मुझे गत दिनों हरियाणा पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कल्याण निगम के चेयरमैन आदरणीय श्री रामचन्द्र जांगड़ा जी से गोहाना (सोनीपत) स्थित उनके निवास पर विशेष साक्षात्कार करने का परम सौभाग्य मिला। मैंने पिछड़ा वर्ग कल्याण निगम के चेयरमैन के रूप में उनकीं नई जिम्मेदारी से लेकर, पिछड़ा वर्ग के हकों से जुड़े मुद्दों तक और वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों से लेकर भावी सामाजिक परिस्थितियों तक अनेक गम्भीर सवाल किए। आदरणीय रामचन्द्र जांगड़ा जी ने इस विशेष साक्षात्कार में जितनी सरलता, सहजता व जिम्मेदारी के साथ सभी सवालों के ठोस जवाब दिए, उतनी ही गम्भीरता से कई चौंकाने वाली बातों का भी खुलासा किया, जिनपर देश व समाज को ईमानदारी से चिंतन-मंथन करना चाहिए। आपके लिए पेश है यह ख़ास साक्षात्कार। (राजेश कश्यप)
रामचंद्र जांगड़ा के साथ राजेश कश्यप |
सवाल : सर, आप अपनी नई जिम्मेदारी को किस रूप में देखते हैं? क्या आप इस जिम्मेदारी से संतुष्ट हैं या आपको लगता है कि इससे बड़ी और अन्य कोई जिम्मेदारी आपको मिलनी चाहिए थी?
रामचन्द्र जांगड़ा : प्रदेश संगठन ने और प्रदेश की सरकार ने जो कुछ सोचकर मुझे जिम्मेदारी दी है, उसके बारे में मैं समझता हूँ कि जिम्मेदारी कोई छोटी बड़ी नहीं होती है। जिम्मेदारी निभाने का जो इंसान का जज्बा होता है, उसके साथ ही जिम्मेदारी की कीमत होती है। मुझे जिम्मेदारी दी गई है हरियाणा पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी के कल्याण की। मेरे निगम के तहत माईनोरीटीज, कन्वीक्ट सैक्शंस और विकलांगों को भी जोड़ा गया है। हमारी निगम एक चैनेलाइजिंग एजेन्सी है, जो केन्द्र की निगमों के साथ जुडक़र, वहां से पैसा लाकर, यहां पर इन वर्गों के कल्याण के लिए देती है। कोई भी स्वयं रोजगार स्थापित करने के लिए निगम से पैसा ले सकता है।
पिछली सरकारों की जो उदासीनता रही इन निगमों के प्रति, उसका यह हाल था कि जब मैंने इस निगम का कार्यभार संभाला, तब इसमें 26 प्रतिशत कर्मचारी थे। इसमें निगम की टीम भी आ गई और प्रदेश के मुख्यालय की टीम भी आ गई। सन 2013 में हुड्डा सरकार ने कॉपरेटिव ऋण माफ किए थे और बिजली के बिल माफ किए थे तो उस समय निगम के लोगों ने कहा कि हमारे ऋण भी माफ करो। उन्होंने कह दिया कि तुम्हारे भी ऋण माफ किए जाते हैं। इसके बाद लोगों ने किस्तें देनी बन्द कर दीं। लेकिन, उनको यह मालूम नहीं था कि यह स्टेट का पैसा नहीं है। यह केन्द्र के निगमों द्वारा प्रदेश की गारंटी पर आया हुआ पैसा है। इसको लौटाना लाजिमी है। जब निगमों ने पैसा लौटाया ही नहीं तो केन्द्रीय निगमों ने पैसा देना बन्द कर दिया। हालात यह आ गए कि निगम के पास अपने लोगों को पैसा देने के लिए बजट शून्य हो गया। अल्पसंख्यक और विकलांग के पास भी शून्य बजट था। मैंने पिछले साल 11 दिसम्बर को चार्ज लिया था। उसके बाद मैंने निगम के सारे आंकड़े मंगाए, फाईलें मंगाई। मैं यह देखकर हैरान था कि इस निगम के पिछड़े वर्ग के लोग ही चेयरमैन थे, जैसे कि रामनिवास घोड़ेला, कुम्हार जाति से थे, इसी प्रकार अन्य लोग थे। वे लोग अपने निगम के प्रति इतने उदासीन थे कि वे कभी ऑफिस ही नहीं आए। वे महीने में एक बार आए, अपना टी.ए./डी.ए. लिया, पेट्रोल के पैसे लिए और चम्पत हो गए। कोई किसी का ध्यान ही नहीं था। मैंने जब मुख्यमंत्री जी के सामने सारे आंकड़े प्रस्तुत किए तो वे भी हैरान थे कि क्या हाल हो गया था निगम का।
चार्ज संभालने के बाद मैंने निगम से संबंधित जितने विभाग थे, सभी से सम्पर्क किया। मैं केन्द्रीय पिछड़ा वर्ग कॉरपोरेशन, विकलांग कॉरपोरेशन, अल्पसंख्यक कॉरपोरेशन आदि सभी जगह गया तो उन्हें भी यह हैरानी हुई कि आज हरियाणा से पहली बार कोई चेयरमैन आया है। उन्होंने मुझे बताया कि दक्षिण भारत के लोग, गुजरात के लोग इतना पैसा यहां से ले जाते हैं, स्टेट सरकारें गारंटी देती हैं। हरियाणा से ऐसा कोई आदमी नहीं आता। आप हरियाणा से पहले ऐसे चेयरमैन हो जो यहां आए हो। मेरी अपील पर उन्होंने तुरन्त 3.5 करोड़ रूपया विकलांगों के बजट में, 7.5 करोड़ रूपया अल्पसंख्यक बजट में हरियाणा प्रदेश के लिए जारी कर दिया। लेकिन, पिछड़े वर्ग के बजट में दिक्कत यह थी कि जितनी पिछली बकाया किस्तें थीं, जो देनी बन्द कर दी गईं थीं, जब तक वो पेमेंट नहीं होंगी, तब तक नई धनराशि नहीं दी जानी थी। मैंने इस सन्दर्भ में हमारे संबंधित आईएएस अधिकारी और हमारे मंत्री कृष्ण बेदी के सामने सारे आंकड़े व तथ्य प्रस्तुत किए तो हमारा काफी अच्छा बजट इस बार पास हो पाया। जल्द ही पिछड़े वर्ग के लोगों को देने के लिए पैसा आ जाएगा।
इसके साथ-साथ मेरा निगम मोदी जी के स्कील इंडिया कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग दिलवाने का काम करती है। लेकिन मैं तब बेहद हैरान हुआ कि जब मैंने यह पूछा कि आप हरियाणा के कितने लोगों को टे्रनिंग करवा सकते हो तो उन्होंने मुझे जो सूची दी, वो 16 से 90 सीटों की सूची थी। 600 सीटें सीपेड इंस्टीच्यूट मुरथल, सेन्टर इन्स्टीच्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीरियरिंग, प्लंबरिंग, टैक्सटाईल सैक्टर और हारट्रोन कम्प्यूटर सैंटर की थीं। लेकिन, कोई आदमी ऊपर जाता ही नहीं था। कागजों में खानापूर्ति की और सब पैसा हजम कर लिया अधिकारियों से मिलकर। कभी किसी को ट्रेनिंग दिलवाई नहीं जाती थी। मैंने तमाम इंस्टीच्यूट से सम्पर्क किया और उनसे कहा कि मैं तुम्हें स्टूडैंट दूंगा और प्रशिक्षण के लिए वास्तविक खर्च दूंगा। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अभी तक 200 से 300 बच्चों को विभिन्न प्रकार की टे्रनिंग दिलवाई हैं और आगे भी ये टे्रनिंग जारी रखने के दिशा-निर्देश दे दिए हैं। क्योंकि अपना हाथ, जगन्नाथ होता है।
मुझे तब बेहद पीड़ा होती है, जब कोई आर्टिजन श्रेणी का व्यक्ति चपड़ासी या फिर हैल्पर की नौकरी मांगने आता है। अगर, उनके हाथ में कारीगरी हो तो वे अपने स्वयं के रोजगार स्थापित करके अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जा सकते हैं। मैंने इस ओर पूरा ध्यान दिया है। इन टे्रनिंग्स के लिए मैंने तमाम डीम्स को आदेश दे दिए हैं। वे बच्चों को इन टे्रनिंग्स को लेने के लिए प्रेरित करें। उन्हें टे्रनिंग देने के बाद स्वरोजगार स्थापित करने के लिए निगम से ऋण दिलवाएं। मेरा मानना है कि हर काम में चुनौती होती है। हर काम में गुंजाईश होती है। हर काम में एक मौका होता है। यह तो काम करने वाले पर निर्भर होता है। मैं तो किसी काम को छोटा या बड़ा नहीं मानता। सरकार और मुख्यमंत्री का साथ हमारे साथ है। उन्होंने कहा है कि आप स्कीम बनाकर हमें दीजिए, पिछड़ों के कल्याण के लिए आप जितना कर सकते हैं, करिए, बजट हम देंगे। ऐसे में मुझे उम्मीद है कि हरियाणा में मैं इस निगम का अच्छा काम चला पाऊंगा। यह सब सरकार के आशीर्वाद से चलेगा।
सवाल : आपके इन रचनात्मक प्रयासों के सकारात्मक परिणाम समाज में कब तक देखने को मिलने लग जाएंगे?
