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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

खतरे में पड़ती नारी अस्मिता !!

विडम्बना 
 खतरे में पड़ती नारी अस्मिता !! 
-राजेश कश्यप 
भाजपा की शीर्ष नेत्री स्मृति-ईरानी और कांग्रेस सांसद संजय निरूपम के बीच हुए विवाद की जितनी भी निन्दा की जाए, कम है। इस विवाद ने कई गंभीर सवालों को न केवल जन्म दिया है, बल्कि एक नारी के प्रति असंवेदनशील होती राजनीति के काले चेहरे को भी बेनकाब कर दिया है। इस विषय पर गहराई में जाने से पहले, ताजा मामले पर प्रकाश डालना सर्वथा उचित होगा। दरअसल, मामला 20 दिसम्बर की शाम का है। हाल ही में हुए गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावांे के परिणामों पर टेलीविजन चैनलों पर राजनीतिकों के बीच विश्लेषणात्मक बहस हो रही थी। इनमें से एक टेलीविजन चैनल एबीपी न्यूज पर भी इसी विषय पर लाईव बहस जारी थी, जिसमें भाजपा की तरफ से स्मृति ईरानी, कांग्रेस की तरफ से संजय निरूपम, स्वतंत्रत विश्लेषक के तौरपर सपा के पूर्व महासचिव और पत्रकार शाहिद सिद्दकी चर्चा में भाग ले रहे थे। इसी बीच कांग्रेस के प्रवक्ता और सांसद संजय निरूपम आपा खो बैठे और उन्होंने स्मृति ईरानी पर अशोभनीय व्यक्तिगत कटाक्ष करने शुरू कर दिए। बहस के संचालक ने बार-बार संजय से इस तरह के व्यक्तिगत व अशोभनीय आक्षेप न लगाने की गुजारिश की। इसके बावजूद, संजय निरूपम नहीं संभले और उन्होंने एक नारी के प्रति बरती जाने वाली मर्यादा को भी तार-तार करते हुए उनके निजी चरित्र पर ही बेहद गंभीर सवालिया निशान लगा दिये। स्मृति ईरानी ने इस पर सख्त ऐतराज जताया। मामले की गंभीरता को देखते हुए एबीपी न्यूज के संचालक ने तत्काल इस बहस को विराम देने की आड़ में समाप्त कर दिया और संजय निरूपम की टिप्पणियों पर चैनल के इत्तफाक न रखने का स्पष्ट ऐलान भी कर दिया।
इस नवीनतम विवाद ने सभ्य समाज को सकते में डालकर रख दिया है और कई गंभीर और सुलगते सवालों को जन्म दे दिया है। क्या संजय निरूपम ने इस तरह के अमर्यादित, अनैतिक, गैरकानूनी और अशोभनीय आक्षेप पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लगाए हैं या फिर गुजरात में नरेन्द्र मोदी द्वारा हैट्रिक जमाने और कांग्रेस की करारी हार के कारण बौखलाहट का परिणाम थीं? कारण चाहे जो भी हांे, क्या यह प्रकरण एक जनप्रतिनिधि के लिए बेहद शर्मनाक नहीं है? क्या इससे स्पष्ट नहीं झलकता कि संजय निरूपम की नारी के प्रति क्या इज्जत, मर्यादा और मानसिकता हो सकती है? वे आखिर यह क्यों भूल गए कि वे जिस नारी को अपने आवेश और आक्रोश का शिकार बनाते हुए मर्यादा की हर हद पार कर रहे हैं और उनके इस आचरण से एक सभ्य समाज को शर्मिन्दा भी होना पड़ सकता है? क्या संजय के इस असभ्य आचरण ने कांग्रेस पार्टी के लिए भी गंभीर नैतिक संकट नहीं खड़ा कर दिया है। इससे पहले संजय निरूपम में बिग बॉस प्रतिभागी संभावना सेठ पर भी टेलीविजन पर बातचीत के दौरान उनके कैरियर के संदर्भ में आक्षेप लगाए थे। इसका मतलब, क्या यह नहीं निकलता कि कहीं न कहीं संजय निरूपम की मानसिकता नारी विरोधी है? यदि ऐसा है तो क्या उन्हें एक जन-प्रतिनिधि के दायरे में रखना चाहिए?
इन सवालों के साथ-साथ इस प्रकरण के बाद बहस में शामिल सपा के पूर्व महासचिव और पत्रकार शाहिद सिद्दी की दो टूक और बेलाग टिप्पणियां भी विषय की गंभीरता का सहज अहसास कराती हैं। शाहिद सिद्दकी ने बहस के दौरान भी संजय निरूपम की भाषा पर ऐतराज जताया था। बाद में उन्होंने स्पष्ट तौरपर कहा कि संजय निरूपम की टिप्पणी अनुचित थी। उन्हें माफी मांगनी चाहिए। अगर संसद सदस्य इस तरह का व्यवहार करेंगे तो हम दूसरों से क्या उम्मीद करेंगे? अगर संसद सदस्य महिलाओं का सम्मान नहीं करेगा तो जिस तरह के रेप केस होते रहे हैं, वे आगे भी होते रहेंगे। शाहिद सिद्दकी की यह प्रतिक्रिया निश्चित तौरपर जन-प्रतिनिधियों को बहुत बड़ा संदेश देती है।
इस प्रकरण के अगले ही दिन भाजपा ने प्रेस कांफ्रेंस करके संजय निरूपम के इस आचरण पर सख्त रूख अपनाने की घोषणा कर दी। इसके साथ ही श्रीमती सोनिया गांधी को आवश्यक कार्यवाही करने और माफी मांगने के लिए कहा गया। प्रेस कांफ्रेंस में भाजपा के वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद द्वारा ऐसा न होने पर संजय का हर स्तर पर विरोध करने के साथ-साथ सोनिया गांधी के खिलाफ भी अभियान चलाने और उसका बहिष्कार करने की घोषणा की गई। यह सब स्वभाविक तो था ही, साथ ही बहुत जरूरी भी था। इस प्रकरण में केवल स्मृति ईरानी से माफी मांगने से काम नहीं चलना चाहिए। यह मसला पूरी नारी जाति की गरिमा से जुड़ा हुआ है। इसलिए पूरी नारी जाति से माफी मांगी जानी चाहिए और कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को देश को यह विश्वास भी दिलाना चाहिए कि भविष्य में उसके किसी सदस्य द्वारा इस तरह का असभ्य आचरण बिल्कूल नहीं होगा। यह विश्वास कांग्रेस को संजय निरूपम पर सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही करके दिलाना चाहिए।
बेहद विडम्बना का विषय है कि देश में नारी सशक्तिकरण के नाम पर निरन्तर छलावा हो रहा है। संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के नाम पर संकीर्ण सियासत चलाई जा रही है। महिलाओं के नेतृत्व में ही महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चत नहीं हो पा रही है। एक तरफ तो देश में लड़कियों की संख्या कन्या-भू्रण हत्या के अभिशाप के चलते तेजी से कम होती जा रही है और दूसरी तरफ उनकें साथ छेड़छाड़ और बलात्कारों के मामलों में भारी वृद्धि होती चली जा रही है। सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह है कि एक महिला ही महिला के दर्द को नहीं समझ पा रही है। जब वर्ष 2011 मंे उत्तर प्रदेश में सुश्री मायावती की सरकार थी तो प्रतिदिन दलित महिलाओं व लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले प्रकाश में आ रहे थे। यू.पी. में होने वाले बलात्कारों की संख्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। जब इस मसले पर मायावती से प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने तपाक से कहा कि उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। उनसे बढ़कर तो दिल्ली में बलात्कार हो रहे हैं। क्या यह प्रतिक्रिया एक नारी के प्रति दूसरी नारी की संवेदनहीनता को नहीं दर्शाता? पिछले दिनों हरियाणा में एक बाद एक होने वाले बलात्कारों ने पूरे देश का ध्यान आकृष्ट किया। हरियाणा में प्रतिदिन औसतन दो से तीन बलात्कारों की घटनाओं ने स्थिति को बेहद गंभीर बना दिया और लॉ एण्ड ऑर्डर पर भी सवालिया निशान लगा दिया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी हरियाणा के जीन्द जिले के सच्चा खेड़ा में बलात्कार का शिकार एक दलित लड़की का हालचाल जानने पहुँची। पीड़ित परिवार से मिलने के बाद श्रीमती सोनिया गाँधी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह कोई गंभीर बात नहीं है, इस तरह के मामले तो देशभर में हो रहे हैं। श्रीमती सोनिया गाँधी की इस टिप्पणी से न केवल पीड़ित परिवार के प्रति जताई गई सहानुभूति संदेह के दायरे में आ गई, बल्कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के प्रति उनकीं संवेदनहीनता भी स्पष्ट हो गई। जब उनकीं इस प्रतिक्रिया के संदर्भ में योगगुरू बाबा रामदेव ने पूछा कि यदि पीड़िता की तरह ही उसकी बेटी के साथ ऐसा व्यवहार (बलात्कार) हुआ होता तो क्या तब भी वे यही बयान देती? कमाल की बात यह रही कि इसके प्रत्युत्तर में भी कांग्रेस की एक महिला सांसद ने अशोभनीय टिप्पणी करते हुए कहा कि बाबा से पूछना चाहिए कि उसकी कौन सी बेटी है? उसकी कौन सी बेटी से बलात्कार हुआ है? क्या यह नारी के प्रति नारी की उपेक्षा का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण नहीं है?
देश के महानगरों में महिलाओं की सुरक्षा पर भी कई बार गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं। हाल ही में दिल्ली में पैरा-मैडीकल छात्रा के साथ चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार ने एक सभ्य समाज को न्याय माँगने और राजनीतिकों को जगाने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए विवश होना पड़ा है। विडम्बना देखिए, दिल्ली में भी श्रीमती शीला दीक्षित के रूप में एक महिला मुख्यमंत्री हैं, इसके बावजूद दिल्ली में लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा निरन्तर तार-तार हो रही है। उससे बढ़कर दुर्भाग्य का विषय है कि सत्तारूढ़ केन्द्रीय सरकार यूपीए-दो का नेतृत्व भी एक महिला, श्रीमती सोनिया गाँधी ही कर रही हैं। इसके बावजूद देश में महिलाओं के अपहरण, छेड़छाड़, यौनाचार, बलात्कार, ब्लैक-मेलिंग के मामले निरन्तर बढ़ते ही चले जा रहे हैं।
यदि आंकड़ों के आईने में देखा जाए तो एक बेहद भयानक और डरावनी तस्वीर उभरकर सामने आती है। इस समय देश में हर बीस मिनट में एक दुष्कर्म और हर 25 मिनट में छेड़छाड़ हो रही है और हर 76 मिनट में एक नाबालिग से बलात्कार हो रहा है। दुर्भाग्यवश देश की राजधानी में हर 18 मिनट में एक बलात्कार की घटना घट रही है। सबसे बड़ी विडम्बना की बात यह है कि मात्र 26 प्रतिशत दुष्कर्म दोषियों को ही सजा मिल पा रही है। वर्ष 2011 में देशभर में कुल 7112 मामले दर्ज हुए, जबकि वर्ष 2010 में 5484 मामले दर्ज हुए थे। इस तरह से बलात्कारों में 29.7 वार्षिक बढ़ौतरी हुई। यह तो वे मामले हैं जो पुलिस थानों में दर्ज हुए हैं। इससे अधिक तो भारी सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक दबाओं और शर्म व इज्जत के चलते दर्ज ही नहीं हो पाते। ऐसे में स्थिति की गंभीरता को सहज समझा जा सकता है। 
सबसे बड़ी गंभीर बात तो यह है कि जिन जन-प्रतिनिधियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसी अभेद, अचूक व कड़ी कानूनी व्यवस्था बनाएं कि नारी की गरिमा और उसकी इज्जत पर हाथ डालने वाले वहशी दरिन्दे सौ बार नहीं, हजार बार सोचें। उन्हीं जन-प्रतिनिधियांे में भी ऐसे वहशी दरिन्दे शामिल हैं, जिन पर बलात्कार और यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप लगे हुए हैं। नैशनल इलेक्शन वॉच के आंकड़ों के अनुसार इस समय देश में छह विधायक ऐसे भी हैं, जिनपर बलात्कार जैसे संगीन आरोप हैं। इसके साथ ही 35 विधायकों और दो सांसदों पर भी महिलाओं से छेड़छाड़ करने और मारपीट करने के आरोप हैं। ऐसे में क्या जन-प्रतिनिधियों की निष्ठा पर गंभीर सवाल खड़े होना स्वभाविक नहीं है? क्या बलात्कारों के मसले पर नेताओं के गैर-जिम्मेदाराना बयान किसी अमानवीय बलात्कार से कम कहे जा सकते हैं? ऐसे ही असंख्य ज्वलंत सवाल हैं, जिनके जवाब पूरा देश जानना चाहता है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

