार संचालित किया जाए। अगर जरूरत पड़े तो ऐसी बस्तियों में शाम को स्कूलों का संचालन किया जाए। अक्षर ज्ञान के लिए जरूरी संसाधन मुफ्त मुहैया कराए जाएं। बेहतर हो अगर मोबाइल स्कूलों की व्यवस्था की जाए। मजदूरों की बस्तियों में जाकर उनके बच्चों सहित मजदूरों को भी अक्षर ज्ञान कराया जाए। वजीफे की राशि ऐसे बच्चों के परिवारों को प्रदान न कर उनके लिए पढ़ाई के संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। इस पूरे कार्य पर पैनी नजर के लिए एक विशेष कमेटी का गठन का किया जाए।
15 से 35 वर्ष आयु वर्ग के निरक्षरों को साक्षर बनाने के भागीरथ प्रयासों की सफलता ने जिला साक्षरता मिशन को बहुआयामी बनने के लिए प्रेरित कर दिया है। उत्तर साक्षरता कार्यक्रम से मिली सफलता से अभिभूत मिशन की जिला इकाई ने अब अपने पंख चारों दिशाओं में फैलाने की बहुआयामी योजना बनाई है। इन्हीं योजनाओं का फलाफल है कि अब साक्षरता मिशन कार्यालय में पुरुष पुलिस मुलाजिमों को अंग्रेजी में पत्र लेखन, रिपोर्ट लेखन, अंग्रेजी बोलने, लिखने व सही उच्चारण की कला सिखाने की कसरत शुरू कर दी गई है।
निरक्षरों तक साक्षरता की लौ पहुंचाने के बाद अब जिला साक्षरता मिशन ने अपने अभियान को नया रंग दे दिया है। इसी कड़ी में पुलिस विभाग में कार्यरत सरकारी मुलाजिमों को दैनिक कार्यो में सहायक अंग्रेजी में पत्र लेखन, रिपोर्ट लेखन, अंग्रेजी बोलचाल आदि का प्रशिक्षण देने के लिए बुधवार को कक्षाएं शुरू की गई। सिरसा जिले में साक्षरता कार्यक्रम के पुरोधा कहे जाने वाले प्रख्यात साहित्यकार व समाज सेवी पूरण मुदगिल द्वारा जिला साक्षरता मिशन कार्यालय में इस कक्षा का विधिवत उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर जहां दिल्ली से कर्मवीर शास्त्री ने शिरकत की वहीं चरणजीत बराड़ ने भी अंग्रेजी भाषा की दैनिक कार्यो में उपयोगिता व अन्य पहलुओं पर अपने विचार रखे। अंजू भाटिया के प्रशिक्षण में आरंभ हुई इस कक्षा में प्रथम दिन 25 पुलिस कर्मियों ने अपनी सहभागिता दर्ज करवाई।
गौरतलब है कि फसली सीजन होने के कारण जिला साक्षरता मिशन ने अपने साक्षरता अभियान को बहुआयामी बना दिया है। साक्षरता मिशन ने अपने अभियान में अब सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मियों की दैनिक उपयोग में आने वाली अंग्रेजी लेखन आदि आवश्यकता के लिए प्रशिक्षण को शुमार कर लिया है। जिला साक्षरता मिशन के संयोजक सुखविंदर सिंह कहते है कि 25-25 कर्मियों का समूह बनाकर दो कक्षाएं नियमित रूप से आयोजित की जाएंगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल तो थानों के मुंशी, पुलिस लाइन के कर्मी तथा जेल के पुलिस कर्मचारियों को उपरोक्त प्रशिक्षण दिए जाएंगे। सुखविंदर सिंह के अनुसार इस योजना को विस्तृत रूप दिया जाएगा। वह कहते है कि चुनाव की ड्यूटी की वजह से अभी अन्य विभागों के कर्मचारी इन कक्षाओं से वंचित हो रहे है जैसे ही चुनाव समाप्त होंगे, सभी अन्य विभागों के मुलाजिमों को आवश्यकता अनुसार अंग्रेजी में पत्र लेखन, रिपोर्ट लेखन आदि के प्रशिक्षण दिए जाएंगे।
देश की सबसे बड़ी 'पंचाट' में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा भले ही महिलाओं के व्यापक हित साधने वाले विधेयक को लेकर बवाल मचाये जा रहे हों,पर इस 'आधी दुनिया' को साक्षरता के सहारे विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की कोशिशें तेज हो गई है। मिशन ने राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं व पुरुषों के बीच साक्षरता दर की खाई को पाटने की कसरत नए सिरे से शुरू कर दी है। इस नए आगाज को अंजाम तक पहुंचाने के प्रथम सोपान के तौर पर राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की ओर से महानिदेशक की अगुवाई में 12 जून से दो दिवसीय बैठक आहूत की गई है। शिमला की इस महत्वपूर्ण बैठक में तैयार होने वाली रणनीति व योजना से हरियाणा सहित देश के अन्य प्रांतों की अधिसंख्य निरक्षर महिलाएं साक्षर हो सकेंगी।
दरअसल, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन द्वारा महिला साक्षरता को लेकर किये जाने वाले विचार मंथन में त्वरित महिला साक्षरता जैसे पुराने कार्यक्रमों के फलाफल तथा संपूर्ण साक्षरता कार्यक्रम के दौरान महिलाओं की सराहनीय सहभागिता की अनुभूतियों पर गौर फरमाया जाएगा। सही मायनों में कहे तो साक्षरता के लिहाज से महिलाओं को पुरुषों के बराबर ला खड़ा करने की राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की आगामी रणनीति का यही आधार भी होगा। मिशन ने उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार व उड़ीसा में लागू किये गये त्वरित साक्षरता कार्यक्रम के अनुभवों तथा हरियाणा व अन्य प्रांतों में संपूर्ण साक्षरता कार्यक्रम के दौरान महिलाओं की सहभागिता की समीक्षा कर नई थ्योरी ईजाद करने का मन बनाया है। मिशन के हरियाणा राज्य संसाधन केंद्र के निदेशक प्रमोद गोरी इसे सार्थक पहल बताते है। उनका मानना है कि नई योजना से प्रदेश की महिलाओं को पुरुषों के बराबर खड़ा होने का अवसर मिलेगा।
गौरतलब है कि देश के कई अन्य प्रांतों की भांति हरियाणा में भी पुरुष व महिला साक्षरता दर में 20 फीसदी की गहरी खाई बनी हुई है। सिरसा, कैथल, मेवात व गुड़गांव जैसे कुछ जिलों में तो आज भी महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत के आंकड़े ही छू रही है। संपूर्ण प्रांत की तस्वीर भी कतई अच्छी नहीं मानी जा सकती। प्रदेश में महज 55.56 फीसदी महिला साक्षर है जबकि 75.14 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ पुरुषों की बढ़त बनी हुई है। ऐसा भी नहीं है कि परंपराओं के निर्वाह के संग साक्षरता की बैसाखी लेकर प्रगति के पथ चलने की इच्छा ही नहीं रखती प्रदेश की महिलाएं। साक्षरता मिशन के राज्य संसाधन केंद्र के निदेशक प्रमोद गोरी के अनुसार हरियाणा का अनुभव है कि विभिन्न जिलों में चलाए गए साक्षरता से जुड़े कार्यक्रमों में महिलाओं ने अपनी सहभागिता बढ़-चढ़कर दिखाई है। उनका मानना है कि साक्षरता मिशन की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को साक्षर बनाने पर बल देने संबंधी नई रणनीति तैयार होने से हरियाणा की निरक्षर महिलाएं भी साक्षरता की डोर से विकास की मुख्य धारा में आ सकेंगी।

सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) की धीमी गति


सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) की धीमी गति से केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय चिंतित है। मंत्रालय द्वारा की गई इस अभियान की समीक्षा का निष्कर्ष है कि नैशनल एसएसए प्रॉजेक्ट और प्रोग्राम एजुकेशनल ऑफिसरों और प्रशासकों के बीच ही सीमित रहे हैं। सामुदायिक भागीदारी और लोगों को बड़ी संख्या में इस दिशा में जागरूक करने का काम धरातल पर नहीं हो सका है। मंत्रालय महसूस कर रहा है कि सर्व शिक्षा अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयंसेवी संगठनों को ज्यादा से ज्यादा भागीदार बनाया जाए। इसके लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाए। अलग से मॉनिटरिंग की व्यवस्था हो। कई राज्य सरकारें इस अभियान की मॉनिटरिंग व्यवस्था करने में भी विफल रही हैं। राज्य सरकारें अपने हिस्से की राशि समय पर जारी नहीं कर रहीं जिससे सर्व शिक्षा अभियान अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रहा है। कई परियोजनाएं लगातार पिछड़ रही हैं। मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों से इस काम के लिए सही समय पर वांछित राशि जारी करने को कहा है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत 2007-2008 के दौरान 2,76,000 हजार नए स्कूल खोले जाने का लक्ष्य था। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। इस अवधि में 1,86,000 हजार नए स्कूल ही खोले जा सके । मतलब यह कि 90,000 नए स्कूल खोलने का लक्ष्य अब मौजूदा वित्तवर्ष के लक्ष्य के साथ जोड़ दिया गया है। इस अवधि में अभियान के तहत लगभग 11 लाख स्कूली शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए थी, जबकि केवल आठ लाख नियुक्तियां ही हो पाईं। स्कूलों में अतिरिक्त कमरों के निर्माण के लक्ष्य को पाने में भी राज्य सरकारें बुरी तरह पिछड़ गईं। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि देश भर के लगभग 19 करोड़ बच्चों को साक्षरता के छाते के नीचे लाने का अभियान चल रहा है। काम भी हुआ है, प्रगति भी हो रही है। लेकिन जिस दिशा में अभियान जा रहा है वह काफी चिंतनीय है। यूनेस्को जैसे संगठन ने भी भारत के सर्व शिक्षा अभियान के पिछड़ने पर चिंता व्यक्त की है। यूनेस्को ने कहा है कि सर्व शिक्षा अभियान भारत के साक्षरता अभियान का एक अभिन्न हिस्सा है। छह से 14 साल के लड़कों और लड़कियों को समान रूप से स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराने की तरफ भारत सरकार केंद्रित है। लेकिन टारगेट में पिछड़ने की आशंका है। अभी तक इस अभियान को ग्रामीण क्षेत्रों और शैक्षिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़े अंचलों तक सही मायने में नहीं ले जाया जा सका है। राज्यों से कहा गया है कि वे सुनिश्चित करें कि उनके हिस्से की जो राशि इस अभियान के तहत लगाई जा रही है या लगाई जानी है उसका पूरा उपयोग हो। देशव्यापी सर्व शिक्षा अभियान के तहत राज्यों को पहले दो साल 2007--08 और 2008-09 में 40 प्रतिशत खर्च अपनी ओर से करना है, जबकि 60 प्रतिशत खर्च केन्द्र वहन कर रहा है। लेकिन मंत्रालय को इस बात की नाराजगी है कि राज्य इस दिशा में गंभीर नहीं हैं। मंत्रालय को यह भी चिंता है कि वित्तवर्ष 2008-09 से राज्य सरकारों की वित्तीय भागीदारी 40 प्रतिशत से बढ़ कर 45 प्रतिशत हो जाएगी। जब अभी ही राज्य सरकारें खर्च करने में अपना हाथ खींच रही हैं तो अगले साल पिछड़े लक्ष्य को पाने की कवायद में राज्यों के ढुलमुल रवैये के कारण यह अभियान और भी ज्यादा हिचकोले खा सकता है। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि सर्व शिक्षा अभियान की कड़ी में छह से 14 साल के बच्चों को नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा देने का बिल काफी महत्वपूर्ण है। कानून बनने पर यदि उसका पालन केन्द्र और राज्य सरकारें गंभीरता से करती हैं तो सर्व शिक्षा अभियान के लिए यह कदम मील का पत्थर साबित होगा।

सर्व शिक्षा अभियान / राजेश कश्यप

सभी व्यक्ति को अपने जीवन की बेहतरी का अधिकार है। लेकिन दुनियाभर के बहुत सारे बच्चे इस अवसर के अभाव में ही जी रहे हैं क्योंकि उन्हें प्राथमिक शिक्षा जैसे अनिवार्य मूलभूत अधिकार भी मुहैया नहीं कराई जा रही है।
भारत में बच्चों को साक्षर करने की दिशा में चलाये जा रहे कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप वर्ष 2000 के अन्त तक भारत में 94 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों को उनके आवास से 1 किमी की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय एवं 3 किमी की दूरी पर उच्च प्राथमिक विद्यालय की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के बच्चों तथा बालिकाओं का अधिक से अधिक संख्या में स्कूलों में नामांकन कराने के उद्देश्य से विशेष प्रयास किये गये। प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन लेने वाले बच्चों की संख्या एवं स्कूलों की संख्या मे निरंतर वृद्धि हुई है। 1950-51 में जहाँ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए 3.1 मिलियन बच्चों ने नामांकन लिया था वहीं 1997-98 में इसकी संख्या बढ़कर 39.5 मिलियन हो गई। उसी प्रकार 1950-51 में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 0.223 मिलियन थी जिसकी संख्या 1996-97 में बढ़कर 0.775 मिलियन हो गई। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2002-03 में 6-14 आयु वर्ग के 82 प्रतिशत बच्चों ने विभिन्न विद्यालयों में नामांकन लिया था। भारत सरकार का लक्ष्य इस संख्या को इस दशक के अंत तक 100 प्रतिशत तक पहुँचाना है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विश्व से स्थायी रूप से गरीबी को दूर करने और शांति एवं सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जरूरी है कि दुनिया के सभी देशों के नागरिकों एवं उसके परिवारों को अपनी पसंद के जीवन जीने का विकल्प चुनने में सक्षम बनाया जाए। इस लक्ष्य को पाना तभी संभव है जब दुनियाभर के बच्चों को कम से कम प्राथमिक विद्यालय के माध्यम से उच्च स्तरीय स्कूली सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।

