विशेष सूचना एवं निवेदन:

मीडिया से जुड़े बन्धुओं सादर नमस्कार ! यदि आपको मेरी कोई भी लिखित सामग्री, लेख अथवा जानकारी पसन्द आती है और आप उसे अपने समाचार पत्र, पत्रिका, टी.वी., वेबसाईटस, रिसर्च पेपर अथवा अन्य कहीं भी इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सम्पर्क करें :rajeshtitoli@gmail.com अथवा मोबाईल नं. 09416629889. अथवा (RAJESH KASHYAP, Freelance Journalist, H.No. 1229, Near Shiva Temple, V.& P.O. Titoli, Distt. Rohtak (Haryana)-124005) पर जरूर प्रेषित करें। धन्यवाद।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

हरियाणा में छाया काले हिरणों के अस्तित्व पर घोर संकट

विडम्बना
 हरियाणा में छाया काले हिरणों के अस्तित्व पर घोर संकट
-राजेश कश्यप


हरियाणा में गत माह दस जनवरी से हिरणों की हत्याओं का सिलसिला शुरू होने के बाद समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है। संज्ञान में आए मामलों के अनुसार 31 जनवरी तक एक दर्जन हिरण शिकारियों एवं आवारा जंगली कुत्तों का शिकार बन चुके हैं। इनमें से तीन हिरण शिकारियों की गोलियों का निशान बने हैं और 9 हिरण आवारा कुत्तों का शिकार बने हैं। इससे हरियाणा में हिरणों के अस्तित्व पर घोर संकट गहरा गया है। यह कितनी बड़ी विडम्बना का विषय है कि प्रदेश में वन्य प्राणी विभाग है, वन्य जीव विभाग  है, वन अधिकारी व कर्मचारी हैं, वन्य अधिनियम लागू हैं और कुरूक्षेत्र स्थित प्रदेश की पर्यावरण अदालत तक कार्य कर रही है, इन सबके बावजूद बड़ी संख्या में निरन्तर दुर्लभ वन्य प्राणी काले हिरणों की मौतों का सिलसिला जारी है। आदमपुर (हिसार) में काले हिरणों की मौतें वन्य जीव विभाग, जिला प्रशासन के साथ-साथ सरकार की कार्यशैली पर बड़े गहरे प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं। हिरणों की मौतों का अनवरत सिलसिला कई गंभीर सवाल पैदा कर रहे हैं। इन पर निगाह डालने से पहले इस पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार समझना सर्वथा उचित होगा।  

          हिरणों की मौतों का सिलसिला गत माह 10 जनवरी को तब शुरू हुआ, जब एक काले हिरण को शिकारियों ने अपनी गोली का निशाना बनाया और उसे मौत के घाट उतार दिया। इस समाचार की स्याही सूखी भी नहीं थी कि अगले ही दिन 11 जनवरी को फिर एक अन्य हिरण का शव खेतों में बुरी तरह नोंचा हुआ मिला। जब हुबहू यही वाकया 15 जनवरी को पुनः संज्ञान में आया तो किसी भी संवदेनशील इंसान का सन्न रह जाना स्वभाविक ही था। समाज में हिरणों की मौतों पर आक्रोश पैदा हो गया। वन्य विभाग के अधिकारियों के संज्ञान में भी इस मामले को लाया गया। लेकिन, विभाग का रवैया एकदम उदासीन देखने को मिला। विभाग ने मामले को गंभीरता से लेने की बजाय यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि हिरणों का शिकार कुत्ते कर रहे हैं, जबकि इन तीन हिरणों में से एक हिरण के गोली का शिकार होने के समाचार की पुष्टि भी हो चुकी थी। 
 
