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शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

ये है अलौकिक ज्ञान गंगा !

ये है अलौकिक ज्ञान गंगा !
-राजेश कश्यप
             भक्ति-भजन की अपार महत्ता है। भक्ति-भजनों में मानव जीवन का सच्चा सार समाहित होता है। एक-एक भजन में अथाह ज्ञान का भण्डार पड़ा है। इन भजनों के सुनने मात्र से ही आत्मिक शांति का अनूठा अहसास होता है। यदि इन भजनों को नित्य एक बार तनिक गुनगुना लिया जाये तो जीवन की सार्थकता का असीम संचार होने लगता है। बड़े-बजुर्गों के पास बैठकर, उनके श्रीमुख से इन भक्ति-भजनों को सुनने का सौभाग्य पाकर देखिये, अनंत अलौकिक आनंद की वर्षा से सराबोर हो उठेंगे। मुझे ऐसा सौभाग्य कई बार मिला है। ऐसे अहसास को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ। नीचे 15 भक्ति-भजनों का संग्रह दे रहा हूँ। हर भजन की हर पंक्ति आपके रोम-रोम में समाने वाली है। ये भजन हरियाणा प्रदेश के सोनीपत जिले के गाँव गढ़ी उजाले खां (गोहाना) के बुजुर्ग भक्त सूबे सिंह के श्रीकंठ से निकले हैं। मुझे संयोगवश इन्हें रिकार्ड़ करने व संरक्षित रखने का सुअवसर मिला। ज्ञान का यह अनमोल खजाना आपके सुपुर्द कर रहा हूँ। इन्हें सुनने के बाद, अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत करवाना। यदि भजन अच्छे लगें तो आप भी अन्य मित्रों तक पहुंचाना। अब इन भक्ति-भजनों पर बारी-बारी से क्लिक कीजिये और अलौकिक ज्ञान गंगा में डूबकी लगाईये....!!!


1. बाहण मेरी भज ले न करतार, थारा हो ज्यागा उद्धार...!

2. तेरी लीला अजब महान, कुछ भेद नहीें चलता...!

3. मनैं राम भजन मन भावै ऐ सखी, सत्संग की महिमा न्यारी...!

4. तेरा कोई न बणैगा बन्दे प्यारे, जब मारै काल आकै ललकारे...!

5. मेरा-मेरी करते-करते सारा जन्म गंवाएं क्यूं, मिट्टी में मिलाए क्यूं...!

6. दो घड़ी तूं बैठ कै बन्दे राम-नाम गुण गा..!

7. छोड़ जायेगा बन्दे एक दिन, काल का देश बेगाना...!

8. बुरी आदतें सब छूट जाती हैं, जो चलकै संगत में आता है...!

9. दुःख दूर कर हमारा, संसार के रचैया...!

10. चालो देण बधाई हे, हे नेकी घर जन्मा लाल सै...!

11. वेद सन्तों ने सारा बताये दिया, जो समझ में न आए तो मैं क्या करूं..!

12. जन्म ना कर बदनाम, बुरे काम से मन को हटा ले...!

13. सदा नाम ध्याणा रे प्यारे...!

14. ओ भाई, तेरे अन्दर खजाने भरे, क्यूं ना उसकी तलाश करे...!

15. नहीं मालूम है एक दिन, मेरी अर्थी रवां होगी...!

प्रस्तुति : राजेश कश्यप, रोहतक (हरियाणा)




निषाद समाज की उत्तर प्रदेश सरकार से ये पाँच प्रमुख माँगे

        
गोरखपुर में धरनारत निषाद समाज 

            आदरणीय मित्रो! गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में ‘राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद’ के बैनर तले लगभग एक महीने से निम्नलिखित पाँच प्रमुख माँगों को लेकर अनवरत धरना-प्रदर्शन चल रहा है, जिसमें शामिल होने का मुझे भी मौका मिला। 


गोरखपुर में धरनारत निषाद समाज के साथ राजेश कशयप 

निषाद समाज की उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार से ये पाँच प्रमुख माँगे हैं:-
1. निषाद मछुआ समुदाय की मझवार जाति की सभी पर्यायवाची (केवट मल्लाह माझी आदि को) अनुसूचित जाति-प्रमाण पत्र अथवा रेणुके आयोग की रिपोर्ट के अनुसार क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट से प्रभावित जातियों को 7.5 प्रतिशत का विमुक्ति जनजाति एस.टी. का आरक्षण दिया है, जिसे महाराष्ट्र, आन्ध्रा प्रदेश, कर्नाटक व उड़ीसा सरकार ने लागू कर दिया। वही केन्द्र एवं उत्तर प्रदेश में लागू होना चाहिए।2. अखिलेश निषाद को अमर शहीद का दर्जा व उसके आश्रितों को आर्थिक सहायता दी जाये।3. कसरवल के आन्दोलकारियों के ऊपर लगे मुकद्दमें को वापस लेकर बिना शर्त जेल से रिहा किया जाये।4. पुलिस प्रशासन द्वारा जलाई गई आन्दोलनकारियों के वाहनों की क्षतिपूर्ति अविलम्ब दिया जाये।5. कसरवल गोरखपुर गोलीकाण्ड में अखिलेश निषाद की हत्या की सीबीआई जांच कराकर दोषी अधिकारियों को दण्डित किया जाये।
        इन पाँच माँगों को मनवाने के लिए निषाद समाज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन भेजा है। ज्ञापन की प्रति निम्नलिखित है :




-राजेश कश्यप, रोहतक (हरियाणा)

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

जानिए क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद की कुर्बानी को !

23 जुलाई /108वीं जयन्ति पर विशेष
क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद

