23 सितम्बर/हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस विशेष
हरियाणा की शौर्यगाथा
-राजेश
कश्यप
हरियाणा प्रदेश की भूमि न केवल ऋषि-मुनियों, साधु-सन्तों
की पावनभूमि रही है, बल्कि यह जाबांज शूरवीरों, योद्धाओं, सूरमाओं और रणबांकुरों से
भी भरी रही है। प्रदेश की माटी का कण-कण वीरत्व से जगमगाता है। यहां प्राचीनकाल से
ही शौर्य, राष्ट्रपे्रम, बलिदान और वीरता की उच्च परंपराएं चिरस्थायी रही हैं। हरियाणा
की इस गौरवमयी छवि का इतिहास साक्षी है। यहां की कुरूक्षेत्र की पावन भूमि महाभारत
के धर्मयुद्ध में शहीद हुए शूरवीरों की अमिट कहानी को अपने अन्दर समेटे हुए है। हरियाणा
की भूमि पर ही तरावड़ी, पानीपत आदि कई ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ीं गईं। ऐतिहासिक तथ्यों को
टटोलते हैं तो पता चलता है कि जब विश्व विजयी सिकन्दर भारत पर विजय प्राप्त करने के
लिए भारत के अन्य प्रदेशों को विजित करता हुआ रावी नदी के तट पर भारी सैन्यबल के साथ
पहुंचा तो उसे हरियाणा के वीर सूरमाओं के अनुपम शौर्य के किस्से सुनने को मिले। हरियाणा
के रणबांकुरों की शौर्य गाथा को सुनकर सिकन्दर ने वापस लौटने में ही अपनी भलाई समझी
और वह सेना सहित चुपचाप वापिस लौट गया।
आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का इतिहास हरियाणा के
वीर रणबांकुरों की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है। हमारा देश लगभग अढ़ाई सौ वर्षों तक अंग्रेजों
का गुलाम रहा। गुलामी की इन बेड़ियों को काटने के लिए हरियाणा प्रदेश के शूरवीरों ने
अपनी अह्म भूमिका निभाई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीद होने वाले देशभक्त-शहीदों
की सूची में हरियाणा का नाम सर्वोपरि माना गया है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वीर
शहीदों में हरियाणा प्रदेश के अनेक शहीदों ने अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया।
इन सब देशभक्त शहीदों की गौरवगाथा का बखान जितना भी किया जाए, उतना ही कम होगा। जब 10 मई, 1857 को बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) की सैनिक
छावनी से वीर सिपाही मंगल पाण्डे की गोली से निकली चिंगारी ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
का आगाज किया तो हरियाणा में अम्बाला छावनी की 5वीं व 7वीं पलटनें भी इस संग्राम में
सिर पर कफन बांधकर कूद पड़ीं। अम्बाला के सैनिकों के विद्रोह के तीन दिन के अन्दर ही
रोहतक, गुड़गाँव, पानीपत, झज्जर, नारनौल, रेवाड़ी, हाँसी, हिसार आदि सब जगह विद्रोह की
आग भड़क उठी।
इस विद्रोह में हरियाणा के सैनिकों ने ही नहीं, बल्कि
किसानों, मजदूरों और कर्मचारियों ने भी बढ़चढ़कर भाग लिया और बड़े स्तर पर ऐतिहासिक नेतृत्व
भी किया। इनमें मेवात के किसान सदरूद्दीन, अहीरवाल के मुख्य सामंत तुलाराम, पलवल के
किसान हरसुख राय एवं व्यापारी गफूर अली, फरीदाबाद के किसान धानू सिंह, बल्लभगढ़ के मुख्य
सामन्त नाहर सिंह, फरूर्खनगर के मुख्य सामन्त अहमद अली एवं सरकारी कर्मचारी गुलाम मोहम्मद,
पटौदी के मुख्य सामन्त अकबर अली, पानीपत के मौलवी इमाम अली कलन्दर, खरखौदा के किसान
बिसारत अली, सांपला के किसान साबर खाँ, दुजाना के मुख्य सामन्त हसन अली, दादरी के मुख्य
सामन्त बहादुर जंग, झज्जर के मुख्य सामन्त अब्दर्रहमान व उनके जनरल अब्दुस समद, भट्टू
(हिसार) के सरकारी कर्मचारी मोहम्मद आजिम, हाँसी के सरकारी कर्मचारी हुकम चन्द, रानी
के अपदस्थ मुख्य सामन्त नूर, लौहारू के मुख्य सामन्त अमीनुद्दीन और रोपड़ के सेवादार