जब हिरणों की मौतों के समाचारों ने सुर्खियां बटोंरी और वन्य प्राणी एवं जीव विभाग की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा किया तो अधिकारियों की कुंभकर्णी नींद खुली। इसके बाद आनन फानन में राजस्थान के भनोई गांव में रहने वाले बांवरी समाज के एक व्यक्ति पालाराम पर 10 जनवरी को काले हिरण को गोली मारने का केस दर्ज किया गया। जब तक पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करती, तब तक वह बंदूक खेतों में ही छोड़कर फरार हो चुका था। बताया जाता है कि आरोपी अक्सर बंदूक के साथ ही शिकार की टोह में खुलेआम घूमता रहता था और उस पर इसी तरह का एक और केस चल रहा था। आरोपी का शिकार के मकसद से खुलेआम बेरोकटोक खेतों में घूमते देखा जाना,  हिरण का शिकार करने के उपरान्त आसानी से फरार होना और पूर्व के शिकार मामले में नामजद होने के बावजूद आवश्यक कार्यवाही से बचे रहना जैसे अनेक सवाल वन्य प्राणी एवं जीव रक्षा विभाग की कार्यशैली पर कई तरह के गम्भीर सवाल खड़े किए। 

हैरानी की बात यह रही कि हिरणों की मौतों से पेचीदा हुई स्थिति से निपटने के लिए स्थानीय लोगों ने भी कमर कसी और आपात बैठक बुलाकर हिरणों की रक्षा में ठीकरी पहरा देने का भी फैसला किया। प्रशासनिक अधिकारियों ने भी भरोसा दिलाया कि जल्द ही पिंजरे मंगवाने और आवारा जंगली कुत्तों को पकड़ने के जोरदार आश्वासन भी दिए। लेकिन, सब निर्णय और आश्वासन तब भोथरे साबित हो गए जब 17 जनवरी को एक बार फिर तीन काले हिरणों के शव खेतों में नोंचे हुए मिले। इनमें से दो काले हिरणों के शव गाँव आदमपुर में और एक शव गाँव सदलपुर में मिला। इसके बाद बिश्नोई समाज में एक बार फिर प्रशासनिक लापरवाही पर आक्रोश का ज्वार फूट पड़ा। अपनी जिम्मेदारियों पर पर्दा डालते हुए एक बार फिर वन्य विभाग के अधिकारियों ने राग अलापा कि हिरणों का शिकार कुत्ते कर रहे हैं तो उनके इस दावे पर बिश्नोई समाज के जिलाध्यक्ष बनवारी लाल ने यह कहकर सवालिया निशान लगा दिया कि काला हिरण कुत्तों के काबू नहीं आ सकता। हिरणों का तो शिकार हो रहा है। जब इस सिलसिले में राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव से सवाल किया गया तो उन्होंने हिरणों की मौतों पर चिंता व अफसोस जाहिर करते हुए वन अधिकारियों से रिपोर्ट मंगवाने की बात कही। 
 
कमाल की बात तो यह है कि हरियाणा में आदमपुर वन्य प्राणियों के लिए अत्यन्त सुरक्षित माना जाता था। क्योंकि यहां का बिश्नोई समाज अपने धर्मगुरू श्री जम्भेश्वर भगवान के ज्ञान एवं उपदेशांे के अनुसार जीवों एवं पेड़ों की रक्षा करना अपना परम धर्म मानते हैं। बिश्नोई समाज में जीवों और पेड़ पौधों के रक्षार्थ हंसते-हंसते अपने प्राणों की बलि तक देने की परंपरा है। किवदन्ती है कि विक्रमी संवत 2034 में मिगसर सुदी सप्तमी, शनिवार को राजस्थान के जोधपुर जिले के लोहावट गांव निवासी बीरबल बिश्नोई ने एक हिरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान तक दे दिया था। इसी क्रम में जब एक हिरणी अपने दूधमुंहे बच्चे को छोड़कर मर गई तो बिश्नोई समाज की एक महिला ने अपना दूध पिलाकर उसे पाला-पोसा था। इस तरह के अनुकरणीय उदाहरणों से बिश्नोई समाज अलंकृत है। इसी के चलते इस इलाके में जीव जन्तुओं की संख्या प्रदेश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक पाए जाते हैं। इतने अनुपम और अनुकरणीय स्थान पर बेजुबान निर्दोष काले हिरणों के शिकार होने और कुत्तों का निशाना बनने के अनवरत सिलसिले ने हर किसी को हैरत में डालकर रख दिया। काले हिरणों की मौतों के सिलसिले में एक और इजाफा 19 जनवरी को तब हो गया, जब आदमपुर-अग्रोहा मार्ग पर गाँव कोहली के पास एक अन्य हिरण का शव पड़ा मिला, जिसके बारे में बताया गया कि इस बार हिरण की मौत गाड़ी की चपेट में आने से हुई है। 

