लाला मातूराम हलवाई: संक्षिप्त जीवन परिचय
-राजेश कश्यप
स्व. लाला मातूराम जी |
‘‘गोल घेराली पीपली, डाल्है-डाल्है रस! बताना हो तै बता दे, ना तै रपिए दे दे दस!!’’ ये हरियाणा प्रदेश की एक प्रसिद्ध सांस्कृतिक पहेली है, जिसे हरियाणावासी बहुत पुराने समय से बुझाते चले आ रहे हैं। इसका जवाब है ‘‘जलेबी’’। ‘जलेबी’ वो रसीली चीज है, जिसका नाम जुबान पर आते ही मुँह में पानी भर आता है और यदि ये जलेबी गोहाना के लाला मातूराम हलवाई की हो तो क्या कहने! मुँह में आए पानी को लार बनकर टपकने में तनिक भी देर नहीं लगती!! ऐसा सिर्फ हमारे हरियाणा प्रदेश के लोगों के साथ ही नहीं होता है। यह सब तो पूरे भारत देश के लोगों के साथ-साथ, दुनिया के सभी बड़े देशों के लोगों व बड़ी-बड़ी हस्तियों के साथ भी होता है। तभी तो जो विदेशी भारत आते हैं या फिर भारत के किसी भी राज्य के निवासी हरियाणा प्रदेश से होकर गुजरते हैं तो वो जिला सोनीपत (हरियाणा) के गोहाना शहर में बनी लाला मातूराम की जलेबी बतौर उपहार एवं यादगार स्मृति के रूप में ले जाने का मोह नहीं त्याग पाते। यह कोई अतिश्योक्ति नहीं, बिल्कुल शत-प्रतिशत सच है।
गोहाना (सोनीपत) की जलेबी ने अपनी अनूठी विशिष्टताओं के दम पर विश्व में जो ख्याति अर्जित की है और हरियाणा को वैश्विक स्तर पर जो पहचान दिलवाई है, उसका श्रेय स्व. लाला मातूराम जी की ‘जलेबी’ बनाने की सिद्धहस्त कला, अटूट मेहनत, कर्मठता और जूनून को जाता है। लाला मातूराम मूलरूप से सोनीपत जिले के गाँव लाठ जौली के निवासी थे। हालांकि उनका पैतृक व्यवसाय कृषि था, लेकिन वे हलवाई का काम करते थे। वे अधिक शिक्षित नहीं थे, लेकिन उर्दू में पढ़ाई-लिखाई और मुनीमी काम आसानी से कर लेते थे। उनके पाँच लड़के राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, आनंद गुप्ता, ओम प्रकाश गुप्ता, रमेश गुप्ता और विजय गुप्ता के अलावा दो लड़कियां वीना गुप्ता और प्रेववती गुप्ता थे। लाला मातूराम हलवाई के रूप में दूर-दूर तक मशहूर थे। हर कोई शादी, समारोह में लाला मातूराम हलवाई से ही मिठाईयां बनवाता था। उनके मिठाई बनाने का जादूई हुनर लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। लोग लाला मातूराम की बनाई हुई मिठाईयों के कायल हो गये थे। उनके द्वारा बनाई हुई जलेबी का स्वाद लोगों को इस कद्र भाया कि दूर-दराज के क्षेत्रों में ‘लाला मातूराम की जलेबी’ के चर्चे शुरू गए।
इसी बीच वर्ष 1955 में लाला मातूराम गाँव से निकलकर गोहाना कस्बे में आ गए। उस समय गोहाना कस्बा रोहतक जिले में आता था। यहाँ आकर उन्होंने अपने हलवाई व्यवसाय को जारी रखा। जलेबी के प्रति लोगों के बढ़ते रूझान के चलते उन्होंने वर्ष 1955 में गोहाना कस्बे की पुरानी मण्डी में एक लकड़ी का खोखा तैयार किया और उसमें ‘जलेबी’ बनाने व बेचने का काम शुरू कर दिया। आगे चलकर इसी गोहाना मण्डी में वर्ष 1968 में सरकार द्वारा आधा दर्जन भर दुकानें बनाईं गईं और उन्हें व्यापारियों को 100 साल के लिए पट्टे पर दे दिया गया। सौभाग्यवश इनमें से एक दुकान लाला मातूराम को भी मिल गई। फिर तो लोगों को लाला मातूराम की जलेबी एक सुनिश्चित स्थान पर सहज, सुलभ होने लगीं और दूर-दराज से लोगों का तांता लगने लगा।
लाला मातूराम की जलेबी का जायका खासकर देहात के सिर चढ़कर बोलने लगा। मेहनतकश किसान एवं पहलवान लाला मातूराम की जलेबी को सेहत के लिए वरदान समझते थे। क्योंकि लाला मातूराम की जलेबी कोई सामान्य जलेबी नहीं थी। वह हर तरीके से अन्य जलेबियों से भिन्न और विशिष्ट गुणों से भरपूर थी। लाला मातूराम की जलेबी का आकार व वजन अन्य जलेबियों से कहीं ज्यादा था। क्योंकि उन्होंने अनुभव किया था कि बड़े आकार की जलेबी अधिक समय तक गरम रहती है, वह महीने भर तक खराब भी नहीं होती है, उसमें करारापन अपेक्षानुरूप ज्यादा होता है और वे नरम होती भी है। उनकी एक जलेबी का वजन 250 ग्राम होता था और आकार तो तीन-चार गुना बड़ा होता था। लाला मातूराम की जलेबी का सबसे बड़ा गुण यह था कि वह एकदम शुद्ध देशी घी में तैयार की जाती थी और किसी प्रकार का कोई रंग या पदार्थ या रसायन बिल्कुल भी नहीं डाला जाता था। शुद्ध मैदा जलेबियों में इस्तेमाल किया जाता था। चीनी को दूध से साफ किया जाता था। ये जलेबियां लकड़ी की भट्ठी की संतुलित आंच पर तैयार होती थीं। लाला मातूराम के जलेबी बनाने कर ऐसा निराला तरीका था कि गरमा गरम जलेबी से टपकता रस व लाजवाबकरारापन देखकर कोई भी व्यक्ति लार टपकाने से नहीं रोक पाया।
