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शनिवार, 30 जून 2012

हरियाणवी सिनेमा के लिए संजीवनी बनकर आई ‘तेरा मेरा वादा’


फिल्म समीक्षा / 
हरियाणवी सिनेमा के लिए संजीवनी बनकर आई ‘तेरा मेरा वादा’ 
-राजेश कश्यप
फिल्म ‘तेरा मेरा वादा’
गत शुक्रवार 29 जून को संगीतमयी प्रेम कहानी सुसज्जित फिल्म ‘तेरा मेरा वादा’ पिछले अढ़ाई दशक से मृतप्राय हो चुके हरियाणवी सिनेमा के लिए संजीवनी बनकर आई है। निःसंदेह हरियाणवी सिनेमा प्रेमियों के लिए इससे बढ़कर और अन्य कोई खुशखबरी हो ही नहीं सकती। वर्ष 1984 में प्रदर्शित ‘चन्द्रावल’ की अपार सफलता के बाद कोई भी हरियाणवी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल पाई। हालांकि फिल्में तो निरंतर बनतीं रहीं, लेकिन सफलता का मुंह नहीं देख पाईं। अठाईस वर्षों बाद ढ़ेरांे उम्मीदांे का पिटारा भरकर गत 4 मई को चन्द्रावल की सिक्वल ‘चन्द्रावल-2’ आई और पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर गई। निश्चित तौरपर एक लंबे समय के बाद हरियाणवी फिल्मों के प्रति सिने प्रेमियों में जो उत्साह बंधा था, वह बुरी तरह टूट गया था। ऐसे में आने वाली अन्य फिल्मों के प्रति भी दर्शकों में संशय पैदा हो गया था। लेकिन, इस संशय को चुनौती देते हुए भाल सिंह बल्हारा निर्देशित व अंकित सिंह और नीतू सिंह अभिनीत फिल्म ‘तेरा मेरा वादा’ ने बड़े पर्दे पर दस्तक दी। यह दस्तक की बजाय अप्रत्याशित जबरदस्त धमाका निकली।
‘तेरा मेरा वादा’ फिल्म एक लाजवाब फिल्म बन पड़ी है। हर दृष्टिकोण से फिल्म एकदम खरी उतरी है। निश्चित तौरपर यह फिल्म हरियाणवी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर और एक नया स्वर्णिम अध्याय सिद्ध होगी। भाल सिंह बल्हारा के श्रेष्ठ निर्देशन में बनी ‘तेरा मेरा वादा’ फिल्म हॉलीवुड व बॉलीवुड की नवीनतम तकनीकों से ओतप्रोत है। प्राचीन व आधुनिक हरियाणवी परिवेश को जिस खूबसूरती के साथ फिल्म में समाहित किया गया है, वह वाकई काबिले तारीफ है। हरियाणा के प्रचलित हास्य-व्यंग्य विधा को फिल्म में एक नया आयाम मिला है। जानेमाने हास्य कलाकार जनार्दन शर्मा ने देहाती ताऊ के किरदार मंे जमकर हंसाया है और उभरते युवा हास्य कलाकार राजकुमार धनखड़ और सन्दीप ने अपनी अनूठी कॉमेडी से दर्शकों लोटपोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। 
फिल्म की कथा-पटकथा बेहद चुस्त है। लगभग सवा दो घण्टे की यह संगीतमयी प्रेम कहानी कब शुरू होती है और कब समाप्त हो जाती है, इसका तनिक भी दर्शकों को अहसास नहीं होता है। दर्शक फिल्म की धारा में इतनी सहजता से बहता चला जाता है कि उसे समय का कोई ध्यान ही नहीं रहता। फिल्म की कहानी में कोई झोल अथवा नीरसता बिल्कुल भी नहीं है। एक साधारण सी प्रेम कहानी को जिस असाधारण अन्दाज में फिल्माया गया है, वह अत्यन्त सराहनीय है। लंदन में तैयार संचित बल्हारा का संगीत बेहद उत्कृष्ट है। महफूज खान का संपादन, सुरेश पाहवा की सिनेमाटोग्राफी और मुक्ता चौधरी की डेªस डिजायनिंग की जितनी प्रशंसा की जाए, उतनी कम है। फिल्म के निर्माता रविन्द्र सिंह जे.डी. को यह फिल्म कदापि निराश नहीं करने वाली है। 