सर्व शिक्षा अभियान जिला आधारित एक विशिष्ट विकेन्द्रित योजना है। इसके माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण की योजना है। इसके लिए स्कूल प्रणाली को सामुदायिक स्वामित्व में विकसित करने रणनीति अपनाकर कार्य किया जा रहा है। यह योजना पूरे देश में लागू की गई है और इसमें सभी प्रमुख सरकारी शैक्षिक पहल को शामिल किया गया है। इस अभियान के अंतर्गत राज्यों की भागीदारी से 6-14 आयुवर्ग के सभी बच्चों को 2010 तक प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।(सर्व शिक्षा अभियान अधिसूचना, भारत सरकार 2004 व 2005)

सर्व शिक्षा अभियान, एक निश्चित समयावधि के भीतर प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। 86 वें संविधान संशोधन द्वारा 6-14 आयु वर्ष वाले बच्चों के लिए, प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में, निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य बना दिया गया है। सर्व शिक्षा अभियान पूरे देश में राज्य सरकार की सहभागिता से चलाया जा रहा है ताकि देश के 11 लाख गाँवों के 19।2 लाख बच्चों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वैसे गाँवों में, जहाँ अभी स्कूली सुविधा नहीं है, वहाँ नये स्कूल खोलना और विद्यमान स्कूलों में अतिरिक्त क्लास रूम (अध्ययन कक्ष), शौचालय, पीने का पानी, मरम्मत निधि, स्कूल सुधार निधि प्रदान कर उसे सशक्त बनाये जाने की भी योजना है। वर्तमान में कार्यरत वैसे स्कूल जहाँ शिक्षकों की संख्या अपर्याप्त है वहाँ अतिरिक्त शिक्षकों की व्यवस्था की जाएगी जबकि वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों को गहन प्रशिक्षण प्रदान कर, शिक्षण-प्रवीणता सामग्री के विकास के लिए निधि प्रदान कर एवं टोला, प्रखंड, जिला स्तर पर अकादमिक सहायता संरचना को मजबूत किया जाएगा। सर्व शिक्षा अभियान जीवन-कौशल के साथ गुणवत्तायुक्त प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की इच्छा रखता है। सर्व शिक्षा अभियान का बालिका शिक्षा और जरूरतमंद बच्चों पर खास जोर है। साथ ही, सर्व शिक्षा अभियान का देश में व्याप्त डिजिटल दूरी को समाप्त करने के लिए कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करने की भी योजना है।

सभी बच्चों के लिए वर्ष 2005 तक प्रारंभिक विद्यालय, शिक्षा गारंटी केन्द्र, वैकल्पिक विद्यालय, "बैक टू स्कूल" शिविर की उपलब्धता।
सभी बच्चे 2007 तक 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लें।
सभी बच्चे 2010 तक 8 वर्षों की स्कूली शिक्षा पूरी कर लें।
संतोषजनक कोटि की प्रारंभिक शिक्षा, जिसमें जीवनोपयोगी शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया गया हो, पर बल देना।
स्त्री-पुरुष असमानता तथा सामाजिक वर्ग-भेद को 2007 तक प्राथमिक स्तर तथा 2010 तक प्रारंभिक स्तर पर समाप्त करना।
वर्ष 2010 तक सभी बच्चों को विद्यालय में बनाए रखना।
केन्द्रित क्षेत्र (फोकस एरिया)
वैकल्पिक स्कूली व्यवस्था
विशेष जरूरतमंद बच्चे
सामुदायिक एकजुटता या संघटन
बालिका शिक्षा
प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता
संस्थागत सुधार - सर्व शिक्षा अभियान के एक भाग के रूप में राज्यों में संस्थागत सुधार किए जाएंगे। राज्यों को अपनी मौजूदा शैक्षिक पद्धति का वस्तुपरक मूल्यांकन करना होगा जिसमें शैक्षिक प्रशासन, स्कूलों में उपलब्धि स्तर, वित्तीय मामले, विकेन्द्रीकरण तथा सामुदायिक स्वामित्व, राज्य शिक्षा अधिनियम की समीक्षा, शिक्षकों की नियुक्ति तथा शिक्षकों की तैनाती को तर्कसम्मत बनाना, मॉनीटरिंग तथा मूल्यांकन, लड़कियों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा सुविधाविहीन वर्गो के लिए शिक्षा, निजी स्कूलों तथा ई.सी.सी.ई. संबंधी मामले शामिल होगें। कई राज्यों में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था में सुधार के लिए संस्थागत सुधार भी किए गए हैं।
सतत् वित्त पोषण - सर्व शिक्षा अभियान इस तथ्य पर आधारित है कि प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम का वित्त पोषण सतत् जारी रखा जाए। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहभागिता पर दीर्धकालीन परिप्रेक्ष्य की अपेक्षा है।
सामुदायिक स्वामित्व - इस कार्यक्रम के लिए प्रभावी विकेन्द्रीकरण के जरिए स्कूल आधारित कार्यक्रमों में सामुदायिक स्वामित्व की अपेक्षा है। महिला समूह, ग्राम शिक्षा समिति के सदस्यों और पंचायतीराज संस्थाओं के सदस्यों को शामिल करके इस कार्यक्रम को बढ़ाया जाएगा।
संस्थागत क्षमता निर्माण - सर्व शिक्षा अभियान द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक आयोजना एवं प्रशासन संस्थान/ राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद्/राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद्/सीमेट (एस.आई.ई.एम.ए.टी.) जैसी राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय संस्थाओं के लिए क्षमता निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना की गयी है। गुणवत्ता में सुधार के लिए विशषज्ञों के स्थायी सहयोग वाली प्रणाली की आवश्यकता है।
शैक्षिक प्रशासन की प्रमुख धारा में सुधार - इसमें संस्थागत विकास, नयी पहल को शामिल करके और लागत प्रभावी और कुशल पद्धतियां अपनाकर शैक्षिक प्रशासन की मुख्य धारा में सुधार करने की अपेक्षा है।
पूर्ण पारदर्शिता युक्त सामुदायिक निरीक्षण - इस कार्यक्रम में समुदाय आधारित पद्धति अपनायी जायेगी। शैक्षिक प्रबंध सूचना पद्धति, माइक्रो आयोजना और सर्वेक्षण से समुदाय आधारित सूचना के साथ स्कूल स्तरीय आंकड़ों का संबंध स्थापित करेगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्कूल एक नोटिस बोर्ड रखेगा जिसमें स्कूल द्वारा प्राप्त कि गए सारे अनुदान और अन्य ब्यौरे दर्शाए जाएंगे।
आयोजना एकक के रूप में बस्ती - सर्व शिक्षा अभियान आयोजना की इकाई के रूप में बस्ती के साथ योजना बनाते हुए समुदाय आधारित दृष्टिकोण पर कार्य करता है। बस्ती योजनाएं जिला की योजनाएं तैयार करने का आधार होंगी।
समुदाय के प्रति जवाबदेही - सर्व शिक्षा अभियान में शिक्षकों, अभिभावकों और पंचायतीराज संस्थाओं के बीच सहयोग तथा जवाबदेही एवं पारदर्शिता की परिकल्पना की गयी है।
लड़कियों की शिक्षा - लड़कियों विशेषकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की लड़कियों की शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान का एक प्रमुख लक्ष्य होगा।
विशेष समूहों पर ध्यान - अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों, वंचित वर्गो के बच्चों और विकलांग बच्चों की शैक्षिक सहभागिता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
परियोजना पूर्व चरण - सर्व शिक्षा अभियान पूरे देश में सुनियोजित रूप से परियोजनापूर्व चरण प्रारम्भ करेगा जो वितरण और निरीक्षण (मॉनीटरिंग) पद्धति को सुधार कर क्षमता विकास के कार्यक्रम चलाएगा।
गुणवत्ता पर बल देना - सर्व शिक्षा अभियान पाठ्यचर्या में सुधार करके तथा बाल केन्द्रित कार्यकलापों और प्रभावी शिक्षण पद्धतियों को अपनाकर प्रारंभिक स्तर तक शिक्षा को उपयोगी और प्रासंगिक बनाने पर विशेष बल देता है।
शिक्षकों की भूमिका - सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है और उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं पर ध्यान देने का समर्थन करता है। प्रखंड संसाधन केन्द्र/सामूहिक संसाधन केन्द्र की स्थापना, योग्य शिक्षकों की नियुक्ति, पाठ्यचर्या से संबंधित सामग्री के विकास में सहयोग के जरिये शिक्षक विकास के अवसर, शिक्षा संबंधी प्रक्रियाओं पर ध्यान देना और शिक्षकों के एक्सपोजर दौरे, शिक्षकों के बीच मानव संसाधन को विकसित करने के उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं।
जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजनाएँ - सर्व शिक्षा अभियान के कार्य ढाँचे के अनुसार प्रत्येक जिला एक जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजना तैयार करेगा जो संकेद्रित और समग्र दृष्टिकोण से युक्त प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सभी निवेशों को दर्शाएगा।
जिला प्रारंभिक शिक्षा योजना - सर्व शिक्षा अभियान ढाँचा के अनुसार प्रत्येक जिला प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में समग्र एवं केन्द्रित दृष्टिकोण के साथ, निवेश किये जाने वाले और उसके लिए जरूरी राशि को प्रदर्शित करने वाली एक जिला प्रारंभिक शिक्षा योजना तैयार करेगी। यहाँ एक प्रत्यक्ष योजना होगी जो दीर्घावधि तक सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने की गतिविधियों को ढ़ाँचा प्रदान करेगा। उसमें एक वार्षिक कार्ययोजना एवं बजट भी होगा जिसमें सालभर में प्राथमिकता के आधार पर संपादित की जाने वाली गतिविधियों की सूची होंगी। प्रत्यक्ष योजना एक प्रामाणिक दस्तावेज होगा जिसमें कार्यक्रम कार्यान्वयन के मध्य में निरन्तर सुधार भी होगा।

