चर्चित व्यक्तित्व /
हरियाणा के चौथे 'लाल' : मनोहर लाल!
-राजेश कश्यप
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर |
हरियाणा की राजनीति के तीन 'लाल चौधरी देवीलाल, चौधरी भजनलाल और चौधरी बंसीलाल बेहद प्रसिद्ध रहे हैं। ये तीनों 'लाल' स्वर्ग सिधार चुके हैं। इन तीन 'लालों' की राजनीति पर नकेल डालकर 'हुड्डा' ने दस वर्ष तक प्रदेश की बागडोर संभाली। अब मोदी मैजिक के चलते हरियाणा की राजनीति में एक नए 'लाल' मनोहर लाल खट्टर के रूप में उदय हुआ है। हरियाणा के इतिहास में पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल करके भाजपा सत्तारूढ़ हुई है और उसकी बागडोर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के चार दशक से सक्रिय एवं समर्पित सिपाही मनोहर लाल खट्टर के हाथों में सौंपी गई है। खट्टर करनाल से विधायक चुने गए हैं। वे ऐसे सौभाग्यशाली व्यक्ति हैं, जिन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और उसे न केवल रिकाडऱ् मतों से जीता, बल्कि मुख्यमंत्री का ताज भी हासिल हुआ। कमाल की बात तो यह है कि जब करनाल से खट्टर को पार्टी का प्रत्याशी बनाया गया था तो उन्हें बाहरी बताकर जबरदस्त विरोध किया गया था। स्थानीय नेताओं ने पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाकर प्रत्याशी बदलने के लिए भरसक कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे। तब शायद ही किसी को अहसास होगा कि वे हरियाणा के भावी मुख्यमंत्री का विरोध कर रहे हैं। खट्टर के मुख्यमंत्री बनते ही सभी विरोधी आज नतमस्तक हैं।
हरियाणा के दसवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले मनोहर लाल खट्टर का जन्म रोहतक जिले के गाँव निन्दाना में 5 मई, 1954 को श्री हरबंस लाल खट्टर के घर हुआ था। वे पेशे से दुकानदार थे। मनोहर लाल खट्टर के दादा श्री भगवानदास खट्टर पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखते थे और वे मूलरूप से पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) के निवासी थे। लेकिन, वर्ष 1947 के देश विभाजन के दौरान हुई साम्प्रदायिक हिंसा के कारण उनको अपना घर छोडक़र हरियाणा में रोहतक जिले के निंदाना गाँव में आने को मजबूर होना पड़ा था। जब मनोहर 4 वर्ष के थे तो मनोहर लाल के पिता ने नजदीक के गाँव बनियानी में बसने का निर्णय लिया और वहां कृषि योग्य भूमि खरीदकर खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। मनोहर लाल की प्राइमरी शिक्षा बनियानी गाँव के स्कूल से छह वर्ष की उम्र में शुरू हुई। मनोहर बेहद कुशाग्र बुद्धि के थे और वे गंभीर स्वभाव रखते थे। उनके गंभीर व्यक्तित्व को देखते हुए स्कूल में उन्हें 'हैडमास्टर' के उपनाम से पुकारा जाने लगा। मनोहर ने भाली आनंदपुर से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
मैट्रिक उत्तीर्ण करने के उपरांत मनोहर मैडीकल से आगे की पढ़ाई करना चाहते थे और भविष्य में डॉक्टर बनना चाहते थे। लेकिन, उनके पिता चाहते थे कि वे अपना बिजनेस संभालें। मनोहर अपनी धुन के पक्के थे। उन्होंने मैडीकल कॉलेजों की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली का रूख कर लिया। वे दिल्ली में रानी बाग पहुँचे और अपने एक रिश्तेदार के यहाँ ठहरे। वे कपड़े के सफल व्यापारी थे। अपने रिश्तेदार के सफल व्यापार से प्रभावित होकर मनोहर को डॉक्टर बनने का सपना दूर की कौड़ी नजर आने लगी और पढ़ाई के लिए लगने वाले 9-10 साल का समय उनके लिए असहज हो गया। अंतत: मनोहर ने बिजनेस संभालने का निर्णय ले लिया। अल्प समय में ही उन्होंने सदर बाजार में एक छोटे से दुकानदार से सफल उद्यमी की पहचान स्थापित कर ली। इसके बाद उन्होंने अपने भाईयों को भी दिल्ली में बिजनेस के लिए बुला लिया। अपनी मेहनत के बलबूते मनोहर ने बिजनेस में खूब सफलता हासिल की और उन्होंने न केवल अपना कर्ज उतारा, बल्कि अपनी बहन की शादी करवाई। इसी बीच उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से गे्रजुएशन भी उत्तीर्ण कर ली।