इसी बीच बिश्नोई समाज की तरफ से खेतों में हथियारों के साथ पहरेदार बैठाए गए और वन्य जीव विभाग की तरफ से तीन गार्ड लगाए गए। इन सब प्रयासों को एक बार फिर झटका लगा और 22 जनवरी, रविवार को फतेहाबाद जिले के गाँव झलनियां में दो शिकारियों संतलाल व सतबीर सिंह ने एक काले हिरण को अपना शिकार बना दिया। इन दोनों पर भी पहले से दो हिरणों व एक नील गाय के शिकार करने के केस चल रहे थे। इस घटना के बाद एक बार फिर अधिकारियों ने बयानों के जरिए मामले पर लीपा-पोती की। फतेहाबाद के उपायुक्त एम.एल. कौशिक ने इन घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए सख्त कदम उठाने की बात कही और जिले में किसी भी सूरत में शिकार न होने देने के ठोस दावे भी किए। डीएफओ एसएस श्योराण ने हिरणों की मौतों के बाद अधिकारियों को सतर्क करने और निगरानी बढ़ाने की बात कही। उधर, वन एवं पर्यावरण मंत्री कैप्टन अजय यादव द्वारा हिरणों की मौतों के सन्दर्भ में वन अधिकारियों से तलब की गई रिपोर्ट के सन्दर्भ में किसी ठोस कार्यवाही के सामने न आने पर भी सवाल खड़े हुए। अब तक 13 दिनों में आदमपुर, सिरसा व फतेहाबाद में 9 काले हिरणों की मौतों के समाचारों की पुष्टि हो चुकी थी, इनमें से 2 हिरण गोली और 7 हिरण कुत्तों के शिकार हुए। 23 जनवरी को वन विभाग के अधिकारियों ने राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव को उनके आदेशानुसार रिपोर्ट बनाकर भेजी गई। इस रिपोर्ट में बताया गया कि हिरणों का शिकार कुत्ते कर रहे हैं। जिस भाग में हिरण रह रहे हैं, वहां इस समय करीब 50 शिकारी कुत्तों के झुण्ड की मौजूदगी की बात भी कही गई। रिपोर्ट के अनुसार ये कुत्ते हिरण को तीन तरफ से घेर लेते हैं। जब हिरण इन कुत्तों से बचने के लिए खेतों की तरफ दौड़ते हैं तो वे खेतों की बाड़ पर लगे कंटीले व जालीदार तारों में फंस जाते हैं और आसानी से कुत्तांे का शिकार हो जाते हैं। इसके साथ ही रिपोर्ट में बताया गया कि इन कुत्तों को पकड़ने के लिए जिला उपायुक्त से अनुमती मांगी गई है और अनुमती मिलते ही कार्यवाही शुरू कर दी जाएगी। तब तक तीन गार्डों को हिरणों की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया है। उधर हजकां सुप्रीमांे एवं सांसद कुलदीप बिश्नोई ने आदमपुर एक सप्ताह में छह हिरणों की मौतों पर चिंता एवं रोष प्रकट करते हुए जिला प्रशासन व सरकार को चेताया कि यदि हिरणों की सुरक्षा के लिए जल्द कोई कड़े कदम नहीं उठाए गए तो हिरण संरक्षण के लिए आन्दोल शुरू करना पडे़गा। इसके साथ ही उन्होंने सरकार को छोटे स्तर पर अभ्यारण बनाने का सुझाव भी दिया। 