फिल्म के हर पात्र ने जीवन्त अभिनय करके हरियाणवी सिनेमा को अत्यन्त समृद्ध किया है। हॉलीवुड के स्टेल एडलर इंस्टीच्यूट मुम्बई से प्रशिक्षण प्राप्त युवा अभिनेता अंकित सिंह का बड़े पर्दे पर पदार्पण काफी दमदार रहा है। उनकी सहज व सधी अभिनय शैली, दमदार हरियाणवी संवाद बोलने का अन्दाज और आकर्षक चेहरा दर्शकों को सहज आकर्षित करता है। निश्चित तौरपर अंकित सिंह हरियाणवी सिनेमा क लिए एक बड़ी आस व संभावना बनकर उभरे हैं। मॉडल नीतू सिंह ने अपनी अनूठी संवाद अदायगी, सादगी, मासूमियत, चंचलता और गलैमर्स अदाओं के बलबूते दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है। जर्नादन शर्मा का ठेठ देहाती अन्दाज बेमिसाल रहा। रामानंद सागर की प्रख्यात महाभारत में धृतराष्ट्र के किरदार को अमर बनाने वाले गिरिजा शंकर ने ग्रामीण पृष्ठभूमि के पुलिस कमिश्नर के रूप में प्रभावी भूमिका निभाई है। रादौर के शिवकुमार ने पंजाबी, हिन्दी व हरियाणवी नाटकों और धारावाहिकों से प्राप्त सारा अनुभव फिल्म में उड़ेलकर हरियाणवी सिनेमा के खलनायकी को एक नया आयाम दिया है। बसाना (कलानौर) के युवा अभिनेता मनोज राठी ने खलनायकी के उन शिखरों को बेहद सहजता से छुआ है, जिसे कई बार बड़े-बड़े कलाकार के लिए भी संभव नहीं हो पाता है। झज्जर के कासणी गाँव के युवा हास्य कलाकार राजकुमार धनखड़ अनूठी कॉमेडी के दमपर हरियाणवी सिनेमा में अपना अविस्मरणीय स्थान पक्का करवा लिया है। फूल सिंह उर्फ फूलिया के किरदार का तकिया कलाम ‘...कंपनी की तरफ तै’ दर्शकों को शुरू से लेकर अंत तक हंसी से लोटपोट किए रहता है। अन्य सभी कलाकारों ने भी काबिले-तारीफ अभिनय किया है और अपने किरदारांे के साथ पूरा-पूरा न्याय किया है।
बॉलीवुड का हर अन्दाज व मसाला इस फिल्म में परोसा गया है। फिल्म दमदार एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी, संगीत, गीत, संगीत, आईटम गीत, गलैमर्स, रोमांस, रोमांच आदि से भरपूर है। फिल्म में प्रचलित हरियाणवी मसखरी, मजाक, मुहावरे, लोकोक्तियां, लोकगीत, वेशभूषा, खेत-खलिहान, परंपरा, पकवान, तीज-त्यौहार, सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और रीति-रिवाज आदि सब बस देखते ही बनते हैं।
फिल्म में गीत व रागनी फिल्म का उज्जवल पक्ष हैं। ‘चौगरदे नै बाग हरा...’ रागनी दर्शकों को झूमने के लिए विवश कर देती है। ‘हम हरियाणा आलै सैं, कुछ बी कर दें...’ गीत हर किसी जुबां पर चढ़ चुका है। ‘वादा कर ले साजन मेरे, साथ निभावण का...’ दिल को छू लेने वाला है। आईटम गीत ‘चण्डीगढ़ मं बागड़ो...’ बेहद प्रभावी रहा है। अन्य गीत भी दर्शकों को खूब पसन्द आ रहे हैं।
फिल्म की कहानी कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के व लड़की की बेहद साधारण सी प्रेम कहानी है। एक होनहार युवा अभिमन्यु (अंकित सिंह) गाँव के बड़े जमींदार व नम्बरदार चौधरी जोगेन्द्र सिंह (भाल सिंह बल्हारा) का इकलौता बेटा है। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेतीबाड़ी का काम भी देखता है। खेत के पास से गुजर रही पुलिस कमिश्नर शमशेर सिंह (गिरिजा शंकर) की लाडली बेटी मीनल (नीतू सिंह) की गाड़ी खराब हो जाती है। मीनल के अनुरोध पर अभिमन्यु गाड़ी स्टार्ट करने में उसकी मदद करता है। संयोगवश दोनों एक ही कॉलेज में दाखिला लेते हैं। यहां पर रैगिंग के मसले पर छात्र नेता विक्की (मनोज राठी) से अभिमन्यु की टक्कर होती है और यह दुश्मनी में बदल जाती है। विक्की गैर-कानूनी काम करने वाले ठेकेदार लक्खी (शिव कुमार) का लड़का है और गैर-कानूनी धंधों में बराबर हाथ बंटाता है।
कॉलेज के छात्रों का टूर हिमाचल जाता है। इस दौरान अभिमन्यु और मीनल दोनों की दोस्ती गहरे में प्यार बदल जाती है। जब इसका पता दोनों के परिवारों को लगता है तो उन्हें बेहद खुशी होती है। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिमन्यु पुलिस में एसीपी बन जाता है। इसी बीच विक्की और उसका पिता लक्खी अभिमन्यु व मीनल का एमएमएस तैयार करके मीनल के पिता कमिशनर शमशेर सिंह को ब्लैकमेल करते हैं। इसके साथ ही एक सुनियोजित साजिश के तहत विक्की मीनल व अभिमन्यु के प्यार में भयंकर दरार पैदा कर देता है। यह प्रेम कहानी आगे क्या मोड़ लेती है और कैसे सुखांत तक पहुंचती है, यह फिल्म का एक सहज एवं महत्वपूर्ण पहलू है।