रामचन्द्र जांगड़ा : देखिए, जैसे छोटी सी छोटी टे्रनिंग एनएलटी की है, नैशनल टू ग्रो टे्रनिंग सैन्टर हैं हापुड़ और गाजियाबाद के बीच में। उनकीं सबसे कम अवधि की टे्रनिंग 3 महीने की है। प्लेसमेंट की गारंटी है। उनमें हमें अभी कुछ बच्चे भेजे हैं। सीपेड टे्रनिंग के लिए 40 बच्चों का एक बैच भेजा है, जोकि 4 महीने का है। दो बैच 6 महीने की टे्रनिंग के लिए चल रहे हैं। ये दोनों ही इंस्टीच्यूट ऐसे हैं, इसमें टे्रनिंग प्लेसमेंट गारंटी के साथ के साथ होती है। टे्रनिंग पूरी होते ही वहीं से कम्पनियां इन बच्चों को ले जाती हैं। डिमाण्ड हो जाती है, क्योंकि हाथ का जो कारीगर है, उसकी डिमाण्ड ऑन ओवर वल्र्ड है। हिन्दूस्तान की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष की उम्र से कम की है। अगर इस देश के लोगों के हाथ में दक्षता दे दी जाए तो मैं कहता हूँ कि हम पूरे विश्व पर छा सकते हैं। विश्व में कहीं भी इस उम्र के इतने काम करने वाले लोग नहीं हैं। इसलिए, पूरे विश्व पर भारत छा सकता है। मैं समझता हूँ कि इसके सकारात्मक परिणाम इस साल के अन्दर आने शुरू हो जाएंगे। बच्चे जैसे-जैसे टे्रनिंग लेकर जाएंगे, वैसे-वैसे उनकीं प्लेसमेंट होगी। वह पड़ौसी को बताएगा, उसके गाँव में पता चलेगा। इस तरह लोगों का इस तरफ रूझान होगा। इसीलिए मैं समझता हूँ कि एक वर्ष तक बहुत अच्छे परिणाम इसके आ जाएंगे।
सवाल : पिछड़ों में भी आर्थिक रूप से अति पिछड़े हैं। क्या आपके निगम में उनके लिए कोई खास योजनाएं हैं, जिनका वे लाभ उठा सकें?
रामचन्द्र जांगड़ा : देखिए, वैसे तो पिछली सरकार के कार्यकाल में पिछड़े लोगों के लिए बहुत भारी ज्यादती हुई। बीपीएल सर्वे में इतनी धांधली हुई हैं, बड़ी-बड़ी हवेलियों वाले बीपीएल के राशनकार्ड बनवाए हुए हैं और जो पात्र लोग हैं, वे दर-दर भटक रहे हैं। बीपीएल की एक पात्रता रख दी कि बीपीएल श्रेणी का परिवार ही इस लाभ का ले सकेगा। हमारी सरकार ने उस बीपीएल की कंडीशन को खत्म कर दिया है। गरीब आदमी कोई भी हो, जिसकी सालाना आमदनी 98,000 रूपये है, और शहरी क्षेत्र में सालाना आय 1 लाख 20 हजार रूपये है, वो तहसीलदार से या पटवारी से लिखवाकर कि इसकी आमदनी इतनी है, का सर्टिफिकेट बनवाकर इन योजनाओं का लाभ ले सकता है। अब उनके लिए बीपीएल कार्ड दिखाना जरूरी नहीं है। लेकिन, अभी मैंने काफी जगह ऐसा देखा है कि हरियाणा को हम लें तो एक चपरासी का बच्चा भी 98,000 की सालाना आमदनी की सीमा को पार कर जायेगा। एक क्लर्क का बच्चा भी इस सीमा को पार कर जायेगा। इसीलिए, वह इन योजनाओं का लाभ नहीं ले सकेगा। मैंने तमाम कॉरपोरेशन के जो दस्तावेज मंगवाए, उनसे मुझे अभी पता चला कि पिछली यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए 6 लाख की क्रीमिलीयर की सीमा तय कर दी। जिनकीं सालाना 6 लाख रूपये आमदनी है, इन योजनाओं का लाभ ले सकता है। अभी मैं हरियाणा सरकार की तरफ से भारत सरकार को पत्र भेजने की तैयारी कर रहा हूँ कि जब अल्पसंख्यक समुदाय के लिए यह छूट है, जब 6 लाख सालाना आमदनी वाला व्यक्ति तमाम योजनाओं का लाभ ले सकता है तो पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए ऐसा क्यों नहीं है? इनकों भी आरक्षण का लाभ क्रिमीलेयर से नीचे को ही मिलता है। मैं यह पूरा प्रपोजल बना रहा हूँ। इसके लिए मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से समय मांगा है। थावरचन्द गहलोत, जो केन्द्र में हमारे मंत्री हैं, सोशल जस्टिस एण्ड एम्पावरमैंट मिनिस्टर, उनको हम अपनी यह प्रपोजल देंगे। मेरी यह कोशिश रहेगी कि पिछड़ी श्रेणी के लोगों की भी आमदनी की जो सीमा है, वो भी 6 लाख रूपये तक की हो जाए। इसके बाद नीचे से लेकर, ऊपर तक का आदमी भी इन योजनाओं का लाभ ले सकेगा। मुझे उम्मीद है कि यह मैं बढ़वा लूंगा। इसके बाद हर व्यक्ति तक इस योजना का लाभ पहुंच जाएगा।
सवाल : आपकी योजनाएं अनपढ़ लोगों के बीच सहज रूप से चली जाए। ऑन लाईन योजनाएं अंग्रेजी में हैं। सरकारी बाबू गरीब लोगों से सीधे मुंह बात नहीं करते हैं। ऐसे में आपकी तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