मोहन सिंह आदि सभी ने अपने-अपने क्षेत्र में क्रांतिकारियों का जबरदस्त नेतृत्व किया।
‘बल्लभगढ़ के शेर’ उपनाम से प्रसिद्ध राजा नाहर सिंह
को अंग्रेजी सरकार ने 9 जनवरी, 1858 को चांदनी चैक पर सरेआम फांसी पर लटका दिया था।
झज्जर नवाब अब्दुर्रहमान खां को भी सुनियोजित ढ़ंग से राजद्रोह का दोषी करार देकर
23 दिसम्बर, 1857 को लालकिले के सामने फांसी के तख्ते पर लटका दिया था। एक छोटी सी
रियासत फर्रूखनगर के मालिक नवाब अहमद अली गुलाम खाँ ने खुलकर अंग्रेजों के विरूद्ध
युद्ध का बिगुल बजाया और अंग्रेजों के खूब छक्के छुड़ाए। बाद में क्रूर अंगे्रजों ने
उन्हें भी 23 जनवरी, 1858 को राजद्रोही करार देकर चाँदनी चैक में कोतवाली के सामने
फाँसी पर लटका दिया। रानियां (सिरसा) के नवाब नूर समन्द खाँ ने अंग्रेजों से डटकर लौहा
लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 17 जून, 1857 को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया।
नांगल पठानी के राव किशन गोपाल ने 13 नवम्बर, 1857 को नसीबपुर (झज्जर) में क्रांतिकारियों
के साथ अंगे्रजी सेना का सीधा मुकाबला किया और वे अपने बड़े भाई राव रामपाल के साथ रणभूमि
में शहीद हो गए।
सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद हाँसी के लाला हुकमचन्द
जैन व मिर्जा मुनीर बेग ने अंग्रेजी शासन के विरूद्ध बढ़चढ़कर योगदान दिया। अंग्रेजों
ने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें 19 जनवरी, 1858 को इन्हीं के घरों के सामने फाँसी
पर लटका दिया। दादरी (बहादुरगढ़) के नवाब बहादुर जंग खाँ ने अंगे्रजों के विरूद्ध क्रांतिकारियों
का तन-मन-धन से साथ दिया। इन पर भी राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, लेकिन आरोप सिद्ध
न हो सके। इसके बावजूद उनकी संपत्ति को जब्त करके उन्हें लाहौर जेल भेज दिया गया। रेवाड़ी
के महायोद्धा राव तुलाराम ने अंगे्रजों से अपने पूर्वजों के इलाकों रेवाड़ी, बोहड़ा,
शाहजहांपुर आदि को पुनः हासिल करके अंग्रे्रजों को दंग करके रख दिया था। सोनीपत के
लिबासपुर गाँव के सामान्य किसान नम्बरदार उदमी राम ने अपनी 22 सदस्यीय क्रांतिकारियों
की टोली बनाकर समीप के राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले अंग्रेज अधिकारियों को जमकर
निशाना बनाया। एक देशद्रोही के कारण वे अंग्रेजों के शिकंजे में फंस गए। अंगे्रजों
ने उदमी राम को अत्यन्त क्रूर यातनायें देने के बाद राई के कैनाल रैस्ट हाऊस में पेड़
पर कीलों से ठोंककर लटका दिया, जहां उन्होंने 35वें दिन 28 जून, 1857 को अपने प्राण
त्यागे। उनकीं पत्नी को भी पेड़ से बांध दिया गया और वे भी कुछ दिनों बाद ही शहीद हो
गईं। अंगे्रजों ने शहीद उदमी राम के सभी साथियों को भयंकर यातनायें देने के बाद बहालगढ़
चैंक पर सरेआम पत्थर के कोल्हू के नीचे बुरी तरह रौंद दिया। यह पत्थर आज भी सोनीपत
के देवीलाल पार्क में साक्ष्य के तौरपर मौजूद है।
इस तरह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान असंख्य
जाने-अनजाने शूरवीरों ने अपनी शहादतें और कुर्बानियां दीं। बदकिस्मती से अंगे्रज इस
क्रांति को विफल करने में कामयाब रहे। लेकिन, असंख्य शहीदों की कुर्बानियों और शहादतों
ने देशवासियों को स्वतंत्रता की स्पष्ट राह दिखा दी। इसके बाद लगातार स्वतंत्रता प्राप्ति
के लिए आन्दोलन चले, जिसमें हरियाणा के जनमानस ने बखूबी बढ़चढ़कर सक्रिय योगदान दिया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले आजादी के आन्दोलनों में यहां के लोगों