फिल्म का एक ही नकारात्मक पक्ष नजर आता है। खलनायक के साथ कुछ अश्लील दृश्य होने के कारण यह फिल्म संयुक्त परिवार के साथ बैठकर देखने में जरा हिचक महसूस होती है। सोमनाथ के मन्दिर वाले कथित विवादित कॉमेडी कोई गंभीर मुद्दा नहीं है। यह बिना किसी दुराग्रह के अनायास और सहज व्यंग्य की अभिव्यक्ति है। 
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)




सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com, rkk100@rediffmail.com

सोमवार, 4 जून 2012

महाविनाश के मुहाने पर पहुंचा रहा पर्यावरण प्रदूषण

महाविनाश के मुहाने पर पहुंचा रहा पर्यावरण प्रदूषण
-राजेश कश्यप

धरती दिनोंदिन गरमा रही है। मौसम में जो अप्रत्याशित परिवर्तन व असंतुलन निरन्तर बढ़ रहे हैं, असाध्य बीमारियों का जो मकड़जाल लगातार फैलता चला जा रहा है, समय-असमय जो अतिवृष्टि व अनावृष्टि हो रही है, जिस तेजी से भूस्खलन निरन्तर बढ़ रहे हैं, भूकम्प आ रहे हैं, हिमनद सूख रहे हैं और जिस तरह से उत्तरी व दक्षिणी धु्रवों की बर्फ पिंघलकर महाविनाश की भूमिका तैयार कर रही है, वह सब चरम सीमा पर पहुंच रहे पर्यावरण प्रदूषण के परिणामस्वरूप ही हो रहा है।
समस्त जीव-जगत के जीवन में जो जहर घुल चुका है और जो निरन्तर घुल रहा है, उसके लिए कोई एक प्रदूषक तत्व जिम्मेदार नहीं है। वर्तमान पर्यावरण प्रदूषण में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, नाभिकीय प्रदूषण आदि सब प्रदूषक शामिल हैं। वायु को प्रदूषित करने वाले मुख्यतः तीन कारक हैं, अचल दहन, चलायमान दहन और औद्योगिक अपशिष्ट। अचल दहन के तहत जब कोयला, पेट्रोलियम आदि जीवाश्मी ईंधन जलते हैं तो इससे सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फर ट्राइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड आदि गैंसें निकलती हैं और वातावरण में मौजूद जलीय कणों के साथ मिलकर गन्धकीय तेजाब, सल्फ्ूरस अम्ल, नाइट्रिक अम्ल आदि का निर्माण करती हैं और अम्लीय वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आकर अपने घातक प्रभाव डालती हैं। इन घातक प्रभावों में मुख्य रूप से पौधों की बढ़वार प्रभावित होना, मृदा के पोषक तत्वों का हनन होना, मत्स्य प्रजनन का रूकना, श्वसन तंत्र का प्रभावित होना आदि-आदि शामिल हैं। इन सबके अलावा भी इन गैसों के कुप्रभाव देखने में आते हैं।
चलायमान दहन के तहत स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार, बस, हवाई जहाज, रेल आदि परिवहन के समस्त साधनों से निकलने वाले धुएं से वातावरण में जहर घुलता है। इस धुएं में कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है। इसके अलावा पेट्रोलियम के जलने से टेªटाइथल लैड, टेªटामिथाइल लैड जैसे लैड योगिक पैदा होते हैं और शरीर में हीमोग्लोबिन के निर्माण को रोककर बेहद घातक कुप्रभाव डालते हैं। औद्योगिक कारखानों में रासायनिक प्रक्रियाओं से होने वाले उत्पादन, उद्योगों से निकलने वाली कार्बन मोनोक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि विषैली गैसों और औद्योगिक कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित कचरे से पर्यावरण बेहद प्रदूषित होता है। जल प्रदूषण के लिए हमारी छोटी बड़ी सभी लापरवाहियां उत्तरदायी हैं। इनमें मशीनों का असहनीय शोर-शराबा, डायनामाइट विस्फोट, गोला-बारूद का प्रयोग, हथियारों व बमों का परीक्षण, वाहनों का भारी शोर, लाउडस्पीकरर्स आदि सब चीजें जिम्मेदार