रामचन्द्र जांगड़ा : अभी हमारे जितने परफोर्मे हमारे कॉरपोरेशन के हैं, उसके डबल पेज हैं। एक तरफ पूरी जानकारी अंग्रेजी में है, दूसरी तरफ हिन्दी में है। मैंने यह प्रावधान करवा दिया है। इसके साथ हमने सभी योजनाओं के पम्पलेट्स छपवा लिए हैं। वो मेरे चण्डीगढ़ के मुख्य कार्यालय में चुके हैं। हम उन्हें जिला स्तर पर बंटवाएंगे। हमारे पास स्टाफ की कमी थी। मैंने हरियाणा सरकार को स्टाफ की भर्ती के लिखा है। जितनी हमारी सैंक्शंड सीटें हैं, वे जल्दी ही भर देंगे एक महीने के अन्दर। जब हमारे फील्ड ऑफीसर्स की भर्ती हो जाएगी तो पम्पलेट्स देकर हम गाँव स्तर पर हम उन्हें रोजाना लक्ष्य देंगे कि तीन गाँवों में उन्हें जाना है और लोगों को इन योजनाओं की जानकारी देना है। कम से कम मेरे कॉरपोरेशन में लोगों को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा।
सवाल : चेयरमैन बनने से पहले आप अक्सर कहते थे कि पिछड़ा वर्ग कल्याण निगम अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाया है। आपने बताया था कि इस निगम का टार्गेट 40 फीसदी था, जोकि मुश्किल से 2.5 प्रतिशत भी नहीं हासिल हुआ। क्या आप उस 40 प्रतिशत के टार्गेट को लेकर चल रहे हैं और यदि हाँ तो उसमें कितना टार्गेट आप हासिल कर पाए हैं? आप 40 प्रतिशत टार्गेट कब तक हासिल कर लेंगे?
रामचन्द्र जांगड़ा : देखिए, वर्ष 1980 में इस निगम की स्थापना हुई थी और 2015 तक इन 35 सालों में, जैसाकि आपको पता ही है कि निगम का जो निर्धारित क्षेत्र है, वह 27 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग, 8 प्रतिशत अल्पसंख्यक और 2.5 विकलांग के हिसाब से कुल मिलाकर 37-38 प्रतिशत बनता है। लेकिन, अब तक यह जितने लोगों तक पहुंच पाया है, वो केवल 2.4 प्रतिशत मात्र है, जिनमें 1 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग के लोग, 0.4 प्रतिशत विकलांग श्रेणी के लोग और 1 प्रतिशत अल्पसंख्य के लोगों तक पहुंच पाया है। ये पिछली सरकारों की उदासीनता का साक्ष्य है कि वे कितने इस बात के प्रति गम्भीर थे कि गरीब लोगों को ऊपर उठाया जाए। इस बात से आप अन्दाजा लगा सकते हैं। मैंनें यह सारे आंकड़े मुख्यमंत्री जी को दिए। वे भी यह सब देखकर हैरान थे, हमारे मंत्री भी हैरान थे और आईएएस ऑफीसर भी हैरान थे कि आपने ही ये आंकड़े निकालकर दिए हैं। अब तक तो इन पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया था। जब हम 40 प्रतिशत आबादी को कवर करते हैं और 35 साल में अब तक मात्र 2.4 प्रतिशत को ही पहुंच पाए हैं तो यह क्या दर्शाता है? इस निगम की उपयोगिता क्या है? केवल एक पोलीटिकल आदमी को खुश कर दिया जाए, उसको लाल बत्ती की गाड़ी दे दी जाए, टीए/डीए दे दिया जाए, मानदेय दे दिया जाए और सरकारी सुविधाओं का लाभ लेकर ऐश करता फिरे? केवल मात्र यही उद्देश्य रहा है अब तक। लेकिन, हम जो चेयरमैन बनाए गए हैं तो मुख्यमंत्री का सख्त आदेश है कि आप काम करने के लिए बनाए गए हैं। हमारा भी जीवन में एक उद्देश्य है कि हम लोगों के लिए काम करें। हमें जो जिम्मेदारी दी गई है, उसको बखूबी निभाएं। हमारे सामने प्रमुख दिक्कत थी कि पिछली सरकार ने ऋण तो माफ कर दिए, लेकिन उनकीं किस्तें ऊपर पहुंची नहीं। मैंने 11 करोड़ 70 लाख रूपए की एक किस्त ऊपर पहुंचवा दी और 27 करोड़ की जल्दी ही एक और किस्त वहां पर चली जाएगी। जब सेन्ट्रल कॉरपोरेशन से पैसा आना शुरू हो जाएगा, मैं समझता हूँ कि मैं अपने इस एक ही कार्यकाल में मैं लगभग पूरे हरियाणा के लोगों तक पहुंच बना लूंगा। यह मेरा उद्देश्य है।
सवाल : आपने कुछ समय पहले भाजपा के न्याय मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में सभी वर्गों को उत्तर प्रदेश की तर्ज पर सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले के तहत हिस्सा देने का सुझाव दिया था। उस सोशल फार्मूले के बारे में कुछ बताएंगे?