‘कन्या दिवस’ को समर्पित किया 12.12.2012


‘कन्या दिवस’ को समर्पित किया 12.12.2012

कन्या दिवस मनाता कश्यप परिवार।

कन्या दिवस की शुरूआत करते हुए राजेश कश्यप, अपनी पत्नी सीमा के साथ।

कन्या दिवस कार्यक्रम में अपनी बिटिया स्वाति के साथ राजेश कश्यप।


12.12.2012, रोहतक।

‘12.12.2012’ के ऐतिहासिक तिथि से प्रतिवर्ष इस दिन ‘कन्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। ये घोषणा हरियाणा कश्यप राजपूत सभा के सांस्कृतिक एवं साहित्यक सैल के चेयरमैन एवं जिला रोहतक के प्रधान राजेश कश्यप ने करते हुए कहा कि कन्या सृष्टि का आधार हैं और देश व प्रदेश में निरन्तर कन्याओं की घटती संख्या अत्यन्त चिन्ता एवं चुनौती का विषय है। श्री कश्यप ने कहा कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं हैं। हमें लड़के-लड़की के प्रति अपनी रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा और लड़कियों के अभाव के कारण पैदा होने जा रहे भावी भयंकर खतरों से समाज को बचाना होगा। युवा समाजसेवी राजेश कश्यप ने अपनी नन्हीं बिटिया स्वाति कश्यप के तीसरे जन्मदिन के अवसर पर टिटौली में आयोजित ‘कन्या दिवस’ के कार्यक्रम में समाज से आह्वान किया कि वे प्रतिवर्ष 12 दिसम्बर को ‘कन्या दिवस’ के रूप में कन्याओं को समर्पित करें और उनके कल्याण से संबंधित विभिन्न पहलूओं पर गंभीर विचार-मन्थन करें। इसके साथ ही उन्होंने कन्याओं की कोख में हो रही हत्याओं को रोकने में सबको अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया।