सर्व शिक्षा अभियान के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय भागीदारी नौवीं योजना अवधि के दौरान 85:15; दसवीं योजना में 75:25 तथा उसके बाद यह 50:50 की होगी। लागत को वहन करने की वचनबद्धता राज्य सरकारों से लिखित रूप में ली जाएगी। राज्य सरकारों को वर्ष 1999-2000 में प्रारम्भिक शिक्षा में किए जा रहे निवेश को बरकरार रखना होगा तथा सर्व शिक्षा अभियान में राज्यांश इस निवेश के अतिरिक्त होगा।
भारत सरकार, राज्य कार्यान्वयन सोसाइटी को ही सीधे निधियां जारी करेगी तथा राज्य सरकार के हिस्से की कम से कम 50% राशि राज्य कार्यान्वयन सोसाइटियों को अंतरित करने तथा इस राशि के व्यय के बाद ही केन्द्र सरकार अगली किश्त जारी करेगी।
सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत नियुक्त किए गए शिक्षकों के वेतन में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की भागीदारी नौवीं योजना अवधि के दौरान 85:15 के अनुपात में, दसवीं योजना अवधि के दौरान 75:25 के अनुपात में तथा इसके बाद 50:50 के अनुपात में होगी।
बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं के संबंध में किए गए सभी विधिक समझौते लागू रहेंगे, जबतक कि विदेशी निधियां प्रदान करने वाली एजेंसी से विचार-विमर्श करके इसमें कोई विशिष्ट संशोधन करने पर सहमति नहीं हो जाती।
विभाग की मौजूदा योजनाएं राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् के अलावा नौवीं योजना के बाद मिला दी जाएंगी। प्राथमिक शिक्षा की राष्ट्रीय पोषाहार सहायता कार्यक्रम योजना (मध्याह्न भोजन योजना) एक विशिष्ट योजना के रूप में कायम रहेगी जिसमें खाद्यान्न एवं यातायात की लागत केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाएगी तथा भोजन पकाने की लागत राज्य सरकारों द्वारा वहन की जाएगी।
जिला शिक्षा योजना अन्य बातों के साथ-साथ यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जवाहर रोजगार योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, सुनिश्चित रोजगार योजना, सांसद/विधायक के लिए क्षेत्रीय निधियां, राज्य योजना जैसी योजनाएं तथा विदेशी निधियां तथा गैर सरकारी क्षेत्र में जुटाए गए संसाधन के अन्तर्गत विभिन्न घटकों से निधि / संसाधन उपलब्ध किए जाते हैं।
स्कूलों के स्तर में वृद्धि, रखरखाव, मरम्मत तथा अध्ययन-अध्यापन उपस्करों तथा स्थानीय प्रबंधन के लिए प्रयोग की जाने वाली सभी निधियां ग्रामीण शिक्षा समिति /स्कूल प्रबंधन समिति को हस्तांतरित कर दी जाएंगी।
अन्य प्रोत्साहन योजनाओं, जैसे छात्रवृतियां तथा वर्दियां (स्कूल ड्रेस) प्रदान करने के लिए राज्य योजना के अन्तर्गत निधियां जारी की जाती रहेंगी। इन्हें सर्व शिक्षा अभियान से निधियां नहीं दी जाएंगी।
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत मध्यस्थता के प्रतिमानक
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत मुख्य वित्तीय प्रतिमानक हैं -
नियंत्रण प्रतिमानक1. शिक्षक
प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्यक 40 बच्चों पर एक शिक्षक।
प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक।
उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रत्येक वर्ग के लिए एक शिक्षक।
2. स्कूल/वैकल्पिक सूकली सुविधा
प्रत्येक निवास स्थान / घर से एक किलोमीटर के भीतर ।
राज्य मानक के अनुसार और नये स्कूल खोलने या उन गाँवों या अधिवास क्षेत्रों में ईजीएस के समान स्कूल की स्थापना का प्रावधान।
3. उच्च प्राथमिक शिक्षा/क्षेत्र
आवश्यकता के अनुरूप, प्राथमिक शिक्षा पूरी कर रहे बच्चों की संख्या के आधार पर, प्रत्येक दो प्राथमिक विद्यालय पर एक उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना।
4. अध्ययन कक्ष (क्लास रूम)
प्रत्येक शिक्षक या प्रत्येक वर्ग या श्रेणी के लिए एक कक्ष, जो भी प्राथमिक या उच्च प्राथमिक स्कूल में नीचे हों, वहाँ इस प्रावधान के साथ कि प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में बरामदा सहित दो कक्ष के साथ दो शिक्षक का प्रावधान हों।
उच्च प्राथमिक विद्यालय या वर्ग में हेड मास्टर के लिए एक अलग कक्ष का प्रावधान।
5. निःशुल्क पाठ्यपुस्तक
प्रति बच्चे की अधिकतम सीमा के अंतर्गत प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले सभी लड़कियों /अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क पुस्तकें।
निःशुल्क पाठ्यपुस्तक के लिए राज्यों द्वारा दी जा रही निधि वर्तमान में राज्य योजना के द्वारा प्रदान की जाती है।
यदि कोई राज्य प्रारंभिक वर्गों में बच्चों की दी जाने वाली पाठ्यपुस्तक के मूल्य पर आंशिक रूप से वित्तीय सहायता दे रही है तो ऐसी स्थिति में सर्व शिक्षा अभियान के तहत बच्चों द्वारा वहन की जा रही राशि का भाग, राज्यों को आर्थिक सहायता के रूप में देय नहीं होगा।
6. सिविल कार्य
पीएबी द्वारा प्रत्यक्ष परियोजना के आधार पर, पूरी परियोजना अवधि वर्ष 2010 तक के लिए स्वीकृत निधि के अनुसार, सिविल कार्य के लिए कार्यक्रम निधि पूरी परियोजना लागत के 33 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होगा।
33 प्रतिशत की इस सीमा में, भवन के मरम्मत व देखभाल पर होने वाला खर्च शामिल नहीं होगा।
हालांकि, किसी खास वर्ष में वार्षिक योजना के 40 प्रतिशत तक सिविल कार्य के लिए स्वीकार किया जा सकता, बशर्ते कि उस वर्ष कार्यक्रम के विभिन्न घटक को पूरा करने के लिए खर्च निर्धारित किया गया हो। लेकिन यह खर्च पूरी परियोजना के 33 प्रतिशत के सीमा के अंतर्गत होगी।
स्कूली सुविधा में सुधार, प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र के निर्माण के लिए।
टोला संसाधन केन्द्र का उपयोग अतिरिक्त कक्ष के रूप में किया जा सकता है।
कार्यालय भवन के निर्माण पर होने वाले किसी खर्च का वहन नहीं किया जायेगा।
जिला, आधारभूत संरचना का योजना तैयार करेगी।
7. स्कूल भवन की देखभाल एवं मरम्मत
केवल स्कूल प्रबंधन समिति/ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से।
स्कूल समिति के विशिष्ट प्रस्ताव के अनुसार प्रति वर्ष 5 हजार रुपये तक।
सामुदायिक सहायता के तत्व अवश्य शामिल हों।
भवन की देखभाल और मरम्मत पर की गई खर्च को, सिविल कार्य के लिए निर्धारित 33 प्रतिशत की सीमा रेखा के भीतर गणना करते समय, शामिल नहीं की जाएगी।
निधि केवल उन स्कूलों के लिए उपलब्ध होगी जिनका तत्समय अपना भवन उपलब्ध हों।
8. राज्य प्रतिमानक के अनुसार ईजीएस का नियमित स्कूल में उन्नयन या नये प्राथमिक स्कूल की स्थापना
प्रति स्कूल 10 हजार रुपये की दर से टीएलई का प्रावधान।
स्थानीय संदर्भ एवं जरूरत के अनुसार टीएलई।
टीएलई का चयन एवं अर्जन में शिक्षक एवं अभिभावक की संलग्नता जरूरी।
अर्जन के सर्वश्रेष्ठ तरीका का निर्णय ग्राम शिक्षा समिति/स्कूल-ग्राम स्तरीय वैध निकाय निर्णय लेगी।
ईजीएस केन्द्र के उन्नयन से पहले उसका दो वर्ष तक सफलतापूर्वक कार्य संचालन जरूरी।
शिक्षक और कक्ष के लिए प्रावधान।
9. उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए टीएलई
अनाच्छादित स्कूल के लिए, 50 हजार रुपये प्रति स्कूल की दर से।
स्थान विशेष के जरूरत के अनुरूप, जिसका निर्धारण शिक्षक/स्कूल समिति करेगी।
विद्यालय समिति, शिक्षकों के परामर्श से अर्जन के सर्वश्रेष्ठ तरीकों का निर्णय करेगी।
यदि वित्तीय लाभ हो तो स्कूल समिति, जिला स्तरीय अर्जन की सिफारिश कर सकती है।
मध्यस्थता प्रतिमानक10. स्कूल निधि
अकार्यशील स्कूल उपकरण को बदलने के लिए, प्रति वर्ष 2 हजार रुपये की दर से प्रत्येक प्राथमिक /उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए।
उपयोग में पारदर्शिता।
केवल ग्राम शिक्षा समिति / एस.एम.सी. के द्वारा खर्च।
11. शिक्षक निधि
प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रतिवर्ष, प्रति शिक्षक 500 रुपये।
उपयोग में पारदर्शिता।
12. शिक्षक प्रशिक्षण
प्रत्येक वर्ष सभी शिक्षक के लिए 20 दिन का सेवाकाल पाठ्यक्रम का प्रावधान, पहले से ही नियुक्त अप्रशिक्षित शिक्षक के लिए 60 दिन का रिफ्रेशर पाठ्यक्रम और नये प्रशिक्षित नियुक्त शिक्षक के लिए 30 दिन का 70 रुपये की दर से अभिसंस्करण (ओरिएंटेशन) कार्यक्रम।
इकाई लागत सूचक है, जो गैर आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में कम होगा।
सभी प्रशिक्षण लागत शामिल होगा।
मूल्य निरूपण के दौरान प्रभावी प्रशिक्षण के लिए क्षमता का मूल्यांकन, विस्तार के सीमा का निर्धारण करेगी।
वर्तमान शिक्षक शिक्षा योजना के तहत एस.सी.ई.आर.टी/डी.आई.ई.टी के लिए सहायता।
13. राज्य शैक्षिक संस्थान
प्रबंधन एवं प्रशिक्षण (एस.आई.ई.एम.ए.टी)।
3 करोड़ रुपये तक एक बार सहायता।
राज्यों का, संस्थान को बनाये रखने/उसे सुस्थिर रखने पर, सहमत होना जरूरी।
विषय शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया/शर्तें कठोर होंगी।
14. सामुदायिक नेताओं का प्रशिक्षण
साल में 2 दिन गाँव के अधिकतम 8 लोगों (महिलाओं को प्राथमिकता) को।
प्रति व्यक्ति 30 रुपये प्रति दिन की दर से।
15. विकलांगों के लिए प्रावधान
विशेष प्रस्ताव के अनुसार, विकलांग बच्चों को शामिल करने के लिए प्रति वर्ष 1200 रुपये तक प्रति बच्चे।
1200 रुपये प्रति बच्चे के प्रतिमानक के तहत, विशेष रूप से जरूरतमंद बच्चों के लिए जिला योजना।
संसाधन संस्थान की संलग्नता को बढ़ावा दिया जायेगा।
16. शोध, मूल्यांकन, निरीक्षण एवं संचालन
प्रति वर्ष, प्रत्येक स्कूल को 1500 रुपये तक।
शोध एवं संसाधन संस्थान के साथ सहभागिता, राज्य विशेष पर जोर के साथ संसाधन टीम का संघ निर्माण।
संसाधन/शोध संस्थान के माध्यम से मूल्य निर्धारण और निरीक्षण के लिए और प्रभावी ई.एम.आई.एस. के लिए क्षमता विकास को प्राथमिकता।
परिवार संबंधी आँकड़ों को अद्यतन करने के लिए नियमित स्कूल चित्रण/ लघु आयोजना का प्रावधान।
संसाधन व्यक्ति का संघ का निर्माण कर, संसाधन व्यक्ति द्वारा किये गये निरीक्षण (मॉनिटरींग), समुदाय आधारित आँकड़े का निर्माण, शोध अध्ययन, मूल्याँकन लागत और मूल्य निर्धारण की शर्ते, उनके क्षेत्र गतिविधियाँ और कक्षा निरीक्षण के लिए यात्रा भत्ता और मानदेय का प्रावधान।
मध्यस्थता प्रतिमानक
संपूर्ण रूप से प्रति स्कूल के लिए आवंटित बजट के आधार पर, राष्ट्रीय, राज्य, जिला, उप जिला एवं स्कूल स्तरीय खर्च किया जायेगा।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रति स्कूल प्रत्येक वर्ष 100 रुपये खर्च किया जायेगा।
राज्य/जिला/प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र/विद्यालय स्तरीय खर्च का निर्धारण राज्य/केन्द्र शासित क्षेत्र द्वारा किया जायेगा। इसमें मूल्य के निर्धारण, निरीक्षण, एम.आई.एस. , कक्षा निरीक्षण आदि का खर्च भी शामिल होगा। शिक्षक शिक्षा योजना के तहत, एस.सी.ई.आर.टी को प्रस्ताव के बराबर और अधिक सहायता भी प्रदान किया जा सकता है।
राज्य विशेष में जिम्मेदारी लेने को तैयार संसाधन संस्थान को शामिल करना।
17. प्रबंधन लागत
जिला योजना के बजट के 6 प्रतिशत से अधिक नहीं।
इसमें कार्यालय खर्च, कार्यरत मानवशक्ति, पी.ओ.एल. आदि के मूल्यांकन के बाद विभिन्न स्तर पर विशेषज्ञों की भर्ती आदि का खर्च शामिल।
एम.आई.एस., सामुदायिक आयोजना प्रक्रिया, सिविल कार्य, लिंग आदि के विशेषज्ञों को प्राथमिकता।
खास जिला में उपलब्ध क्षमता पर निर्भर
प्रबंधन लागत का उपयोग राज्य/जिला/प्रखंड/टोला स्तर पर प्रभावी टीम के विकास पर किया जाना चाहिए।
पूर्व परियोजना चरण में ही प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र के लिए कार्मिकों के पहचान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वृहद् प्रक्रिया आधारित आयोजना के लिए टीम उपलब्ध हो।
18. बालिका शिक्षा, प्रारंभिक बाल देखभाल व शिक्षाअनुसूचित जाति /जनजाति समुदाय के बच्चों के लिए मध्यस्थता, विशेष रूप से उच्च प्राथमिक स्तर पर सामुदायिक कंप्यूटर शिक्षा के लिए नवीन गतिविधि/कार्य।
प्रत्येक नवीन परियोजना के लिए 15 लाख रुपये तक और जिला के लिए प्रत्येक वर्ष 50 लाख रुपये का प्रावधान सर्व शिक्षक्षा अभियान पर लागू होगा।
ई.सी.सी.ई. और बालिका शिक्षा मध्यस्थता के लिए ईकाई लागत पहले से ही चल रही योजना के अंतर्गत स्वीकृत है।
19. प्रखंड/टोला संसाधन केन्द्र
सामान्यतया प्रत्येक सामुदायिक विकास प्रखंड में एक प्रखंड संसाधन केन्द्र होगा। फिर भी, ऐसे राज्य जहाँ शैक्षिक प्रखंड या अंचल के समान उप जिला शैक्षिक प्रशासनिक संरचना के क्षेत्राधिकार की सीमा, सामुदायिक विकास प्रखंड से मेल नहीं खाती हो, तो राज्य उस उप जिला शैक्षिक प्रशासन इकाई में प्रखंड संसाधन केन्द्र का प्रावधान कर सकता है। हालाँकि, वैसी स्थिति में, सामुदायिक विकास प्रखंड में प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र पर होने वाले पूरे खर्च, आवर्तक एवं अनावर्तक दोनों, उस सामुदायिक विकास प्रखंड में एक प्रखंड संसाधन केन्द्र खोले जाने के लिए स्वीकृत बजट से अधिक नहीं होगा।
जहाँ तक संभव हो प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र स्कूल प्रांगण में स्थित होंगे।
जहाँ जरूरी हो प्रखंड संसाधन केन्द्र भवन निर्माण के लिए 6 लाख की सहायता।
जहाँ जरूरी हो टोला संसाधन केन्द्र भवन निर्माण के लिए 2 लाख रुपये। इस भवन का उपयोग विद्यालय में अतिरिक्त कक्ष के रूप में किया जाना चाहिए।
किसी भी वर्ष में, किसी भी जिले में, कार्यक्रम के अंतर्गत पूरे प्रस्तावित खर्च का 5 प्रतिशत से अधिक, गैर विद्यालय (प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र) निर्माण पर खर्च नहीं होना चाहिए।
मध्यस्थता प्रतिमान
प्रखंड के 100 से अधिक स्कूलों में 20 शिक्षकों की तैनाती, छोटे प्रखंड के प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र में 10 शिक्षक एक साथ रखे जायेंगे।
प्रत्येक प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए कुर्सी आदि के लिए 1 लाख रुपये तथा टोला संसाधन केन्द्र के लिए 10 हजार रुपये का प्रावधान।
प्रतिवर्ष प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 12,500 रुपये तथा टोला संसाधन केन्द्र के लिए 2500 रुपये की आकस्मिक निधि।
बैठक व यात्रा भत्ता हेतु प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 500 रुपये व टोला संसाधन केन्द्र के लिए 200 रुपये प्रतिमाह।
प्रखंड संसाधन केन्द्र के लिए 5 हजार रुपये व टोला संसाधन केन्द्र के लिए 1 हजार रुपये प्रति वर्ष टी.एल.एम. निधि।
प्रारंभिक चरण में ही गहन चयन प्रक्रिया के बाद प्रखंड संसाधन केन्द्र/टोला संसाधन केन्द्र कार्मिक की पहचान।
स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों के लिए मध्यस्थता
शिक्षा गारंटी योजना और वैकल्पिक व नवीन शिक्षा के अंतर्गत पहले से स्वीकृत प्रतिमानक के अनुसार निम्नलिखित प्रकार के लिए मध्यस्थता प्रदान किये जा रहे हैं -
दूर-दराज में स्थित निवासों या क्षेत्रों में शिक्षा गारंटी केन्द्र की स्थापना।
अन्य वैकल्पिक स्कूली ढाँचा की स्थापना।
स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चे को नियमित विद्यालय की ओर लाने का मुख्य लक्ष्य बनाकर ब्रिज पाठ्यक्रम, उपचारी पाठ्यक्रम, बैक टू स्कूल कैम्प का आयोजन।
21। लघु आयोजन, घर सर्वेक्षण, अध्ययन, सामुदायिक गतिशीलता, स्कूल आधारित गतिविधियाँ, कार्यालय उपकरण, प्रशिक्षण एवं ओरिएंटेशन कार्य के लिए सभी स्तर पर प्रारंभिक गतिविधियाँ।जिला के विशेष प्रस्ताव के अनुसार, उसके लिए राज्य सिफारिश भेजेगी। शहरी क्षेत्र में, जिला के भीतर या महानगरीय क्षेत्र को जरूरत के मुताबिक आयोजना के लिए एक अलग ईकाई के रूप में माना जायेगा।