रामचन्द्र जांगड़ा : देखो, एक समय था जब समाज द्वारा शासित अर्थव्यवस्था इस देश में थी। किसान के खलिहान से सबका हिस्सा बंट जाता था। जितने भी भूमिहीन कारीगर लोग थे, चाहे वो मजदूर लोग थे, खेती से सम्बंधित लोग थे, चाहे वे खेत में मजदूरी करते थे या खेती के उपकरण बनाते थे। उन सबका हिस्सा खेत से ही निकल जाता था। इसे समाज द्वारा शासित अर्थव्यवस्था बोलते हैं। लेकिन, आज वो व्यवस्था नहीं रही, अब मशीनी युग आ गया है। इससे ग्रामीण कारीगर की उपयोगिता खत्म हो गई है। मशीनी युग में हमें भी अपनी दक्षता में परिवर्तन करना पड़ेगा। आज अगर हम काठ के घर बनाएं तो कोई नहीं बनवाएगा। कड़ी के घर बनवाएं तो कोई नहीं बनवाएगा। लेंटर का और बीस-बीस मंजिली इमारतों को बनाने की टैक्नोलोजी सीखनी पड़ेगी। आज यह मामला आ गया है कि पिछले काफी दिनों से सत्ता केन्द्रित अर्थव्यवस्था हो गई। सत्ता में जिसकी हिस्सेदारी है, वो लोग लाभ लेते रहे, बाकी लोग वंचित रह गए। इसमें पिछड़े वर्ग के लोगों को सबसे ज्यादा घाटा हुआ। पिछड़ी श्रेणी के लोग काफी बिखरा हुआ समाज है। इसकी आबादी तो बहुत ज्यादा है। लेकिन इक्कठी नहीं है। किसी गाँव में दस घर मिल जाएंगे, किसी में बीस मिल जाएंगे। किसी में पाँच मिल जाएंगे और किसी में पचास मिल जाएंगे। बिखरी हुई वोट हैं। बिखरी हुई वोट के कारण किसी राजनीतिक पार्टी को इनकीं सामूहिक ताकत दिखाई नहीं देती। इसलिए यह टिकटों से वंचित रह जाते हैं। वो अन्दाजा लगा लेते हैं कि इस क्षेत्र में इतनी वोट हैं, इस क्षेत्र में इतनी वोट हैं। अब लोगों में जैसे-जैसे राजनीतिक चेतना आई है, अब लोगों का एक उद्देश्य बना है कि हमारी भी राजनीतिक में हिस्सेदारी हो, ताकि जहां पर हक हो हकूक का बंटवारा होता है विधानसभा या लोकसभा में, हमारा कोई आदमी वहां जाकर आवाज उठाए तो हमारे लिए भी देश के बजट में प्रावधान आएगा। यह एक आम धारण बनी है और यह सत्य भी है। इसमें कोई दो राय नहीं है। पिछले दिनों जिन लोगों का भी वहां प्रतिनिधित्व था, वो अपना बांटकर खाते रहे। जिनकी भागीदारी नगण्य थी, उनको नगण्य लाभ मिला। यह होता रहा है। समाज में जिस प्रकार की चेतना है। सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला देश में है। जो पार्टी इनको प्रतिनिधित्व देती है, जैसे पूरे देश में एक सन्देश गया, पिछड़ी श्रेणी के एक साधारण परिवार का एक आदमी नरेन्द्र मोदी, एक तेली परिवार में जन्म लिया, जिसने चाय बेची बचपन में, उसको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया भाजपा ने। इसका सकारात्मक सन्देश पूरे देश में गया और पूरे देश की पिछड़ी श्रेणी, जिसकी देश में 52 प्रतिशत आबादी है, उसे यह लगा कि पहली बार हमारा कोई आदमी सत्ता के शिखर पर बैठेगा। इसका लाभ बीजेपी को मिला। इसी प्रकार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि में जहां-जहां प्रतिनिधित्व दिया, वहां-वहां अच्छे सकारात्मक परिणाम आए। यू.पी. का उदाहरण ले लें। जिस समय कल्याण सिंह का नेतृत्व था, वह जन कल्याण के मामले में भी और सुशासन के मामले में भी प्रदेश में अब तक का सबसे अच्छा शासन रहा। यह सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला जहां भी अपनाया गया, वो कामयाब हुआ है। भारतीय जनता पार्टी जाति-पाति में विश्वास तो नहीं करती, लेकिन उसका अंतिम आदमी तक का यानी अन्त्योदय का सपना है। अंतिम आदमी का जो पैमाना है, उसमें पिछड़ी श्रेणी के लोग ही आते हैं। मैं समझता हूँ कि सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हरियाणा में कम था, मुझे भी आखिरी में टिकट दी गई थी। लेकिन, लोगों को लगता था कि हमें ऐसी सरकार अपनानी है जो सबका साथ, सबका विकास का सपना पूरा कर सके और जातिवाद व क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर प्रदेश का विकास कर सके। उस पैमाने पर बीजेपी खरी उतरती थी। सबको पता है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल जी न तो वो जाति-समुदाय की तरफ झुकाव करते हैं, न परिवारवाद के पोषण का कोई मामला है, जीरो टोलरेंस का उनका मकसद है। यह भी एक सोशल इंजीनियरिंग का ही मामला है। जिस समुदाय के लोग कल्पना नहीं कर सकते थे कि हरियाणा जैसे राज्य में कि उनका भी कोई मुख्यमंत्री होगा। लेकिन, जो भी व्यक्ति राष्ट्र के प्रति समर्पित है, बचपन से संघ का एक उद्देश्य लेकर राष्ट्र के लिए लड़ाई लड़ रहा है, वही बीजेपी का उम्मीदवार है। बीजेपी इस बारे में ऐसा ही सोचती है। वह केवल जाति का नहीं सोचती, न वर्ग सोचती। जो राष्ट्र का सोचता है, वही बीजेपी कोटे से आता है। इस मामले में समझता हूँ कि चाहे सोशल इंजीनियरिंग का मामला कह लो या अच्छे लोगों को आगे लाने का मामला कह लो। आगे आने वाले समय में भी बीजेपी में अच्छे लोगों को प्रतिनिधित्व मिलेगा। हम अपनी पार्टी में भी आवाज उठाते रहते हैं। मैं जिस समय बीजेपी में आया, उस समय पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ बनाया गया था। इस प्रकोष्ठ की बीजेपी में कोई ज्यादा मान्यता नहीं होती है। प्रकोष्ठ में एक प्रदेश का संयोजक होता है, एक सह-संयोजक होता है, एक जिले में संयोजक होता है। उसकी कोई टीम नहीं होती। न प्रदेश का पदाधिकारी माना जाता, सिर्फ कार्य समिति का मेम्बर होता है। मैंने संविधान देखा, मैं बड़ा हैरान था। कैसे सत्ता में आएंगे हम? इतने बड़े वर्ग के प्रति संगठन में यह उदासीनता है? मैंने राजनाथ जी के समक्ष ये मुद्दा उठाया, मैंने राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल जी के सामने भी यह मुद्दा उठाया। उनकीं समझ में भी यह बात आई। उन्होंने कहा कि हम पिछड़ापन का नाम हटाना चाहते हैं। इसका कोई दूसरा नाम सुझाओ। सबकी समझ में आया कि इसका कोई मोर्चा बनाया जाए व सामाजिक न्याय मोर्चा नाम रखा जाए। मोर्चे की संगठन में कीमत है। मोर्चे की जो अध्यक्ष है, वो प्रदेश का प्रदेन पदाधिकारी होता है। मतलब, प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश उपाध्यक्ष, महामंत्रियों की टीम के अन्दर बैठता है। मोर्चे का कोई भी अध्यक्ष, चाहे वो महिला मोर्चा हो, चाहे अनुसूचित जाति मोर्चा हो या युवा मोर्चा हो। अब यह पिछड़ा वर्ग मोर्चा भी बन गया है। इस तरफ मैंने पूरा प्रयास किया। मुझ पर आज तक जो भी जिम्मेदारी आई है, मैं उसकी तह तक गया हूँ कि इसको बखूबी कैसे निभाया जाए? इस बात मैं अपने आप पर फक्र भी कर सकता हूँ कि पार्टी ने इस बात पर ध्यान दिया और आज ओबीसी मोर्चा पूरे देश में है, राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.पी.एस. बघेल बने हुए हैं। बाकायादा 11ए अशोका रोड़ पर इसका राष्ट्रीय स्तर का कार्यालय है। इससे पहले बीजेपी कार्यालय में कम से कम पिछड़े वर्ग का कोई अलग से कमरा नहीं था।
सवाल : आप पिछले काफी लंबे समय से पिछड़ों की आवाज बुलन्द करते आए हैं। इससे पिछड़ों में आपके प्रति गहरी साख है। आप अन्य सरकारों पर आरोप लगाते आए हैं कि किसी ने भी पिछड़ों को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। चूंकि, आप बीजेपी में हैं, तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि भाजपा सरकार में पिछड़ों को उनका पूरा प्रतिनिधित्व मिल जायेगा?