जानिए क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद की कुर्बानी को !
- राजेश कश्यप
       आज हम जिस गौरव और स्वाभिमान के साथ आजादी का आनंद ले रहे हैं, वह देश के असंख्य जाने-अनजाने महान देशभक्तों के त्याग, बलिदान, शौर्य और शहादतों का प्रतिफल है। काफी देशभक्त तो ऐसे थे, जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही देश के लिए अतुलनीय त्याग और बलिदान देकर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में में अंकित करवाया। इन्हीं महान देशभक्तों में से एक थे चन्द्रशेखर आजाद। उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के बदरका नामक गाँव में ईमानदार और स्वाभिमानी प्रवृति के पंडित सीताराम तिवारी के घर श्रीमती जगरानी देवी की कोख से हुआ। चाँद के समान गोल और कांतिवान चेहरे को देखकर ही इस नन्हें बालक का नाम चन्द्रशेखर रखा गया। पिता पंडित सीताराम पहले तो अलीरापुर रियासत में नौकरी करते रहे, लेकिन बाद में भावरा नामक गाँव में बस गए। इसी गाँव में चन्द्रशेखर आजाद का बचपन बीता। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बचपन बीतने के कारण वे तीरन्दाजी व निशानेबाजी में अव्वल हो गए थे।
          चन्द्रशेखर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उच्च शिक्षा के लिए वे काशी जाना चाहते थे। लेकिन, इकलौती संतान होने के कारण माता-पिता ने उन्हें काशी जाने से साफ मना कर दिया। धुन के पक्के चन्द्रशेखर ने चुपचाप काशी की राह पकड़ ली और वहां जाकर अपने माता-पिता को कुशलता एवं उसकी चिन्ता न करने की सलाह भरा पत्र लिख दिया। उन दिनों काशी में कुछ धर्मात्मा पुरूषों द्वारा गरीब विद्यार्थियों के ठहरने, खाने-पीने एवं उनकी पढ़ाई का खर्च का बंदोबस्त किया गया था। चन्द्रशेखर को इन धर्मात्मा लोगों का आश्रय मिल गया और उन्होंने संस्कृत भाषा का अध्ययन मन लगाकर करना शुरू कर दिया।
         सन् 1921 में देश में गांधी जी का राष्ट्रव्यापी असहयोग आन्दोलन चल रहा था तो स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने एवं विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने का दृढ़ सकल्प देशभर में लिया गया। अंग्रेजी सरकार द्वारा आन्दोलकारियों पर बड़े-बड़े अत्याचार किए जाने लगे। ब्रिटिश सरकार के जुल्मों से त्रस्त जनता में राष्ट्रीयता का रंग चढ़ गया और जन-जन स्वाराज्य की पुकार करने लगा। विद्याार्थियों में भी राष्ट्रीयता की भावना का समावेश हुआ। पन्द्रह वर्षीय चन्द्रशेखर भी राष्ट्रीयता व स्वराज की भावना से अछूते न रह सके। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई के दौरान पहली बार राष्ट्रव्यापी आन्दोलनकारी जत्थों में भाग लिया। इसके लिए उन्हें 15 बैंतों की सजा दी गई। हर बैंत पडने पर उसने श्भारत माता की जय्य और के नारे लगाए। उस समय वे मात्र पन्द्रह वर्ष के थे। सन् 1922 में गाँधी जी द्वारा चौरा-चौरी की घटना के बाद एकाएक असहयोग आन्दोलन वापिस लेने पर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर वैचारिक तौरपर उग्र हो उठे और उन्होंने क्रांतिकारी राह चुनने का फैसला कर लिया। उसने सन् 1924 में पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी आदि क्रांतिकारियों द्वारा गठित श्हिन्दुस्तान रिपब्लिकल एसोसिएशन्य (हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ) की सदस्यता ले ली।यह सभी क्रांतिकारी भूखे-प्यासे रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में दिनरात लगे रहते।
         इसी दौरान क्रांतिकारियों ने बनारस के मोहल्ले में 'कल्याण आश्रम' नामक मकान में अपना अड्डा स्थापित कर लिया। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को धोखा देने के लिए आश्रम के बाहरी हिस्से में तबला, हारमोनियम, सारंगी आदि वाद्ययंत्र लटका दिए। एक दिन रामकृष्ण खत्री नामक साधू ने बताया कि गाजीपुर में एक महन्त हैं और वे मरणासन्न हैं। उसकी बहुत बड़ी गद्दी है और उसके पास भारी संख्या में धन है। उसे किसी ऐसे योग्य शिष्य की आवश्यकता है, जो उसके पीछे गद्दी को संभाल सके। यदि तुममें से ऐसे शिष्य की भूमिका निभा दे तो तुम्हारी आर्थिक समस्या हल हो सकती है। काफी विचार-विमर्श के बाद इस काम के लिए चन्द्रशेखर आजाद को चुना गया। चन्द्रशेखर न चाहते हुए भी महन्त के शिष्य बनने के लिए गाजीपुर रवाना हो गए। चन्द्रशेखर के ओजस्वी विचारों एवं उसके तेज ने महन्त को प्रभाव में ले लिया और उन्हें अपना शिष्य बना लिया। चन्द्रशेखर मन लगाकर महन्त की सेवा करने और महन्त के स्वर्गवास की बाट जोहने लगे। लेकिन, जल्द ही आजाद किस्म की प्रवृति के चन्द्रशेखर जल्दी ही कुढ़ गए। क्योंकि उनकी सेवा से मरणासन्न महन्त पुनरू हृष्ट-पुष्ट होते चले गए। चन्द्रशेखर ने किसी तरह दो महीने काटे। उसके बाद उन्होंने अपने क्रांतिकारी साथियों को पत्र लिखकर यहां से मुक्त करवाने के लिए आग्रह किया। लेकिन, मित्रों ने उनके आग्रह को ठुकरा दिया। चन्द्रशेखर ने मन मसोसकर कुछ समय और महन्त की सेवा की और फिर धन पाने की लालसाओं और संभावनाओं पर पूर्ण विराम लगाकर एक दिन वहां से खिसक लिए।
          इसके बाद उन्होंने पुन: अंग्रेजी सरकार के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी। उन्होंने एक शीर्ष संगठनकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। वे अपने क्रांतिकारी दल की नीतियों एवं उद्देश्यों का प्रचार-प्रसार के लिए पर्चे-पम्फलेट छपवाते और लोगों में बंटवाते। इसके साथ ही उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं की मदद से सार्वजनिक स्थानों पर भी अपने पर्चे व पम्पलेट चस्पा कर दिए। इससे अंग्रेजी सरकार बौखला उठी। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर श्हिन्दुस्तान रिपब्लिकल एसोसिएशन्य के बैनर तले राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त, 1925 को काकोरी के रेलवे स्टेशन पर कलकत्ता मेल के सरकारी खजाने को लूट लिया। यह लूट अंग्रेजी सरकार को सीधे और खुली चुनौती थी। परिणामस्वरूप सरकार उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गई। गुप्तचर विभाग क्रांतिकारियों को पकड़े के लिए सक्रिय हो उठा और 25 अगस्त तक लगभग सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। लेकिन, चन्द्रशेखर आजाद हाथ नहीं आए। गिरफ्तार क्रांतिकारियों पर औपचारिक मुकदमें चले। 17 दिसम्बर, 1927 को राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और दो दिन बाद 19 दिसम्बर को पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, अफशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह आदि शीर्ष क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया। इसके बाद सन् 1928 में चन्द्रशेखर ने 'एसोसिएश' के मुख्य सेनापति की बागडोर संभाली।