सर्व शिक्षा अभियान सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। सर्व शिक्षा अभियान के घोषित लक्ष्य के अनुसार एक निश्चित समय सीमा के अन्दर सभी बच्चों का शत–प्रतिशत नामांकन, ठहराव तथा गुणवत्तता युक्त प्रांरभिक शिक्षा सुनिश्चित करना है। साथ ही सामाजिक विषमता तथा लिंग भेद को भी दूर करना है।
उक्त सभी मुद्दे समुदाय से जुड़ें है। यानी समुदाय को उस बारे बताये बिना तथा उन्हें कार्यक्रम से जोड़े बिना लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। इसलिए सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत सामुदायिक सहभागिता की अनिवार्यता को जोरदार ढंग से रखा गया है। इसमें ऐसी व्यवस्था की गई है जिसमें प्राथमिक तथा मध्य विद्यालयों का स्वामित्व समुदाय के पास हो तथा इन विद्यालयों को कुछ हद तक पंचायतों के प्रति जिम्मेदार बनाया जाये। सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए भी इसमें कई व्यवस्था की गई है। प्रत्येक विद्यालय में ग्राम शिक्षा समिति का गठन एक ऐसी ही व्यवस्था है। सर्व शिक्षा अभियान में कार्यक्रम कार्यान्वयन के प्रबंधकीय ढाँचा के अन्तर्गत ग्राम शिक्षा समिति को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और इस विकेन्द्रीकृत प्रबंधकीय व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम समिति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है।
ग्राम शिक्षा समिति का संगठनात्मक स्वरुप :
ग्राम शिक्षा समिति ग्राम स्तर पर गठित एक छोटा संगठनात्मक ईकाई है जो खासकर प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के प्रति समर्पित है। यह समिति 15 या 21 सदस्यों का एक संगठन है जिसका गठन प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय एवं प्राथमिक कक्षा युक्त मध्य विद्यालय के लिए किया जाता है। सम्बन्धित विद्यालय के प्रधानाध्यापक ही इस समिति के पदेन सचिव होते हैं।
ग्राम शिक्षा समिति
अनु.ज.जा.वर्ग
महिला वर्ग
अन्य वर्ग
प्रावधान
(कुल सदस्यों का कम से कम आधा अनु.ज.जा )
(कुल सदस्यों का कम आधा से कम एक तिहाई महिला)
(कुल सदस्यों का कम आधा से कम एक तिहाई अन्य)
(क) कुल 15 सदस्य
पुरुष-5महिला – 3
महिला-5 (अनुसूचित जनजाति वर्ग की 3 महिला सदस्य मिलाकर)
1+4
(ख) कुल 21 सदस्य
पुरुष-6महिला – 5
महिला-7 (अनुसूचित जनजाति वर्ग की 5 महिला सदस्य मिलाकर)
1+6
ग्राम शिक्षा समिति का उद्देश्य:प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण एक व्यापक लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भागीदारी एवं लोक सशक्तीकरण आवश्यक है। प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय एवं प्राथमिक कक्षा सहित मध्य विद्यालयों में ग्राम शिक्षा समिति का गठन एक ऐसा उपाय है जो जनभागीदारी एवं लोक सशक्तीकरण के लक्ष्य को पूरा करेगी। इस के अलावा ग्राम शिक्षा समिति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
गाँव में प्राथमिक शिक्षा के विकास से अभिरुचि रखने वाले समर्पित एवं समय देने वाले व्यक्तियों को इसमें शामिल होने का अवसर देना।
सम्बन्धित विद्यालय के संस्थागत चरित्र को उभारकर शत-प्रतिशत नामांकन, ठहराव एवं उपलब्धि स्तर को अनवरत बनाए रखना।
समुदाय के अभिवंचित वर्गो, यथा- महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मजदूर, किसान, पिछड़ों को समुचित प्रतिनिधित्व देकर समाज के मुख्य धारा से जोड़ना ताकि साझा हितों की रक्षा के लिये उन्हें भी निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त हो।
ग्राम शिक्षा समिति का कार्यकाल:
ग्राम शिक्षा समिति का कार्यकाल सामान्यत: तीन वर्षों का है
अगर ग्राम शिक्षा समिति के कार्यों से / निष्क्रियता से अभिभावक असन्तुष्ट हो तो विद्यालय में नांमाकित कम से कम 50 प्रतिशत बच्चों के अभिभावक की शिकायत पर आम सभा / ग्राम सभा द्वारा समिति को बीच में ही भंग कर नई समिति का गठन किया जा सकता है। एक सफल आम सभा में 80 प्रतिशत अभिभावकों की उपस्थिति होनी चाहिये।
तीसरे वर्ष के अन्तिम तीन महीने में आम सभा द्वारा नई समिति का गठन नियमानुसार अनिवार्य रुप से करा लिया जाये।
ग्राम शिक्षा समिति के कार्य एवं दायित्व
ग्राम शिक्षा समिति प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण करने की दिशा में अपने गाँव के स्कूल के विकास हेतु हर संभव कार्य सम्पन्न कर सकती है। ग्राम शिक्षा समिति के सहयोग के बिना सार्वजनीकरण के लक्ष्य को कतई प्राप्त नहीं किया जा सकता। अपने गाँव,समाज एवं परिवार के विकास की जड़ शिक्षा में ही हैं। अत: शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाकर राष्ट्रीय हित के इतने महान कार्य को सम्पन्न करने का दायित्व ग्राम शिक्षा समिति को ही प्रप्त है। जैसे:--
प्राथमिक शिक्षा का सार्वजनीकरण
6 से 11 वर्ष के सभी बच्चे - बच्चियों का नामांकन विद्यालय में करना।
सभी नामांकित बच्चे-बच्चियों को विद्यालय में बनाये रखना, इसके लिए सभी संभव प्रयास करना
उपलब्धि स्तर में वृद्धि हेतु प्रयास करना।
बच्चे नियमित रूप से स्कूल आ रहें हैं या नहीं, इसका देखभाल नियमित रूप से करना। इसके लिए प्रति दिन ग्राम शिक्षा समिति के दो अलग अलग सदस्यों को जिम्मेवारी सौंपना अच्छा है। उसके ऊपर भी अध्यक्ष एवं सचिव निगरानी रखें और अनुपस्थिति के कारणों का पता लगाकर उसका निदान खोजें।
माता शिक्षक समिति / अभिवाक शिक्षक समिति का गठन किया जाए ताकि ग्राम शिक्षा समिति के कार्यो में मदद मिल सके।
विद्यालय प्रबंधन में भागीदारी निभाना।
मुफ्त पाठ्य-पुस्तक के वितरण की अच्छी तरह देखभाल करना।
गाँव के दुर्बल एवं अपंग बच्चों का नामांकन करवाना
विद्यालय में अच्छी पढ़ाई प्रतिदिन सुचारु ढंग से चले इसके लिए हर संभव व्यवस्था करना
विद्यालय में मिल-जुलकर समारोह आयोजन करना
ग्राम शिक्षा समिति के निर्णयों के आलोक में विद्यालय कोष का संचालन करना
विद्यालय विकास एवं शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए हरसंभव वित्तीय एवं गैर वित्तीय उपायों को सम्पादित करना
ग्राम शिक्षा योजना का निर्माण एवं इसका क्रियान्वयन करना आदि।
अध्यक्ष के कार्य एवं दायित्व
मासिक बैठक की अध्यक्षता करना
मासिक बैठक के आयोजन हेतु सचिव को सही समय पर सही परामर्श देना
बैठक में सभी सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करना
विद्यालय में नियमित पढ़ाई की व्यवस्था सुनिश्चित करना
सचिव के साथ विद्यालय कोष का संचालन करना
आमसभा को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना एवं इसका कार्यभार ईमानदारी पूर्वक सभी सदस्यों पर सौंपना
मासिक बैठक में सर्वसम्मति से लिए जाने वाले निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना
कार्यवाही पुस्तिका लिखना एवं प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का अगले बैठक में सम्पुष्टि करवाना।
ग्राम शिक्षा योजना का क्रियान्वयन का अनुश्रवन (देख – रेख) एवं अनुगमन करना।
उपाध्यक्ष के कार्य एवं दायित्व
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में बैठक की अध्यक्षता करना
वित्तीय कार्यो को छोड़कर अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनके सभी कार्यो का सफलतापूर्व सम्पादन करना
सभी महत्वपूर्ण निर्णयों एवं कार्य –सम्पादन में अध्यक्ष के सहयोगी के रूप में कार्य करना
सचिव के कार्य एवं दायित्व
अध्यक्ष के परामर्श से मासिक बैठक बुलाने की कार्यवाही करना
बैठक के निर्णयों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करना
अध्यक्ष के साथ मिलकर विद्यालय कोष का संचालन करना एवं लेखा-जोखा को कार्यवाही में प्रस्तुत करना
मासिक बैठक में विद्यालय सुधार योजना प्रस्तुत करना एवं ग्राम शिक्षा योजना का निर्माण एवं क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना
बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन एवं उपस्थिति सुनिश्चित करना एवं ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से क्रियान्वित करना।
ग्राम शिक्षा समिति के नाम से बैंक- खाता खुलवाना एवं अध्यक्ष एवं सचिव सह प्रभारी अध्यापक के संयुक्त हस्ताक्षर से खाता संचालन हो, इसे सुनिश्चित करना।