रामचन्द्र जांगड़ा : मैं यह कह सकता हूँ कि हमारी सरकार में भेदभाव की कोई गुंजायश नहीं है। कोई अपने आपको कितने ही ऊंचे खानदान का कहता हो, कितनी ऊंची जाति का कहता हो, कितना प्रभावशाली अपने आपको मानता हो, यहां पर किसी व्यक्ति को जाति के नाम पर, या उसकी संख्या के नाम पर नहीं भुनाया जा सकता। यहां पर वही होगा, जो न्यायपूर्ण है। पिछले समय में यह होता रहा कि जहां भी जिसका कोई प्रभावशाली आदमी था, चाहे वो जीरो प्रतिशत नंबर लिए हुए था, उसको आगे ला दिया गया, मैरिट का बच्चा पीछे धकेल दिया गया। लेकिन, हमारी सरकार ऐसा कुछ नहीं होगा। मैरिट के आधार पर सारी नियुक्तियां हो रही हैं। सैंटिंग के जरिए जो पीछे लोग लाभ उठाते थे, आज वे बैचेन हैं। आज उनमें व्याकुलाहट है। पीछे जो आरक्षण का जो आन्दोलन था, यह आरक्षण का कम था, सत्ता पलट का ज्यादा था। यह इसीलिए था कि हमारी सरकार ने भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेंस की नीति अपनाई। तहसीलों की नीलामी बन्द हो गई। थानों की नीलामी बन्द हो गई, जो कामचोर कर्मचारी थे, उन्हें सुबह आते और शाम को जाते समय बायोमीट्रिक मशीन पर जाकर अंगूठा लगाना पड़ गया। ऑनलाईन रजिस्ट्रियां शुरू कर दीं। ऑनलाईन एफआईआर शुरू कर दीं। कितनी बार लोगों को न्याय नहीं मिलता था। अगर कोई एक्सीडेंट हो जाता तो कोई कहता यह हमारा क्षेत्र नहीं और कोई कहता कि यह हमारा क्षेत्र नहीं है। पहले जीरो एफआईआर शुरू कर दी कि पहले एफआईआर शुरू करो, थाने का फैसला बाद में हो जाएगा। महिला थाने शुरू कर दिए। तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ था, चाहे पैन्शन को मामला हो, तमाम खातों में पैसा आना शुरू हो गया। चाहे गैस सिलेण्डर का मामला हो, उनकीं सब्सीडी का पैसा तमाम खातों में आना शुरू हो गया। अब आदमी घट गए या गैस बढ़ गई? आज कहीं गैस सिलेण्डरों के लिए लाईनें नहीं लगतीं। किसी समय जाओ, अपना कार्ड दिखाओ और गैस का सिलेण्डर ले आओ। पहले गैस सिलेण्डर के लिए लोग सुबह चार बजे लाईन में खड़े होते थे। तकरीबन 11 बजे नंबर आता था और फिर कहते कि आज सिलेण्डर खत्म हो गए, कल आना। आज किसी भी वक्त जाओ, कार्ड लो, पर्ची कटवाओ और सिलेण्डर लो। ये सब इसीलिए है कि हमने सिस्टम को ठीक कर दिया। इस सिस्टम से पहले जो लोग लाभ उठा रहे थे करप्शन से लाभ उठा रहे थे, वो लोग बैचेन थे, वो लोक सरकार को पलटना चाहते थे। इसीलिए, उन्होंने हिंसा का रास्ता अपनाया, ताकि सरकार अस्थिर हो जाए। लेकिन, वो लोग कामयाब नहीं हो सके। आज सारे समाज को समझ में आ गया है, जाट समाज की समझ में भी आ गया है कि जिसने भी यह रास्ता अपनाया है, वह गलत है। हर आदमी जो देश की सोचता है, प्रदेश की सोचता है, समाज समरसता की सोचता है, वो अब इस बात को सोचने के लिए बाध्य है कि यह सरकार सही रास्ते पर है और यही प्रदेश की प्रगति का रास्ता है।
सवाल : नौकरियों के मामले में पिछड़े लोगों का बैकलॉग आज तक नहीं भरा गया है। एचपीएससी में भी पिछड़ों को आज तक 27 प्रतिशत की बजाय मात्र 10 प्रतिशत ही आरक्षण दिया जा रहा है। यह बैकलॉग कब भरा जायेगा और कब एपीएससी में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा?
रामचन्द्र जांगड़ा : यह वर्ष 1995 में भजनलाल सरकार ने पिछड़े वर्ग के साथ सबसे बड़ा धोखा किया था। मण्डल कमीशन की रिपोर्ट वर्ष 1990 में ही आ गई थी और वर्ष 1991 तक तकरीबन पूरे देश में यह रिपोर्ट लागू हो गई थी, केवल हरियाणा को छोडक़र। हरियाणा में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल ने इस बारे में एक और नया तीन सदस्यीय आयोग बैठा दिया, जिसके अध्यक्ष देशराज कम्बोज और परमानंद व जयनारायण वर्मा सदस्य थे। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भजनलाल ने अपनी मर्जी से पिछड़ों की ‘ए’ और ‘बी’ कैटेगरी बनाई। ‘ए’ कैटेगरी में 16 प्रतिशत रिजर्वेशन क्लास थ्री और फोर तक दे दी गई। ‘बी’ कैटेगरी में 11 प्रतिशत और वह भी क्लास थ्री और फोर तक। लेकिन, जो क्लास वन और टू की पोस्ट थी, उन दोनों को क्लब कर दिया और क्लब करके पुराने 10 प्रतिशत आरक्षण को ही जारी रख दिया। यह बहुत बड़ा अन्याय था। वर्ष 1995 के बाद पिछड़ा वर्ग की गेजेटेड पोस्ट की भर्ती लगभग शून्य हो गई है, क्योंकि दूसरी जो पाँच जातियां शामिल की गईं थीं, वो राजनीतिक रूप से सुदृढ़ थीं, चाहे वे यादव थे, चाहे गुज्जर थे और चाहे सैनी थे। उन तक ही यह लाभ जाता रहा। लेकिन, जो मूल रूप से पिछड़े श्रेणी के लोग थे, चाहे वे झीमर थे, तेली थे, तम्बोली थे, कुम्हार थे, नाई थे, खाती थे, लुहार थे, उनका प्रतिनिधित्व क्लास वन और टू में एक तरह से नगण्य हो गया। लेकिन, लम्बे समय तक यह चलता रहा है। किसी सरकार ने इस तरफ कोई कदम उठाया नहीं। अब जो नया नोटिफिकेशन हुआ है, इसमें 16 प्रतिशत 10 और 6 मिलाकर कर दिया है। यानी 10 से बढ़ाकर 16 कर दिया है। ‘ए’ कैटेगरी की जातियों को 10 प्रतिशत दे दिया है और ‘बी’ कैटेगरी की 5 जातियों को 6 प्रतिशत दे दिया है। इस तरह नए नोटिफिकेशन के मुताबिक यह आरक्षण 10 से बढक़र 16 हो गया है। इससे भी पिछड़े वर्ग के लोगों को बहुत बड़ा सहारा मिल जायेगा। लेकिन, भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम आएंगे। केवल मात्र नौकरियों के आधार पर समाज का विकास नहीं हो सकता है। प्रदेश की आबादी 2.5 करोड़ है, उसमें तीन लाख नौकरियां हैं। इस तरह केवल 1.5 प्रतिशत नौकरियां बनती हैं। नौकरी तो एक अलग चीज है