           चन्द्रशेखर आजाद अपने स्वभाव के अनुसार अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को बखूबी अंजाम देते रहे। वे अंग्रेजी सरकार के लिए बहुत बड़ी चिन्ता और चुनती बन चुके थे। अंग्रेजी सरकार किसी भी कीमत पर चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लेना चाहती थी। इसके लिए पुलिस ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। पुलिस के अत्यन्त आक्रमक रूख को देखते हुए और उसका ध्यान बंटाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद झांसी के पास बुन्देलखण्ड के जंगलों में आकर रहने लगे और दिनरात निशानेबाजी का अभ्यास करने लगे। जब उनका जी भर गया तो वे पास के टिमरपुरा गाँव में ब्रह्मचारी का वेश बनाकर रहने लगे। गाँव के जमींदार को अपने प्रभाव में लेकर उन्होंने अपने साथियों को भी वहीं बुलवा लिया। भनक लगते ही पुलिस गाँव में आई तो उन्होंने अपने साथियों को तो कहीं और भेज दिया और स्वयं पुलिस को चकमा देते हुए मुम्बई पहुंच गए। वे मुम्बई आकर क्रांतिकारियों के शीर्ष नेता दामोदर वीर सावरकर से मिले और साला हाल कह सुनाया। सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण से चन्द्रशेखर को प्रभावित कर दिया। यहीं पर उनकी मुलाकात सरदार भगत सिंह से हुई। कुछ समय बाद वे कानपुर में क्रांतिकारियों के प्रसिद्ध नेता गणेश शंकर विद्यार्थी के यहां पहुंचे। विद्यार्थी जी ने उन तीनों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। यहां पर भी पुलिस ने उन्हें घेरने की भरसक कोशिश की। इसके चलते चन्द्रशेखर यहां से भेष बदलकर पुलिस को चकमा देते हुए दिल्ली जा पहुंचे।
          दिल्ली पहुंचने के बाद वे मथुरा रोड़ पर स्थित पुराने किले के खण्डहरों में आयोजित युवा क्रांतिकारियों की सभा में शामिल हुए। अंग्रेज सरकार ने चन्द्रशेखर को गिरफ्तार करने के लिए विशेष तौरपर एक खुंखार व कट्टर पुलिस अधिकारी तसद्दुक हुसैन को नियुक्त कर रखा था। वह चन्द्रशेखर की तलाश में दिनरात मारा-मारा फिरता रहता था। जब उसे इस सभा में चन्द्रशेखर के शामिल होने की भनक लगी तो उसने अपना अभेद्य जाल बिछा दिया। वेश बदलने की कला में सिद्धहस्त हो चुके चन्द्रशेखर यहां भी वेश बदलकर पुलिस को चकमा देते हुए दिल्ली से कानपुर पहुंच गए। यहां पर उन्होंने भगत सिंह व राजगुरू के साथ मिलकर अंग्रेज अधिकारियों के वेश में अंग्रेजों के पिठ्ठू सेठ दलसुख राय से 25000 रूपये ऐंठे और चलते बने।
        जब 3 फरवरी, 1928 को भारतीय हितों पर कुठाराघात करके इंग्लैण्ड सरकार ने साईमन की अध्यक्षता में एक कमीशन भेजा। साईमन कमीशन यह तय करने के लिए आया था कि भारतवासियों को किस प्रकार का स्वराज्य मिलना चाहिए। इस दल में किसी भी भारतीय के न होने के कारण 'साईमन कमीशन' का लाला लाजपतराय के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी कड़ा विरोध किया गया। अंग्रेजी सरकार ने लाला जी सहित सभी आन्दोलनकारियों पर ताबड़तोड़ पुलिसिया कहर बरपा दिया और पुलिस की लाठियों का शिकार होकर लाला जी देश के लिए शहीद हो गए। बाद में चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह व राजगुरू आदि क्रांतिकारियों ने लाला जी की मौत का उत्तरदायी साण्डर्स माना और उन्होंने उसको 17 दिसम्बर, 1928 को मौत के घाट उतारकर लाल जी की मौत का प्रतिशोध पूरा किया।
        सांडर्स की हत्या के बाद अंग्रेजी सरकार में जबरदस्त खलबली मच गई। कदम-कदम पर पुलिस का अभेद्य जाल बिछा दिया गया। इसके बावजूद चन्द्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ पंजाब से साहब, मेम व कुली का वेश बनाकर आसानी से निकल गए। इसके बाद इन क्रांतिकारियों ने गुंगी बहरी सरकार को जगाने के लिए असैम्बली में बम फेंकने के लिए योजना बनाई और इसके लिए काफी बहस और विचार-विमर्श के बाद सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना गया। 8 अपै्रल, 1929 को असैम्बली में बम धमाके के बाद इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमें की औपचारिकता पूरी करते हुए 23 मार्च, 1931 को सरदार भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को बम काण्ड के मुख्य अपराधी करार देकर, उन्हें फांसी की सजा दे दी गई।
        इस दौरान चन्द्रशेखर आजाद ने अपने क्रांतिकारी दल का बखूबी संचालन किया। आर्थिक समस्याओं के हल के लिए भी काफी गंभीर प्रयास किए। पैसे की बचत पर भी खूब जोर दिया। इन्हीं सब प्रयासों के चलते दल की तरफ से सेठ के पास आठ हजार रूपये जमा हो चुके थे। चन्द्रशेखर ने सेठ को आगामी गतिविधियों के लिए यही पैसा लाने कि लिए इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में बुलाया। इसी बीच चन्द्रशेखर के दल के सदस्य वीरभद्र तिवारी को अंग्रेज सरकार ने चन्द्रशेखर को पकड़वाने के लिए दस हजार रूपये और कई तरह के अन्य प्रलोभन देकर खरीद लिया। जब 27 फरवरी, 1931 को चन्द्रशेखर सेठ से पैसे लेने के लिए निर्धारित स्थान अलफ्रेड पार्क में पहुंचे तो विश्वासघाती वीरभद्र तिवारी की बदौलत पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया। उस समय चन्द्रशेखर अपने मित्र सुखदेव राज से आगामी गतिविधियों के बारे में योजना बना रहे थे। चन्द्रशेखर ने सुखदेव राज को पुलिस की गोलियों से बचाकर वहां से भगा दिया। उसने अकेले मोर्चा संभाला और पुलिस का डटकर मुकाबला किया।
        एक तरफ अकेला शूरवीर चन्द्रशेखर आजाद था और दूसरी तरफ पुलिस कप्तान बाबर के नेतृत्व में 80 अत्याधुनिक हथियारों से लैस पुलिसकर्मी। फिर भी काफी समय तक अकेले चन्द्रशेखर ने पुलिस के छक्के छुड़ाए रखे। अंत में चन्द्रशेखर के कारतूस समाप्त हो गए। सदैव आजाद रहने की प्रवृति के चलते उन्होंने निश्चय किया कि वो पुलिस के हाथ नहीं आएगा और आजाद ही रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने बचाकर रखे अपने आखिरी कारतूस को स्वयं ही अपनी कनपटी के पार कर दिया और भारत माँ के लिए कुर्बान होने वाले शहीदों की सूची में स्वर्णिम अक्षरों में अपना नाम अंकित कर दिया।