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

दलितों और पिछड़ों के मसीहा थे डॉ भीमराव अम्बेडकर

6 दिसम्बर / महापरिनिर्वाण दिवस विशेष


 दलितों और पिछड़ों के मसीहा थे डॉ भीमराव अम्बेडकर 
-राजेश कश्यप 
जाति-पाति, छूत-अछूत, ऊँच-नीच आदि विभिन्न सामाजिक कुरीतियों के दौर में एक ऐसी असाधारण शख्सियत का अवतरण इस धरती पर हुआ, जिसने समाज में एक नई क्रांतिकारी चेतना व सोच का सूत्रपात किया। वह महान शख्सियत थी, डा. भीमराव रामजी अम्बेडकर। उन्नीसवीं सदी में देश में छूत-अछूत, जाति-पाति, धर्म-मजहब, ऊँच-नीच आदि कुरीतियों का स्थापित साम्राज्य चरम सीमा पर जा पहुंचा था। देश में मनुवादी व्यवस्था के बीच समाज को ब्राहा्रण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में विभाजित था। शूद्रों में निम्न व गरीब जातियों को शामिल करके उन्हें अछूत की संज्ञा दी गई और उन्हें नारकीय जीवन जीने को विवश कर दिया गया। उन्हें छुना भी भारी पाप समझा गया। अछूतों को तालाबों, कुंओं, मंदिरों, शैक्षणिक संस्थाओं आदि सभी जगहों पर जाने से एकदम वंचित कर दिया गया। इन अमानवीय कृत्यों की उल्लंघना करने वाले को कौड़ों, लातों और घूसों से पीटा जाता, तरह-तरह की भयंकर यातनाएं दी जातीं। निम्न जाति के लोगों से बेगार करवाई जातीं, मैला ढुलवाया जाता, गन्दगी उठवाई जाती, मल-मूत्र साफ करवाया जाता, झूठे बर्तन साफ करवाए जाते और उन्हें दूर से ही नाक पर कपड़ा रखकर अपनी जूठन खाने के लिए दी जाती व बांस की लंबी नलिकाओं से पानी पिलाया जाता। खांसने व थूकने के लिए उनके मुंह पर मिट्टी की छोटी कुल्हड़ियां बांधने के लिए विवश किया जाता। जिस स्थान पर कथित अछूत बैठते उसे बाद में उस स्थान को पानी से कई बार धुलवाया जाता।
अत्यन्त कुटिल व मानवता को शर्मसार कर देने वाली परिस्थितियों के बीच दलितों, पिछड़ों और पीड़ितों के मुक्तिदाता और मसीहा बनकर अवतरित हुए डा. भीमराव रामजी अम्बेडकर जी का जन्म 14 अपै्रल, 1891 को मध्य प्रदेश में इंदौर के निकट महू छावनी में एक महार जाति के परिवार में हुआ। उनका पैतृक गाँव रत्नागिरी जिले की मंडणगढ़ तहसील के अंतर्गत आम्ब्रावेडे था। उनके पिता का नाम रामजी राव व दादा का नाम मालोजी सकपाल था। वे अपने पिता की चौदह संतानों, 11 लड़कियों व 3 लड़कों में चौदहवीं संतान थे। उस समय पूर्व के 13 बच्चों में से केवल चार बच्चे बलराम, आनंदराव, मंजुला व तुलासा ही जीवित थे। शेष बच्चों की अकाल मृत्यु हो चुकी थी। समाज जाति-पाति, ऊँच-नीच और छूत-अछूत जैसी भयंकर कुरीतियों के चक्रव्युह में फंसा हुआ था, जिसके चलते महार जाति को अछूत समझा जाता था और उनसे घृणा की जाती थी। ऐसे विकट और बुरे दौर में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम भीमराव एकपाल उर्फ ‘भीमा’ था। उनके पिता जी फौज में नौकरी करते थे और कबीर पंथ के बहुत बड़े अनुयायी थे। उनकीं माता श्रीमती भीमाबाई भी धार्मिक प्रवृति की घरेलू महिला थीं। 20 नवम्बर, 1896 में मात्र 5 वर्ष की आयु में ही माता का साया उनके सिर से उठ गया था। इसके बाद उनकी बुआ मीरा ने चारों बहन-भाईयों की देखभाल की।
भीमराव ने प्रारंभिक शिक्षा सतारा की प्राथमिक पाठशाला में हासिल की। 7 नवम्बर, 1900 को उनका दाखिला सतारा के गवर्नमेंट वर्नाक्यूलर हाईस्कूल में करवाया गया। वे बचपन से ही अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के थे और हर परीक्षा में अव्वल स्थान पर रहते थे। इसके बावजूद सामाजिक कुरीतियों के चलते उन्हें अछूत के नाम पर प्रतिदिन अनेक असहनीय अपमानों और यातनाओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन, बालक भीमराव एकदम विपरीत सामाजिक परिस्थितियों के बीच अनवरत रूप से अपने शिक्षा-अर्जन के कार्य में लगे रहे और बहुत अच्छे अंकों के साथ उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1907 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकीं अनूठी प्रतिभा से प्रभावित होकर एक चहेते व सामाजिक संकीर्णताओं से मुक्त ब्राहा्रण शिक्षक ने उन्हें ‘अम्बेडकर’ उपनाम दिया, जोकि आगे चलकर उनके मूल नाम का अभिन्न हिस्सा बन गया। वर्ष 1908 में वे मात्र 17 वर्ष की आयु में रमाबाई के साथ विवाह-सूत्र में बंध गए। विवाह बंधन में बंधने के बावजूद उन्होंने मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से एफ.ए. अर्थात इंटरमीडिएट और बड़ौदा के महाराजा द्वारा प्रदत्त 25 रूपये प्रतिमाह छात्रवृति के बलबूते वर्ष 1912 में बी.ए. की परीक्षा बहुत अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की। 12 दिसम्बर, 1912 को उन्हंे यशवतं नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
2 फरवरी, 1913 को पिता के देहान्त के बाद भीमराव अम्बेडकर को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और पारिवारिक दायित्व के निर्वहन के लिए नौकरी करने को विवश होना पड़ा। लेकिन, थोड़े समय बाद ही उन्हें बड़ौदा के महाराजा की कृपा पुनः प्राप्त हुई और उन्हें उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए विदेश जाने का सौभाग्य मिला। वे एस.एस. अकोना जहाज से अमेरिका के लिए रवाना हुए और 23 जुलाई, 1913 को न्यूयार्क जा पहुंचे। वहां जाकर उन्हांेने कोलम्बिया विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। उन्होंने वर्ष 1915 में एम.ए. की डिग्री और 10 जून, 1916 को अर्थशास्त्र में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. पूरी की। हालांकि नियमानुसार उनका शोध धनाभाव के चलते आठ वर्ष बाद प्रकाशित होने के कारण पी.एच.डी डिग्री वर्ष 1924 में ही हासिल हो सकी। वे इसी वर्ष वास्तव में डॉ. भीमराव अम्बेडकर बने।
उन्होंने वर्ष 1916 में प्रख्यात ‘लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिकल एण्ड पॉलीटिकल साइंस’ में दाखिला ले लिया। अचानक छात्रवृति रोक दिए जाने से उन्हें पढ़ाई के बीच में ही 21 अगस्त, 1917 को स्वदेश लौटने को विवश होना पड़ा। भारत लौटकर उन्होंने पूर्व में हस्ताक्षरित अनुबंध के अनुसार महाराजा बड़ौदा की सेना में सैन्य सचिव के पद पर नौकरी करनी पड़ी। इस अत्यन्त सम्मानजनक पद पर रहने के बावजूद उन्हें अछूत के रूप में निरन्तर अपमान और तिरस्कार के दंश को झेलना पड़ा। अंततः उन्होंने इस पद को छोड़ दिया। इसके बाद वे एक निजी ट्यूटर व लेखाकार के रूप में काम करने लगे। बाद में उन्हें परिचित मित्रों के सहयोग से नवम्बर, 1918 में बंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एण्ड इकोनोमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गई।
इसी दौरान वर्ष 1920 में ही सौभाग्यवश उन्हें महाराजा कोल्हापुर द्वारा प्रदत्त छात्रवृति हासिल हो गई और उन्होंने 5 जुलाई, 1920 को प्रोफेसर के पद को छोड़ दिया। वे पुनः ‘लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिकल एण्ड पॉलीटिकल साइंस’ में अपनी अधूरी पढ़ाई पूर्ण करने मे लिए लंदन जा पहुंचे और सितम्बर, 1920 से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। जनवरी, 1923 में उन्हें डी.एस.सी. अर्थात डॉक्टर ऑफ साईंस की उपाधि प्रदान की गई। लंदन के ‘गेज इन’ से उन्होंने बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे 3 अपै्रल, 1923 में डॉक्टर ऑफ साईंस, पी.एच.डी. और बार एट लॉ जैसी कई बड़ी उपाधियांे के साथ स्वदेश लौटे। स्वदेश लौटकर उन्होंने मुंबई में वकालत के साथ-साथ अछूतों पर होने वाले अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाना शुरू कर दिया। अपने आन्दोलन को अचूक, कारगर व व्यापक बनाने के लिए उन्होंने ‘मूक नायक’ पत्रिका भी प्रकाशित करनी शुरू की। उनके प्रयासों ने रंग लाना शुरू किया और वर्ष 1927 में उनके नेतृत्व में दस हजार से अधिक लोगों ने एक विशाल जुलूस निकाला और ऊँची जाति के लिए आरक्षित ‘चोबेदार तालाब’ के पीने के पानी के लिए सत्याग्रह किया और सफलता हासिल की। इसी वर्ष उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक एक पाक्षिक मराठी पत्रिका का प्रकाशन करके अछूतों में स्वाभिमान और जागरूकता का अद्भूत संचार किया। देखते ही देखते वे दलितों व अछूतों के बड़े पैरवीकार के रूप में देखे जाने लगे। इसी के परिणास्वरूप डॉ. भीमराव अम्बेडकर को वर्ष 1927 में मुंबई विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। इसी तरह उन्हें पुनः 1932 में भी परिषद का मनोनीत सदस्य चुना गया। विधान परिषद में उन्होंने दलित समाज की वास्तविक स्थिति को न केवल उजागर किया, बल्कि शोषित समाज की आवाज को बखूबी बुलन्द किया।