विकास के लिए, इसका मैं समर्थक हूँ। लेकिन, तकरीबन जो कारीगर जातियां हैं, चाहे वह छिप्पी है, चाहे लुहार है, चाहे कुम्हार है, उनकीं कलाओं की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। अब झज्जर में एक कुम्हार भाई हैं। उसके बर्तन विदेशों में भी एक्सपोर्ट होते हैं। वह बढिय़ां कलात्मक चीजें बनाता है। लेकिन किसी कुम्हार को मिट्टी खोदने के लिए जगह नहीं दी गई। आवे-पजावे लगाने की जगह नहीं दी गई। जहां पर पजावे लगते थे, वहां पर पंचायती जमीन पर लोगों ने कब्जे कर लिए और वहां से कुम्हारों को खदेड़ दिया। ईंटे भट्ठे से आनी शुरू हो गई। ये प्रैक्टिकल चीजें हैं। कुम्हार तो वही गधे का मालिक रह गया। भ_े का मालिक तो कोई और बन गया। हमारी सरकार का यह इरादा है कि अगर मिट्टी की कला संसार को पकाने की कुम्हार ने दी है तो मिट्टी के सम्बंध में जितनी कलात्मक चीजें हैं और जितनी भी प्रोडक्शन है, चाहे वह ईंट बनाता है, चाहे मटका बनाता है, उसका मालिक भी कुम्हार ही होना चाहिए। वो तो अपने गधे लेकर आज तक मजदूर ही बना बैठा है। उसका मालिक तो कोई और है। हमारी सरकार यह चाहती है कि उनको इस स्तर तक ले जाया जाये कि उनको मालिकाना हक मिले और अपनी कला पर उनको पूरा का पूरा कब्जा हो। वो केवल मजदूर बनकर न रहे। उसके हाथ में जो कला है, उसको आधुनिक बनाने में मदद की जाये और उसे काम आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद दी जाये, ताकि वह समाज की अच्छी श्रेणी के नागरिक के रूप में आ सके। इस सरकार जो अंतिम आदमी के उदय का जो सपना है, हम समझते हैं कि एक कार्यकाल गुजरेगा, लोगों को पता चल जाएगा और फिर दूसरा कार्यकाल आयेगा तो एक नये भारत का निर्माण हो जायेगा और हमारा देश प्रबुद्ध भारत कहलायेगा। यह सब पिछड़ों की बदौलत ही कहलायेगा, क्योंकि यही इस देश का असली रचनात्मक वर्ग है, जिनके हाथों में सारी दक्षता है। इन सब पर समय की मार पड़ी है। लेकिन, सरकार का इस ओर ध्यान है। जो लोग आजादी की लड़ाई लड़े, 1857 की क्रांति के दमन के बाद, सांहसी, कांजर इनको 1870 के एक्ट के अनुसार जायरा पेशा घोषित कर दिया गया। इस तरफ किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। चोर-उचक्के उनको बना दिया गया। धक्के से उनपर चोरी के इल्जाम लगाकर थाने में बंद कर दिया जाता, दस नंबरी बना दिया जाता। हमारी सरकार ने पहली बार इस ओर ध्यान दिया है। जितनी घूमन्तू जातियां हैं, हम अलग से इनका आयोग बना रहे हैं, इनके बच्चों के लिए बोर्डिंग स्कूल बना रहे हैं। कुछ स्कूल चालू भी हो गए हैं। इनका अलग से एक सिस्टम चालू करके, चाहे गाडिय़ा लुहार हैं,चाहे सिपलीकर हैं, सिंगीकाट हैं, सपेरे हैं, बाजीगर हैं, ये सब जितनी घूमन्तू जातियां हैं, हम इनका अलग से बोर्ड बनाकर इनके विकास के लिए भी एक नया रास्ता तय कर रहे हैं। मैं समझता हूँ कि देश व समाज का जो एक रचनात्मक विकास होना चाहिए, उसकी ओर बीजेपी का ध्यान है। जैसे-जैसे समय आयेगा, इन सब प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सबके सामने आ जायेंगे।
सवाल : चेयर बनने के बाद आपको कौन-कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
रामचन्द्र जांगड़ा : हमें सबसे ज्यादा चुनौतियां का सामना करना पड़ता है, ब्यूरोक्रेसी से। देश की जो ब्यूरोक्रेसी, खास तौरपर आईएएस, आईपीएस का जो ढ़ांचा है, अब कुछ लोग रिजर्वेशन से आगे आ गए, जो उसी समाज से निकले थे, जो दलित की श्रेणी में था, वो अलग बात है। लेकिन, ज्यादातर गर्वनमेंट कल्चर के लोग इसमें आए। इस बारे में एक छोटा सा उदाहरण दे सकता हूँ। हरियाणा प्रदेश में न ठण्ड पड़ती, न मछली यहां खाई जाती, न कोई मीट खाया जाता और न मुर्गे खाए जाते। क्योंकि यह गरम प्रदेश है। लेकिन, यहां पर हेचरिज के नाम पर सब्सिडी, पोल्ट्रीज के नाम पर सब्सिडी, सुअर पालन पर सब्सिडी, मछली पालन पर सब्सिडी। इस प्रदेश का क्या बना दिया, जो दूध-दही का प्रदेश था। जो गर्वनमेंट कल्चर से जुड़े लोग होते हैं, वे इस तरह की योजनाएं बनाते हैं। वो राजनीतिक लोगों को आर्थिक फायदा का एक सपना दिखा देते हैं कि इससे इतना पैसा उनको भी मिल जाएगा, हमें भी मिल जाएगा। इस चक्कर में राजनीतिक लोगों को भी लपेट लेते हैं। लेकिन, हमारी पार्टी इससे अलग है। बीजेपी में पहले संघ के जरिए संस्कार डाले जाते हैं, उसके बाद में आदमी को राजनीति में लाया जाता है। जब तक संस्कारीत लोग राजनीति में नहीं आएंगे, तब तक ब्यूरोक्रेसी उनका दुरूपयोग करती रहेगी और अपने ढ़ंग से चलाती रहेगी। देश की योजनाओं को ऐसे ढ़ंग से चलाएगी जैसे राजनीति और ब्यूरोक्रेसी का आपस में गठजोड़ है, उसको यह फायदा मिलता रहे। लेकिन, अब वो गठजोड़ टूट गया है। ब्यूरोक्रेसी को भी पता चल गया है कि अब मछली पालन का, मुर्गे पालन का समय चला गया है और अब गौ पालन का समय आ गया है। अब गौ सेवा आयोग हरियाणा में बना है। ये एक शुरूआत है। देशों में देश हरियाणा, जहां दूध-दही का खाणा, कहते थे, उसके लिए गौ सेवा आयोग का पहली बार गठन हुआ है। अब मछली आयोग का समय गया, गौ सेवा आयोग का समय आ गया है। इसके सकारात्मक परिणाम बहुत जल्द आप सबके सकारात्मक परिणाम आ जाएंगे।
सवाल : सरकार बनने से पहले शायद ही किसी को उम्मीद थी कि भाजपा बिना किसी राजनीतिक गठबन्धन के हरियाणा में पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेगी। लेकिन, आपने सबसे पहले इसकी भविष्यवाणी कर दी थी। आपके इस विश्वास का क्या आधार था?