ने महत्ती भूमिका निभाई। रोलेट एक्ट के विरोध में हरियाणा के लोगों ने खूब धरने, प्रदर्शन
एवं जनसभाएं कीं। खिलाफत आन्दोलन (1920), असहयोग आन्दोलन (1932), साईमन कमीशन विरोध
(1921), नमक सत्याग्रह आन्दोलन (1930), हैदराबाद सत्याग्रह (1939), भारत छोड़ो आन्दोलन
(1942), आसौदा आन्दोलन (1942), प्रजामण्डल आन्दोलन आदि के साथ-साथ आजाद हिन्द फौज में
भी हरियाणा के वीरों ने बढ़चढ़कर अपना योगदान दिया। आजाद हिन्द फौज में हरियाणा के कुल
2715 जवानों ने अपनी शहादतें देश के लिए दीं, जिनमें 398 अफसर और 2317 सिपाही शामिल
थे। काफी लंबे संघर्ष के बाद उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी। ऐसे ही असंख्य आने-अनजाने
वीरों की कुर्बानियों और शहादतों के बल पर हमारा देश अंग्रेजों की दासता की बेड़ियों
को काटकर अंततः 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो गया।
इससे पूर्व प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों में भी हरियाणा
के असंख्य शूरवीरों ने अपनी वीरता का लोहा मनवाया था। प्रथम विश्वयुद्ध, 1914 में पूरे
भारतवर्ष से कुल एक लाख पच्चीस हजार जवानों ने भाग लिया था, जिसमें अकेले हरियाणा से
80,000 से अधिक वीर सैनिक शामिल थे। हरियाणा में रोहतक जिले के सर्वाधिक लाल शामिल
थे, जिनकी संख्या 22,000 से अधिक थी। इस प्रथम विश्वयुद्ध में हरियाणा के रणबांकुरों
ने अपने शौर्य के बलबूते सैन्य पदकों के मामले में आठवां स्थान हासिल किया था। उल्लेखनीय
है कि इन सैन्य पदकों में हरियाणा के वीर सूरमा रिसालदार बदलूराम को मरणोपरान्त दिया
गया विक्टोरिया क्राॅस भी शामिल था, जिसके लिए हरियाणा जन-जन आज भी गर्व करता है। दूसरे
विश्वयुद्ध में भी हरियाणा के एक लाख तीस हजार से अधिक रणबांकुरों ने भाग लिया था और
अपनी वीरता का लोहा मनवाया था। इस विश्वयुद्ध के लिए हरियाणा के वीर सैनिकों को कुल
26 पदक मिले थे, जिसमें पाँच विक्टोरिया क्राॅस शामिल थे। ये पाँच विक्टोरिया क्राॅस
पलड़ा (झज्जर) के उमराव सिंह के अलावा हवलदार मेजर छैलूराम, सूबेदार रामसरूप, सूबेदार
रिछपाल और जमादार अब्दुल हाफिज को मरणोपरान्त दिए गए थे।
इतिहास साक्षी है कि हरियाणा के वीर सूरमा सेनाओं में
भर्ती होकर राष्ट्र की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता एवं उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए
हमेशा तन-मन-धन से समर्पित रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी इस प्रदेश के
रणबांकुरे सेना में भर्ती होकर देश के प्रहरी की सशक्त भूमिका निभा रहे हैं। देश की
सशस्त्र सेनाओं में चाहे वह जाट रेजीमेंट हो या फिर ग्रेनेडियरर्ज, राजपुताना राईफल्स
हो या कुमाऊं रेजीमेंट, राजपूत रेजीमेन्ट हो या अन्य कोई टुकड़ी, सभी जगह हरियाणा के
रणबांकुरों की उपस्थिति अहम् मिलेगी। इसलिए हम गर्व से कह सकते हैं कि हरियाणा के रणबांकुरों
के बिना भारतीय सेना अधूरी दिखाई देगी। अगर अभी तक के युद्धों पर नजर डालें तो पाएंगे
कि हरियाणा के शूरवीर सभी युद्धों में अग्रणी रहे हैं। आंकड़े गवाह हैं कि हरियाणा देश
की जनसंख्या का मात्र दो प्रतिशत है, फिर भी हरियाणा प्रदेश का सैन्य दृष्टि से योगदान
कम से कम बीस प्रतिशत है। इसका अभिप्राय, देश की सेना का हर पाँचवा सिपाही हरियाणा
की मिट्टी का लाला है। सैन्य पदकांे के मामले में भी हरियाणा के रणबांकुरे तीसरे स्थान
पर हैं। हरियाणा प्रदेश के लिए यह भी एक गौरवपूर्ण एवं ऐतिहासिक उपलब्धि है कि भिवानी
जिले के गाँव बापौड़ा में जन्मे रणबांकुरे जनरल वी.के. सिंह भारतीय थल सेनाध्यक्ष के