        इस तरह से 25 साल का यह बांका नौवान भारत माँ की आजादी की बलिवेदी पर शहीद हो गया। यह देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा। भारत माँ के इस वीर सपूत और क्रांतिकारियों के सरताज को कोटि-कोटि नमन है।

बड़े काम की हैं ये वेबसाइटें!

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बुधवार, 22 जुलाई 2015

जाट आरक्षण : हो गया दूध का दूध और पानी का पानी


सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ

-राजेश कश्यप

        देश के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने गत 21 जुलाई को केन्द्र सरकार की जाट आरक्षण के मामले में दायर की गई पुर्नविचार याचिका खारिज करते हुए, पुन: स्पष्ट किया है कि जाट सम्पन्न हैं और वे आरक्षण के हकदार नहीं हैं। हम सरकार से सहमत नहीं हो सकते कि 9 राज्यों में जाट सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 17 मार्च, 2015 को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में नौ राज्यों गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश के जाटों को पिछली कांगे्रस सरकार द्वारा दिया गया ओबीसी आरक्षण रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जाट जैसी राजनीतिक रूप से संगठित जातियों को ओबीसी की सूची में शामिल करना अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सही नहीं है। न्यायालय ने पाया था कि केन्द्र ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के पैनल के उस निष्कर्ष को उपेक्षित किया है, जिसमें  कहा गया था कि जाट पिछड़ी जाति नहीं हैं। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अतीत में ओबीसी सूची में किसी जाति को संभावित तौरपर गलत रूप से शामिल किया जाना, गलत रूप से दूसरी जातियों को शामिल करने का आधार नहीं हो सकता है। हालांकि जाति एक प्रमख कारक है, लेकिन पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए यह एकमात्र विकल्प नहीं हो सकती है। यह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से होना चाहिए।         सुप्रीम कोर्ट का यह अटल फैसला जहां देश के गरीब पिछड़े लोगों के लिए न्यायिक प्रणाली में आस्था बढ़ाने वाला है, वहीं उन संकीर्ण सियासतदारों के लिए कड़ा सबक हैं, जो अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए गरीबों के हकों पर डाका डालने से भी गुरेज नहीं करते। गत घपलों, घोटालों और भ्रष्टाचार की दलदल में फंसी यूपीए सरकार अपनी नैया पार लगाने के लिए अनैतिक एवं असंवैधानिक रूप से ‘कास्टिज्म कार्ड’ खेलने से भी बाज नहीं आई और सभी कायदे-कानूनों को धत्ता बताते हुए 4 मार्च, 2014 को  देश के नौ राज्यों के अलावा केन्द्रीय सूची में जाटों को ओबीसी में शामिल करने के लिए हरी झण्डी दे दी। कमाल की बात यह रही कि सरकार ने यह अध्यादेश राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग के सर्वेक्षण के आंकड़े आने से पहले ही इतना बड़ा निर्णय ले लिया। यही नहीं, सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की असहमति की भी कोई परवाह नहीं की और उसके सर्वसम्मत फैसले को ठुकराकर जाटों को आरक्षण दिया गया।         एनसीबीसी ने केन्द्र सरकार को 125 पेज की रिपोर्ट सौंपकर जाटों को आरक्षण देने पर ऐतराज जताया था। एनसीबीसी ने 4-0 से जाट आरक्षण के खिलाफ फैसला देते हुए तर्क दिया था कि जाट न तो सामाजिक या आर्थिक या अन्य किसी लिहाज से पिछड़े हुए हैं। हालांकि कुछ राज्यों ने जाटों को आरक्षण दिया है, लेकिन केन्द्र सरकार के स्तर पर उन्हें यह सुविधा देना गलत होगा। आयोग के चेयरमैन न्यायमूर्ति वी. ईश्वरैय्या और तीन अन्य सदस्यों एस.के. खरवेतन, ए.के.सीकरी और अशोक मंगोत्रा को जाट आरक्षण का कोई भी औचित्य नजर नहीं आया। एनसीबीसी ने विभिन्न अध्ययनों के बाद ही जाट आरक्षण के खिलाफ 4-0 से फैसला दिया था। इसके बावजूद केन्द्रीय मंत्रीमण्डल ने आयोग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए आरक्षण दे डाला। वर्ष 1993 में गठित एनसीबीसी के विधान के मुताबिक केन्द्र सरकार की किसी भी सिफारिश को आयोग मानने के लिए बाध्य नहीं होगा और आयोग की सिफारिश को केन्द्र सरकार नकार नहीं सकेगी। लेकिन, जाट आरक्षण के मामले में विधान के ठीक उलट हुआ।         हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा सरकार ने बड़ी चालाकी से अपना पैंतरे खेला और आनन-फानन में जाटों को ‘विशेष पिछड़ा वर्ग’ के रूप में शामिल कर दस प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने की घोषणा कर दी। चूंकि, केन्द्र की ओबीसी सूची में शामिल की जाने वाली प्रस्तावित जाति को राज्य की ओबीसी सूची में नामित होना अनिवार्य बनाया गया है। इसीलिए, केन्द्र में जाटों के लिए आरक्षण सुनिश्चित करवाने के लिए ही यह सब छल किया गया। लेकिन, उनका छल-प्रपंच सबके सामने आ चुका है। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने भी प्रदेश में जाटों को असंवैधानिक रूप से दिये गए आरक्षण पर तीखे तेवर अपना लिये हैं और इस सन्दर्भ में प्रदेश सरकार से जवाब भी तलब कर लिया है।         दूसरी तरफ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों के एकेमेव नेता दिवंगत प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह को अपने वोट बैंक सेंध लगती देख जाट आरक्षण के मुद्दे को अपनी राजनीतिक ढ़ाल बनाने से गुरेज नहीं किया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999-2000 में उत्तर प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता ने जाटों को ओबीसी कोटे में शामिल करने की कोशिश की थी। लेकिन, उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग ने दो टूक कह दिया था कि जाट आर्थिक और सामाजिक रूप से सम्पन्न हैं। इसलिए उन्हें आरक्षण देने की जरूरत नहीं है। इसी तरह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग भी मौजूदा आंकड़ों के आधार पर जाटों को वर्ष 1997 में हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जाटों को ओबीसी में शामिल करने की मांग खारिज कर दी थी। इससे पहले भी वर्ष 1953 में काका कालेरकर और वर्ष 1978 में गठित मण्डल कमीशन आयोग ने भी जाटों को ओबीसी में शामिल करने योग्य नहीं समझा था।        सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केन्द्र की पुनर्विचार याचिका खारिज किये जाने के बावजूद जाट आरक्षण की संकीर्ण सियासत पर अंकुश लगता दिखाई नहीं दे रहा है। जाट नेता सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार पर ठोस पैरवी न करने का आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि वे अब कोर्ट की बजाय सरकार से आरक्षण लेंगे। केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए  सितम्बर के अंतिम सप्ताह में दिल्ली कूच करने और दिल्ली की दूध-पानी व राशन सामग्री की सप्लाई को काटने के साथ-साथ रेल रोकने व पटरियां तक उखाड़ने की भी धमकियां दी जा रही हैं। क्या यह सब सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना नहीं है? क्या यह असंवैधानिकता नहीं है? क्या यह दबंगई नहीं है? दूसरी तरफ, अपनी ही पार्टी की नाराजगी झेलकर ओबीसी लोगों के पैरोकार बने हरियाणा के भाजपा सांसद राजकुमार सैनी ने जहां सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का दिल खोलकर स्वागत किया है, वहीं जाटों को जाटों को मनमानी व दबंगई करने से बाज आने व देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले का सम्मान करने की नसीहत भी दी है। इसके साथ ही उन्होंने ऐलान किया है कि यदि जाटों ने दिल्ली का दूध-पानी की सप्लाई बंद करने की कोशिश की तो नवगठित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग ब्रिगेड सप्लाई बहाल करने में ऐड़ी चोटी का जोर लगा देगा, लेकिन उनकीं धमकियों के आगे केन्द्र सरकार को घुटने नहीं टेकने दिया जायेगा। दोनों पक्षों के बीच तनातनी चरम पर पहुंच चुकी है। दोनों तरफ से अपने हक पर मर मिट जाने तक के ऐलान किये जा रहे हैं।         इन सब समीकरणों के बीच, लॉ एण्ड ऑर्डर टूटने की स्थिति पैदा होने से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही जाट आरक्षण की संकीर्ण सियासत के चलते सामाजिक सौहार्द भी बिगड़ने का डर है। ऐसे में, फैसले से प्रभावित नौ राज्यों की सरकारों को व केन्द्र सरकार को समय रहते ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, जाट बिरादरी के नेताओं के साथ-साथ पिछड़ा वर्ग के लोगों को भी संयम व समझदारी से काम लेना होगा और आपसी सौहार्द व भातृभाव बनाये रखने में अपना अहम योगदान देना सुश्चित करना होगा। हमें यह कदापि नहीं भूलना होगा कि कानून सबके लिए बराबर है और उसका सम्मान करना सभी का परमदायित्व बनता है। ब्लैकमेंलिंग अथवा दबंगई करके न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करना अथवा उस पर लांछन लगाना या फिर जनप्रतिनिधि सरकारों को अनावश्यक दबाव में लाना या लॉ एण्ड ऑर्डर के लिए खतरा पैदा करना, एकदम असंवैधानिक व निंदनीय कृत्य है।

 (राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।

स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com

(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष के सिर सजा कांटों भरा ताज!

चर्चित व्यक्तित्व / स्वाति मालीवाल


स्वाति मालीवाल

निष्ठा, नीयत और नीति की परीक्षा होनी तय!