रामचन्द्र जांगड़ा : मेरा राजनीतिक अनुभव और राजनीतिक आकलन यह कह रहा था कि चौटाला की तानाशाही से लोग पीछा छुड़ाना चाहते हैं, हुड्डा के जातिवाद और भ्रष्टाचार से लोग पीछा छुड़ाना चाहते हैं। इन सबका विकल्प एकमात्र बीजेपी है। चौधरी भजन लाल का परिवार, कुलदीप बिश्नोई जो अपने आपको समझता था कि मैं गैर-जाट का नेता कहलाऊंगा, उसका यह वहम था। मुझे कम से कम यह अहसास था कि धरातल पर सच्चाई कुछ और है। बीजेपी के बारे में जो मान्यता है पिछड़ी श्रेणी की, वह एक अलग से मान्यता है। मुझे यह विश्वास था कि चुनावों के दौरान आखिरी समय में लोग यही निर्णय करेंगे कि हम उस पार्टी को वोट दें, जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद आदि से ऊपर उठकर काम करेगी। कुल मिलाकर लोगों की उम्मीदों पर जो पार्टी खरी उतरती थी, वह बीजेपी ही थी। मैं अन्दर से आश्वस्त था कि अंतिम समय में लोगों का निर्णय लेना पड़ेगा और इसी लाईन पर आना पड़ेगा। मेरा जो आकलन था, वह बिल्कुल सही साहित हुआ।
सवाल : जाट आन्दोलन के दौरान जिस तरह के दंगे हुए, कानून का मखौल उड़ा, यह सब कैसे हुआ? सरकार पर फेल होने के आरोप लग रहे हैं। आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?
रामचन्द्र जांगड़ा : देखो मैं जैसा कि पहले ही आपको बता चुका हूँ कि जो अधिकारी लोग 10 प्रतिशत या 15 प्रतिशत मन्थली आती थी, वो बन्द हो गई। सारे टेन्डर ऑनलाईन हो गए। रजिस्ट्रियां ऑनलाईन शुरू हो गईं। तहसीलों की बिक्री बंद हो गई। थानों की बिक्री बंद हो गई। एफआईआर जीरो शुरू हो गई। पूरा तंत्र बैचेन था। समाज में एक तंत्र था, जो सैटिंग करवाता था कि एचटेट पास करवाने के इतने पैसे हैं, नौकरी में इन्टरव्यु पास करवाने के इतने पैसे लगेंगे, रिटर्न टेस्ट पास करवाने के इतने पैसे लगेंगे, मलाईदार जगह पर पोस्टिंग करवाने के इतने पैसे लगेंगे। वो सारी चीजें जो बन्द हो गईं, उसमें कुछ कर्मचारी व अधिकारी वर्ग और कुछ समाज के जो इस किस्म का काम करते हैं, राजनीति में लाईजनिंग का काम करते थे, वे सारे के सारे लोग बैचेन थे। उन्होंने इसका फायदा उठाया। युवापीढ़ी को बहकाया और उकसाया कि आरक्षण से ही तुम्हारा विकास हो सकता है। जब लोग गलत रास्ते पर चल पड़े तो वे अधिकारी लोग पीछे हट गए और आपस में लड़ाकर आम जनता को मरने के लिए छोड़ दिया गया। ये सारी चीजें आपके सामने आ चुकी हैं। प्रशासनिक अधिकारियों के नाम प्रकाश सिंह कमेटी ने उजागर कर दिए हैं कि क्या अधिकारियों का रोल था और थानों को किस तरह छोडक़र भाग गए और किस तरह से अपनी जिम्मेदारियों से अलग हट गए। ये सब बातें सबके सामने आ चुकी हैं। पूरा तंत्र अब बैचेन है। वे सस्पेंड भी हो गए, कुछ टर्मिनेट भी होने शुरू हो गए हैं। सरकार भी यह नहीं सोचती कि कोई आदमी राजनीतिक फायदे के लिए और अपने स्वार्थ के लिए इस हद तक जा सकता है कि प्रदेश का सौहार्द ही समाप्त कर दे। इसमें हमारा आकलन हरियाणा की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार यह था कि कुछ भी हो, हरियाणा सामाजिक भाईचारे के लिए मशहूर है। इसमें जातिवाद की गुंजाइश नहीं है। लेकिन कुछ लोग इस बात को ले आए। लेकिन, अब लोगों की समझ में भी अब यह बात आ गई है कि सामाजिक सौहार्द ही विकास का एकमात्र रास्ता है। समाज में जब तक समरसता नहीं होगी, तब तक राजनीतिक स्वतंत्रता के भी कोई मायने नहीं इसमें जो लोग इसमें शामिल थे, चाहे वो यशपाल मलिक था, चाहे और लोग थे, सबके ऊपर मुकदमे दर्ज हैं। डीजीपी ने जो गीता का सन्देश है कि कोई आततायी का वध करने लगे तो कोई दोष नहीं लगता है, जो स्त्री का अपहरण करता हो, चाहे प्रोपर्टी को जला रहा हो और शस्त्र लेकर आपकी तरफ मारने के लिए दौड़ रहा हो, उसको गीता में आततायी की संज्ञा दी गई है और आततायी का वध करने में भी कोई दोष नहीं लगता है। हरियाणा प्रदेश के डीजीपी इस बात को खुले तौरपर कह चुके हैं। इस बात की कानून भी इजाजत देता है। मैं समझता हूँ कि जो असामाजिक ताकते थीं, उनके हौंसले पस्त हो गए हैं और भविष्य में हरियाणा में अमन-चैन के साथ विकास होगा।
सवाल : निष्पक्ष व पारदर्शी कार्यवाही के लिए विपक्ष प्रकाश सिंह आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की लगातार मांग कर रहा है। क्या प्रकाश सिंह आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए?
रामचन्द्र जांगड़ा : सार्वजनिक हो तो रही है। जिन-जिन अधिकारियों के उसमें नाम हैं, उनको लगातार दण्डित किया जा रहा है। एक-एक स्टैप बाई स्टैप सारे काम होते हैं। जरूरी नहीं रिपोर्ट को ही सार्वजनिक करके कोई टैस्ट लेना होता है। प्रकाश सिंह कमेटी की जो सिफारिशें जिन अधिकारियों के प्रति, जिन कर्मचारियों के प्रति या जिन लोगों का जो रोल रहा है, उन सबका आकलन मुख्यमंत्री जी के और सरकार के सामने है। जैसे अभी यशपाल मलिक के साथ-साथ 125 लोगों पर मुकद्मा दर्ज हुआ है, तीन एचएसीएस अधिकारी सस्पेंड हुए हैं, उनके नाम सबके सामने आए हैं, नौ डीएसपी सस्पेंड हुए, उनके नाम सबके सामने हैं और तकरीबन दर्जनों एएसआई व इंस्पेक्टर लेवल के लोगों को चार्जशीट व संस्पेंड किया गया है। जब ये सारी चीजें सामने आ रही हैं तो इस प्रकार रिपोर्ट अपने आप ही उजागर हो जाएगी कि किसके नाम थे और किनको दंडित कर दिया गया है।
सवाल : समीकरण और तथ्य बता रहे हैं कि इन दंगों के पीछे कुछ राजनीतिक नेताओं का भी हाथ था? क्या राजनीतिक नेताओं पर भी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए?