वर्ष 1929 में उन्होंने ‘समता समाज संघ’ की स्थापना की। अगले वर्ष 1930 में उन्होंने नासिक के कालाराम मंन्दिर में अछूतों के प्रवेश की पाबन्दी को हटाने के लिए जबरदस्त सत्याग्रह किया। इसके साथ ही दिसम्बर, 1930 में ‘जनता’ नाम से तीसरा पत्र निकालना शुरू किया। वर्ष 1931 में उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विरोध के बावजूद दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में दलितों के लिए अलग निर्वाचन का अधिकार प्राप्त करके देशभर में हलचल मचा दी। गांधी जी के अनशन के बाद डॉ. अम्बेडकर व कांग्रेस के बीच 24 सितम्बर, 1932 को ‘पूना पैक्ट’ के नाम एक समझौता हुआ और डॉ. अम्बेडकर को भारी मन से कई तरह के दबावों के चलते दलितों के लिए अलग निर्वाचन की माँग वापस लेना पड़ा। लेकिन, इसके जवाब में उन्होंने वर्ष 1936 में ‘इंडिपेंडंेट लेबर पार्टी’ की स्थापना करके अपने घोषणा पत्र में अछूतों के उत्थान का स्पष्ट एजेण्डा घोषित कर दिया। अब शोषित समाज डॉ. अम्बेडकर को अपने मसीहा के रूप में देखने लग गया था। इसी के परिणास्वरूप वर्ष 1937 के आम चुनावों में डॉ. अम्बेडकर को भारी बहुमत से अभूतपूर्व विजय हासिल हुई और कुल 17 सुरक्षित सीटों में से 15 सीटें नवनिर्मित ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ के खाते में दर्ज हुईं। वे 12 वर्ष तक बम्बई में विधायक रहे। इसी दौरान वे बम्बई कौंसिल से ‘साईमन कमीशन’ के सदस्य चुने गए। उन्होंने लंदन में हुई तीन गोलमेज कांफ्रेंसों में भारत के दलितों का शानदार प्रतिनिधित्व करते हुए दलित समाज को कई बड़ी उपलब्धियां दिलवाईं।
दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अम्बेडकर का भारतीय राजनीति में कद बहुत ऊँचाई पर जा पहुंचा। वर्ष 1942 में उन्हें गर्वनर जनरल की काऊंसिल का सदस्य चुन लिया गया। उन्होंने शोषित समाज को शिक्षित करने के उद्देश्य से 20 जुलाई, 1946 को ‘पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी’ नाम की शिक्षण संस्था की स्थापना की। इसी सोसायटी के के तत्वाधान में सबसे पहले बम्बई में सिद्धार्थ कालेज शुरू किया गया और बाद में उसका विस्तार करते हुए कई कॉलेजों का समूह बनाया गया। ये कॉलेज समूह आज भी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय भूमिका निभा रहे हैं। 15 अगस्त, 1947 को देश को लंबे समय के बाद स्वतंत्रता नसीब हुई। 29 अगस्त, 1947 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर को संविधान निर्मात्री सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष पद पर सुशोभित किया गया। अपनी टीस के चलते ही उन्होंने संविधान में यह प्रावधान रखा कि, ‘किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता या छुआछूत के कारण समाज में असामान्य उत्पन्न करना दंडनीय अपराध होगा’। इसके साथ ही उन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली लागू करवाने में भी सफलता हासिल की। उन्होंने महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर पर बराबर बल दिया। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया और इसे 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान के पूरा होने पर डॉ. अम्बेडकर के आत्मिक उद्गार थे कि, ‘‘मैं महसूस करता हूँ कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है, पर साथ ही इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था, बल्कि इसका उपयोग करने वाला अधम था।’’
वर्ष 1948 में उनका दूसरा विवाह सविता अम्बेउकर के साथ हुआ। आगे चलकर वर्ष 1949 में उन्हें स्वतंत्र भारत का प्रथम विधिमंत्री बनाया गया। वर्ष 1950 में डॉ. अम्बेडकर श्रीलंका के ‘बौद्ध सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए गए और बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों से अत्यन्त प्रभावित होकर स्वदेश लौटे। उन्होंने वैचारिक मतभेदों के चलते वर्ष 1951 में विधिमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया। डॉ. अम्बेडकर वर्ष 1952 के आम चुनावों में हार गए। इसके बावजूद वे वर्ष 1952 से वर्ष 1956 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। अत्यन्त कठिन व अडिग संघषों के उपरांत, उनके मन में यह मलाल विष का रूप धारण कर चुका था कि वे शोषित समाज के उत्थान व समृद्धि के लिए जो अपेक्षाएं भारत सरकार से रखते थे, उनपर भारत सरकार खरा नहीं उतरीं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने में वे पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके। इससे बढ़कर, देश मंे कानून बनने के बावजूद दलितों व शोषितों की दयनीय स्थिति देखकर उन्हें बेहद कुंठा व वेदना का गहरा अहसास हुआ। देश व समाज में दलितों, शोषितों व अछूतों को अन्य जातियों के समकक्ष लाने के लिए डॉ. अम्बेडकर ने बहुत लंबा गहन अध्ययन और मंथन किया। इसके उपरांत उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि एकमात्र बौद्ध धर्म ही ऐसा है, जो दलितों को न केवल सबके बराबर ला सकता है, बल्कि अछूत के अभिशाप से भी हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति दिला सकता है।
इसी निष्कर्ष को अमलीजामा पहनाने के लिए उन्होंने 1955 में ‘भारतीय बौद्ध महासभा’ की स्थापना की और 14 अक्तूबर, 1956 में अपने 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर एक नए युग का सूत्रपात कर दिया। उनका मानना था कि अछूतों के उत्थान और पूर्ण सम्मान के लिए यही एकमात्र अच्छा रास्ता है। इस अवसर पर उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं भी निर्धारित कीं, ये प्रतिज्ञाएं हिन्दू समाज की कुरीतियों व आडम्बरों पर गहरा आघात करने वाली हैं।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर बहुत बड़े युगदृष्टा थे। उन्होंने अछूतों व दलितों की मुक्ति के अभिशाप की थाह और उससे मुक्ति की राह स्पष्ट रूप से देख ली थी। इसीलिए, उन्होंने आजीवन गरीबों, मजदूरों, अछूतों, दलितों, पिछड़ों और समाज के शोषित वर्गों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि हर क्षेत्र में बराबर का स्थान दिलाने के लिए अनूठे संघर्ष किए और अनंत कष्ट झेले। उन्होंने समाजसेवक, शिक्षक, कानूनविद्, पदाधिकारी, पत्रकार, राजनेता, संविधान निर्माता, विचारक, दार्शनिक, वक्ता आदि अनेक रूपों में देश व समाज की अत्यन्त उत्कृष्ट व अनुकरणीय सेवा की व अपनी अनूठी छाप छोड़ी। महामानव डॉ. भीमराव अम्बेडकर को देश व समाज के लिए उनके आजीवन समग्र योगदान को नमन करते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1990 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत-रत्न’ से अलंकृत किया।
उन्होंने अपने जीवन में दर्जनों महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी पुस्तकों और ग्रन्थों की रचनाएं कीं। इन पुस्तकों में ‘कास्ट्स इन इण्डिया’, ‘स्मॉल होल्डिंग्स इन इण्डिया एण्ड देयर रेमिडीज’, ‘दि प्राबल्म ऑफ दि रूपी’, ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’, ‘मिस्टर गांधी एण्ड दि एमेन्सीपेशन ऑफ दि अनटचेबिल्स’, ‘रानाडे, गांधी एण्ड जिन्ना’, ‘थॉट्स आन पाकिस्तान’, ‘वाह्ट कांग्रेस एण्ड गांधी हैव इन टु दि अनटचेबिल्स’, ‘हू वेयर दि शूद्राज’, ‘स्टेट्स एण्ड माइनारिटीज’, ‘हिस्ट्री ऑफ इण्डियन करेन्सी एण्ड बैंकिंग’, ‘दि अनटचेबिल्स’, ‘महाराष्ट्र एज ए लिंग्विस्टिक स्टेट’, ‘थाट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स’ आदि शामिल थीं। कई महत्पूर्ण पुस्तकें उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाईं। इन पुस्तकों में ‘लेबर एण्ड पार्लियामेन्ट्री डेमोक्रेसी’, ‘कम्युनल डेडलॉक एण्ड ए वे टु साल्व इट’, ‘बुद्ध एण्ड दि फ्ूचर ऑफ पार्लियामेंट डेमोक्रेसी’, ‘एसेशिंयल कन्डीशंस प्रीसीडेंट फॉर दि सक्सेसफुल वर्किंग ऑफ डेमोक्रेसी’, ‘लिंग्विस्टिक स्टेट्स: नीड्स फॉर चेक्स एण्ड बैलेन्सज’, ‘माई पर्सनल फिलॉसफी’, ‘बुद्धिज्म एण्ड कम्युनिज्म’, ‘दि बुद्ध एण्ड हिज धम्म’ आदि शामिल हैं।
युगदृष्टा व दलितों और पिछड़ांे के इस मसीहा ने देश में नासूर बन चुकी छूत-अछूत, जाति-पाति, ऊँच-नीच आदि कुरीतियों के उन्मुलन के लिए अंतिम सांस तक अनूठा और अनुकरणीय संघर्ष किया। उन्होंने 6 दिसम्बर, 1956 को अपने अनंत संघर्ष की बागडोर नए युग के कर्णधारों के हाथों सौंप, महापरिनिर्वाण को प्राप्त हो गए। इस महान आत्मा को कोटि-कोटि नमन।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)       