रविवार, 14 जून 2009

राजेश कश्यप रोहतक जिले के प्रधान नियुक्त

राजेश कश्यप रोहतक जिले के प्रधान नियुक्त

हरियाणा कश्यप राजपूत सभा के जिला रोहतक का प्रधान युवा समाजसेवी राजेश कश्यप को सर्वसम्मति से चुना गया । रविवार को पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत सभा के मुख्यालय कश्यप भवन, तितोली में जिला कार्यकारिणी का चुनाव हरियाणा प्रदेश चुनाव कमिटी के चेयरमैन सुंदर सिंह कश्यप की अध्यक्षता में संपन हुआ । कश्यप समाज ने काफी विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से जिला प्रधान, सचिव एवं कोषाध्यक्ष चुनने की घोषणा कर दी। जिले सिंह कश्यप एवं दरिया सिंह कश्यप ने राजेश कश्यप का नाम प्रधान पद के लिए अनुमोदित किया, जिसे सभी सदस्यों ने तालियों की करतल ध्वनी के बीच अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी। इसके बाद महेंदर सिंह कश्यप वेद प्रकाश कश्यप ने जय भगवन कश्यप को सचिव और करतार सिंह कश्यप व राय सिंह कश्यप ने सत्यवान कश्यप को कोषाध्यक्ष पद के लिए अनुमोदित किया, जिसे सभी ने सहर्ष स्वीकृत कर लिया।

चुनाव कमिटी के चेयरमैन सुंदर सिंह कश्यप ने जिला रोहतक इकाई के चुने हुए प्रतिनिधियों को बधाइयाँ दी और उन्हें कार्यभार सौंपा । उन्होंने सभा के जिला स्तर एवं ब्लाक स्तर के अन्य अधिकारीयों के चुनाव करने एवं जिला स्तर के समुचित निर्णय लेने के अधिकार सभा के नवनियुक्त प्रधान राजेश कश्यप को प्रदान किए।
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा के जिला रोहतक के प्रधान चुने जाने पर राजेश कश्यप ने समस्त कश्यप समाज का आभार प्रकट किया और सभी से कश्यप समाज के उत्थान के लिए तन मन धन से अपना सहयोग देने का भी अनुरोध किया । श्री कश्यप ने अपने संबोधन में आगे कहा की जो भी व्यक्ति कश्यप समाज के उत्थान में अपना सक्रिय सहयोग देना चाहता है और जिला स्तर अथवा ब्लाक स्तर के पड़ के योग्य समझता है तो वह एक सप्ताह के अंदर जिला प्रधान को अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। राजेश कश्यप ने आगे कहा की कश्यप सभा की आवश्यक योजनाओं एवं कार्यकर्मों की घोषणा जल्द ही नयी कार्यकारिणी में की जायेगी। इस अवसर पर कश्यप समाज के असंख्य लोग उपसिथत थे।

बुधवार, 6 मई 2009

महर्षि कश्यप जी से सम्बंधित कहानियाँ / राजेश कश्यप

महर्षि कश्यप जी से सम्बंधित कहानियाँ / राजेश कश्यप
परशुराम जी को समझने के लिए अनेक प्रसंगो से कड़िया जोड़नी पड़ती है। एशिया के सौ से अधिक स्थानों पर परशुराम जी के जन्मस्थान होने की मान्यता है। मध्य एशिया में फिलस्तीन की राजधानी रामल्ला या अफगानिस्तान का जामदार उन्हीं मे से हैं। कभी संपूर्ण एशिया कुल चार साम्रायों में विभाजित था। जिसके बारे में कहा जाता है कि इन साम्रायों का सीमांकन परशुरामजी के कहने से महर्षि कश्यप ने किया था। इसकी पुष्टि भाषा विज्ञान से की जा सकती है। संसार का सुप्रसिध्द पारस साम्राय जिसका अस्तित्व ईसा से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व यूनानी विजेता सिंकदर के समय तक मौजूद था। पारस साम्राय का शब्द च्पारस और परशुराम जी के नाम में जुड़ा शब्द च्परशु एक ही धातु के बने शब्द है। परशुराम जी को बचपन में उनकी मां रेणुका देवी अभिराम कहा करती थी। वे परशुराम तो बाद में परशु अस्त्र के अविष्कार के बाद बने।
च्यवन बड़े प्रसिद्ध ऋषि थे। उनका विवाह राजा शयीति की पुत्री सुकन्या से हुआ। इनके च्यवान तथा वसन दो पुत्र थे। च्यवान के सुमेधा नामक पुत्री और अप्नवान् तथा प्रमाति नामक पुत्र हुए। सुमेधा का विवाह महिर्ष कश्यप के पौत्र निध्रुप से हुआ। अप्नवान का विवाह राजा नहुष की पुत्री और ययाति की बहिन रुचि से हुआ। अप्नवान और प्रमति से भृगुवंश आगे बढ़ा।प्रमति के वंश में रूरू नामक ऋषि हुए। रूरू के वंशज शुनक ने आंगिरस वंश के शौन होत्र गोत्री गृत्समद को गोद ले लिया जिसके फलस्वरूप गृत्समद शौनक हो गये और उनसे शौनक गण प्रवर्तित हुआ। अप्नवान के वंश में ऊर्व नायक प्रसिद्ध ऋषि हुए। उर्व के पुत्र का नाम ऋचीक था। ऋचीक का कान्य-कुब्ज राजा गाधि की पुत्री, महिर्ष विश्वामित्र की बहन, सत्यवती से विवाह हुआ। ऋचीक और सत्यवती के पुत्र महिर्ष जमदग्नि थे। जमदग्नि विश्वामित्र के भानजे थे, और ऋग्वेद में कुछ सूक्तों की रचना दोनों ने मिलकर की थी।भार्गवों के इन छ: गणों में आप्नवान गण के सदस्यों की संख्या सबसे अधिक थी। अत: आप्नवान गण तीन पक्षों में विभाजित हो गया जिनके नाम वत्स, बिद और आर्ष्टिषेण थे। अन्य गण भी पक्ष कहलाने लगे। इस प्रकार भार्गवों में आठ पक्ष हो गये। प्रत्येक पक्ष भी अनेक गोत्रों में विभाजित हो गया। कभी-कभी भिन्न भिन्न पक्षों, गणों अथवा वंशों में समान नाम के गोत्र भी मिल जाते थे। उदाहरण के लिए गाग्र्य गोत्र भार्गवों और आगिरसों दोनों में पाया जाता है। ऐसी दशा में यह निश्चय करना कठिन हो जाता था कि इस प्रकार के गोत्र वाला मनुष्य किस वंश अथवा किस गण का सदस्य है। इस उलझन को दूर करने के लिए प्रत्येक गोत्र के साथ प्रवरों की व्यवस्था की गई। प्रवर का अर्थ श्रेष्ठ होता है। जब किसी गोत्र का व्यक्ति अपने प्रवरों अर्थात् श्रेष्ठ पूर्वजों के नामों का भी उल्लेख कर देता है तो कोई उलझन नहीं हो सकती।भार्गवों के आठ पक्षों के प्रवर इस प्रकार हैं। वत्स पक्ष के प्रवर भृगु, च्यवन, अप्नवान, ऊर्व और जगदग्नि हैं। विद पक्ष के प्रवर भृगु, च्यवन, अप्नवान, ऊर्व और बिद हैं। आर्ष्टिषेण पक्ष के प्रवर भृगु, च्यवन, अप्नवान आर्ष्टिषेण और अनूप हैं। शौनक पक्ष के प्रवर भृगु, शुनहोत्र और गृत्ममद हैं। वैन्य पक्ष के प्रवर भृगु, वेन और पृथु हैं। मैत्रेय पक्ष के प्रवर भृगु, वध्यश्व और दिवोदास हैं। यास्क पक्ष के प्रवर भृगु, वीतहव्य और सावेतस हैं। वेदविश्वज्योति पक्ष के प्रवर भृगु, वेद और विश्व ज्योति हैं।जमदग्नि का विवाह इक्ष्वाकु वंश की राजकुमारी रेणुका से हुआ। जमदग्नि और रेणुका के महातेजस्वी राम नामक पुत्र हुए जो शत्रुओं के विरुद्ध परशुधारण करने के कारण परशुराम नाम से विख्यात हुए। परशुराम एक महान ऋषि थे, और महान योद्धा भी। इनका उल्लेख सभी पौराणिक पुस्तकों में मिलता है- (रामायण और महाभारत) में भी। उन्होंने जहां सहस्रबाहु को पराजित करके अपनी वीरता का परिचय दिया वहीं ऋग्वेद के दशम मंडल के 110 वें सूक्त की रचना करके अपनी विद्वता का परिचय दिया। इन्हीं असामान्य गुणों से प्रभावित होकर बाद की पीढ़ियों ने उन्हें साक्षात् भगवान विष्णु का अवतार मान लिया।हम भार्गवों के वर्तमान गोत्र दो गणों में से निकले हैं। बत्स (वछलश), कुत्स (कुछलश), गालव (गोलश) और विद (विदलश) तो अप्नवान गण के अन्तर्गत है। शेष दो अर्थात् काश्यपि (काशिप) और गाग्र्य (गागलश) यास्क गण के अन्तर्गत हैं।इस काल के प्रारम्भ में वेदव्यास के शिष्य वेशम्पायन नामक प्रसिद्ध भार्गव विद्वान हुए जो यजुर्वेद के आचार्य थे और जिन्होंने राजा जनमेजय को महाभारत की कथा सुनाई थी। दूसरे भार्गव विद्वान शौनक थे, जिनका नाम अथर्ववेद की एक शाखा से जुड़ा हुआ है। शौनक ने ऋग्वेद प्रातिशाख्य, अनुक्रमणी और बृहददेवता की भी रचना की थी। इस काल के कई प्रसिद्ध भार्गवों ने (1000 ई0पू0-500 ई0पू0 वैदिक साहित्य के सम्पादन और वेदांग साहित्य की रचना में अतुलित योगदान दिया।इसी युग में भृगुवंश में तीन ऐसी विभूतियां हुई जिन्होंने संस्कृत साहित्य के तीन भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में ऐसे ग्रन्थ रचे जो विश्व के साहित्य में बहुत ऊंचा स्थान रखते हैं। इनमें सर्वप्रथम वाल्मीकि है। रामायण, महाभारत, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण और विष्णु पुराण जैसे- प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार वाल्मीकि भृगुवंशी थे। इन ग्रन्थों की पुष्टि ईसा की प्रथम शताब्दी के बौद्ध कवि अश्वघोष ने अपने `बुद्धचरित´ में यह कह कर की है कि जो काव्य-रचना च्यवन न कर सके वह उनके वंशज वाल्मीकि ने कर दिखाया।इस युग की दूसरी विभूति जिससें भार्गव वंश अलंकृत हुआ, यास्क थे। यास्क ने निरूक्त नामक ग्रन्थ की रचना करके विश्व में पहली बार शब्दव्युतपत्ति अथवा (Etymolog) पर प्रकाश डाला।इस काल की तीसरी विभूति जिससे भार्गव वंश गौरवान्वित हुआ पाणिनि थे। पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण पर अपनी अद्भुत पुस्तक `अष्टाध्यायी´ की रचना की।चौथी शताब्दी ई।पू.के उत्तरार्ध में भारतीय इतिहास का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित हुआ जिसका संस्थापक महाबली चन्द्रगुप्त मौर्य थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरू और मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री और संचालक विष्णुगुप्त चाणक्य नामक महान राजनीतिज्ञ थे, जो कौटिल्य गौत्र के भार्गव थे। चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ रचा जो संस्कृत के राजनीति शास्त्र विषयक ग्रन्थों में सर्वोच्च स्थान रखता है।इसी समय में रचित `कामसूत्र´ के लेखक वात्स्यायन भी भार्गव थे।मौर्य युग के बाद दूसरी शताब्दी ई.पू.में शुंग-युग की ही रचना है। `मनुस्मृति´ से ज्ञात होता है कि उसके रचयिता भी एक भार्गव थे। स्कृत की सभा के सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन रत्न और संके प्रसिद्ध गद्य काव्य प्रणेता बाण-वत्स गोत्र के भार्गव थे। इन्होंने दो प्रसिद्ध गद्य काव्य लिखे `कादम्बरी´ और `हर्षचरित´।प्राचीन काल के अन्तिम प्रसिद्ध भार्गव जिन्होंने लड़खड़ाते हुए वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया और अद्वैत-वेदान्त दर्शन का प्रवर्तन किया 788 ई.में केरल में उत्पन्न हुए। 32 वर्ष की आयु में अपनी रचनाओं से सारे विश्व को चमत्कृत कर दिया। ये महात्मा शंकराचार्य थे। उनके उपनिषदों, ब्रह्म सूत्र और भगवद्गीता पर रचे काव्य उनकी विद्वता के पुष्ट प्रमाण है।भरत खंड में महिर्ष भृगु ने तपस्या की थी उस स्थल को भृगु क्षेत्र कहते हैं, यही अपभ्रंशित होकर `भड़ौच´ हो गया। इसमें निवास करने वाली सभी जातियां भार्गव कहलाती हैं। महिर्ष भृगु से जो वंश बढ़ा वह भार्गव कहलाया। और जो उससे अलग थे, वे भार्गव क्षत्रिय : भार्गव वैश्य आदि कहलाए।महिर्ष भृगु ने अपनी श्री नाम की कन्या का पाणिग्रहण श्री विष्णु भगवान से किया था। उस समय ब्रह्मा जी के सभी पुत्र, ऋषि एवं ब्राह्मण उपस्थित हुए। विवाहोपरान्त श्रीजी ने भगवान विष्णु से कहा- इस क्षेत्र में 12000 ब्राह्मण है, जो ब्रह्मपद की कामना करते हैं, इन्हें मैं स्थापित करूंगी और 36,000 वैश्यों को भी स्थापित करूंगी। और जो भी इतर जन होंगे वे भी भृगु क्षेत्र में निवास करेंगे उन सबकी अपने-अपने वर्णों में भार्गव संज्ञा होगी। भगवान विष्णु ने `एवमस्तु´ कहा।फलस्वरूप सभी वर्ण अपने नाम के आगे `भार्गव´ लगाने लगे। आज भी भार्गव बढ़ई, भार्गव सुनार, भार्गव क्षत्रिय तथा भार्गव वैश्य पाये जाते हैं जिनके गोत्र भिन्न हैं।इस प्रकार भारतवर्ष में भृगुवंशी भार्गव, च्यवन वंशी भार्गव, औविवंशी भार्गव, वत्सवंशी भार्गव, विदवंशी भार्गव, निवास करते हैं। ये सभी भृगुजी की वंशावली में से `भार्गव´ है। उत्तरीय भारत में च्यवनवंशी भार्गव है। गुजरात में भार्गव जाति के चार केन्द्र है, भड़ौंच, भाडंवी, कमलज और सूरत।भिन्न-भिन्न क्षेत्र के भार्गव भिन्न-भिन्न नामों से जाने जाते हैं, जो इस प्रकार है- मध्यप्रदेशीय भार्गव- इनके गोत्र सं:कृत, कश्यप, अत्रि कौशल्य, कौशिक पूरण, उपमन्यु, वत्स, वशिष्ठ आदि हैं। प्रवरों में आंगिरस, कश्यप, वशिष्ठ, वत्स, गार्गायन, आप्नवान, च्यवन, शंडिल्य, गौतम, गर्ग आदि है। वंशों के नामों में व्यास, आजारज, ठाकुर, चौबे, दुबे ज्योतिषी, सहरिया, तिवारी, दीक्षित, मिश्र, पाठक, पुरोहित आदि हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी अपनी पावन कृतियों में श्रीमारुति की महिमा के गान में इन्हीं नामों का प्रयोग किया है। विनय पत्रिका में रुद्रावतार और पवन पुत्र दोनों ही मान्यताओं को साथ–साथ समन्वित रूप मे वर्णन करते हुए कहते हैं –
जयति मर्कटाधीस मृगराज विक्रममहादेव मुदमंगलालय कपाली।मोह–मद–मोह कामादि खल संकुल –घोर संसार–निसि–किरन माली।।जयति लसदजनादितिज कपि केसरी–कस्यप–प्रभव–जगदार्तिहर्ता।लोक–लोकप–कोक–कोकनद–सोहकर–हंस हनुमान कल्याण कर्ता।।
(विनय पत्रिका 26)
हे वानरों के राजा, सिंह के समान पराक्रमी महादेव आनन्द और मंगल के आगर कपाली शिव के अवतार, आपकी जय हो। मोह, मद, क्रोध, काम आदि दुष्टों से व्याप्त घोर इस संसार रूप रात्रि को नाश करने वाले तुम साक्षात् सूर्यदेव हो, तुम्हारी जय हो। तुम्हारा जन्म अंजनी रूपी अदिति और वानरों में सिंह के समान केसरी रूपी कश्यप से हुआ है। तुम जगत के आर्ति को हरने वाले, लोक और लोकपाल रूपी चकवा–चकवी और कमलो का शोक नाश करने वाले श्रीहनुमान् तुम साक्षात् कल्याणकर्ता सूर्य हो, तुम्हारी जय हो। इसी प्रकार गोस्वामी जी रचित अनेकों छन्दों में रुद्रावतार पवन कुमार का वर्णन प्राप्त होता है जो कपिराज केसरी के क्षेत्रज पुत्र के रूप में अन्जनादेवी के गर्भ से प्रकट हुए हैं।