25 जनवरी, बुधवार को हिरणों की मौतों की सूची में खैरमपुर गाँव का नाम भी जुड़ गया। इस गाँव में भी एक काले हिरण को कुत्तों ने अपना शिकार बना डाला। 27 जनवरी, शुक्रवार को हिसार के फॉरेस्ट जोन में हिरणों को बचाने के वन्य विभाग के सभी दावे एक बार फिर खोखले साबित हुए। इस बार एक काला हिरण फतेहाबाद के गाँव चिन्दड़ में और एक मादा हिरण के हिसार मण्डी आदमपुर के चौधरीवाली गाँव में कुत्तों का शिकार बनने के समाचार मिले। चिन्दड़ गाँव के हिरण की मौत उसी दिन हो गई, जबकि चौधरीवाली गाँव की मादा हिरण ने पाँचवे दिन 1 फरवरी को दम तोड़ दिया। इस प्रकार दो और  निरीह बेजुबान प्राणी वन्य विभाग की ठोस कार्यवाहियों के अभाव की भेंट चढ़ गए। इसके साथ ही हिरणों की मौतों के मामले पर गाँव के नागपुर की युवा ग्रामीण समाज  सुधार समिति ने मोर्चा खोलने और पर्यावरण अदालत जाने की घोषणा की। समिति के प्रधान राधेश्याम ने वन्य प्राणी विभाग के अधिकारियों द्वारा हिरणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बजाय स्टाफ व संसाधन न होने जैसे बयानों को गैर-जिम्मेदाराना बताया। 