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

प्रगतिपथ पर निरन्तर अग्रसित हरियाणा

1 नवम्बर/स्थापना दिवस विशेष

प्रगतिपथ पर निरन्तर अग्रसित हरियाणा

-राजेश कश्यप


संविधान के सातवें संशोधन द्वारा भारतवर्ष के सत्रहवें राज्य के रूप में हरियाणा प्रदेश का उदय मंगलवार, 1 नवम्बर, 1966 को हुआ। अलग राज्य बनने से पहले यह पंजाब का ही भाग था। अस्तित्व में आने के बाद हरियाणा प्रदेश ने हर क्षेत्र में बेहद उल्लेखनीय प्रगति की है और विकास के मामले में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अस्तित्व के समय हरियाणा प्रदेश की जनसंख्या 1 करोड़ 29 लाख थी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इस समय प्रदेश की जनसंख्या 2 करोड़, 53 लाख है। हरियाणा प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 44,212 वर्गकिलोमीटर है, जोकि भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.34 प्रतिशत है।
सर्वविद्यित है कि हरियाणा प्रदेश कृषि प्रधान रहा है। हरियाणा ने कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में बड़ी तेजी से उल्लेखनीय एवं अनुकरणीय विकास किया है। वर्ष 1966 में राज्य के गठन के समय खाद्यान्नों का उत्पादन 25 लाख 92 हजार टन था, जोकि वर्ष 2010-11 में बढ़कर 166.29 लाख टन तक पहुँच गया। राष्ट्र को खाद्यान्न भण्डार में योगदान देने में हरियाणा प्रदेश को दूसरा स्थान हासिल है। पशुधन के मामले में हरियाणा प्रदेश ने विश्व में अपना डंका बजाया हैं। इस प्रदेश की मुर्राह नस्ल भैंस विश्वविख्यात हो चुकी हैं। मुर्राह नस्ल की भैंस को अधिकतम दूध देने का गौरव हासिल हो चुका है। मत्स्य पालन में वर्ष 2010-11 में प्रति इकाई देशभर में हरियाणा को दूसरा स्थान हासिल हुआ है।
हरियाणा प्रदेश ने शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ी उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। वर्ष 2012-13 के लिए बजट में शिक्षा के लिए 8245.58 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। इस समय प्रदेश के उच्चतर शिक्षा संस्थानों में 10 लाख 45 हजार 118 विद्यार्थी शिक्षा अर्जित कर रहे हैं। हरियाणा के गठन के समय वर्ष 1966 में मात्र 6 बहुतकनीकी संस्थान और एक इंजीनियरिंग संस्थान था, जिनमें दाखिला लेने की वार्षिक क्षमता 1341 विद्यार्थियों की थी। जबकि, वर्ष 2011 में इन संस्थानों की संख्या बढ़कर 640 और विद्यार्थियों की वार्षिक दाखिला क्षमता बढ़कर 1 लाख 42 हजार 226 विद्यार्थियों की हो चुकी है। रचनात्मक कलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए रोहतक में फैशन डिजायन, फिल्म एवं टेलीविजन और फाईन आर्ट्स के राज्य संस्थान स्थापित किए जा चुके हैं। हरियाणा प्रदेश बहुत जल्द विधि विश्वविद्यालय और उच्चतर शिक्षा हब का सम्मान हासिल करने के लिए बड़ी तेजी से अग्रसित हो चुका है। राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय सोनीपत जिले के कुण्डली में राजीव गांधी एजुकेशन सीटी में स्थापित करने के लिए विधेयक-2012 पास किया जा चुका है। वर्ष 2004-05 में प्रदेश मंे कुल 7 विश्वविद्यालय थे, जोकि अब बढ़कर 23 हो गए हैं। महेन्द्रगढ़ में केन्द्रीय विश्वविद्यालय और खानपुर कलां, सोनीपत में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। गुड़गांव जिले में नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी और हिसार में पशु चिकित्सालय विश्वविद्यालय खोला गया है। खानपुर कलां (सोनीपत), मेवात, फरीदाबाद और करनाल में मैडीकल कॉलेज खोले जा रहे हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हरियाणा ने बड़ी तेजी से उन्नति की है। इस समय हरियाणा में तीन नए मैडीकल कॉलेजों की स्थापना की जा रही है। इनमें मेवात जिले में नल्हड़ मैडीकल कॉलेज, करनाल में कल्पना चावला मैडीकल कॉलेज और झज्जर के बाढ़सा में एम्स-दो शामिल है। इससे पूर्व रोहतक मंे पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की जा चुकी है। इसके साथ ही हरियाणा देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां प्रत्येक स्वास्थ्य केन्द्र पर वाहनों की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। इनके अलावा, राज्य में एंडवांस लाईफ स्पोर्ट सिस्टम एंबुलेंस सुविधा भी शुरू की गई है, जोकि दिनरात सेवा में तत्पर रहती है। निश्चित तौरपर इन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में हरियाणा प्रदेश की अभूतपूर्व उपलब्धि कहा जा सकता है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र प्रदेश की प्राथमिक सूची में शामिल है, जिसके चलते वर्ष 2012-13 के लिए रिकार्ड़  1656.03 करोड़ रूपये की धनराशि आवंटित की है।
हरियाणा में वर्ष 2005-06 में मातृ-मृत्यु दर 186 थी, जोकि घटकर 153 रह चुकी है। वर्ष 2002 में शिशु मृत्यु दर 1000 के मुकाबले 61 थी, जोकि वर्ष 2010 के आते-आते 48 ही रह गई है। इस समय प्रदेश में आर्थिक पैकेज के तहत 1500 करोड़ रूपये की स्वास्थ्य परियोजनाओं पर काम चल रहा है। पीएनडीटी एक्ट का सख्ती से लागू करने के परिणामस्वरूप प्रदेश के लिंगानुपात में भी सुधार आया है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार प्रदेश का अनुपात 877 था, जोकि जून, 2012 में घटकर 844 रह गया है। पीएनडीटी अधिनियम के तहत अब तक 25 चिकित्सकों को सजा दी जा चुकी है और 377 अल्ट्रासाउण्ड केन्द्रों का पंजीकरण निलंबित/रद्द किया जा चुका है। इसके साथ ही 177 अल्ट्रासाउण्ड मशीनें पकड़ी जा चुकी हैं। कन्या-भ्रण हत्या को रोकने में उल्लेखनीय एवं अनुकरणीय पहल करने वाले जीन्द जिले के बीबीपुर गाँव की पंचायत को एक करोड़ रूपये की धनराशि से सम्मानित किया गया है।
हरियाणा ने खेलों के क्षेत्र में भी अपना परचम फहराया है। वर्ष 2012 के लन्दन ओलम्पिक खेलों में भारत ने कुल छह पदक जीते, जिनमें से चार पदक हरियाणा के होनहार खिलाड़ियों ने अपने नाम किए। वर्ष 2008 के बीजिंग ओलम्पिक खेलों मंे भी हरियाणा के खिलाड़ियों ने तीन में से दो पदक अपने नाम किए थे। इस समय हरियाणा में दो राज्य स्तरीय स्टेडियम, 21 जिला स्तरीय स्टेडियम व 221 छोटे स्टेडियम हैं। इसके साथ ही 226 नए ब्लॉक स्तरीय स्टेडियमों का निर्माण होने वाला है। सरकार द्वारा चालू वित्तवर्ष के दौरान खेल बजट को बढ़ाकर तीन गुना यानि 107 करोड़ किया जा चुका है। हरियाणा सरकार की खेल नीति ‘पदक लाओ, पद पाओ’ के तहत वर्ष 2005 से लेकर अब तक 424 खिलाड़ियों को योग्यतानुसार नौकरियां भी दी चुकी हैं। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक लाने वाले खिलाड़ियों को पदो ंके साथ-साथ भारी धनराशि से भी पुरस्कृत किया जा रहा है। लन्दन ओलम्पिक विजेता खिलाड़ियो को करोड़ों रूपये की धनराशि एवं उपहार हरियाणा सरकार ने दिल खोलकर दिए हैं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने वर्ष 2016 में रियोल (ब्राजील) में होने वाले ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी को 5 करोड़ रूपये, रजत पदक विजेता को 3 करोड़ रूपये और कांस्य पदक विजेता को 2 करोड़ रूपये की धनराशि देने की घोषणा की है। हरियाणा सरकार की खेल एवं शारीरिक योग्यता परीक्षण (स्पैट) योजना के तहत नए होनहार खिलाड़ियों को खोजने व उन्हें आगे बढ़ाने में बेहद कामयाब हो रही है।
 हरियाणा प्रदेश में सड़क एवं परिवार के क्षेत्र में बेहद प्रगति की है। हरियाणा के निर्माण के समय वर्ष 1966 में कुल 475 बसें ही थीं, जोकि वर्ष 2012 में बढ़कर 3490 हो गई हैं। परिवहन के बेड़े में बहुत जल्द 4000 नई बसें शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत सरकार के सहयोग से हरियाणा प्रदेश दिल्ली की मैट्रो से जुड़ने जा रहा है। दिल्ली-मैट्रो का विस्तार फरीदाबाद तक और इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे मैट्रो स्टेशन से गुड़गाँव तक और मुंडका (दिल्ली) से बहादुरगढ़ तक किया जा रहा है।
हरियाणा ने आर्थिक क्षेत्र में खूब तरक्की की है। एक त्वरित अनुमान के अनुसार प्रदेश की अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2010-11 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में 9.6 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है और प्रदेश में औद्योगिक उत्पाद की औसत वृद्धि दर 7.9 रही है। वर्तमान प्रचलित दरों पर वर्ष 1999-2000 में  राज्य सकल घरेलू उत्पाद 51 हजार 375 करोड़ रूपये था, जोकि वर्ष 2011-12 में बढ़कर 3 लाख, 9 हजार 326 करोड़ रूपये हो गया। इसमें 500 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी हरियाणा प्रदेश ने बाजी मारी है। प्रचलित मूल्यों पर प्रति व्यक्ति आय 370 प्रतिशत से अधिक बढ़कर, 1 लाख, 9 हजार 227 रूपये हो गई है। इससे पूर्व वर्ष 1999-2000 में यह मात्र 23 हजार 222 रूपये ही थी। योजना आयोग के अनुसार पिछले पाँच वर्षों की हरियाणा की औसत विकास दर 11.6 प्रतिशत है, जोकि राष्ट्रीय विकास दर 8.2 प्रतिशत से कहीं अधिक है।
हरियाणा में बिजली उपभोक्ताओं को वर्ष 2004-05 में जहां प्रतिदिन 578 लाख यूनिट बिजली दी जा रही थी, वहीं वर्ष 2011-12 में  प्रतिदिन 1009 लाख यूनिट बिजली की आपूर्ति दी जा रही है। वर्ष 204-05 के दौरान कृषि क्षेत्र को 291 लाख यूनिट प्रतिदिन बिजली दी जा रही थी, वहीं वर्ष 2011-12 में इसे बढ़ाकर 394 लाख यूनिट प्रतिदिन कर दिया गया है। वर्ष 2011-12 में हरियाणा में स्वयं द्वारा उत्पादित बिजली बढ़कर 4390.5 मेगावॉट तक पहुंच चुकी है। जबकि, वर्ष 2004-05 में यह मात्र 1587.7 मेगावाट ही थी। हरियाणा बहुत जल्द बिजली के मामले में पूर्ण रूप से आत्म-निर्भर राज्य बनने वाला है।
हरियाणा ने वाणिज्य एवं उद्योग में भी बड़ी उल्लेखनीय प्रगति की है। निवेशकों की नजर में हरियाणा प्रदेश सबसे पसन्दीदा प्रदेश बना है। हरियाणा में वर्ष 2005 के दौरान कुल 59 हजार करोड़ रूपये का निवेश हुआ था, वहीं इस समय यह निवेश लगभग 96 हजार करोड़ के आंकड़े को छूने को बेताब है। हरियाणा प्रदेश की नवीन औद्योगिक नीति ने अप्रत्याशित परिणाम देने शुरू कर दिये हैं। इस नीति के तरत प्रदेश भर में नये औद्योगिक मॉडर टाऊनशिप (आईएमटी) स्थापित किये जा रहे हैं। गत सात वर्षों के दौरान 108 बड़े और मध्य स्तर के उद्योग एवं 14336 लघु स्तर के उद्योग लगे हैं।
कुल मिलाकर, हरियाणा प्रदेश नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, जिसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा जा रहा है। हाल ही में हावर्ड बिजनेस स्कूल से सम्बद्ध इंस्टीच्यूट ऑफ कम्पेटिटिवनैस (आईएफसी) ने ‘आईएफसी-मिंट स्टेट कम्पेटिटिवनैस अवार्ड-2012’ के लिए हरियाणा प्रदेश का चयन किया है। नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय ग्रीन डिजायन-2012 के सम्मेलन में हरियाणा अक्षय उर्जा विभाग और हरेडा को ‘एग्जेम्पलरी डेमोंस्ट्रेशन ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ सोलर पैसिब फीजर अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। हरियाणा लोकनिर्माण (भवन एवं सड़कें) विभाग को केन्द्र सरकार की निर्माण उद्योगिक विकास परिषद द्वारा ‘विश्वकर्मा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। दी फैडरेशन ऑफ इण्डियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री ने हरियाणा प्रदेश को ‘वर्ष 2012 का सर्वोत्कृष्ट खेल राज्य’ पुरस्कार से नवाजा। एनडीटीवी ने खेल प्रोत्साहन के क्षेत्र में हरियाणा को सर्वोत्कृष्ट राज्य का सम्मान दिया। उर्जा नवीनीकरण एवं संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा हरियाणा प्रदेश को वर्ष 2010-11 के लिए दूसरे पुरस्कार से सम्मानित किया। सभी क्षेत्रों में विकास के लिए हरियाणा को ‘फायनेंसियल इनक्लूजन अवार्ड-2012’ से सम्मानित किया गया है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)   


सम्पर्क सूत्र :
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com, rkk100@rediffmail.com

(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में दो हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)


सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

राजेश कश्यप ‘दैनिक भास्कर ग्रीन आईडल अवार्ड-2012’ से सम्मानित

राजेश कश्यप  ‘दैनिक भास्कर ग्रीन आईडल अवार्ड-2012’ से सम्मानित
युवा समाजसेवी राजेश कश्यप को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए देश के प्रतिष्ठित दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह ने ‘दैनिक भास्कर ग्रीन आईडल-2012’ की व्यक्तिगत श्रेणी में सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि राजेश कश्यप जिला रोहतक के गाँव टिटौली के स्थायी निवासी हैं और पिछले बारह वर्षों से रचनात्मक लेखन एवं सक्रिय समाजसेवा में संलग्नरत हैं। उन्हें दर्जनभर प्रतिष्ठित सम्मान हासिल हो चुके हैं। राजेश कश्यप पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ कन्या-भ्रूण हत्या रोकने, महिला सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा, जल-संरक्षण, गरीबोत्थान, युवा जागरूकता, दहेज प्रथा उन्मूलन, बढ़ते लिंगानुपात पर नियन्त्रण करने, बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाने, वृद्धों के सम्मान, सामाजिक भातृ-भावना बढ़ाने, सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़ियों को मिटाने, अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को बढ़ाने आदि कई महत्वपूर्ण विषयों पर काम करते आ रहे हैं।

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

आखिर कब रूकेगा बलात्कारों का यह अनवरत शर्मनाक सिलसिला?