ऋग्वेद में सूर्य को सबसे अधिक शक्तिशाली और प्रत्यक्ष देवता के रूप में सम्मानित किया गया है। इनके अनेक नामों में से एक नाम है मार्तण्ड। सूर्य के इस रूप की उपासना पौष शुक्ल पक्ष में सप्तमी तिथि की जाती है।
सूर्य महात्मय (Surya Mahatmya)सूर्य भगवान आदि देव हैं अत: इन्हें आदित्य कहते हैं इसके अलावा अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लेने के कारण भी इन्हें इस नाम से जाना जाता है। सूर्य के कई नाम हैं जिनमें मार्तण्ड भी एक है जिनकी पूजा पौष मास में शुक्ल सप्तमी को होती है। सूर्य देव का यह रूप बहुत ही तेजस्वी है यह अशुभता और पाप का नाश कर उत्तम फल प्रदान करने वाला है। इस दिन सूर्य की पूजा करने से सुख सौभाग्य एवं स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
मार्तण्ड सप्तमी कथा (Martand Saptmi Katha)दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ। अदिति ने कई पुत्रों को जन्म दिया। अदिति के पुत्र देव कहलाये। अदिति की बहन दिति के भी कई पुत्र हुए जो असुर कहलाये। असुर देवताओं के प्रति वैर भाव रखते थे। वे देवताओं को मार कर स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे। अपने पुत्रों की जान संकट में जानकर देवी अदिति बहुत ही दु:खी थी। उस समय उन्होंने सर्वशक्तिमान सूर्य देव (Surya Dev) की उपासना का प्रण किया और कठोर तपस्या में लीन हो गयी। देव माता अदिति की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिया और वरदान मांगने के लिए कहा। सूर्य के ऐसा कहने पर देव माता ने कहा कि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे पुत्रों की रक्षा हेतु आप मेरे पुत्र के रूप में जन्म लेकर अपने भाईयों के प्राणों की रक्षा करें। सूर्य के वरदान के फलस्वरूप भगवान सूर्य का अंश अदिति के गर्भ में पलने लगा। सूर्य जब गर्भ में थे उस समय देवी अदिति सदा तप और व्रत में लगी रहती थी। तप और व्रत से देवी का शरीर कमज़ोर होता जा रहा था। महर्षि कश्यप के काफी समझाने पर भी देवी ने तप व्रत जारी रखा तो क्रोध वश महर्षि ने कह दिया कि तुम इस गर्भ को मार डालो। महर्षि के ऐसे अपवाक्य को सुनकर अदिति ने गर्भ गिरा दिया। गर्भ उस समय उदयकालीन सूर्य के समान रूप धारण कर लिया और आकाशवाणी हुई हे ऋषि तुमने इस अण्ड को मार दिया है जो सूर्य का अंश है। ऋषि को यह जानकर पश्चाताप हुआ कि यह भगवान सूर्य के अंश के लिए उन्होंने बुरा भला कहा। अपने अपराध के लिए क्षमा मांगते हुए उन्होंनें सूर्य देव की वंदना की। वंदना से प्रसन्न होकर सूर्य ने महर्षि को क्षमा दान दिया और तत्काल उस अण्ड से अत्यंत तेजस्वी पुरूष का जन्म हुआ जो मार्तण्ड कहलाया। सूर्य देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है मार्तण्ड सप्तमी (Martand saptami) तिथि को। चुंकि सूर्य अदिति के गर्भ से जन्म लिये थे अत: ये आदित्य भी कहलाये।
मार्तण्ड सप्तमी पूजा व्रत विधि (Martand Saptami Pooja vrat Vidhi)पौष शुक्ल पक्ष में जो लोग मार्तण्ड सप्तमी (Paush Shukla Martand Saptmi vrat )का व्रत रख कर सूर्य की उपासना करते हैं उन्हें चाहिए कि सूर्योदय पूर्व शैय्या का त्याग कर दें। नित्य क्रिया से निवृत होकर सूर्योदय के समय स्नान करें। स्नान के पश्चात संकल्प करके अदिति पुत्र सूर्य देव की पूजा करें। इस समय सूर्य भगवान को ओम श्री सूर्याय नम:, ओम दिवाकराय नम:, ओम प्रभाकराय नम: नाम से आर्घ्य दें एवं परिवार के स्वास्थ्य व कल्याण हेतु उनसे प्रार्थना करें। पूजा के बाद सूर्य कैसे अदिति के गर्भ में आये और क्यों मार्तण्ड कहलाये यह कथा सुनें और सुनायें। सूर्य के इस रूप की पूजा से रोग का शमन होता है और व्यक्ति स्वस्थ एवं कांतिमय हो जाता है। शास्त्रों में इस व्रत को आरोग्य दायक कहा गया है। कहा भी गया है स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं है इस धन की प्राप्ति हेतु सूर्योपासना करें।.