हरियाणा प्रदेश के राज्य पशु काले हिरण की मौतों का सिलसिला यहां भी नहीं रूका। 28 जनवरी, शनिवार को गाँव बोस्ती में शिकारियों ने एक और हिरण को अपनी गोली का शिकार बना डाला। बिश्नोई समाज के लोग हिरण के शव को लेकर बिश्नोई मन्दिर में पहुंचे। यहां वैटर्नरी सर्जन डा. मान सिंह एवं रणधीर सिंह ने इस तथ्य की पुष्टि की कि इस हिरण की मौत गोली लगने से हुई है। समाज में बढ़े आक्रोश के बीच वन्य विभाग ने बोस्ती गाँव के ही ओम प्रकाश बावरिया को बन्दूक सहित गिरफ्तार किया। 
       इस तरह हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिलों में दस जनवरी से शुरू हुआ बेजुबान निरीह काले हिरणों की मौतों का अनवरत सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है। निश्चित तौरपर यह घटनाक्रम बेहद दुःखद, चिन्ता एवं चुनौती का विषय है। इसके साथ ही यह भी विडम्बनापूर्ण तथ्य है कि हरियाणा सरकार अपने राज्य पशु काले हिरण को समुचित सुरक्षा करने में नाकाम और असहाय दिखाई दे रही है। इसके साथ ही हरियाणा से निरन्तर घटते काले हिरणों की संख्या से प्रदेश में हिरणों के अस्तित्व पर ही संकट गहरा गया है।
       इसी प्रकार के सिलेसिले के चलते वर्ष 2009 में महम (रोहतक) के मिनी चिड़ियाघर/हिरण पार्क से एक दर्जन से अधिक हिरणों का खात्मा हो चुका है। उल्लेखनीय है कि महम में एक मिनी चिड़ियाघर बनाया गया था, जिसे बाद में हिरण पार्क के रूप में विकसित किया गया। इस पार्क में एक दर्जन से अधिक हिरण कुलांचे मारते स्वच्छन्द घूमते थे। लेकिन, वर्ष 2009 में विभागीय लापरवाही के चलते ये हिरण एक के बाद एक सभी हिरण कुत्तों के शिकार हो गए और यह हिरण पार्क एकदम सुनसान हो गया। सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि इस पार्क के चारों तरफ लोहे की मजबूत जाली भी लगाई गई थी और उसमें किसी तरह का कोई छेद भी नहीं था। वहां पर गार्डों की भी नियुक्ति थी। आसपास के ग्रामीणों ने कभी हिरणों को कुत्तों द्वारा शिकार बनते भी नहीं देखा गया, जिसके कारण इस मामले पर भी कई तरह के सवालिया निशान लगाए गए। समाचार-पत्रों मंे मामले के सुर्खियां बनने पर विभागीय कार्यवाही के नाम पर तत्कालीन डीएफओ जगदीश शर्मा सहित चरण सिंह, मामन राम, सुंदरी, वजीर सिंह व रणधीर सिंह को निलंबित कर दिया गया। मामला ठण्डा पड़ने पर उन्हें
बहाल भी कर दिया गया और हिरण पार्क की लगभग सात एकड़ जमीन को वन्य प्राणी संरक्षण विभाग से टेकओवर करके लकड़ी रखने का स्टोर बना दिया गया है। 
       यदि हिरणों की मौतों का यह अनवरत सिलसिला यूं ही चलता रहा तो कहना न होगा कि महम के मिनी चिड़ियाघर/हिरण पार्क की तर्ज पर ही हरियाणा से हिरणों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। आंकड़ों के अनुसार हरियाणा से हिरणों की संख्या निरन्तर तेजी से घटती चली जा रही है। वर्ष 2007 में जब हरियाणा में काले हिरणों की गिनती की गई थी तो पिछले पाँच वर्षों में हिरणों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई। अब जल्दी ही विभाग द्वारा नए सिरे से हिरणों की गणना करवाने की बात की जा रही है। वैसे इस समय अनुमानित आंकड़ों के अनुसार आदमपुर में 100 हिरण थे और हिरणों की ताजा मौतों के बाद यह संख्या घटकर 90 के करीब रह गई है। आंकड़ों के अनुसार आदमपुर के अलावा मात्र श्याम में 200, चौधरी वाली में 250, ढ़ाणी खासा में 75, सदलपुर में 70, बालसमंद, बुड़ाक व बांझहेड़ी में 80, हिरण पार्क हिसार में 40 हिरण बचे हुए हैं।
       सबसे बड़े आश्चर्य का विषय है कि प्रदेश में कुरूक्षेत्र जिले में पर्यावरण अदालत सुचारू रूप से काम कर रही है और वन्य प्राणी अधिनियम 1972  के अनुसार हरियाणा राज्य में वन्य प्राणियों को मारना, पकड़ना, कब्जे में