आखिर कब रूकेगा बलात्कारों का यह अनवरत शर्मनाक सिलसिला?
-राजेश कश्यप

    हरियाणा में बलात्कारों का अंतहीन सिलसिला राष्ट्रीय सुर्खियों में है। इस शर्मनाक सिलसिले को रोकने के लिए दिए जा रहे सुझाव भी राष्ट्रीय सुर्खियों है। इन दोनों ही मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर भारी निंदा और थू-थू हो रही है। एक माह में एक बाद एक दो दर्जन से अधिक नाबालिग युवतियों व विवाहित महिलाओं के साथ दुष्मर्म की घटनाएं घटना और पुलिस पर लापरवाह व संवेदनहीन बने रहने के आरोप लगना निःसन्देह हरियाणा की भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार के लिए बेहद शर्म का विषय है। इसके साथ ही सबसे बड़ा शर्म का विषय यह भी रहा कि बलात्कार की इन घटनाओं को रोकने के लिए हरियाणा की खापों ने जो उपाय सुझाये और जिस तरह विपक्ष के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने अपने वोट बैंक को मजबूत बनाने के लिए जिस तरह तत्काल खापों के सुर में सुर मिलाया, वे न केवल गैर-कानूनी हैं, बल्कि अनैतिक व असामाजिक भी हैं।
    बलात्कारों के इस अंतहीन सिलसिले ने कई सुलगते सवाल पैदा किए हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर इस शर्मनाक सिलसिले को रोकने में हरियाणा की कांग्रेस सरकार सफल क्यों नहीं हो पा रही है? लगभग सभी मामलों में पुलिस पर भारी लापरवाही और ढ़िलाई के आरोप लगे हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री खामोश क्यों हैं? वे सिर्फ कानून अपना काम करेगा और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, जैसा रटा-रटाया जुमला ही जुबान पर क्यों रखे हुए हैं? क्या उन्हंे अपनी इस प्रचलित शैली को बदलने की आवश्यकता नहीं है? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष फूलचंद मुलाना और शिक्षा व समाज कल्याण मंत्री श्रीमती गीता भुक्कल द्वारा इन बलात्कारों के पीछे विपक्षी लोगों का हाथ बताना, क्या गैर-जिम्मेदाराना और हास्यास्पद आचरण नहीं कहा जाएगा? सरकार के इन आरोपों के जवाब में विपक्ष स्पष्ट कह चुका है कि सरकार दोषी विपक्ष के लोगों के नाम उजागर करे तो फिर प्रदेश सरकार क्यों खामोश है? यदि सरकार को लगता है कि ये बलात्कार विपक्षी नेता जान बुझकर कर रहे हैं तो फिर ऐसे लोगों का पर्दाफाश क्यों नहीं कर रही है? यदि विपक्ष पर लगाए इल्जाम झूठे हैं तो फिर ऐसी ओछी हरकत क्यों की जा रही है?
    9 सितम्बर से लेकर 9 अक्तूबर तक एक दर्जन से अधिक बलात्कार के मामलों के बाद कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने हरियाणा का दौरा किया और जीन्द जिले के सच्चा खेड़ा गाँव में एक पीड़ित दलित परिवार को ढ़ांढ़स बंधाया और सांत्वना दी। इस दलित परिवार की एक नाबालिग युवती से 6 अक्तूबर को दो पड़ौसी युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। घटना से आहत युवती ने मिट्टी का तेल छिड़कर आग लगा ली। युवती 95 फीसदी झुलस गई। उसे आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया तो वहां डॉक्टरांे ने बीपीएल कार्ड व अन्य कागजातों के बिना ईलाज करने से मना कर दिया। घटना से बदहवाश परिवार को ये कागजात उपलब्ध करवाने में कथित तौरपर लगभग चालीस मिनट लग गए। इतनी देर बाद शुरू हुए इलाज को कोई फायदा नहीं हुआ और युवती दम तोड़ गई। इस घटनाक्रम से भी कई सुलगते सवाल खड़े होते हैं। क्या सचमुच हस्पताल के डॉक्टर इस हद तक संवेदनहीन हो चुके हैं कि वे कागजों के अभाव में तड़पते मरीज का इलाज करने से मुंह मोड़ लें? इस तरह का व्यवहार करने वाले हस्पताल प्रशासन पर जिला प्रशासन और सरकार द्वारा स्वयं संज्ञान लेकर उचित कार्यवाही क्यों नहीं की गई?
सच्चा खेड़ा बलात्कार प्रकरण पर हस्पताल प्रशासन ही नहीं कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी का सहानुभूति जताने गाँव में पहुंचना भी कई गंभीर सवाल पैदा करता है। आखिर, क्यों श्रीमती गांधी केवल सच्चा खेड़ा के दलित परिवार को ही ढ़ांढ़स बंधवाकर दिल्ली लौट गईं? क्या यह सिर्फ दलित समुदाय की सहानुभूति बटोरने के लिए ही ड्रामा रचा गया? वे बलात्कार का शिकार हुई अन्य बिरादरियों की युवतियों व उनके परिवारों को ढ़ांढ़स बंधवाने क्यों नहीं पहुंची? क्या उन्हें दलित और एक सामान्य बिरादरी की इज्जत में कोई अंतर नजर आता है? यदि नहीं तो फिर वे अन्य जगहों पर क्यों नहीं गईं? क्या उनके दिल में सच्चे अर्थों में बलात्कार पीड़िताओं और परिवारों के प्रति हमदर्दी थी? यदि हाँ तो फिर उन्होंने प्रदेश सरकार की खिंचाई करने की बजाय उसका बचाव यह कहते हुए क्यों किया कि बलात्कार की घटनाएं तो देशभर में हो रही हैं, यहां कोई नई घटना नहीं है? यदि उन्हें ऐसी घटनाएं सामान्य लगती हैं तो फिर वे सच्चा खेड़ा गाँव किस मकसद से पहुंची? उनके इस बयान का कितना गहरा विपरीत असर पड़ा, क्या इसका उन्हें तनिक भी अहसास है?
योगगुरू बाबा रामदेव द्वारा उठाए गए सवाल कि यदि उनकी स्वयं की बेटी के साथ बलात्कार हुआ होता तो क्या तब भी वे इसी प्रकार का बयान देंती, पर पूरी कांग्रेस सरकार क्यों तिलमिला गई? बाबा रामदेव ने ऐसा कहकर कौन सा गुनाह कर दिया? उन्होंने कड़वा सच ही तो कहा था? बाबा रामदेव के प्रत्युत्तर में कांग्रेस की वरिष्ठ केन्द्रीय महिला मंत्री का यह कहना कि वह इतना क्यों संवेदनशील हो रहे हैं? उनकीं कौन सी बेटी है? क्या इस तरह का प्रत्युत्तर किसी को शोभा देता है? लालू प्रसाद यादव ने भी बाबा रामदेव के इस सवाल के जवाब में अत्यन्त गैर-जिम्मेदाराना और आपत्तिजनक बयान दिया। क्या इन सब जनप्रतिनिधियों को आम आदमी की बहू-बेटी के प्रति कोई सम्मान नहीं है? क्या उनकी नजर में आम युवती व महिला की कोई इज्जत नहीं होती? क्या सिर्फ नेताओं की बहू-बेटियों के ही इज्जत लगी हुई है? सबसे बड़ी विडंबना का विषय है कि एक महिला राजनेनियां होकर भी संवेदना शून्य होकर बलात्कार मामलों में अनैतिक, असैमाजिक व गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियां की गईं। आखिर, एक महिला होकर भी वह दूसरी महिला के दर्द को क्यों नहीं महसूस कर पा रही हैं?
यह भी बेहद विडम्बना का विषय है कि इन बलात्कार की घटनाओं को सिर्फ जाति के नजरिए से देखा जा रहा है। दलित के नाम पर ही बलात्कारों को सुर्खियां मिलती हैं, ऐसा क्यों? अन्य बिरादरी में घटी बलात्कार की घटनाओं को भी बराबर महत्व क्यांे नहीं दिया जाता? दलित युवकों द्वारा किए गए बलात्कारों में जाति का उल्लेख क्यों नहीं होता है? क्या यह सब दलितों के वोट बैंक के लिए होता है? यदि हाँ तो निश्चित तौरपर इससे बढ़कर इंसानियत व लोकतंत्र के लिए शर्म का विषय नहीं हो सकता है। आखिर हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हर जाति-समुदाय की बहन-बेटी की इज्जत समान होती है और किसी भी बलात्कारी व दुष्कर्मी की कोई जाति नहीं होती है। मायावती ने महारैली के जरिये दलितों पर अत्याचार व बलात्कार के नजरिए से हरियाणा प्रदेश को अपराध प्रदेश की संज्ञा दी। क्या वे अपने पिछले कार्यकाल को भूल गईं, जब उनकीं नाक के नीचे भी दलित युवतियों व महिलाओं के साथ बलात्कार व हत्याओं का एक लंबा सिलसिला चला था और जवाब में उन्होंने एकदम गैर-जिम्मेदाराना बयान देते हुए कहा था कि उनसे अधिक तो दिल्ली में बलात्कार होते हैं। ऐसे में क्या उन्हें इस तरह की संज्ञा देना शोभा देता है?
बलात्कारों के इस शर्मनाक अंतहीन सिलसिले पर अंकुश लगाने के लिए हरियाणा की कुख्यात खाप पंचायतों ने सुझाव दिया कि लड़कियों की शादी 15 वर्ष की उम्र में कर देनी चाहिए। क्या इससे अधिक दिमागी दिवालिएपन की अन्य कोई मिसाल हो सकती है? क्या पाँच-छह वर्ष की मासूम बच्चियों  और शादीशुदा महिलाओं के साथ बलात्कार नहीं होते हैं? ऐसे में 15 साल की उम्र में लड़की की शादी करने से बलात्कारों पर कैसे अंकुश लगेगा? कमाल की बात है कि यही खाप वाले जब कोई परिपक्व और कानून के दायरे में रहकर आपसी सहमति से शादी कर लेते हैं तो उनके पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं और सामाजिक बहिष्कार व गाँव निकाला जैसी भयंकर सजाएं तक दे डालते हैं। लेकिन, वे बलात्कारियों को इस तरह की सजा सुनाने की स्वप्न में भी सोचते हैं। आखिर खापों का यह दोगलापन क्यो है? यदि खापें बलात्कार जैसा कुकर्म व दरिन्दगी भरा खेल खेलने वाले लोगों को गाँव, जिला व प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश छोड़ने का आदेश भी दें तो क्या किसी तरह का कोई सामाजिक विरोध होगा? बिल्कुल नहीं, उल्टे उनके इस फैसले का स्वागत होगा।
खापों के साथ-साथ विपक्षी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला द्वारा मामले को भुनाने और कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए विवेकहीनता का परिचय देते हुए खापों द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र घटाकर 15 वर्ष करने के सुझावों पर सहमति देना, वास्तव में राजनीतिक गिरावट का आखिरी पायदान कहा जाना चाहिए। खाप नेताओं को खुश करने और अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए एक धुरन्धर नेता द्वारा इस तरह की विवेकहीनता का परिचय देना, बेहद विडम्बना का विषय है। बलात्कार के मामलों में प्रदेश की कांग्रेस सरकार की निन्दा चरम है और दूसरी तरफ उसी के मंत्री गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर स्वयं विवादों को आमंत्रित कर रहे हैं और अपने दिमागी दिवालिएपन का ढ़िंढ़ोरा पीट रहे हैं। फूलचन्द मुलाना और श्रीमती गीता भुक्कल के बाद अब हिसार कांग्रेस के जिला प्रवक्ता धर्मबीर गोयत ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि 90 फीसदी बलात्कार आपसी सहमती से होते हैं। क्या इस तरह का बयान जले पर नमक छिड़कने के समान नहीं है? क्या इस तरह के नेताओं को बलात्कार की टीस का जरा भी अहसास है? इसके साथ ही राज्य महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा बलात्कार के मामलों में ढ़ूलमूल रवैया और सरकार को सख्त कार्यवाही करने की मांग करने जैसी औपचारिकता पूरी करने की प्रवृति भी बेहद अफसोसजनक है। ये महिला आयोग कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं और अपने आकाओं के इशारों पर ही हिलडुल रहे हैं, जोकि देशी की आधी आबादी के साथ सरासर धोखा और विश्वासघात है।
बलात्कार को किसी राजनीतिक अथवा जातिगत या फिर साम्प्रदायिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। इस मुद्दे को बेहद गंभीरता से एक चुनौती के रूप में लेने की आवश्यकता है। इस दरिन्दगी भरे खेल के खात्मे के लिए सार्थक बहस और विचार-मन्थन होना चाहिए। यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि बलात्कारियों को सबक सिखाने के लिए बेहद सख्त कानून बनाने और उसे अमल में लाने की कड़ी आवश्यकता है। इसके अलावा पुलिस द्वारा ऐसे संवेदनशील मामलों में सुस्ती बरते जाने की प्रवृति का तत्काल निराकरण करने की भी आवश्यकता है। इसके साथ ही हमंे ऐसी सामाजिक संरचना तैयार करनी होगी, जिसके तहत बलात्कारी अपने ही परिवार, मोहल्ले, गाँव, शहर, जाति व समुदाय से स्वतः ही बहिष्कृत हो जाए और उसके सलाखों के पीछे पहुंचने में कोई भी सहायक न बने। यदि इस तरह के उपाय यथाशीघ्र नहीं किए गए तो देश में लैंगिक असमानता बेकाबू हो जाएगी और हमारे लिए अभिशाप बन जाएगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)   