महाभारत -5/180 में मन्महर्षि श्रीकृष्ण दैपायन बादरायण ’वेदव्यास’ जी की वाणी को श्री गणेश जी ने अलपिबद्ध किया है कि पूर्वकाल में धन के मद से किसी धनिक व्यवसायी ने कठोर ब्रत का पालन करने वाले तपस्वी मरीचि कुमार महर्षि कश्यप को अपने रथ से धक्का देकर गिरा दिया। वे धरातल पर गिरने की पीड़ा से कराहते हुए आत्महत्या के लिए उद्यत कुपित स्वर में बोले–“अब मैं प्राण दे दूंगा, क्योंकि इस संसार में निंर्धन मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।” उन्हें इस प्रकार मरने की इच्छा लेकर बैठे मन-ही-मन धन लोभ-मोह के मायाजाल में फंसे देख एक सियार ध्यान रहे ऐसी मान्यता रही है कि सतयुग में सभी प्राणी तथा वनस्पति भी बोलने- कहने लगा – मुनिवर । सभी प्राणी मनुष्य योनि पाने की इच्छा रखते हैं । उसमें भी ब्राह्मणत्व की प्रशंसा तो सभी लोग करते हैं । आप तो मनुष्य हैं, ब्राह्मण हैं और श्रोत्रिय भी हैं । ऐसा परम दुर्लभ मानव तन पाकर भी उसमें दोष देखकर आपके लिए आत्महत्या हेतु उद्यत होना अनुचित बात है ।जिनके पास मालिक के दिये दो हाथ हैं, उन्हें मैं कृतार्थ मानता हूं । इस जगत में जिसके पास एक से अधिक हाथ हैं, उनके जैसा सौभाग्य प्राप्त करने की आकांक्षा मुझे बारम्बार होती है। जिस प्रकार आपके मन में धन की लालसा है, उसी प्रकार हम पशुओं को मनुष्यों के समान हाथ पाने की अभिलाषा रहती है। हमारी दृष्टि में हाथ मिलने से अधिक अन्य कोई दूसरा लाभ नहीं। हमारे शरीर में कांटे गड़ जाते हैं, पर हाथ न होने के कारण हम उन्हें निकाल नहीं पाते । जो छोटे-बड़े जीव-जन्तु हमारे शरीर को डंसते हैं, उनकों भी हम हटा नहीं सकते, किन्तु जिनके पास सर्वेश्वर के दिये दस अंगुलियों से युक्त दो हाथ हैं, वे अपने हाथों से उन कीड़े-मकोड़ों को हटा देते अथवा नष्ट कर देते हैं । वे वर्षा, सर्दी और धूप से अपनी रक्षा कर लेते हैं, वस्त्राभूषण पहनते हैं, खाद्यान्न-जल –पान तथा स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करते हैं, शय्या बिछाकर चैन की नींद सोते हैं तथा एकान्त स्थान का सुख पूर्वक उपभोग करते हैं ।हाथ वाले मनुष्य बैलों से जुती हुई गाड़ी पर चढ़कर उन्हें हांकते है और इस धरातर में उनका यथेष्ट उपभोग करते हैं तथा हाथ से ही अनेक प्रकार के उपाय करके अन्य प्राणियों को भी अपने वश में कर लेते हैं। जो दुःख बिना हाथ वाले आपको नहीं सहने पड़ते । अपना प्रारब्ध बड़ा श्रेष्ठ है कि आप गिद्ध, चमगादड़, सांप, छछुंदर,चूहा, मेंढक अत्यादि किसी अन्य पाप योनि में उत्पन्न नहीं हुए । आपको इतने ही लाभ से संतुष्ट रहना चाहिए । इससे अधिक लाभ की बात और क्या हो सकती है कि आप 84 लाख योनियों में सर्वश्रष्ठ ब्राह्मण हैं । मुझे ये कीड़े-मकोड़े खा रहे हैं, जिन्हें निकल फेंकने की शक्ति मुझमें नहीं है। हाथ के अभाव में होने वाली मेरी दुर्दशा को आप प्रत्यक्ष देख-परख लें । आत्महत्या करना पाप है, यह सोचकर ही मैं अपने इस शरीर का परित्याग नहीं करता हूँ । मुझे भय है कि मैं इससे भी निकृष्ट किसी अन्य पाप योनि में न गिर जाऊं ।यद्यपि मैं इस समय जिस श्रृगाल योनि में हूं , इसकी गणना भी पाप योनियों में ही होती है, तथापि अन्य अनेकानेक पाप योनियां इससे भी निम्न श्रेणी की है। कुछ मनुष्य देव पुरूष से भी अधिक सुखी हैं, और कुछ पशुओं से भी अधिक दुःखी लेकिन फिर भी मैं कहीं किसी व्यक्ति को ऐसा नहीं देखता, जिसको सर्वधा सुख ही सुख प्राप्त हो । मनुष्य धनी होकर राज्य पाना चाहते हैं, राज्य से देवत्व की इच्छा करते हैं और देवत्व से इन्द्रपद की कामना करते हैं । यदि आप धनी हो जाएं तो भी ब्राह्मण होने के कारण राजा नहीं हो सकते । यदि कदाचित राजा हो जाये तो ब्राह्मण देवता नहीं हो सकते । यदि आप राजर्षि और ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त कर लें तो भी इन्द्रपद प्राप्त नहीं कर पाते । यदि इन्द्रसन भी प्राप्त कर लें तो भी आप उतने से ही संतुष्ट नहीं रह सकेंगे क्योंकि प्रिय वस्तुओं का लाभ होने से कभी तृप्ति नहीं होती। बढ़ती हुई तृष्णा जल से नहीं बुझती ईँधन पाकर जलने वाली आग के समान वह और भी प्रज्वलित होती जाती है।आपके अंदर शोक भी है और हर्ष भी । साथ ही सुख और दुःख दोनों है, फिर शोक करना किस काम का ? बुद्धि और इन्द्रियां ही समस्त कामनाओं और कर्मो की मूल है। उन्हें पिंजड़ में बंद पक्षियों की भांति अपने काबू में रखा जाय तो कोई भय नहीं रह जाता । मनुष्य को दूसरे सिर और तीसरे हाथ के कटने का कभी भय नहीं रहता, जो वस्तुतः है ही नहीं । जो किसी विषय का रस नहीं जानता, उसके मन में कभी उसकी कामना भी नहीं होती । स्पर्श, दर्शन तथा श्रवण से ही कामना का उदय होता है। मद्य तथा मांस इन दोनों का आप कभी स्मरण नहीं करते होंगे, क्योंकि इन दोनों का आपने कभी पान तथा भक्षण नहीं किया है परन्तु सद्यप तथा मांसाहरी के लिए इन दोनों से बढ़कर कहीं और कोई भी पेय तथा भक्ष्य पदार्थ हैं, जिनका आपने पहले कभी सेवन नहीं किया है, उन खाद्य पदार्थ की स्मृति आपको कभी नहीं होगी । मेरी मान्यता है कि किसी वर्जित वस्तु को ग्रहण न करने,न छूने और न देखने का नियम लेना ही व्यक्ति के लिए कल्याणकारी है, इसमें संशय नहीं । जिनके दोनों हाथ बने हुए हैं निःसन्देह ही बलवान तथा धनवान हैं।कितने ही मनुष्य बारम्बार जीवन-मरण और बन्धन के क्लेश भोगते रहते हैं, लेकिन फिर भी वे आत्माहत्या नहीं करते । अन्य अनेक सबल, सम्पन्न, प्रबुद्ध मनस्वी भी दीन-हीन, निन्दित और पापपूर्ण वृत्ति से जीवन यापन करते हैं। भंगी अथवा चाण्डाल भी आत्महत्या करना नहीं चाहता, वह अपनी उसी जीविका से संतुष्ट रहता है। कुछ मनुष्य अंग-भंग, अनंग-अपंग, अपाहिज- लकवाग्रस्त तथा निरन्तर अस्वस्थ ही रहते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें हम धिक्कार के पात्र नहीं कह सकते । आपके सर्वग सही और निर्विकार है । आपका शरीर स्वस्थ और सुंदर है, इस कारण इस लोक में कोई भी आपको धिक्कार नहीं सकता । यदि आप पर दिवालिया, पदच्युत, जाति-समाज-संघ और धर्म –सम्प्रदाय-पंथ से बहिष्कृत तथा क्षेत्र बाहर अथवा देश निकाला विषयक कोई कलंक लगा हो तो भी आपको आत्माहत्या करने का विचार नहीं करना चाहिए । अतएव यदि आप मेरी बात मानें तो धर्मपालन के लिए दृढ़ संकल्प के साथ उठ खड़े होइये और सावधान होकर यम-नियम, सत्य-अहिंसा, दान-धर्म, स्वाध्याय और अग्निहोत्र का पालन कीजिए । किसी के साथ स्पर्धा मत कीजिए । जो ब्राह्मण स्वाध्याय में लगे रहते तथा यज्ञ करते और कराते है, वे भला किसी भी प्रकार की चिंता क्यों करेंगे और आत्माहत्या जैसी बुरी बात क्यों सोचेंगे ?पूर्वजन्म में मैं एक ब्राह्मण था और कुतर्क का आश्रय लेकर वेदवाणी की निंदा करता था प्रत्यक्ष के आधार पर अनुमान को प्रधानता देने वाली थोथी तर्क विद्या पर ही उस समय मेरा अधिक अनुराग था। मैं सभाओं में जाकर तर्क तथा युक्ति की बातें ही अधिक बोलता था। जहां अन्य ब्राह्मण श्रद्धापूर्वक वेद वाक्यों पर विचार करते, वहां मैं बलपूर्वक जाकर आक्रमण करके उन्हें खरी-खोटी सुना देता तथा स्वयं ही अपना तर्कवाद बका करता था । मैं नास्तिक, सब पर संदेह करने वाला तथा मूर्ख होकर भी अपने आप को पंण्डित मानने वाला था। यह श्रृगार योनि मेरे उसी कुकर्म का फल है। अब मैं सैकड़ों दिन-रात निरन्तर साधना करके भी क्या कभी वह उपाय कर सकता हूँ ? जिससे आज सियार की योनि में पड़ा हुआ मैं पुनः वह मनुष्य योनि पा सकूं । जिस मनुष्य योनि में मैं संतुष्ट तथा सावधान रहकर यज्ञ,दान तथा तपस्या में लगा रह सकूं, जिसमें मैं जानने योग्य वस्तु को जान सकूं और त्यागने योग्य वस्तु को त्याग सकूं । यह सुनकर महर्षि कश्यप अचंभित होकर बोले- “श्रृगाल । तुम तो बड़े कुशल निपुण और वेदज्ञ हो, विद्वान, प्रबुद्ध तथा विवेकी हो । मैं तुम्हारे अभिमत से पूर्णतः सहमत हूं कि आत्माहत्या करने का विचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि आत्महत्या हेतु उद्यत होना भी उचित नहीं है। ऐसा कहकर कश्यप मुनि धर्म पालन हेतु उठ खड़े हुए और सियार से कृतज्ञता पूर्वक विदा होकर अपने गृहस्थ आश्रम की ओर प्रस्थान किए ।