-राजेश कश्यप

       राजनीतिक आरोपों, आलोचनाओं, सवालों और सुखियों के बीच अंतत: 'आप' पार्टी एवं 'इंडिया अंगेस्ट करप्शन' सामाजिक संस्था की सक्रिय कार्यकर्ता स्वाति मालीवाल ने गत 20 जुलाई को दिल्ली महिला आयोग का अध्यक्ष पद संभाल लिया। 17 जुलाई को बरखा सिंह का कार्यकाल पूरा होने के बाद नई अध्यक्ष के रूप में स्वाति का आयोग की अध्यक्ष बनना लगभग तय हो चुका था। जैसे ही दिल्ली की केजरीवाल सरकार की तरफ से स्वाति को आयोग की अध्यक्ष बनाने के संकेत मिले, राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। विपक्षी दलों ने स्वाति के बहाने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर एक तीर से कई निशाने साधते हुए उनपर राजनीतिक नियुक्ति व परिवारवाद जैसे अनेक गम्भीर आरोप लगाये। स्वाति को अरविन्द केजरीवाल का रिश्तेदार (मौसेरी बहन) बताया गया, जिसे स्वाति एवं अरविन्द ने सिरे से नकार दिया। लेकिन, इसके बावजूद आरोपों का सिलसिला नहीं रूका तो केजरीवाल ने तंज कसते हुये कहना पड़ा कि 'वो मेरे चाचा की साली की जीजा की भतीजे की साली के भाई की बेटी है।' इसके साथ ही, यह भी आरोप लगाये गये कि स्वाति हरियाणा प्रदेश से आप पार्टी के नेता नवीन जयहिन्द की पत्नी हैं। स्वाति को दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बनाना नवीन की मेहनत का इनाम बताया गया। नि:वर्तमान अध्यक्ष बरखा ने आरोप लगाया कि स्वाति दिल्ली के सीएम की बहन हैं, इसीलिए उन्हें यह पद दिया गया। 'आप' पार्टी के पूर्व नेता प्रशांत भूषण ने भी इस नियुक्ति का पुरजोर विरोध दर्ज कराया। लेकिन, केजरीवाल सरकार अपने निर्णय से टस से मस तक नहीं हुई और स्वाति मालीवाल ही दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष बना दी गईं। 
      कहने की आवश्यकता नहीं कि स्वाति मालीवाल समाजसेवा के क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत हैं। 'इंडिया अंगेस्ट करप्सन' संस्था की कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने महत्ती भूमिका निभाई है और अण्णा हजारे आन्दोलन में भी वे अपने पति नवीन जयहिन्द के साथ बेहद सक्रिय रहीं। स्वाति के जज्बे व जुनून को देखते हुए ही अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें पहले अपनी सलाहकार (शिकायत निवारण) बनाया और उसके कुछ समय ही बाद उन्हें दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठाया। माना जा रहा है कि स्वाति आगे चलकर हरियाणा की राजनीति में आप पार्टी का सितारा बुलन्द कर सकती हैं। खैर! जो भी हो, यह सब अनुमान तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, वर्तमान में स्वाति के लिए महिला आयोग अध्यक्ष का ताज कांटों भरा दिखाई पड़ रहा है। कदम-कदम पर उनकीं निष्ठा, नीयत और नीति की परीक्षा होनी तय है। इस समय महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों पर अंकुश लगाने के साथ-साथ अपने लोगों पर लगे गम्भीर आरोपों से पार पाना, निश्चित तौरपर स्वाति के लिए टेढ़ी खीर साबित होता दिखाई दे रहा है। 
      स्वाति मालीवान ने पद संभालते ही मीडिया के माध्यम से दावों की बजाये इरादों को जाहिर किया है और कुछ रचनात्मक कदमों का जिक्र भी किया है, जोकि एकदम सराहनीय है। उन्होंने प्रधानमंत्री, सभी मुख्यमंत्रियों, लोकसभा, राज्यसभा व विधानसभा के अध्यक्षों के साथ-साथ नेता विपक्ष पत्र लिखकर ऐसे नियम बनाने की अपील करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत संसद व विधानसभा के हर सत्र में एक दिन सिर्फ महिला सुरक्षा और उनके मुद्दों पर केन्द्रित हो। स्वाति ने अपनी कई प्राथमिताएं भी गिनाई हैं, जिनमें वेश्यावृति से लेकर घरेलू हिंसा तक, तिहाड़ जेल में बंद महिलाओं से लेकर सडक़ पर सोने को मजबूर महिलाओं तक और सातों दिन चौबीस घंटे महिला हेल्प लाईन शुरू करने से लेकर महिलाओं की वालंटियर एक्शन बिगे्रड बनाने तक शामिल हैं। इसके साथ ही उन्होंने पीडि़ताओं से सीधे मुलाकात करने, महिलाओं के हकों की लड़ाई लडऩे के लिए धरने-प्रदर्शन करने और पीडि़ताओं को न्याय दिलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने जैसे कई नेक इरादे जाहिर किए हैं। उन्होंने कुमार विश्वास व सोमनाथ भारती आदि 'आप' पार्टी के बड़े नेताओं के मामलों के सन्दर्भ में स्पष्ट ऐलान किया है कि वे यहां किसी की पैरवी करने नहीं, बल्कि हर महिला को न्याय दिलाने आई हैं। स्वाति ने महिला आयोग को राजनीति का अखाड़ा न बनने देने के संकल्प से भी अवगत करवाया है। 
      प्रथम दृष्टया, दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष स्वाति मालीवाल का हर दावा, संकल्प और जज्बा स्वागत योग्य एवं अभिनंदनीय है। लेकिन, उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर होता है। कहना जितना आसान होता है, उसे अमल में लाना उतना ही मुश्किल होता है। इस तरह के तमाम दावे और संकल्प लगभग हर कोई करता आया है और संभवत: करता रहेगा। लेकिन, जमीनी स्तर पर उतरकर काम अभी तक होता दिखाई नहीं दिया है। यदि ऐसा अब से पहले हो जाता तो आज दिल्ली ही नहीं देश के किसी भी कोने में महिला अपराधों का नामोंनिशान भी नहीं होता। महिला अपराधों का ग्राफ गिरने की बजाय निरन्तर बढ़ता ही चला जा रहा है। बलात्कार, अपहरण, छेड़छाड़, छीना-झपटी, दहेज, खरीद-फरोख्त, घरेलू हिंसा आदि अनेक अपराधों में दिनोंदिन कई गुना बढ़ौतरी दर्ज की जा रही है। कानूनों की भरमार है, इसके बावजूद महिलाओं को हक व सुरक्षित माहौल की दरकार है। इन अपराधों को रोकना दिल्ली पुलिस का काम है और दिल्ली पुलिस केन्द्र की मोदी सरकार के अधीन है। जैसे राजनीतिक जुमलों अथवा दलीलों से काम चलने वाला कतई नहीं है। 
      चाहे लाख बार यह दावा किया जाये कि महिला आयोग को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनने दिया जायेगा, लेकिन ऐसा एक प्रतिशत भी होना संभव नहीं है। इसे राजनीतिक संकीर्णता कहिए या विडम्बना, महिला आयोग राजनीतिक हथकण्डों से अछूता ही नहीं रह पाता है। स्वाति मालीवाल के समक्ष भी अपनी पार्टी की छवि बनाये रखने की कड़ी चुनौती बनी रहेगी। अपनी पार्टी के लोगों पर लगे आरोपों पर वे निष्पक्षता एवं कानून के अनुरूप कार्य करेंगी तो पार्टी की छवि को ठेस पहुंचने का डर बना रहेगा और यदि इसके विपरीत करती हैं तो उनकीं निष्ठा, नीयत व नीति पर सवाल उठेंगे व महिलाओं के हितों के मामलों में ढ़ाक के तीन पात वाली स्थिति बनी रहेगी। यदि स्वाति मालीवाल पार्टी की छवि से बाहर निकलकर एक संघर्षशील समाजसेविका व आम महिला के रूप में अपने दायित्वों का निष्पक्षता व निडरता से कार्य करेंगी तो ही सकारात्मक परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। 
      दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष को रचनात्मक व आक्रामक अन्दाज में अपनी पारी की शुरूआत करनी होगी। उन्हें पीडि़ताओं का संबल बनने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। लड़कियों व महिलाओं में आत्मविश्वास जगाने का माहौल तैयार करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना पड़ेगा। उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सम्मान और न्याय के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने पड़ेंगे। आयोग को घरेलू हिंसा की शिकार होने वाली आम व अनपढ़ औरतों तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। अपने कानूनी अधिकारों से अनजान अनपढ़ पीडि़ताओं तक महिला आयोग को अपनी पहुँच सुनिश्चित करनी होगी और उनके लिए समुचित सहायता, सम्मान, सहयोग, मागदर्शन आदि सुलभ करवाना होगा। कन्या भू्रण हत्या व लड़कियों के प्रति सामाजिक संकीर्ण मानसिकता का माहौल बदलने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।  पीडि़त महिला को त्वरित संबल, सम्मान व न्याय मिल सके, ऐसा ढ़ांचा विकसित करना होगा। ऐसे संवेदनशील एवं अति संवेदनशील स्थानों को चिन्हित करना होगा, जहां लड़कियों एवं महिलाओं के प्रति असुरक्षित वातावरण बना हुआ है। ऐसे स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए समुचित व्यवस्था का प्रबन्ध करना महिला आयोग की प्राथमिक कार्य सूची में दर्ज होना चाहिए। लैंगिक भेदभाव की समाप्ति के लिए कई रचनात्मक कार्यक्रमों की शुरूआत करनी होगी। इन सब मसलों पर समाज के बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों एवं संस्थाओं का एक ऐसा नेटवर्क खड़ा करना होगा, जो महिला सुरक्षा व सम्मान को सुनिश्चत करने में उल्लेखनीय योगदान दे सके।इसके साथ ही महिला आयोग को सिविल कोर्ट सरीखे अधिकार दिलाने के लिए भी जोरदार अभियान चलाना होगा, ताकि आयोग कानूनी रूप से मजबूत भूमिका निभा सके। ऐसे तमाम सैक्स रेकेटों पर भी अंकुश लगाना होगा, जो निर्दोष लोगों को ब्लैकमेंलिग के जरिये तबाह करने लगे हैं। इन सैक्स रैकेटों से महिलाओं की छवि को गहरा धक्का लगने लगा है। 


  (राजेश कश्यप)
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com

(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

आपके लिये हर दिन होगा कुछ खास....!!!

आपके लिये हर दिन होगा कुछ खास....!!!