 हरियाणा में बलात्कार का सिलसिला

9 सितम्बर    : किसार के गाँव डाबड़ा में दलित युवती को 12 लोगों ने बनाया हवस का शिकार। पुलिस  द्वारा कार्यवाही ने करने पर दुःखी होकर पिता ने की खुदकुशी।
21 सितम्बर     : जीन्द के पिल्लूखेड़ा में परिजनों को बंधक बनाकर विवाहिता से बलात्कार किया और  एमएमएस भी बनाया।
26 सितम्बर    : गोहाना में दुकान पर सामान लेने गई ग्यारहवीं की छात्रा के साथ गोदाम में चार लोगों  द्वारा सामूहिक बलात्कार।
: पानीपत के चांदनी बाग में किशोरी से दुष्कर्म।
29 सितम्बर     : भिवानी के सांडवा में आठवीं की छात्रा को अगुवा करके बलात्कार किया।
2 अक्तूबर     : रोहतक के कच्चीगढ़ी मोहल्ले में 15 वर्षीय किशोरी को तीन युवकों ने अगवा करके सामूहिक दुष्कर्म किया।
        : नरवाना में मंदबुद्धि दलित महिला के साथ बलात्कार।
3 अक्तूबर     : रोहतक के शास्त्रीनगर कालोनी में 11 साल की बच्ची से पड़ौसी ने किया दुष्कर्म।
        : करनाल के घरौण्डा कस्बे के गाँव में शादी का झांसा देकर युवती से बलात्कार।:  गोहाना के बनवासा गाँव में एक विवाहिता के साथ खेतों में चार युवकों द्वारा सामूहिक  बलात्कार।
यमुनानगर के बिजौली गाँव में खेत से घर लौट रही 15 वर्षीय लड़की से दो युवकों द्वारा  बलात्कार।
5 अक्तूबर    : पानीपत में महिला के साथ दुष्कर्म।
6 अक्तूबर    : नरवाना के सच्चाखेड़ा में नाबालिग दलित युवती के साथ दो युवकों द्वारा सामूहिक  बलात्कार। पीड़िता ने मिट्टी का तेल डालकर लगाई आग। 95 फीसदी जली। अस्पताल  में दम तोड़ा।
7 अक्तूबर    : पानीपत में 13 वर्षीय किशोरी से दुष्कर्म।
9 अक्तूबर    : कैथल जिले की कलायत बस्ती से एक दलित लड़की का अपहरण करके दो लोगों ने  किया बलात्कार।
करनाल के बीजना गाँव में एक नाबालिग दलित लड़की को अगुवा करके दो युवकों ने  किया बलात्कार।    
फरीदाबाद में नौकरानी को मकान मालिक ने बनाया अपनी हवश का शिकार।
10 अक्तूबर    : करनाल में आठवीं कक्षा की छात्रा से सामूहिक बलात्कार।
        : साढ़ौरा में लिफ्ट के बहाने पड़ौसी द्वारा नाबालिग किशोरी से दुष्कर्म।
        : यमुनानगर में दो युवकों द्वारा घर में घुसकर नाबालिग युवती के साथ बलात्कार का
       मामला सामने आया।
    : हिसार जिले के गंगवा गाँव की 12 साल की किशोरी का अपहरण के बाद बलात्कार।
    : मंडी अटेली में एमएमएस से डराकर एक युवती के साथ बलात्कार।
    : अंबाला की एक विवाहिता ने पति के दोस्त पर अपहरण कर 21 माह तक बलात्कार का आरोप लगाया।
11 अक्तूबर    : भूना में एक विवाहिता से सास की मदद से पति व देवर द्वारा सामूहिक बलात्कार।
        : मूंदड़ा में एक विवाहिता से रिवाल्वर की नोक पर लगातार ग्यारह माह से चल रहे  बलात्कार का मामला उजागर।
बल्लभगढ़ में एक पुलिस के एक एएसआई द्वारा महिला से दुष्कर्म।
गुड़गाँव में छह वर्षीय बालिका से दो युवकों द्वारा सामूहिक बलात्कार।
रोहतक में दोस्ती के बहाने पाँच युवकों ने युवती से किया सामूहिक दुष्कर्म।
13 अक्तूबर    : यमुनानगर के गुंदियाना गाँव की महिला का तीन युवकों पर एक सप्ताह से बलात्कार का आरोप।
14 अक्तूबर    : फरीदाबाद में स्कूल की नाबालिग बच्ची से महीनों बलात्कार का मामला उजागर। पीड़िता के साथ उसकी  दो बहनों को भी स्कूल प्रबन्धन ने बाहर निकाला।
15 अक्तूबर    : जीन्द में सैनी रामलीला ग्राऊण्ड से दुष्कर्म के बाद फेंकी गई अपहृत 5 वर्षीया बच्ची घायलावस्था में मिली।

16 अक्तूबर    :  रोहतक के घड़ौठी गाँव में 4 बच्चों की माँ के साथ दो रिश्तेदारों ने किया सामूहिक बलात्कार।
  फरीदाबाद के गुरूकुल क्षेत्र में पिता द्वारा अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ सालों दुष्कर्म करने का मामला।