26 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी लगने पर 21 वर्षीय युवा मनोहर लाल का ध्यान पहली बार राष्ट्रीयता और राजनीतिक विषयों पर गया। इसी दौरान मनोहर लाल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सम्पर्क में आए। इसके बाद तो उनकीं पूरी दुनिया ही बदल गई। परिवार ने उनकीं शादी करवानी चाही तो उन्होंने विवाह करने से स्पष्ट इनकार कर दिया और आजीवन देशसेवा करने का संकल्प ले लिया। वर्ष 1977 में 24 वर्ष की आयु में मनोहर लाल ने आरएसएस की सदस्यता ग्रहण की। वर्ष 1978 में दिल्ली में द्वारका के निकट ककरोला गाँव में आई बाढ़ के दौरान मनोहर ने बचाव एवं पुनर्वास के अभियान में बेहद उल्लेखनीय भूमिका निभाकर सबका दिल जीत लिया। जनवरी, 1979 के प्रयाग (इलाहाबाद) में हुए विश्व हिन्दू परिषद के विशाल महासम्मेलन में भाग लेने का सौभाग्य मिला। इस महासम्मेलन में मिले अथाह ज्ञान के बाद उन्होंने राष्ट्रहित में आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में स्वयं को समर्पित कर दिया। पारिवारिक तौरपर उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए। आरएसएस में धीरे-धीरे मनोहर लाल को कई तरह की महत्वूर्ण जिम्मेदारियां मिलतीं चलीं गईं।
वर्ष 1994 में मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा बीजेपी में प्रदेश संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। वर्ष 1996 से लेकर वर्ष 2001 तक उन्होंने एक सुलझे हुए रणनीतिकार की तरह भाजपा की राजनीतिक गतिविधियों में बड़ी अहम भूमिका निभाई। इस दौरान नरेन्द्र मोदी हरियाणा के केन्द्रीय प्रभारी थे, जिसके चलते दोनों में घनिष्ट निकटता स्थापित हुई। वर्ष 2002 में भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को जम्मू-कश्मीर का चुनाव प्रभारी बनाया। इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी ने भुज में आए भुकम्प के बाद चुनाव प्रबन्धन की बागडोर भी मनोहर के हाथों में ही सौंपी। उनकीं कार्यकौशलता के चलते भाजपा को छह में से तीन सीटें हासिल हुईं। इसके बाद मनोहर लाल को नवनिर्मित राज्य छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी सौंपी गई। वे अपने अथक परिश्रम और समर्पित भावना के बलबूते बस्तर आदि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की जनता का विश्वास जीतने में कामयाब रहे, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को कांगे्रस के गढ़ में 12 में से 10 सीटें जीतने में अभूतपूर्व एवं अप्रत्याशित सफलता मिली।
विभिन्न राज्यों में पार्टी की जीत सुनिश्चत करने वाले मनोहर लाल को तत्कालीन चुनाव सहायक योजना के प्रमुख और राष्ट्रीय रूप से विख्यात आरएसएस विचारक बाल आप्टे के साथ में काम करने का मौका मिला। इसके साथ ही उन्हें दिल्ली और राजस्थान सहित 12 राज्यों का प्रभारी भी बनाया गया। इसके तुरंत बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, चण्डीगढ़ और हिमाचल प्रदेश आदि पाँच प्रदेशों का क्षेत्रीय संगठन महामंत्री के तौरपर मौका दिया गया। उनके सफल प्रयासों के चलते सभी राज्यों में भाजपा का जनाधार बढ़ता चला गया। जम्मू-कश्मीर में तो भाजपा की झोली में पहली बार 11 सीटें आईं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा के चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनकीं दूरदर्शी नीतियों और राजनीतिक सूझबूझ की बदौलत हरियाणा में भाजपा ने दस में से 7 लोकसभा सीटें जीतकर हर किसी को हतप्रभ कर दिया। उनके लंबे और अथक परिश्रम के बलबूते हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को खूब लाभ मिला, जिसकी बदौलत प्रदेश में नया इतिहास रचते हुए भाजपा ने अपने बलबूते 47 सीटें हासिल करके अपनी सरकार का गठन किया। ऐसे में प्रदेश सरकार का ताज मनोहर लाल को मिलना, उनकीं अटूट मेहनत, असीम त्याग और सच्ची सेवाभावना का सम्मान ही कहा जाना चाहिए।
(राजेश कश्यप)
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
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राजेश कश्यप
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
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(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में दो हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)