राजा दुष्यन्त एक मृग का पिछा करते महर्षि कण्व के आश्रम में पहुँच जाते हैं । तब महर्षि कण्व तिर्थ पर गये होते हैं, तथा आश्रम में अतिथि सेवा का काम शकुन्त्ला पर होता है । शकुन्त्ला महर्षि कण्व की पुत्री नहीं अपितु अप्सरा मेन्का की पुत्री है, जो पैदा होने पर अपने पिता महर्षि कौशिक द्वारा त्याग दी जाती है । राजा दुष्यन्त को महर्षि कण्व के शिष्य आश्रम आने का न्योता देते हैं, जिसे वे सहर्ष स्वीकार करते हैं । ळेकिन दुष्यन्त तो शकुन्त्ला का रूप देखकर उस पर मुग्ध हो जाते हैं । और शकुन्त्ला का भी यही हाल होता है । शकुन्त्ला की सखियाँ, प्रियम्वदा तथा अनसूया, ही दुष्यन्त और शकुन्त्ला में वार्तालाप करवाती हैं । नाटक के प्रथम अड्ग में इसी का वर्णन है । प्रथम अड्ग के अन्त में शकुन्त्ला दुष्यन्त को जाते हुए पिछे मुडकर देखती है, और यही चित्रकार राजा रवि वर्मा की प्रेरणा है । सचमुच बडा ही रोचक चित्र है । नाटक के छठे अड्ग में दुष्यन्त अपने द्वारा चित्रित शकुन्त्ला के चित्र का वर्णन करता है, और राजा रवि वर्मा का चित्र उस वर्णन से बहुत मिलता है, जैसे शायद दुष्यन्त का वही चित्र आज भी शकुन्त्ला के सॊन्दर्य का प्रतीक हो । सच में ह्रदय गदगद हो उठा ।
द्वितिय अड्ग में दुष्यन्त अपने शिविर में वापिस आता है, और अपने दिल का वृतान्त अप्ने मित्र विदूषक माद्व्य से कह्ता है । दोनों में तर्क होता है की एक आश्रम की युव्ती राजमहल में शोभीत होगी या नहीं । विदूषक तो राजा का कथन व्यंग समझता है, और सोचता है शायद राजन विनोद कर रहे हैं । लेकिन राजा तो कामदेव का शिकार बन चुका था, और अब उसे वन के सभी जन्तु प्रिय लगने लगे थे और शिकार हीन । जब राजा को राज्य से बुलावा आता है, तो वो माद्व्य को अपनी जगह भेज देता है, ताकी शकुन्त्ला के पास रह सके । लेकिन चलते समय वो माद्व्य को कह्ते हैं कि उनका शकुन्त्ला के बारे में कथन सिर्फ़ व्यंग था और वे उसे भूल जायें ।
तीसरे अड्ग में शकुन्त्ला का दुष्यन्त से वियोग का सजीव वृतान्त है । क्योंकी दुष्यन्त भी शकुन्त्ला को प्रथम द्रिष्टी में भा गये थे, इसी लिये वो काम-पीडा से अस्वस्थ हो गयी थी । प्रियम्वदा तथा अनसूया शकुन्त्ला के साथ नदी किनारे बैठ्कर शकुन्त्ला को दुष्यन्त के लिये प्रेम पत्र लिखने का अनुग्रह करती हैं । लेकिन काम व्याकुल दुष्यन्त तो पहले से ही उनकी बातें सुन रहा होता है । जब वह ये जानता है की शकुन्त्ला भी उस पर आरूड है तो वह शकुन्त्ला के सामने अपने दिल का हाल सुनाता है और शकुन्त्ला के संग गान्धर्व विवाह करने का प्रस्ताव रखता है । यद्यपि दोनो के विवाह और सम्भोग का वर्णन नाटक में नही है, तब भी कवि इस्का सन्केत चतुर्थ अड्ग के आरम्भ में ही कर देते हैं । इस्का एक कारण यह हो सकता है कि “नाटयशास्त्र” के अनुसार नाट्क में विवाह, युद्द, हिंसा आदि का उल्लेख शोभा नहीं देता । और आज कल के चलचित्रों को देखिये, इनके बिना तो जैसे इनका अस्तित्व ही मिट जाये!!! है ना व्यंग की बात…
चतुर्थ अड्ग “अभिझान शाकुन्तलम” का सबसे श्रेष्ट अड्ग मान जाता है । मेरी भी यही राय है, लेकिन अंतिम अड्ग में दुष्यन्त और भरत का मिलाप और भरत की बाल लीला भी कुछ कम मनोहारिनी नहीं । चतुर्थ अड्ग के आरम्भ में शकुन्त्ला और दुष्यन्त का विवाह हो चुका है और राजा दुष्यन्त शकुन्त्ला को अपने राजमहल में बुलाने का वादा कर चले जाते हैं, और याद के रूप में उसे दे जाते हैं अपनी अन्गूठी (मुद्रिका) । लेकिन उसी दिन अपने क्रोध के लिये प्रसिद्ध महर्षि दुर्वासा शकुन्त्ला को श्राप देते हैं की जिसे वो इतना प्रेम करती है की अतिथि-सत्कार भी उसकी याद में भूल गयी, वही उसे भूल जायेगा । दरसल दुष्यन्त की मुद्रिका को देखकर उसकी सोच में मगन शकुन्तला द्वार पर आये महर्षि दुर्वासा की तरफ़ पुकारने पर भी नहीं देखती । ळेकिन प्रियम्वदा एवंम अनसूया के अनुग्रह पर महर्षि दुर्वासा यह कहते हैं की राजा दुष्यन्त मुद्रिका देखकर उसे पह्चान जायेंगे । तब महर्षि कण्व तिर्थ से लौटते हैं, तथा सारा वृतान्त सुनकर शकुन्त्ला को आशिर्वाद देते हुये उसे अपने शिष्य शार्ड्गरव तथा शारद्वत एवंम माता गौतमी सहित दुष्यन्त के राज्य हस्तिनापुर के लिये विदा करते हैं । विदाई के समय का जो करुणामय द्रिष्य कालिदास ने प्रस्तुत किया है, शायद उसी लिये चतुर्थ अड्ग सब्से श्रेष्ट है । मेरा सर्वप्रिये प्रसंग वह है जिसमे शकुन्त्ला द्वारा पाला गया मृग जाती हुई शकुन्त्ला के वस्त्र खींच कर उसे जाने से रोकने का प्रयतन करता है । आन्खों से शकुन्त्ला गमन का वृतान्त पढ्कर आन्सुओं का स्वयं ही प्रवाह आरम्भ हो गया ।
पन्चम अड्ग में शकुन्त्ला, शार्ड्गरव, शारद्वत एवंम माता गौतमी के साथ दुष्यन्त के महल में उल्लास सहित प्रवेश करती है । लेकिन शाप वश राजा दुष्यन्त शकुन्त्ला को पह्चान नहीं पाते । तदोप्रान्त शार्ड्गरव और राजा में बहुत विवाद होता है । अंत में शकुन्त्ला मुद्रिका दिखाने का प्रस्ताव करती है, लेकिन रास्ते में गंगा में स्नान करते समय वह मुद्रिका उसकी अँगूलि से निकल गय़ी होती है । बस फिर तो राजा ने शकुन्त्ला का बहुत अपमान किया और उसे कुल्टा तथा चरित्रहीन भी कहा । यह सुनकर क्ण्व के शिष्यों को भी क्रोध आ गया और उन्हों ने राजा पर बालात्कार का आरोप लगा दिया । यूँ कहें कि बात मारा-मारी तक आ गयी । क्योंकि विवाहित शकुन्त्ला को आश्रम में रखना निति विरुद्ध होता, इसी लिये महर्षि कण्व के शिष्य शकुन्त्ला को उसके पति दुष्यन्त के पास छोडकर चले जाते हैं । लेकिन दुष्यन्त भी अज्ञान वश उस अभागन का तिरस्कार कर देते हैं । तब शोक व्याकुल शकुन्त्ला को आकाश से एक ज्योति उठा ले जाती है, जो कि असल में अप्सरा मेन्का होती है । सारे पान्च्वे अड्ग में दुष्यन्त को शकुन्त्ला का चरित्र और तेज देखकर यही शंका होती है कि कहीं ये सच तो नही कक रही, और जब वो शन्कुन्त्ला का आकाश में उड जाने की बात सुनता तो वह समझ जाता है कि उससे अक्ष्मिय भूल हो गयी है ।
छ्ठे अड्ग में नाटक में रोचक मोड आता है । राजा का शकार (कानून व्यवस्था का निरिक्षक) एक मछुआरे को राजा के सामने पेश करता है । असल में उसके पास वही मुद्रिका होती है, जो कि शकुन्त्ला के हाथ से गंगा में गिर गयी होती है । उसे वह मुद्रिका एक मछ्ली के पेट से मिलती है । बस फिर क्या था, राजा तो पश्‍अचाताप से व्याकुल हो उठता है । इधर मेन्का अपनी दासि सानुमति को दुष्यन्त के दरबार में छुप कर दुष्यन्त की विरह-अग्न का पता लगाने को कह्ती है । दुष्यन्त का शकुन्त्ला से विरह का वर्णन भी कुछ कम करुण नही । शकुन्त्ला के वियोग से पीडित दुष्यन्त वसन्त ‌ऋतु में भी दुखी रह्ता है । अपने मित्र माद्व्य से वो अपने दिल का दुख कह्ता है और अपने द्वारा चित्रित शकुन्त्ला के सुन्दर चित्र की शोभा में ही खो जाता है । इधर माद्व्य तो चन्चल स्वभाव का होता है, वो सोचता है की राजा तो अपने साथ मुझे भी पागल बनायेगा !! ये सोचकर जैसे ही वो बच कर बाहर निकलता है, एक अघ्यात शक्ति उसे उलटा लटका देती है !! धूर्त के साथ अच्छा ही हुआ, क्यूँ? असल में वो शक्ति थे देव इन्द्र के सार्थी मातलि, जो कि दुष्यन्त को असुरों से युद्ध के लिये बुलाने आते हैं । दुष्यन्त और इन्द्र बडे ही घनिष्ट मित्र होते हैं । मातलि माद्व्य को इस लिये दबोचते हैं कि शकुन्त्ला विरह से व्याकुल दुष्यन्त क्रोधित होकर होश में आयें ताकि युद्ध में अपना कौशल दिखा सकें । छ्ठे अड्ग की समाप्ति पर दुष्यन्त मातलि के साथ देवलोक की तरफ़ प्रस्थान करते हैं ।
सातवें, और अन्तिम, अड्ग में जब दुष्यन्त मातलि के साथ असुरों पर विजय पाकर अपने राज्य वापिस आ रहे होते हैं, तब वे महर्षि मारीच के आश्रम से होकर जाते हैं (इन्हे महर्षि कश्यप भी कह्ते हैं, ये सभी महा‌ऋशियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं, और देवताओं और असुरों के पिता भी) । यहाँ पर एक बडी ही रोचक बात सामने आती है । दुष्यन्त मातलि के साथ इन्द्र के रथ पर आकाश से नीचे आ रहे होते हैं । आज कल तो हम लोग वायुयान से आकाश से ज़मीन की तरफ़ देख सकते हैं, लेकिन कवि कालिदस ने तो इस द्रिशय का कुछ एसा उत्क्रिष्ठ वर्णन किया है जैसे उन्हों ने खुद आकाश से धरती को देखा हो!!! जब ब्रह्माण्ड से बाद्लों के बीच इन्द्र का रथ आता है, तब दुष्यन्त कह्ते हैं,
अयमरविवरेभ्‍य्‌श्‍चातकैनि‍र‌ष्पत्‌दिभ्‌‌र्हर्रि‌भिरचिर्‌भासां तेजसा चानुलिप्‍त:गतमुपरि घनानां वारिगर्भोदराणां पिशुनयति रथस्ते शीकरकिलन्नेमि:
क्यों रोंगटे खडे हो गये ना !!! मतलब सुनेंगे तो वाह-वाह करने से खुद को रोक ना सकेगें । “जल कणों से भीगे हुए चक्र की धुरी वाला यह आपका रथ, अरॊं के छिद्रों से निकलते हुये चातक पक्षियों से तथा बिजलियों के तेज से अनुरन्जित घोडों से जल पूर्ण मेघों के उपर गमन को सूचित कर रहा है” । कुछ समझ आया?? भाव निकालना थोडा कठिन है, और पहले तो मैं भी भोंन्चक्का रह गया था । बाद्लों में तेजी से चलने के कारण रथ के पहियों पर पानी की बून्दें एकत्रित हो जाती हैं, जो खुद भी बिखरति हैं और बाद्लों में घूम रहे पक्षियों को भी इधर-उधर बिखेर रही हैं, और आप के रथ के घोडे बादलों की बिज्ली से डर रहे हैं । वाह, सुन कर एसा लगता है की शायद पुराने काल में वायु में भ्रमण कोई आम बात ही होगी!!! कवि कालिदस की श्रेष्ठा को शत-शत नमन ।
अरे नाटक को तो भूल ही गये !! दुष्यन्त महर्षि मारिच के आश्रम में घूमते हुए अपने पुत्र भरत की मनोहारिनी बाल लीला देखते हैं (भरत एक शावक को जो अपनी माँ का दूध पी रहा होता है, पूँछ से पकडकर दूर करता है ताकि वो शेरनी का दूध खुद पी सके!!!) । दुष्यन्त दुखी होता है कि अगर आज शकुन्त्ला उसके पास होती तो वो भी सन्तान सुख का आनन्द उठा सकता । तब धीरे-धीरे कवि कालिदास शकुन्त्ला का भरत की माता होने का अन्देश करते हैं, और फिर दुष्यन्त और शकुन्त्ला का भरत के सम्मुख मिलाप होता है । इधर दुष्यन्त अपनी भूल पर शकुन्त्ला से माफ़ी माँगते है, उधर शकुन्त्ला तो अपनी आँखों पर विशवास ही नही कर पाती , और दोनों के करुण वार्तालाप में बीच-बीच में भरत का शकुन्त्ला से पूछ्ना की ये कौन है, बडा ही मर्मम है ।
तब महर्षि मारिच दुष्यन्त और शकुन्त्ला को महर्षि दुर्वासा के शाप के बारे में बताते हैं, जिससे दोनों अपरिचित थे । यह सुनकर दुष्यन्त और शकुन्त्ला में एक दूसरे के प्रति क्षमा और भी बढ जाती है, और फिर दोनों भरत सहित अपने राज्य के लिये प्रस्थान करते हैं ।
तो ये था कालिदस कृत “अभिझान शाकुन्तलम” । कैसा लगा? मुझे तो बडा अच्छा लगा और आशा करता हूँ की आप के मन में भी इसकी छवी अन्कित हो गयी होगी । मैने तो “अभिझान शाकुन्तलम” पर एक गाना भी ढूँढ निकाला । इसे चढा रहा हूँ ( Upload, बन्धू!!)

अरे एक बात तो रह गयी, “अभिझान शाकुन्तलम” का मतलब क्या हुआ? “अभिझान” का अर्थ होता है “जिसके द्वारा पह्चाना जाये”, अर्थात जिसके द्वारा पह्चाना गया हो शकुन्त्ला को… और वो मुद्रिका ही तो इस नाटक का केन्द्र बिन्दु थी…दुष्यन्त नाम अन्कित वो मुद्रिका जिसने भारत को भरत दिया, और जिस भरत ने हमें भारत…


ऋषि पंचमी : पर्व प्रसंग. भारत को ऋषियों की भूमि कहा जाता है। महर्षि कश्यप के कारण ही सर्ग या सृष्टि का विकास हुआ। विष्णु पुराण, मरकडेय और मत्स्यपुराण में ऋषियों के सर्ग का विवरण है। इन्हीं ऋषियों ने ब्रrा से प्राप्त ज्ञान की विभिन्न शाखाओं को उन्नत किया।
जीवन में ऋषितुल्य बुद्धि, पद व प्रतिष्ठा पाने के लिए ऋषि पंचमी पर सात ऋषियों की आराधना करनी चाहिए। इस दिन दूब, सांवा और मलीची नामक वनस्पति घास के प्रतीकात्मक पुतले बनाकर उनको पूजना चाहिए और व्रत रखना चाहिए। हो सके तो इस दिन किसी भी रूप में अन्न का आहार नहीं लें।
भारत को ऋषियों की भूमि कहा जाता है। मित्रावरुण और उनके पुत्र अगस्त्य एवं वशिष्ठ ने जिस ऋषि प्रज्ञा की नींव डाली, वह इस संस्कृति को उन्नत करने वाली रही। एक दौर में तो महर्षि कश्यप के कारण ही सर्ग या सृष्टि का विकास हुआ। विष्णु पुराण, मरकडेय और मत्स्य पुराण में ऋषियों के सर्ग का विवरण है।
इन्हीं ऋषियों ने हमारे यहां ब्रrा से प्राप्त ज्ञान की विभिन्न शाखाओं को उन्नत किया। महर्षि भारद्वाज के ‘यंत्र सर्वस्व’ में विभिन्न ऋषियों के अनुसंधान से विमान विद्या, जल विद्या, वाष्प विद्या, स्वचालित यंत्र विधा जैसे दर्जनों विज्ञानों के विकास की जानकारी मिलती है।
वायु पुराण के मतानुसार वास्तु ग्रंथ समरांगण सूत्रधार के महासर्गादि अध्याय में वृक्षों के साथ रहने वाले मानव समुदाय के विज्ञान सम्मत विकास का वर्णन है, जिन्होंने कभी देव रूप में तो कभी ऋषि रूप में अनुभव लिया।
उन्होंने सर्वप्रथम अनाज के रूप में सांवा (शाली तंडुल) को आहार के रूप में लिया और ज्ञानार्जन में अपने को लीन किया। हालांकि वे बाद में भूरस के स्वाद के कारण उच्छृंखल होते गए। इसलिए ऋषि पंचमी को ऋषिधान्य के रूप में सांवा की खिचड़ी (कृसरान्न) या खीर बनाकर आहार किया जाता है।
अपने परिवार में पुत्र-पुत्रियों के ऋषिप्रज्ञा होने की कामना से सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। एक प्रकार से यह ऋषियों की प्रज्ञा को सम्मान देने का स्मृति पर्व है। इसलिए अंगिरा, गर्ग आदि का पूजन भी किया जाना चाहिए। दूब, सांवा, मलीची नामक घास को एकत्रित कर तृणों के सात पुंज या समूह बनाएं और प्रत्येक पुंज पर लाल कपड़ा अथवा मौली लपेटें। पूजा स्थल पर इन्हें दूध, जल से स्नान करवाएं और धूप, दीप कर खीर अर्पण करें।
इस अवसर पर बृहस्पति, गर्ग, भारद्वाज, विश्वामित्र, विश्वकर्मा आदि का स्मरण करें। जो ऋषि जिस विद्या से संबंधित हो और अपना परिवार जिस विद्या से धनार्जन करता हो, उस ऋषि का पूजन करने से संबंधित कार्य में दोगुने लाभ, पद, पदोन्नति और यश की प्राप्ति होती है।