लाला मातूराम की जलेबी ने एक अनूठी स्वादिष्ट मिठाई के साथ-साथ औषधि के रूप में भी पहचान बनाई। काम से थककर चूर व्यक्ति की थकान और सुस्ती लाला मातूराम की जलेबी के सेवन करने से देखते ही देखते काफूर हो जाया करती थी। दूध के साथ इस जलेबी का सेवन करने से सिर का दर्द तुरन्त छू-मन्तर हो जाता था। एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए लाला मातूराम की जलेबी एक औषधिय दवा के रूप में भी मशहूर हो गई। ये सभी गुण आज भी लाला मातूराम की जलेबी में ज्यों कि त्यों मौजूद हैं।
अपने विशिष्ट गुणों के कारण लाला मातूराम की जलेबी की प्रसिद्धि कस्बे, शहर और प्रदेश की सीमाओं को भी पार कर गई। वर्ष 1970 में लाला जी के इस व्यवसाय में उनके बड़े लड़के राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने हाथ बंटाना शुरू कर दिया और इस कला को जीवन्त बनाए रखने का संकल्प लिया। लाला मातूराम जीवनभर की अपनी अनूठी कला, मेहनत एवं लगन के बलबूते जलेबी से हासिल की हुई प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा को ‘विरासत’ के रूप में वर्ष 1987 में अपने इसी ज्येष्ठ सुपुत्र को सौंपकर स्वर्ग सिधार गए। राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने अपने पूज्य पिता की इस प्रसिद्ध जलेबी की कला और विरासत को न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि अपने दृढ़ संकल्प और असीम लगन के बलबूत उसे देश की सीमाओं के पार विश्व के कोने-कोने तक पहुंचा दिया।
इक्कीशवीं सदी के आते आते ‘लाला मातूराम की जलेबी’ का जायका भारत की सीमाओं को पार करके पाकिस्तान, चीन, जापान, नेपाल, अमेरिका, ऑस्टेªलिया, सिंगापुर, मलेशिया, सऊदी अरब आदि तक जा पहुंचा और लोगों को अपना दीवाना बना लिया। अब हर पर्व, शादी, त्यौहार, मंगल उत्सव एवं समारोह में लाला मातूराम की जलेबी विशेष उपहार, स्मृति एवं सम्मान के लिए इस्तेमाल की जाने लगी। आगरा में पधारे पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला द्वारा सम्मान एवं उपहार के तौरपर गोहाना (सोनीपत) से भिजवाए गए लाला मातूराम जलेबी के 50 डिब्बे पाकर अत्यन्त हर्षित हुए थे और इन जलेबियों के जायके की तारीफ में उन्होंने खूब कसीदे पढ़े थे। पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. चौधरी देवीलाल तो लाला मातूराम की जलेबी के इस कद्र दीवाने थे कि वे जब भी मौका मिलता एक किलो जलेबी जरूर खाते थे। वर्तमान मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती आशा हुड्डा के साथ-साथ पूरा हुड्डा परिवार चौधरी मातूराम की जलेबी के मुरीद हैं और लगभग हर पर्व, त्यौहार एवं मंगल अवसर पर मातूराम की जलेबी मंगवाना नहीं भूलते। हरियाणा में विपक्ष के नेता ओम प्रकाश चौटाला व चौटाला परिवार के सदस्य भी इन जलेबियों के बेहद दीवाने हैं।
गत दिनों हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत सरकार की तरफ से विदेशी मेहमानों के लिए गोहाना की यही मातूराम की जलेबी विशेष तौरपर तैयार करवाई गई थी। विश्व व्यापार मेले (ट्रेड फेयर) के हरियाणा मण्डप में लाला मातूराम की जलेबी के स्टाल पर अपार भीड़ देखते ही बनती थी। हरियाणा में लगे सूरजकूण्ड मेले व चण्डीगढ़ में के कलाग्राम में लाला मातूराम की जलेबी का स्टॉल विशेष तौरपर शामिल किया गया। राजनीतिक रैलियों, शादी-समारोहों, तीज-त्यौहारों, उत्सवों, अनुष्ठानों और अन्य अनेक अवसरों पर मातूराम की जलेबी का इस्तेमाल शान की बात बन चुकी है। अब आम जनमानस हर त्योहार पर नकली मिठाईयों से बचने के लिए लाला मातूराम की जलेबी ही इस्तेमाल करता है। इसीलिए दीपावली जैसे त्यौहारों पर दिनरात काम करने के बावजूद लोगों की मांग भी पूरी नहीं हो पाती है।
- राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।
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