विशेष लेख
जहर बन रहा 'जायका'!
-राजेश कश्यप
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जहर बन रहा 'जायका'! |
चौंकिए मत! हमारी जिन्दगी जहर से भरी जा रही है। हम बड़े बजे से प्रतिदिन धीमा जहर निगल रहे हैं और वो भी अपनी जीभ के स्वाद के लिए। जी हाँ! हम बाजार की जो तली-भूनी चीजें, जंक फूड और पैकेट बंद खाद्य पदार्थ खा रहे हैं, उन सब में धीमा जहर मिला हुआ है! आप फिर चौंक उठे? चौंकना भी चाहिए। दरअसल, हम जो मैगी, पिज्जा बॉक्स, बर्गर, चाऊमीन, मैक्रोनी, चाकलेट, हॉट डॉग्स, नूडल्स, कचोरी, समोसा, पानी पुड़ी, भेल पुड़ी मोमोज, बे्रड, पेटीज, पेस्ट्री बैग, चिप्स, कैंडी, रेडीमेड बटर, पास्ता, टोमेटो सॉस, सैंडविच, भूजिया, फेन्च फ्राई, मछली, मीट, कारपेट पेपर, आईस्क्रीम, जूस, कोल्ड ड्रिंक्स, सोडा वाटर आदि सैकड़ों जंक फूड का चटखारे लेकर खाते हैं, उनमें ऐसे घातक रसायनों का प्रयोग हमारा 'जायका' बढ़ाने के नाम पर किया जाता है। ये घातक रसायन हमारे सेहत के लिये धीमे जहर का काम करते हैं और हमें पता ही नहीं चलता। लेकिन, जब हमें इसका पता चलता है तो काफी देर हो चुकी होती है। इसके साथ ही जंक फूड में मिले ये रसायन हमें उस खाद्य वस्तु की ऐसी लत लगाते हैं, जिन्हें खाने के लिए मन मचलता रहता है और अन्य कोई चीज खाने का मन ही नहीं करता।
महानायक अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, प्रिटी जिन्टा जैसे ब्राण्ड अम्बेसडरों द्वारा प्रचारित की गई नेस्ले ब्रांड मैगी की असलियत ने देश में कोहराम मचाकर रखा हुआ है। दो मिनट में तैयार होने वाली और अपार जायकेदार मैगी जंक फूड का ही प्रमुख हिस्सा है। जब उत्तर प्रदेश के फूड सेफ्टी एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रिेशन (एफडीए) ने मैगी के नमूनों की जाँच करवाई तो एकदम चौंकाने वाले विस्फोटक परिणाम निकले। जाँच के दौरान मैगी में सीसा (लेड) की निर्धारित मात्रा 0.01 पीपीएम की बजाय 17.2 पीपीएम तक पाई गई। इसके साथ ही मैगी के नमूनों में 'मोनोसोडियम ग्लूटामेट' (एमएसजी) की मात्रा भी तय मानक दर से कहीं कई गुना पाई गई। मैगी खाते समय शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि वे चटखारे लेकर खाई जा रही मैगी के रूप में लेड जैसी जहरीली धातु का बड़ी मात्रा में सेवन कर रहे हैं और स्वाद बढ़ाने वाले एमएसजी जैसे अति घातक रसायन को बड़े चाव से निगल रहे हैं!
लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) दोनों ही सेहत के लिए धीमे जहर का काम करती हैं। लैड किडनी के लिए अति घातक होता है। इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसी लेड को खिलौंनों को रंगने वाले पेंट व प्लास्टिक में भी मिलाया जाता है। सेहत के लिए अति घातक रसायन एमएसजी एक तरह का अमीनो एसिड होता है। यह पेट्रोलियम इंडस्ट्री का पदार्थ है और चमकीले सफेद रंग का होता है। इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने, खाद्य पदार्थ की घटिया गुणवत्ता को छिपाने और लंबे समय तक सडऩे से बचाने के लिए किया जाता है। यह बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास में भारी रूकावट डालता है। गर्भवती महिलाओं के लिए तो यह भयंकर विष का काम करता है। यह रक्तचाप व नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को बुरी तरह प्रभावित करता है। इससे सिरदर्द, तनाव, मांसपेशियों में खिंचाव, चेहरे, गर्दन व अन्य अंगों में सूनापन, शरीर में सिहरन, जलन, ब्लड प्रेशर, छाती में दर्द, उल्टी, कमजोरी आदि अनेक रोग पैदा होते हैं। केवल इतना ही नहीं, यह महिलाओं में बांझपन और पुरूषों में नपुंसकता का भी बहुत बड़ा कारण बनता है। ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि मैगी के साथ-साथ अन्य जंक फूड भी हमारी सेहत के लिए कितने घातक और जहरीले हैं?
मैगी की वास्तविकता का पर्दाफाश होने के बाद केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें कुम्भकर्णी नींद से जागी हैं। केन्द्र सरकार ने आनन-फानन में सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वे तय समय सीमा के अन्दर यह सुनिश्चित करें कि खाद्य पदार्थों में कंपनियों द्वारा तय मानक दरों का पालन किया जा रहा है या नहीं? इसके साथ ही संसद और सेना की कैंटीन से मैगी हटा दी गई है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने मैगी को मानवीय उपयोग के लिए खतरनाक घोषित कर दिया है। इसे देश में पकाने, बेचने व आयात-निर्यात करने आदि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने मैगी इंस्टेट नूडल्स के साथ-साथ अन्य बड़े ब्राण्डों के उत्पादों की गहन जाँच के भी आदेश दिये हैं, जिनमें सीजी फूडस इंडिया के तीन, रूचि इंटरनेशनल के एक, एएन्यूट्रिशन के तीन, जीएसके कंज्यूमर हैल्थकेयर के दस, इंडो निसिन के एक, आईटीसी के तीन, नेस्ले इंडिया के नौ उत्पादों सहित कुल 32 ब्राण्ड-उत्पाद शामिल हैं। इनमें मैक्रोनी और पास्ता को भी शामिल किया गया है। इन सबके बावजूद, नेस्ले इंडिया ने मैगी पर मचे कोहराम के बाद एक तरफ तो अपने उत्पाद को मानकों पर खरा होने का दावा करते हुए कानून की शरण ली है और दूसरी तरफ, देश से मैगी के एक हजार करोड़ से अधिक कीमत के दो करोड़ पैकेट बाजार से वापिस लेकर, जल्द ही दोबारा लौटने का दावा भी किया है।
इस बीच कई यक्ष प्रश्र स्वत: उठ रहे हैं। पहला प्रश्र यह है कि स्विटजरलैण्ड की कंपनी नेस्ले ने मैगी को सन 1983 में भारतीय बाजार में बेचना शुरू किया था। इन 33 वर्षों में कभी भी मैगी की गुणवत्ता की जाँच नहीं की गई, भला क्यों? इस दौरान मैगी के सेवन से कितने करोड़ भारतीयों की सेहत के साथ खिलवाड़ हुआ? इस नुकसान का जिम्मेवार कौन है? क्या इस नुकसान की भरपाई हो सकती है? अगर हो सकती है तो किस कैसे और यदि नहीं तो क्यों? प्रश्र जितने गहरे हैं, उनके जवाब भी उससे कई गुना गहरे हो सकते हैं, बशर्ते की बेहद गंभीरता व संजीदगी से पिछले 33 वर्षों से सेहत के साथ चल रही खिलवाड़ का आकलन किया जाये। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश के नूडल कारोबार में 70 प्रतिशत हिस्से पर नेस्ले ब्रांड मैगी का कब्जा है। देश में नूडल्स का प्रतिवर्ष करीब 4000 करोड़ का कारोबार हो रहा है, जिसमें अकेले मैगी का कारोबार 3000 करोड़ रूपये का है। मैगी के कहर का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010 में मैगी की खपत 294 करोड़ पैकेट दर्ज की गई थी, जोकि गतवर्ष 2014 में 534 करोड़ पैकेट की खपत तक जा पहुँची। एक सामान्य अनुमान के अनुसार, दूध-दही के खाने से मशहूर अकेले हरियाणा प्रदेश के लोग प्रतिदिन 25 क्विंटल मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) खा रहे हैं। हरियाणा प्रदेश की राजनीतिक राजधानी कहलाने वाले रोहतक शहर में प्रतिदिन 6000 किलो चाऊमिन खाई जा रही है। ये तथ्य पूरे देश के हाल का अनुमान लगाने के लिए काफी हैं।
कहना न होगा कि मिलावटी और जंक फूड के घातक परिणामों का ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2011-12 में अपोलो द्वारा देश के आठ मुख्य शहरों में किए गए एक सर्वे के अनुसार 51 प्रतिशत लोग शारीरिक रूप से फिट नहीं थे, 48 प्रतिशत लोग मोटापे का दंश झेल रहे थे, 31 प्रतिशत लोगों का पाचन-तंत्र खराब हो चुका था, 30 प्रतिशत लोगों के दांत खराब हो चुके थे, 26 प्रतिशत लोगों को हाई बीपी की शिकायत थी, 17 प्रतिशत लोग मधुमेह का शिकार थे और 33 प्रतिशत लोगों को मजबूरन प्रतिदिन दवाईयों का सेवन करना पड़ रहा था। इसी तरह वर्ष 2010-12 के दौरान किए गए एक अन्य सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 70-90 प्रतिशत लोग मोटापे और मधुमेह से ग्रसित थे और फैटी लीवर के शिकार थे। इन सब सर्वेक्षणों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि गत पाँच वर्षों के दौरान स्थिति कितनी भयंकर हो चुकी होगी और यदि कुछ समय और ऐसे ही चलता रहा तो भविष्य की तस्वीर क्या होगी? हमें अपने खानपान के प्रति बेहद संजीदा होने की आवश्यकता है। हमें इस तथ्य से भलीभांति परिचित होना होगा कि जंक फूड जैसी चीजों का 'जायका' (स्वाद) हमारे जीवन और आने वाली पीढिय़ों को तबाह करने वाला है। जंक फूड्स में जायका बढ़ाने वाले खतरनाक रसायन हमारे स्वास्थ्य के लिए धीमा जहर हैं। यदि यह चेतना जन-जन में पैदा जाये तो देह व देश में सकारात्मक बदलाव स्वत: देखने को मिलेंगे।
(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।
स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
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मोबाईल. नं. 09416629889
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(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)