अब http://kashyapkikalamse.blogspot.in/ ब्लॉग पर आपके लिये हर दिन होगा कुछ खास....!!!
आदरणीय मित्रो! हरियाणा की नई सरकार ने नौकरियों का पिटारा खोल दिया है। उम्मीद है मेहनती व प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों के अच्छे दिन बहुत जल्द आने वाले हैं। भावी सफल अभ्यर्थी मित्रों के लिए अग्रिम हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं।
आपको ज्ञात ही होगा कि इन नौकरियों के लिए इन्टरव्यू के लिए मात्र 12 अंक निर्धारित किए गए हैं।
66 अंकों के सामान्य ज्ञान के प्रश्न होंगे।
22 अंकों के हरियाणा से संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे।
मैंने यह तय किया है कि हरियाणा से संबंधित सामान्य ज्ञान आपके साथ बाटूं। क्योंकि एक लंबे रिसर्च व मेहनत के बाद मैंने कुछ वर्ष पूर्व ‘हरियाणा...एक सम्पूर्ण अध्ययन’ पुस्तक लिखी थी, जिसे साहित्य भवन आगरा ने प्रकाशित किया था। इस समय यह पुस्तक बाजार में नहीं हैं। मैं कोशिश करूंगा कि इस पुस्तक में संकलित दुर्लभ जानकारियों अद्यतन करके किस्तों में आपके साथ सांझा करूं, ताकि हरियाणा से संबंधित सामान्य ज्ञान में बढ़ौतरी हो सके।
इसके लिए आपको बस अपने इस ब्लॉग http://kashyapkikalamse.blogspot.in/ को समय मिलते ही जरूर खोलकर देखना है। जब भी और जैसे भी मुझे समय मिलेगा, मैं तुरंत हरियाणा से संबंधित पोस्ट डालूंगा। इसके साथ ही अन्य साथियों से भी अनुरोध है कि यदि उनके पास भी हरियाणा से जुड़ी अच्छी जानकारी है, तो कृपया आप भी सबके साथ सांझा करें। और हाँ....मेरा यह विचार आपको कैसा लगा? जरूर बताइयेगा।
एक बार तो अभी इस लिंक पर क्लिक करके ब्लॉग http://kashyapkikalamse.blogspot.in/ के दर्शन कर लें तो बेहद अच्छा लगेगा।
एक खास बात और...!!! यदि आप डेस्कटॉप कम्प्यूटर से ब्लॉग खोलेंगे तो आपको अनेक सरप्राईज मिलेंगे।
आप सबका धन्यवाद एवं आभार।

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

क्या विजेन्द्र की देशभक्ति पर सवाल उठाना सही है?

अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर विजेन्द्र कुमार मामला

क्या विजेन्द्र की देशभक्ति पर सवाल उठाना सही है?
-राजेश कश्यप

          बॉक्सिंग में भारत का परचम पूरी दुनिया में फहराने वाले और ओलंपिक में भारत को कांस्य पदक दिलवाने वाले अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर विजेन्द्र कुमार की देशभक्ति पर गहरा प्रश्रचिन्ह लगा है! यह प्रश्रचिन्ह किसी और ने नहीं, बल्कि उन्हीं के पैतृक प्रदेश हरियाणा की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने लगाया है। विजेन्द्र कुमार ने जैसे ही गत माह 29 जून को एमच्योर कैरियर को छोडक़र पेशेवर बॉक्सर बनने और आयरलैंड के क्वींसबेरी प्रमोशन के साथ जुडऩे का आधिकारिक ऐलान लंदन में किया तो हरियाणा सरकार एकाएक सकते में आ गई और प्रदेश के खेलमंत्री अनिल विज ने अपनी गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि रूपये के लिए देशभक्ति छोडऩा ठीक नहीं है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि जो भी खिलाड़ी अपने खेल के दम पर यहां हरियाणा सरकार से कोई बेनेफिट ले रहे हैं, ले चुके हैं या फिर कोई पद प्राप्त कर चुके हैं, तो ऐसी स्थिति में सरकार को भी उन खिलाडिय़ों के प्रति सोचना पड़ेगा।  गौरतलब है कि विजेन्द्र कुमार को प्रदेश की पूर्ववर्ती भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार ने अपनी आकर्षक खेल नीति 'पदक लाओ पद पाओ' के तहत विजेन्द्र कुमार को हरियाणा पुलिस में डीएसपी का पद दिया गया था और इस समय भी वे इस पद पर बने हुए हैं। उधर, प्रदेश के एडीजीपी (प्रशासन) केके शर्मा का बयान आया है कि विजेन्द्र बिना अनुमति प्रोफेशनल बॉक्सिंग में नहीं जा सकते। अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें नौकरी से निकाला जा सकता है। 
        विजेन्द्र कुमार के पेशेवर बॉक्सर बनने का समाचार मिलने के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। राष्ट्रीय मुक्केबाजी प्रशिक्षक गुरबख्श संधू ने मीडिया को प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुझे इसकी उम्मीद नहीं  थी। मैं हतप्रभ हूँ, क्योंकि मैंने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा भी होगा। यह टीम के लिए अच्छी खबर नहीं है। लेकिन, निश्चित तौरपर उन्होंने सोच समझकर यह फैसला लिया होगा। आखिर, उनका अपना कैरियर है। उनकीं कमी निश्चित तौरपर खलेगी। उधर, प्रदेश वुशु संघ रोहतक के सचिव राजेश का कहना है कि विजेन्द्र कुमार ने निजी स्वार्थ व पैसों के लिए भारत की ओर से खेलने के लिए मना किया है। दु:ख है कि ऐसे खिलाड़ी ने देश के लिए खेलने से मना कर दिया, जिसे देश ने सब कुछ दिया। इसके साथ ही विजेन्द्र कुमार को पदक दिलाने वाले और नैशनल बॉक्सिंग अकेडमी के कोच जगदीश सिंह ने कहा कि हरियाणा की माटी में कई विजेन्द्र हैं। अगर, सरकार पूरा मौका दे तो फौज खड़ी कर दूं। प्रोफेशनल कुश्ती के प्रस्ताव को ठुकरा चुके प्रख्यात पहलवान संग्राम सिंह ने भी हैरानी जताते हुए कहा है कि विजेन्द्र ने ऐसा क्यों किया, मैं हैरान हूँ। विजेन्द्र बेहतर बॉक्सर है, उसे देश के लिए खेलना चाहिए। देश के झण्डे के लिए खेलना, गर्व से कम नहीं है। पैसा ही जिन्दगी में सब कुछ नहीं है। ऐसे में विजेन्द्र को भी फैसला लेने से पहले सोचना चाहिए था। 
        इस बीच विजेन्द्र कुमार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, खेलमंत्री अनिल विज और पुलिस महानिदेशक यशपाल सिंघल से अलग-अलग मुलाकात करके अपना पक्ष रखा है। इस बीच, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि विजेन्द्र के मामले में काफी चर्चा हो चुकी है। इस पर कुछ कहने की जरूरत नहीं है। जब भी कोई निर्णय लिया जाएगा, अवगत करा दिया जाएगा। अब प्रदेश सरकार विजेन्द्र की नौकरी छीनती है या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन, इस प्रकरण में सबसे गम्भीर प्रश्र यह है कि आखिर, पेशेवर खिलाड़ी बनने के निर्णय के बाद विजेन्द्र की देशभक्ति पर प्रश्रचिन्ह क्यों? बकौल विजेन्द्र कि उनसे पहले कई खिलाड़ी पेशेवर बन चुके हैं तो उन्होंने गलत क्या किया? इसके साथ ही विजेन्द्र ने हरियाणा सरकार के सामने अपना पक्ष रखते हुए दलीलें दी हैं कि बॉक्सर का कैरियर बेहद छोटा होता है। वे तीन ओलंपिक खेल चुके हैं। अब आगे कोई खास भविष्य नहीं होने की वजह से लंदन के क्लब के साथ खेल रहे हैं। अभी क्लब के साथ कोई एग्रीमेंट नहीं हुआ है। सिर्फ प्रस्ताव बना है। सरकार यदि अनुमति देगी और अवकाश स्वीकृत करेगी तो वे खेल पाएंगे। 
        विजेन्द्र कुमार के पेशवर बनने का मामला, जितना सरल लगता है, उतना ही गम्भीर है। विजेन्द्र ने सिर्फ पैसे के लिए तिरंगे का साथ छोड़ स्वार्थी होने का परिचय दिया, बात सिर्फ इतनी भर नहीं है। इस मामले के दूसरे पहलूओं पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्हें नजरअन्दाज करना ठीक नहीं होगा।  दरअसल, यह मामला देश व प्रदेश की खेल नीतियों पर गहरा तमाचा है। जिस तरह से मामले की परतें उखडक़र सामने आ रही हैं, उससे खेलों में राजनीतिकों के गन्दे खेल की बू आ रही है। लगभग हर पार्टी का अपना खेल संगठन बना हुआ है। हरियाणा में भी तीन विभिन्न दलों के तीन ओलम्पिक संघ बने हुए हैं, जिनमें इनेलो का 'हरियाणा ओलम्पिक संघ', कांग्रेस का 'हरियाणा ओलम्पिक संघ' और भाजपा का  'ओलंपिक संघ हरियाणा' शामिल है। इन तीन पाटों में प्रदेश के खिलाड़ी पीस रहे हैं। तीनों खेल संघों की आपसी राजनीतिक खींचतान में होनहार खिलाडिय़ों का लंबे समय नुकसान हो रहा है। उनकीं सुध लेने वाला कोई नहीं है। हरियाणा बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रधान राकेश ठाकरान के अनुसार जो भी सत्ता में आता है, वह नए खेल एसोसिएशन गठित कर लेता है। इसका ताजा उदाहरण प्रदेश में पहली बार बनी भाजपा सरकार की तरफ से कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ द्वारा गठित 'बॉक्सिंग फेडरेशन' है। कमाल की बात है कि हरियाणा के किसी भी खेल संघ को मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी कारण अभी तक राज्य स्तर के खेलों का आयोजन भी नहीं हो पाया है। इस सन्दर्भ में विजेन्द्र के भाई मनोज कहते हैं कि देश में कई मुक्केबाजी फेडरेशन बन गई हैं और इनकी आपसी गुटबाजी का नुकसान खिलाडिय़ों व खेल को हो रहा है। तीन साल से ओलंपिक संघ की ओर से कोई खिलाड़ी बाहर खेलने नहीं जा पाया है। खिलाड़ी का कैरियर छोटा होता है और ऐसे में वह इंतजार नहीं कर सकता है।
        खेल संघों में राजनीतिकों की अनावश्यक घूसपैठ और चौधर के कारण अनेक होनहार खिलाड़ी मैडल लाने से वंचित हो रहे हैं और बहुत से खिलाड़ी राजनीतिकों के इस गन्दे खेल से निराश होकर कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से मुंह मोड़ चुके हैं।  इसके साथ ही, जो खिलाड़ी अपने सतत संघर्ष, मेहनत और लगन से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम कमाने में कामयाब हो चुके हैं, वे अब राजनीतिक गुटबाजियों से तंग होकर प्रोफेशनल खिलाड़ी बनने के विकल्प को तवज्जो देने लग गए हैं। विजेन्द्र सिंह भी इसी कड़ी का नया हिस्सा हैं। विजेन्द्र के बाद भी कई अन्य नामी खिलाड़ी उन्हीं की तर्ज पर पेशवर बनने का राह अपना सकते हैं। ऐसे में, देश व प्रदेश का नेतृत्व करने वाले होनहार खिलाडिय़ों और चमकते मैडलों का अकाल पडऩा लगभग तय है। इसीलिए, विजेन्द्र सिंह के पेशवर बॉक्सर बनने के निर्णय के बाद चारों तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं और उनकीं देशभक्ति पर तरह-तरह से प्रश्रचिन्ह लगाए जा रहे हैं। हरियाणा सरकार ने तो अपनी नई खेल नीति में बदलाव लाने का ऐलान भी कर दिया है, ताकि ऐसे कठोर प्रावधान बनाए जा सकें, जिससे खिलाड़ी स्वेच्छा से पेशवर खिलाड़ी बनने की बात सपने में भी न सोच सकें। हालांकि, यह नसीहत देना अथवा भावनात्मक रूप से कहना कि खिलाडिय़ों को देश के लिए खेलते रहना चाहिए, किसी हद तक सही कहा जा सकता है, लेकिन, यह ऐसा करने के लिए थोपना अथवा खेल व खिलाडिय़ों को राजनीतिक गुटबाजी में पिसते रहने के लिए मजबूर करना या फिर अच्छा माहौल न देना आदि भला कैसे जायज ठहराया जा सकता है?
        विजेन्द्र कुमार का मामला बेहद संजीदा हो चला है। हो सकता है कि मामला गरमाने, विपक्षी दलों के निशाने पर आने और फजीहत से बचने के लिए  हरियाणा सरकार विजेन्द्र कुमार के डीएसपी की नौकरी को सशर्त बख्श दे, लेकिन, नई खेल नीति में इस तरह के मामलों को रोकने के लिए कठोर प्रावधान बनाने के संकेतों पर भी गम्भीर प्रश्रचिन्ह लगते दिखाई दे रहे हैं। क्या प्रदेश सरकार को इस तरह के खेल नीति में कठोर प्रावधान बनाने चाहिएं? क्या खिलाडिय़ों को अपने कैरियर में स्वेच्छा से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए? क्या खिलाडिय़ों को एक अदद नौकरी बचाए रखने और मान-सम्मान पाने की ऐवज में स्वयं को देश व प्रदेश की सरकार के पास गिरवी रख देना चाहिए? क्या खिलाडिय़ों पर कड़े प्रावधान लागू करने की बजाय, पहले खेल संघों से अनावश्यक राजनीतिक घूसपैठ व आपसी राजनीतिक खींचतान को जड़ से समाप्त करने पर विचार नहीं किया जाना चाहिए? क्या खिलाडिय़ों की भावनाओं की कद्र करना देश व प्रदेश की प्राथमिकता में शामिल नहीं होना चाहिए? क्या पेशेवर कैरियर चुनना, देशद्रोह है? यदि नहीं, तो फिर देशभक्ति के नाम पर होनहार खिलाडिय़ों को जलील करने की कुचेष्टा क्यों की जाती है? ऐसे ही असंख्य सुलगते सवाल हैं। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन सवालों के जवाब कौन तय करेगा?

बुधवार, 1 जुलाई 2015

जहर बन रहा 'जायका'!

विशेष लेख
जहर बन रहा 'जायका'!
-राजेश कश्यप
जहर बन रहा 'जायका'!
        चौंकिए मत! हमारी जिन्दगी जहर से भरी जा रही है। हम बड़े बजे से प्रतिदिन धीमा जहर निगल रहे हैं और वो भी अपनी जीभ के स्वाद के लिए। जी हाँ! हम बाजार की जो तली-भूनी चीजें, जंक फूड और पैकेट बंद खाद्य पदार्थ खा रहे हैं, उन सब में धीमा जहर मिला हुआ है! आप फिर चौंक उठे? चौंकना भी चाहिए। दरअसल, हम जो मैगी, पिज्जा बॉक्स, बर्गर, चाऊमीन, मैक्रोनी, चाकलेट, हॉट डॉग्स, नूडल्स, कचोरी, समोसा, पानी पुड़ी, भेल पुड़ी मोमोज, बे्रड, पेटीज, पेस्ट्री बैग, चिप्स, कैंडी, रेडीमेड बटर, पास्ता, टोमेटो सॉस, सैंडविच, भूजिया, फेन्च फ्राई, मछली, मीट, कारपेट पेपर, आईस्क्रीम, जूस, कोल्ड ड्रिंक्स, सोडा वाटर आदि सैकड़ों जंक फूड का चटखारे लेकर खाते हैं, उनमें ऐसे घातक रसायनों का प्रयोग हमारा 'जायका' बढ़ाने के नाम पर किया जाता है। ये घातक रसायन हमारे सेहत के लिये धीमे जहर का काम करते हैं और हमें पता ही नहीं चलता। लेकिन, जब हमें इसका पता चलता है तो काफी देर हो चुकी होती है। इसके साथ ही जंक फूड में मिले ये रसायन हमें उस खाद्य वस्तु की ऐसी लत लगाते हैं, जिन्हें खाने के लिए मन मचलता रहता है और अन्य कोई चीज खाने का मन ही नहीं करता।
       महानायक अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, प्रिटी जिन्टा जैसे ब्राण्ड अम्बेसडरों द्वारा प्रचारित की गई नेस्ले ब्रांड मैगी की असलियत ने देश में कोहराम मचाकर रखा हुआ है। दो मिनट में तैयार होने वाली और अपार जायकेदार मैगी जंक फूड का ही प्रमुख हिस्सा है। जब उत्तर प्रदेश के फूड सेफ्टी एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रिेशन (एफडीए) ने मैगी के नमूनों की जाँच करवाई तो एकदम चौंकाने वाले विस्फोटक परिणाम निकले। जाँच के दौरान मैगी में सीसा (लेड) की निर्धारित मात्रा 0.01 पीपीएम की बजाय 17.2 पीपीएम तक पाई गई। इसके साथ ही मैगी के नमूनों में 'मोनोसोडियम ग्लूटामेट' (एमएसजी) की मात्रा भी तय मानक दर से कहीं कई गुना पाई गई। मैगी खाते समय शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि वे चटखारे लेकर खाई जा रही मैगी के रूप में लेड जैसी जहरीली धातु का बड़ी मात्रा में सेवन कर रहे हैं और स्वाद बढ़ाने वाले एमएसजी जैसे अति घातक रसायन को बड़े चाव से निगल रहे हैं! 
       लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) दोनों ही सेहत के लिए धीमे जहर का काम करती हैं। लैड किडनी के लिए अति घातक होता है। इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसी लेड को खिलौंनों को रंगने वाले पेंट व प्लास्टिक में भी मिलाया जाता है। सेहत के लिए अति घातक रसायन एमएसजी एक तरह का अमीनो एसिड होता है। यह पेट्रोलियम इंडस्ट्री का पदार्थ है और चमकीले सफेद रंग का होता है। इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने, खाद्य पदार्थ की घटिया गुणवत्ता को छिपाने और लंबे समय तक सडऩे से बचाने के लिए किया जाता है। यह बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास में भारी रूकावट डालता है। गर्भवती महिलाओं के लिए तो यह भयंकर विष का काम करता है। यह रक्तचाप व नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को बुरी तरह प्रभावित करता है। इससे सिरदर्द, तनाव, मांसपेशियों में खिंचाव, चेहरे, गर्दन व अन्य अंगों में सूनापन, शरीर में सिहरन, जलन, ब्लड प्रेशर, छाती में दर्द, उल्टी, कमजोरी आदि अनेक रोग पैदा होते हैं। केवल इतना ही नहीं, यह महिलाओं में बांझपन और पुरूषों में नपुंसकता का भी बहुत बड़ा कारण बनता है। ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि मैगी के साथ-साथ अन्य जंक फूड भी हमारी सेहत के लिए कितने घातक और जहरीले हैं?
       मैगी की वास्तविकता का पर्दाफाश होने के बाद केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें कुम्भकर्णी नींद से जागी हैं। केन्द्र सरकार ने आनन-फानन में सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वे तय समय सीमा के अन्दर यह सुनिश्चित करें कि खाद्य पदार्थों में कंपनियों द्वारा तय मानक दरों का पालन किया जा रहा है या नहीं? इसके साथ ही संसद और सेना की कैंटीन से मैगी हटा दी गई है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने मैगी को मानवीय उपयोग के लिए खतरनाक घोषित कर दिया है। इसे देश में पकाने, बेचने व आयात-निर्यात करने आदि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने मैगी इंस्टेट नूडल्स के साथ-साथ अन्य बड़े ब्राण्डों के उत्पादों की गहन जाँच के भी आदेश दिये हैं, जिनमें सीजी फूडस इंडिया के तीन, रूचि इंटरनेशनल के एक, एएन्यूट्रिशन के तीन, जीएसके कंज्यूमर हैल्थकेयर के दस, इंडो निसिन के एक, आईटीसी के तीन, नेस्ले इंडिया के नौ उत्पादों सहित कुल 32 ब्राण्ड-उत्पाद शामिल हैं। इनमें मैक्रोनी और पास्ता को भी शामिल किया गया है। इन सबके बावजूद, नेस्ले इंडिया ने मैगी पर मचे कोहराम के बाद एक तरफ तो अपने उत्पाद को मानकों पर खरा होने का दावा करते हुए कानून की शरण ली है और दूसरी तरफ, देश से मैगी के एक हजार करोड़ से अधिक कीमत के दो करोड़ पैकेट बाजार से वापिस लेकर, जल्द ही दोबारा लौटने का दावा भी किया है। 
       इस बीच कई यक्ष प्रश्र स्वत: उठ रहे हैं। पहला प्रश्र यह है कि स्विटजरलैण्ड की कंपनी नेस्ले ने मैगी को सन 1983 में भारतीय बाजार में बेचना शुरू किया था। इन 33 वर्षों में कभी भी मैगी की गुणवत्ता की जाँच नहीं की गई, भला क्यों? इस दौरान मैगी के सेवन से कितने करोड़ भारतीयों की सेहत के साथ खिलवाड़ हुआ? इस नुकसान का जिम्मेवार कौन है? क्या इस नुकसान की भरपाई हो सकती है? अगर हो सकती है तो किस कैसे और यदि नहीं तो क्यों? प्रश्र जितने गहरे हैं, उनके जवाब भी उससे कई गुना गहरे हो सकते हैं, बशर्ते की बेहद गंभीरता व संजीदगी से पिछले 33 वर्षों से सेहत के साथ चल रही खिलवाड़ का आकलन किया जाये। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश के नूडल कारोबार में 70 प्रतिशत हिस्से पर नेस्ले ब्रांड मैगी का कब्जा है। देश में नूडल्स का प्रतिवर्ष करीब 4000 करोड़ का कारोबार हो रहा है, जिसमें अकेले मैगी का कारोबार 3000 करोड़ रूपये का है। मैगी के कहर का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010 में मैगी की खपत 294 करोड़ पैकेट दर्ज की गई थी, जोकि गतवर्ष 2014 में 534 करोड़ पैकेट की खपत तक जा पहुँची। एक सामान्य अनुमान के अनुसार, दूध-दही के खाने से मशहूर अकेले हरियाणा प्रदेश के लोग प्रतिदिन 25 क्विंटल मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) खा रहे हैं। हरियाणा प्रदेश की राजनीतिक राजधानी कहलाने वाले रोहतक शहर में प्रतिदिन 6000 किलो चाऊमिन खाई जा रही है। ये तथ्य पूरे देश के हाल का अनुमान लगाने के लिए काफी हैं। 
       कहना न होगा कि मिलावटी और जंक फूड के घातक परिणामों का ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2011-12 में अपोलो द्वारा देश के आठ मुख्य शहरों में किए गए एक सर्वे के अनुसार 51 प्रतिशत लोग शारीरिक रूप से फिट नहीं थे, 48 प्रतिशत लोग मोटापे का दंश झेल रहे थे, 31 प्रतिशत लोगों का पाचन-तंत्र खराब हो चुका था, 30 प्रतिशत लोगों के दांत खराब हो चुके थे, 26 प्रतिशत लोगों को हाई बीपी की शिकायत थी, 17 प्रतिशत लोग मधुमेह का शिकार थे और 33 प्रतिशत लोगों को मजबूरन प्रतिदिन दवाईयों का सेवन करना पड़ रहा था। इसी तरह वर्ष 2010-12 के दौरान किए गए एक अन्य सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 70-90 प्रतिशत लोग मोटापे और मधुमेह से ग्रसित थे और फैटी लीवर के शिकार थे। इन सब सर्वेक्षणों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि गत पाँच वर्षों के दौरान स्थिति कितनी भयंकर हो चुकी होगी और यदि कुछ समय और ऐसे ही चलता रहा तो भविष्य की तस्वीर क्या होगी? हमें अपने खानपान के प्रति बेहद संजीदा होने की आवश्यकता है। हमें इस तथ्य से भलीभांति परिचित होना होगा कि जंक फूड जैसी चीजों का 'जायका' (स्वाद) हमारे जीवन और आने वाली पीढिय़ों को तबाह करने वाला है। जंक फूड्स में जायका बढ़ाने वाले खतरनाक रसायन हमारे स्वास्थ्य के लिए धीमा जहर हैं। यदि यह चेतना जन-जन में पैदा जाये तो देह व देश में सकारात्मक बदलाव स्वत: देखने को मिलेंगे।

(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।


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स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
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(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)