रखना, शिकार करना, वन्य प्राणियों से बनी हुई वस्तु अथवा उनका व्यापार करना आदि दंडनीय अपराधों की श्रेणी मंे भी शामिल किया गया है और उसी के अनुसार अधिनियम की धारा 51 के अन्तर्गत तीन से सात वर्ष की कैद और २५ हजार रूपये तक सजा भी तय गई हैं, इन सबके बावजूद हिरणों का शिकार व उनकी मौतों का सिलसिला बदस्तुर जारी है। हिरण पहले तो शिकारियों के निशाने पर थे, लेकिन अब आवारा कुत्तों द्वारा शिकार करने के मामलों ने स्थिति को और भी पेचीदा बना दिया है।
       बड़ी संख्या में हिरणों की मौतों ने वन्य प्राणी एवं जीव विभाग की दयनीय हालत को भी उजाकर करके रख दिया है। हिसार जोन के पांच जिलों में जंगलात और पशुओं की रखवाली के लिए मात्र 13 गार्ड काम कर रहे हैं, जबकि आवश्यकता कम से कम 100 गार्डों की बताई गई है। हिसार, जींद और भिवानी में विभाग में इंस्पेक्टरों के पद खाली होने, गश्त के लिए वाहन व वायरलैस सैट न होने, स्टाफ के पास रिवालवर उपलब्ध न होने और वन्य प्राणियों को आवारा कुत्तों से बचाने के लिए बाड़े तक न होने जैसे समाचारों से सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार वन्य प्राणियों के प्रति कितनी संजीदा है? आदमपुर, अग्रोहा, झलनिया, भूना व इनके आसपास के गाँवों को डेंजर जोन में शामिल किया गया है। इसके बावजूद यहां हिरणों का शिकार निरन्तर जारी है। इससे वन्य प्राणी एवं जीव विभाग की कार्यप्रणाली को सहज आंका जा सकता है।
       वन्य प्राणियों के लिए निरन्तर कम होता वन क्षेत्र भी भारी समस्या का विषय बना हुआ है। इससे न केवल राज्य पशु काले हिरण, बल्कि राज्य पक्षी काले तीतर का भी बड़ी संख्या में शिकार किया जा रहा है। विडम्बना का विषय तो यह है कि हरियाणा प्रदेश के पास अपने राज्य पक्षी की संख्या का भी आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इनके अलावा प्रदेश में राष्ट्रीय पक्षी मोर भी निरन्तर लुप्त होते चले जा रहे हैं। कुल मिलाकर हरियाणा में काले हिरण, तीतर, मोर, खरगोश, गीदड़, नील गाय आदि लगभग हर वन्य प्राणी के अस्तित्व पर घोर संकट छा चुका है। इस संदर्भ में समाज के लोग तो जमीन उपलब्ध करवाने, ठीकरी पहरा देने जैसे सहयोग देने को तत्पर नजर आते हैं, लेकिन विभाग व सरकार की उदासीनता व लापरवाही समाप्त होने का नाम लेती नजर नहीं आ रही है। वन्य प्राणियों का यूं भगवान भरोसे जीवन की जंग लड़ना, वाकई बेहद बड़ी विडम्बना और चिंता का विषय है।
       जनवरी माह में बड़ी संख्या में काले हिरणों की मौतों पर कई तरह के सवालों का जवाब ढू़ंढ़ना अति अनिवार्य हो जाता है। मसलन, इन हिरणों की मौतों का असली दोषी कौन है? क्या वे कथित 50 आवारा कुत्ते हैं? या उस विशेष जाति के लोग हैं, जो शिकार जैसे जघन्य अपराधों से जुड़े हुए हैं? या फिर, जिला प्रशासन व सरकार की कर्त्तव्य के प्रति घोर कोताही व संवेदनहीनता है? अथवा वे किसान भी दोषी है, जिन्होंने अपने खेतों में कंटीले तारों की बाड़ लगाई हुई हैं और अपने प्राणों की रक्षा करने के प्रयास में बुरी तरह घायल हो जाते हैं व कुत्तों के समक्ष घुटने टेकने को विवश हो जाते हैं? या फिर वन्य प्राणी अधिनियम का कड़ाई से लागू न करना है, जिसके चलते शिकारी बेखौफ होकर गैर-कानूनी रूप से शिकार करते हैं? इन सबके साथ क्या प्रदेश के वे लोग भी दोषी हैं, जो वन्य प्राणियों के अस्तित्व पर घोर संकट छाने के बावजूद खामोश हैं? यदि इन सब सवालों पर गंभीरतापूर्वक मंथन करके निष्पक्ष निष्कर्ष निकाला जाए तो इस संकट का समाधान सहजता से हो सकता है, क्योंकि इन्हीं सवालों के ईमानदार जवाबों में ही समस्या का मूल समाधान छिपा हुआ है। (नोट: लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your Comments