स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com, rkk100@rediffmail.com

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

‘सामाजिक सद्भावना-सम्मान समारोह’ आयोजित

‘सामाजिक सद्भावना-सम्मान समारोह’ की हुई जमकर सराहना


हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक द्वारा 7 अक्तूबर, 2012 को चौधरी छोटूराम धर्मशाला, रोहतक के केन्द्रीय हॉल में आयोजित किया गया। इस समारोह की अध्यक्षता सभा के सरपरस्त बलजीत सिंह मतौरिया ने की। समारोह के मुख्य अतिथि प्रधान देशराज कश्यप, कार्यकारी प्रधान सुन्दर सिंह कश्यप थे और विशिष्ट अतिथि चेयरमैन प्रेम सिंह एडवोकेट, डा. राम सिंह, अजमेर सिंह कश्यप, शिवचरण सिंह कश्यप आदि थे। समारोह का सफल संचालन जिला रोहतक के प्रधान राजेश कश्यप ने किया।



इस समारोह की मुख्य तीन गतिविधियां रखी गई थीं:
1.    ‘हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक’ की कार्यकारिणी के तीन वर्ष पूरे होने पर सभी सदस्यों और समाज के विकास में सहयोग करने वालों को सम्मानित किया गया।

2.    सभा के तीन वर्ष (वर्ष 2009-12) के दौरान ‘हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक’ के कार्यों की समीक्षा की गई।

3.    सामाजिक जागरूकता और नई कार्यकारिणी से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई।

‘‘शिक्षा, संगठन और संघर्ष समाज के विकास के मूल मंत्र हैं। इनके बिना समाज उन्नति नहीं कर सकता। हमंे इन मूल मंत्रों को अपनाना होगा। हरियाणा कश्यप समाज की रोहतक इकाई ने अपने तीन साल के दौरान बहुत अच्छा काम करके दिखाया है। जिला प्रधान राजेश कश्यप की सामाजिक सेवाओं और योग्यताओं को देखते हुए उन्हें प्रदेश स्तर पर किसी सम्मानित पद के लिए चुना जाना चाहिए। नई कार्यकारिणी के चुनाव के लिए प्रदेश स्तर पर बहुत जल्द एक मीटिंग बुलाई जाएगी, जिसमें आगामी चुनावों के बारे में रणनीति तय की जाएगी।’’
-श्री बलजीत सिंह मतौरिया, सरपरस्त, हरियाणा कश्यप राजपूत सभा।


‘‘समाज को अपने स्वाभिमान, मूल पहचान और अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को पहचानना चाहिए। इस समय प्रदेश में कश्यप समाज के मतदाताओं की संख्या सात लाख से अधिक है। यदि हम सब एकजूट होकर संघर्ष करंे तो हमारा समाज किसी भी मायने में पीछे नहीं रह सकता। जिला प्रधान राजेश कश्यप व उसकी टीम ने वास्तव में बहुत अच्छा काम करके दिखाया है। वह बधाई की पात्र है।’’
-श्री देशराज कश्यप, प्रदेशाध्यक्ष, हरियाणा कश्यप राजपूत सभा।


‘‘हम अपने हकों को हासिल करने के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं और भविष्य में भी डटकर संघर्ष किया जाएगा।’’
-श्री सुन्दर सिंह कश्यप, कार्यकारी प्रधान, हरियाणा कश्यप राजपूत सभा।


‘‘समाज को उदासीन होने की बजाए पूरे जोश के साथ आगे बढ़ने का आह्वान करते हुए उसे अपने लक्ष्य को निर्धारित करने और एकजूट होकर उसे हासिल करने की आवश्यकता है।’’
-एडवोकेट प्रेम सिंह, चेयरमैन, हरियाणा कश्यप राजपूत सभा।


‘‘समाज को गरीब बच्चों को शिक्षा का हक दिलाने के अभियान से जुड़ने के लिए आगे आना चाहिए।’’
-श्री सतबीर सिंह एडवोकेट, संयोजक, दो जमा पाँच मुद्दे।


‘‘हमने समाज विकास के लिए एक नई शुरूआत की है। समाज को संगठित करने और जागरूक करने का अभियान जारी रहेगा। हम सब समाज के विकास के लिए अथक कोशिश करते रहेंगे। जितना भी और जिस रूप में भी हुआ, हम हमेशा समाज की सेवा करते रहेंगे।’’
-राजेश कश्यप, प्रधान, हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक।


‘‘हमें शिक्षा पर जोर देना होगा। शिक्षा के बिना विकास संभव नहीं है। हमें लड़कों के साथ-साथ लड़कियों को भी बराबर शिक्षित करना होगा।’’
-डा. राम सिंह, प्रधान, हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, करनाल।


‘‘रोहतक के जिला प्रधान राजेश कश्यप का कार्य बेहद सराहनीय है। हमें इसी तरह मिलकर आगे बढ़ना चाहिए। एकता में ही सफलता है।’’
-श्री जयराम कश्यप, प्रधान, हरियाणा कश्यप राजपूत धर्मशाला, कुरूक्षेत्र।


‘‘सामाजिक सद्भावना सम्मान-समारोह के आयोजन के लिए मैं जिला प्रधान राजेश कश्यप को बधाई देता हूँ। हम सबको इसी तरह काम करना चाहिए।’’
-श्री अजमेर सिंह कश्यप, उपप्रधान, हरियाणा कश्यप राजपूत धर्मशाला, कुरूक्षेत्र।


‘‘राजेश कश्यप के नेतृत्व में कश्यप समाज ने जो विकास किया है, वह काबिले तारीफ है। उनकी समाज के प्रति निष्ठा, लगन और समर्पित भावना अत्यन्त सराहनीय है। हम सब कश्यप समाज के सहयोगी हैं और जब भी हमें कश्यप समाज याद करेगा, हम सबसे आगे हाजिर मिलेंगे।’’
-डा. गजानंद वर्मा, वरिष्ठ समाजसेवी, हरियाणा।


‘‘महर्षि कश्यप जी सृष्टि के सृजक थे। हम सब उनकीं ही संतानें हैं। महर्षि जी की जीवन व विचारधारा को जिला प्रधान राजेश कश्यप ने घर-घर तक पहुंचाने का बेहद सराहनीय कार्य किया है। हमें अपने पूर्वजों और ऋषि-मुनियों को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमें उनके दिखाए मार्ग पर चलना चाहिए।’’
-महाशय सूरजभान सांगी, वरिष्ठ समाजसेवी एवं प्रधान धानक समाज।


‘‘छत्तीस बिरादरी को साथ लेकर चलने और वरिष्ठ समाजसेवियों को सम्मानित करने के लिए हम जिला प्रधान राजेश कश्यप का आभार प्रकट करते हैं और इस अनूठी सोच के लिए उन्हें बधाई देते हैं। यदि इसी तरह सब बिरादरियों मिलकर चलें तो निश्चित तौरपर हर कदम पर सफलता हासिल हो सकती है। इस सामाजिक एकता एवं सौहार्द के लिए प्रधान राजेश कश्यप की जितनी भी तारीफ की जाए बेहद कम है।’’
-पं. तेजराम भारद्वाज, वरिष्ठ समाजसेवी एवं रोहतक जिला अध्यक्ष, भाजपा।


समारोह को संबोधित करने वाले अन्य प्रमुख समाजसेवीः

समारोह में जिला रोहतक के प्रधान राजेश कश्यप ने अपने तीन वर्षीय कार्यकाल का लेखाजोखा रखा और ‘एक नई शुरूआत’ नामक सामाजिक जागरूकता संदेश-पत्र भी जारी किया।

इस संदेश पत्र को पढ़ने के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक को क्लीक करें:


(नोट: यह संदेश-पत्र पुस्तक रूप में खुलेगा। आप संदेश पत्र के नीचे दाएं व बांए तिकोने निशान पर क्लिक करके एक के बाद एक सभी पेज देख सकते हैं और पढ़ सकते हैं।)


    इस अवसर पर रोहताश सिंह, महेन्द्र सिंह, करतार सिंह, डा. राम सिंह, अजमेर सिंह, जयराम, ईश्वर सिंह, अजय, मनोज, पवन, जगबीर, रामलाल, सत्यवान, करतार सिंह, मुकेश कश्यप, प्रवीण, विष्णु कश्यप, सुरेश, जयभगवान, कृष्ण चन्द्र, रामेश्वर, अन्नू, अमित, प्रेम, विकास रोहिल्ला मनोहर लाल चांदीवाल आदि गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थिति थे।

कैमरे की नजर में.....

मुख्य अतिथियों और विशिष्ट अतिथियों का फूल-मालाओं से सम्मान


































हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक के पदाधिकारियांे और समाजसेवियों का सम्मान


































(नोट: हम रोहतक के युवा समाजसेवी श्री विकास रोहिल्ला और श्री मनोज कश्यप के अत्यन्त आभारी हैं कि उन्होंने इस समारोह के फोटों खींचे और कश्यप समाज को उपलब्ध करवाए। उन्होंने यह सेवा निःशुल्क दी है। इसके लिए हम पुनः श्री विकास रोहिल्ला जी एवं श्री मनोज कश्यप जी का आभार व्यक्त करते हैं।)


मीडिया की नजर में....

इस समारोह से संबंधित लगभग सभी समाचार पत्रों ने अपना प्रकाशनीय सहयोग दिया है। इसके लिए हम पूरा कश्यप समाज उनका अत्यन्त आभारी है। हम ‘आज समाज’, ‘दैनिक हरिभूमि’ और ‘पंजाब केसरी’ के रोहतक जिला प्रभारियों का विशेष तौरपर आभार प्रकट करते हैं कि उन्होंने फोटो सहित इस समारोह का समाचार प्रकाशित किया। समाचारों की कटिंग्स अवलोकन के लिए प्रस्तुत हैं: