विशेष सूचना एवं निवेदन:

मीडिया से जुड़े बन्धुओं सादर नमस्कार ! यदि आपको मेरी कोई भी लिखित सामग्री, लेख अथवा जानकारी पसन्द आती है और आप उसे अपने समाचार पत्र, पत्रिका, टी.वी., वेबसाईटस, रिसर्च पेपर अथवा अन्य कहीं भी इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सम्पर्क करें :rajeshtitoli@gmail.com अथवा मोबाईल नं. 09416629889. अथवा (RAJESH KASHYAP, Freelance Journalist, H.No. 1229, Near Shiva Temple, V.& P.O. Titoli, Distt. Rohtak (Haryana)-124005) पर जरूर प्रेषित करें। धन्यवाद।

गुरुवार, 18 जून 2009

सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) की धीमी गति


सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) की धीमी गति से केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय चिंतित है। मंत्रालय द्वारा की गई इस अभियान की समीक्षा का निष्कर्ष है कि नैशनल एसएसए प्रॉजेक्ट और प्रोग्राम एजुकेशनल ऑफिसरों और प्रशासकों के बीच ही सीमित रहे हैं। सामुदायिक भागीदारी और लोगों को बड़ी संख्या में इस दिशा में जागरूक करने का काम धरातल पर नहीं हो सका है। मंत्रालय महसूस कर रहा है कि सर्व शिक्षा अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयंसेवी संगठनों को ज्यादा से ज्यादा भागीदार बनाया जाए। इसके लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाए। अलग से मॉनिटरिंग की व्यवस्था हो। कई राज्य सरकारें इस अभियान की मॉनिटरिंग व्यवस्था करने में भी विफल रही हैं। राज्य सरकारें अपने हिस्से की राशि समय पर जारी नहीं कर रहीं जिससे सर्व शिक्षा अभियान अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रहा है। कई परियोजनाएं लगातार पिछड़ रही हैं। मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों से इस काम के लिए सही समय पर वांछित राशि जारी करने को कहा है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत 2007-2008 के दौरान 2,76,000 हजार नए स्कूल खोले जाने का लक्ष्य था। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। इस अवधि में 1,86,000 हजार नए स्कूल ही खोले जा सके । मतलब यह कि 90,000 नए स्कूल खोलने का लक्ष्य अब मौजूदा वित्तवर्ष के लक्ष्य के साथ जोड़ दिया गया है। इस अवधि में अभियान के तहत लगभग 11 लाख स्कूली शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए थी, जबकि केवल आठ लाख नियुक्तियां ही हो पाईं। स्कूलों में अतिरिक्त कमरों के निर्माण के लक्ष्य को पाने में भी राज्य सरकारें बुरी तरह पिछड़ गईं। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि देश भर के लगभग 19 करोड़ बच्चों को साक्षरता के छाते के नीचे लाने का अभियान चल रहा है। काम भी हुआ है, प्रगति भी हो रही है। लेकिन जिस दिशा में अभियान जा रहा है वह काफी चिंतनीय है। यूनेस्को जैसे संगठन ने भी भारत के सर्व शिक्षा अभियान के पिछड़ने पर चिंता व्यक्त की है। यूनेस्को ने कहा है कि सर्व शिक्षा अभियान भारत के साक्षरता अभियान का एक अभिन्न हिस्सा है। छह से 14 साल के लड़कों और लड़कियों को समान रूप से स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराने की तरफ भारत सरकार केंद्रित है। लेकिन टारगेट में पिछड़ने की आशंका है। अभी तक इस अभियान को ग्रामीण क्षेत्रों और शैक्षिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़े अंचलों तक सही मायने में नहीं ले जाया जा सका है। राज्यों से कहा गया है कि वे सुनिश्चित करें कि उनके हिस्से की जो राशि इस अभियान के तहत लगाई जा रही है या लगाई जानी है उसका पूरा उपयोग हो। देशव्यापी सर्व शिक्षा अभियान के तहत राज्यों को पहले दो साल 2007--08 और 2008-09 में 40 प्रतिशत खर्च अपनी ओर से करना है, जबकि 60 प्रतिशत खर्च केन्द्र वहन कर रहा है। लेकिन मंत्रालय को इस बात की नाराजगी है कि राज्य इस दिशा में गंभीर नहीं हैं। मंत्रालय को यह भी चिंता है कि वित्तवर्ष 2008-09 से राज्य सरकारों की वित्तीय भागीदारी 40 प्रतिशत से बढ़ कर 45 प्रतिशत हो जाएगी। जब अभी ही राज्य सरकारें खर्च करने में अपना हाथ खींच रही हैं तो अगले साल पिछड़े लक्ष्य को पाने की कवायद में राज्यों के ढुलमुल रवैये के कारण यह अभियान और भी ज्यादा हिचकोले खा सकता है। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि सर्व शिक्षा अभियान की कड़ी में छह से 14 साल के बच्चों को नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा देने का बिल काफी महत्वपूर्ण है। कानून बनने पर यदि उसका पालन केन्द्र और राज्य सरकारें गंभीरता से करती हैं तो सर्व शिक्षा अभियान के लिए यह कदम मील का पत्थर साबित होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your Comments