हैं। विकिरण प्रदूषण ने तो समस्त जीव जगत के जीवन पह गहरे प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं आण्विक विखण्डनों से होने वाली विघटनाभिका प्रक्रिया के तहत विकिरण प्रदूषण होता है। इतिहास साक्षी है वर्ष 1945 का, जिसके दौरान अमेरिका ने जापान के दो प्रमुख नगरों हीरोशिमा व नागासाकी आण्विक बम गिराए थे और जिससे पूरी दुनिया दहल  उठी थी। आज साढ़े छह दशक बाद भी उन नगरों को उस आण्विक हमले की चोट से मुक्ति नहीं मिली है। क्योंकि नाभिकीय अपशिष्ट के रेडियोऐक्टिव तत्व कम से कम एक हजार वर्षों तक सक्रिय रहने की क्षमता रखते हैं। नाभिकीय परीक्षणों के चलते तो विकिरण प्रदूषण विश्व के लिए एक गंभीर स्थिति पैदा हो चुकी है।
कुल मिलाकर पर्यावरण प्रदुषण ने मौसम और अन्य पर्यावरणीय समीकरणों को गड़बड़ाकर रख दिया है। मौसम और पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक अपनी चरम प्रदूषण के चलते एशिया के सात देशों की जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन आ चुका है और स्थिति निरन्तर भयावह होती चली जा रही है। गत दशक में ही आठ देशों के सरकारी और निजी अनुसंधान संस्थानों के 60 से भी अधिक विशेषज्ञों ने चेताया था कि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम और फिलीपीन जलवायु परिवर्तन के दुश्चक्र मंे फंस चुके हैं और इन देशों के तापमानों व समुद्री जल स्तर में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जिससे इन देशों के तटवर्ती स्थानों पर समुद्री तूफान अपना कहर बरपाएंगे, करोड़ों लोग शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए बाध्य होंगे और महामारियों की बाढ़ भी आएगी।
विशेषज्ञों ने जो भी चिन्ताएं व्यक्त कीं वो अक्षरशः सत्यता की तरफ अग्रसित होने लगी हैं। भारत के केरल, आन्ध्र प्रदेश और बांग्लादेश, चीन, जापान, अमेरिका आदि देशों के समुद्री तटवर्ती क्षेत्रों में आने वाले समुद्री तूफान धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करने लग गए हैं। गत कुछ वर्षों के समुद्री तूफानों ने विश्वभर में भारी तबाही मचाई है। दिसम्बर, 2004 में ‘सुनामी’ ने दक्षिण एशियाई देशों भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैण्ड, मलेशिया आदि देशों में, अगस्त, 2005 में ‘कैटरिना’ ने अमेरिका में, नवम्बर, 2009 में ‘मिरिना’ ने वियतनाम में, नवम्बर, 2009 में ही ‘सीडर’ ने बांग्लादेश में, मई, 2010 में ‘लैला’ ने भारत में, मार्च, 2011 में ‘गत 140 साल के इतिहास के सबसे भयंकर सुनामी’ ने जापान में, अगस्त, 2011 में ‘आइरीन’ ने अमेरिका में, अगस्त, 2011 में ही ‘मुइफा’ ने चीन में, सितम्बर, 2011 में ‘तलस’ ने जापान में, सितम्बर, 2011 में ही ‘नेसाट’ ने चीन में और दिसम्बर, 2011 में ‘सुनामी’ ने फिलीपींस में न केवल भयंकर तबाही मचाई, अपितू हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया, लाखों लोगों के जीवन को तबाह कर दिया, अरबों-खरबों की सम्पति को पानी में मिला दिया और प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाया।
एक अनुमान के अनुसार धरती पर पाई जाने वाली लगभग चार करोड़ प्रजातियों में से लगभग एक सौ प्रजातियां प्रतिदिन नष्ट हो रही हैं। एक प्रसिद्ध जीव विज्ञानी तो वनों की अंधाधुंध कटाई से प्रतिदिन एक सौ चालीस रीढ़ वाले जीवों की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। समुद्र में तेल के रिसाव व पानी में गन्दे कूड़े-कचरे के बहाव के चलते कई समुद्री जीवों का तो अस्तित्व ही खतरे में पड़ चुका है। पेयजल के बढ़ चुके संकट ने दुनिया की नींद हराम करके रख दी है। बाढ़ व सूखे