रामचन्द्र जांगड़ा : बाकायदा होगी और होनी भी चाहिए। चाहे वो मेरी पार्टी का भी हो और चाहे विपक्षी पार्टी का हो। जो अपने व्यक्तिगत राजनीतिक उद्देश्य के लिए प्रदेश का अमन-चैन खराब करता है, सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ता है तो सुनिश्चित रूप से उसका सन्देह सामने आ जाता है।
सवाल : जाट आरक्षण पर हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है। जाटों ने एक बार फिर 5 जून से आन्दोलन की घोषणा कर दी है। एक बार फिर पिछली पुनरावृति न हो, क्या सरकार ने इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है?
रामचन्द्र जांगड़ा : अब किसी को डरने की जरूरत नहीं है। अब दंगों की कोई गुंजाइश नहीं है। सरकार पूरी तरह सजग है। यह फैसला देश की सर्वोच्च अदालत का है। सरकार ने अपनी जिम्मेदारी को पूरा किया है। पिछली दफा भी सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया था। यूपीए सरकार के दौरान आरक्षण दिया गया। उसी सरकार के समय में इसे चैलेंज किया गया। हमारी सरकार के समय में इसका निर्णय आया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द किया। हमारी सरकार ने उस पर पुनर्विचार याचिका डाली। हमारी सरकार यही कर सकती थी। यह पुनर्याचिका भी रद्द हो गई। सर्वोच्च अदालत से ऊपर कोई नहीं। लेकिन, हरियाणा प्रदेश का सौहार्द बिगाडऩे के लिए संवैधानिक व्यवस्थाओं से ऊपर उठकर लोगों ने प्रदेश का नुकसान किया, तकरीबन लाखों करोड़ की सम्पत्ति जलाई गई। नुकसान तो हुआ है, हर जगह बिखराव हुआ है। लेकिन, सरकार ने तमाम खाप पंचायतों आदि को बुलाकर बीच का रास्ता निकाला और लोगों की मांग के अनुसार आरक्षण दे दिया। लेकिन, यदि वो कोर्ट में चैलेंज होता है तो सरकार उसमें क्या कर सकती है? कोर्ट में जाने का हर वर्ग और हर व्यक्ति को अधिकार है। कोर्ट से ऊपर न सरकार है और न व्यक्ति है। सरकार दोबारा हाईकोर्ट में दोबारा फिर जवाब दे देगी। संविधान में जो लिखा गया है, निर्णय उसी के अनुसार होता है। संविधान में आरक्षण का जो मूल आधार है, उसको सामाजिक आधार पर तय किया गया है। राजस्थान में भरतपुर और अलवर में दोनों मिलाकर जाटों को पिछड़ा मानकर आरक्षण दे दिया गया। हरियाणा में जाट सामाजिक रूप से पिछड़ेपन की श्रेणी में नहीं आता है। यह ठीक है कि आर्थिक रूप से पिछड़े जाट भी हैं, ब्राहा्रण भी हैं, बनिए भी हैं और पंजाबी वर्ग के लोग भी हैं। मैं समझता हूँ कि इसका सही रास्ता यही निकलता था। एक पिछड़े वर्ग की श्रेणी, एक दलित वर्ग की श्रेणी और एक आर्थिक पिछड़ेपन की श्रेणी में आरक्षण देना चाहिए। उस आर्थिक पिछड़े वर्ग की श्रेणी में चाहे जाट आता हो, चाहे ब्राहा्रण आता हो, चाहे पंजाबी आता हो, चाहे बनिया आता हो और चाहे ठाकुर आता है, उनको अलग से आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर अलग से आरक्षण की सीमा तय करके दे दिया जाए। बाकी जो पिछड़े वर्ग और दलित वर्ग हैं, उनको छेड़ा न जाए। यही एक सही रास्ता निकलता था। लेकिन, इन लोगों ने दबाव बनाया, जल्दबाजी की, दंगे किए और सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया। सरकार चाहती थी कि समाज में समरसता रहे। लोगों को लगे कि सरकार सबका साथ और सबका विकास कर रही है। सरकार ने तो सब कर दिया। लेकिन, यदि फिर भी यह कोर्ट में चैलेंज होता है तो न इसे सरकार रोक सकती है और कोई व्यक्ति रोक सकता है। संविधान के ऊपर न कोई नहीं है। पिछले दिनों हरियाणा में जो कुछ भी हुआ, उसकी हम जोरदार भत्र्सना करते हैं और निन्दा भी करते हैं। लेकिन, आगे सरकार सजग है। देश के संविधान से ऊपर जाकर यदि कोई देश की कानून व्यवस्था बिगाडऩे की कोशिश करेगा तो डीजीपी साहब भी, मुख्यमंत्री जी भी और पूरी सरकार कह चुकी है कि ऐसे लोगों को भविष्य में बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वो सरकारी कर्मचारी व अधिकारी हों और चाहे वो आम आदमी हो। प्रदेश के सौहार्द और कानूनी व्यवस्था को किसी भी हालत में बिगडऩे नहीं दिया जाएगा।
सवाल : आप समाज को क्या सन्देश देना चाहेंगे?
रामचन्द्र जांगड़ा : मेरा सन्देश यही है कि हरियाणा में छत्तीस कौम की बहू-बेटी को हर आदमी अपनी बहू-बेटी मानता था। बेटे की बारात लेकर जाता तो गाँव की बहन को सम्मान के तौरपर एक रूपया या दो रूपये की जो व्यवस्था थी, देकर आता था। ब्याह-शादी में आपस में न्यौंदा-निंधार होती थी, उसमें जाति-धर्म का कोई मामला नहीं था। सब लोग एक-दूसरे की मदद करते थे। दूसरे की बहन-बेटी को पूरी इज्जत व सम्मान देते थे। सुख-दु:ख में एक-दूसरे के काम आते थे। हरियाणा में कई बार भीषण अकाल पड़े, लेकिन कभी कोई भूखा नहीं सोया। लोग एक-दूसरे को संभालते थे कि कोई भूखा तो नहीं रह गया। वही समरसता और वही शांति हरियाणा में आए और वही सद्भाव हरियाणा के लोगों में पैदा हो, मेरा यह सपना है। सबका साथ और सबका विकास के रास्ते पर चल रही और भ्रष्टाचार विहिन सरकार का लोग पूरा सहयोग करें और हमारा जो अंतिम आदमी के उदय का जो सपना है, चाहे उसमें कोई जाट है और चाहे गैर-जाट है, वह पूरा हो। हर कोई पसन्द नहीं करता कि कोई किसी जाति का नाम ले। हम तो हरियाणा एक और हरियाणवी एक नीति के तहत छत्तीस बिरादरी का विकास करके चलते हैं। सामाजिक सद्भाव के साथ प्रदेश विकास के रास्ते पर आगे बढ़े, यही मेरा सपना है और यही मेरा सन्देश है।
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