की विकरालताओं ने भी सबको हिलाकर रख दिया है। कृषि की उपज व मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में भी भारी कमी आने लगी है। कई छोटे समुद्री द्वीपों के डूबने का खतरा भी मंडराने लगा है। हमारी लापरवाहियांे के चलते पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है और उसी के चलते धरती गरमा उठी है। विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली गैसें पृथ्वी का तापमान बढ़ाने के साथ-साथ मानव जीवन की रक्षा कवच ओजोन परत को भी बड़ी तेजी से छिन्न-भिन्न कर रही हैं। यह ओजोन परत गैस की ऐसी परत है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती हैं और हमें चमड़ी के रोगांे व कैंसर जैसी असंख्य दुःसाध्य बीमारियों के प्रकोप से बचाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार निरन्तर बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण के चलते हमारी रक्षा-कवच ओजोन परत अत्यन्त क्षीण हो चुकी है और इसमें किसी भी समय भयंकर छिद्र हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो पृथ्वी के समस्त जीवों के जीवन खतरे में पड़ जाएंगे और पृथ्वी का स्वर्गमयी वातावरण नरक में तब्दील हो जाएगा।
निरन्तर बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सभी देशों की सरकारें अत्यन्त गंभीर तो हैं, लेकिन, इसे रोकने में अहम् भूमिकाएं नहीं निभा पा रहे हैं। आए बन भयंकर बमों व मिसाइलों का परीक्षण, परमाणु परीक्षण, सरकारी लापरवाहियों के चलते आयुध भण्डारों में लगने वाली आग, समुद्री युद्ध परीक्षण, सरकारी गोदामों का सड़ा गला व विषैला खाद्य-भण्डार समुद्र के हवाले करना, समुद्री दुर्घटनाएं आदि सब प्रदूषण को रोकने की प्रतिबद्धता की पोल खोल रहे हैं। पिछले वर्षों में जो कई देशों द्वारा परमाणु परीक्षण किए गए और अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान व इराक में जो बड़े भारी भयंकर व विनाशकारी बमों की वर्षा की गई, वो सब भी विश्व पर्यावरण प्रदूषण को उसकी चरम सीमा पर पहुंचाने की बराबर जिम्मेदार घटनाएं हैं। पिछले वर्षों में सॉर्स ने पूरे विश्व में कोहराम मचाया, वह भी एक देश द्वारा किए जाने वाले जैविक बम के परीक्षण को सन्देह के दायरे में लाया जा चुका है। कैटरिना जैसे समुद्री तूफानों ने भी भयंकर कहर बरपाया है।
कहने का अभिप्राय यह है कि सैकड़ों देश प्रतिवर्ष इक्कठे बैठकर पर्यावरण प्रदूषण पर जो चिन्ताएं व्यक्त करते हैं और उससे निपटने के लिए जो बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते हैं, उन्हें वास्तविकता में तब्दील करने की कड़ी आवश्यकता है, वरना सभी देशों की यह सब गतिविधियां मात्र एक ढ़कोसले के सिवाय कुछ भी नहीं होंगी।
विश्व के देशों की सरकारों के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति को भी पर्यावरण प्रदूषण के प्रति जागरूक होना होगा और पर्यावरण प्रदूषण के प्रति अपनी लापरवाही, अज्ञानता व स्वार्थता पर एकदम अंकुश लगाना होगा। इसके लिए जरूरी है कि जन-जन को अधिक से अधिक पेड़ लगाने का दृढ़ संकल्प लेना होगा और लगे हुए पेड़ों के संरक्षण पर भी बराबर ध्यान रखना होगा। कुल मिलाकर, पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारकों पर तुरन्त अंकुश लगाना, अधिक से अधिक पेड़ लगाना और उनकीं रक्षा करना ही पर्यावरण प्रदूषण के प्रकोप से बचने के अचूक उपाय हैं। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार, समाजसेवी एवं पर्यावरण प्रेमी हैं।)




सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
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