गौरवमयी पद को सुशोभित कर चुके हैं। वर्तमान थल सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सुहाग
भी हरियाणा के वीर सपूत हैं। उनका पैतृक गाँव झज्जर जिले का बिशन गाँव है।
वर्ष 1947-48 के कश्मीर कश्मीर युद्ध पर नजर डालें तो
पाएंगे कि हरियाणा के रणबांकुरे सैकिण्ड जाट के नायक शीशपाल को प्रथम महावीर चक्र
(मरणोपरान्त) से सम्मानित किया गया था। इसी युद्ध के अन्य शहीद लांसनायक राम सिंह
(सिक्ख रेजीमेंट), नायक सरदार सिंह (कुमाऊं रेजीमेंट), सूबेदार सार्दूल सिंह (राजपूत
रेजीमेंट), सिपाही मांगेराम (थर्ड जाट रेजीमेंट) और सूबेदार थाम्बूराम व सिपाही यादराम
(सैकिण्ड जाट) को मरणोपरान्त वीर चक्र से सुशोभित किया गया था। इनके अलावा इसी युद्ध
में लेफ्टि. कर्नल धर्म सिंह, सिपाही हरिसिंह तथा हवलदार फतेहसिंह को महावीर चक्र से
सम्मानित किया गया था। सिपाही अमीलाल, नायब सूबेदार अमीर सिंह, हवलदार ईश्वर सिंह,
हवलदार मातादीन, सूबेदार जुगलाल, सिपाही जयपाल, सेकिण्ड लेफ्टि. ठण्डीराम, मेजर इन्द्र
सिंह कालान, दफेदार लालचन्द, नायक शिवचन्द राम, हवलदार नारायण आदि को वीर चक्र से अलंकृत
किया गया था।
सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध में सर्वोपरि योगदान अहीर
शूरवीरों का रहा, जो रिजान्गला युद्ध के नाम से इतिहास के पन्नों में अंकित है। सन्
1962 के युद्ध में रिजांगला युद्ध के सूरमाओं को हरियाणा ही नहीं, बल्कि एक ही रेजीमेंट
के सबसे ज्यादा पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें एक महावीर चक्र नायक धर्मपाल सिंह दहिया
(आर्मी मेडिकल कोर) को और नायक हुकमचन्द, लांस नायक सिंहराम, नायक गुलाब सिंह, नायब
सूबेदार सूरजा को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसी युद्ध में मेजर महेन्द्र
सिंह चैधरी तथा मेजर सार्दूल सिंह रंधावा को महावीर चक्र तथा नायक सरदार सिंह, सूबेदार
निहाल सिंह, कैप्टन गुरचरण भाटिया तथा नायक मुन्शीराम को मरणोपरान्त वीर चक्र से सुशोभित
किया गया।
इसी युद्ध में नायक रामचन्द्र यादव व हवलदार रामकुमार
यादव को भी रिजान्गला पोस्ट पर दिखाई वीरता के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में हरियाणा के मेजर जनरल स्वरूप सिंह कालान, मेजर रणजीत
सिंह दयाल तथा लेफ्टि. जनरल के.के. सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया। इसी युद्ध
में सूबेदार खजान सिंह स्कवार्डन लीडर तेज प्रकाश सिंह गिल, सूबेदार पाले राम, सेवादार
छोटूराम तथा हवलदार लहणा सिंह को वीर चक्र से अलंकृत किया गया। भारत माँ के लिए शहादत
देने के लिए एस.पी.वर्मा, नायक रामकुमार, लांस हवलदार उमराव सिंह, रायफलमैन माथन सिंह,
नायक जगदीश सिंह, सूबेदार नन्दकिशोर को मरणोपरान्त वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी हरियाणा के शूरवीरों
का योगदान बड़ा अहम् रहा, जिसमें दस डोगरा के कैप्टन देवेन्द्र सिंह अहलावत व इंजीनियर
के मेजर विजय रत्न चैधरी को मरणोपरान्त महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसी युद्ध
में दुश्मन से लोहा लेते हुए अपना जीवन न्यौछावर करने वाले लेफ्टि. करतार सिंह अहलावत,
लेफ्टि. हवासिंह, कैप्टन कुलदीप सिंह राठी, नायब सूबेदार उमेद सिंह, मेजर हरपाल सिंह,
हवलदार दयानंद राम, लांस नायक अभेराम, सी.एच.एम. किशन सिंह, नायक महेन्द्र सिंह और
बी.एस.एफ. के नायक उमेद सिंह व सहायक कमांडेंट नफे सिंह दलाल को मरणोपरान्त वीर चक्र
से अलंकृत किया गया। इसी युद्ध में अपने शौर्य का अद्भूत प्रदर्शन करने वाले लेफ्टि.
जनरल के.के. सिंह, कमोडोर ब्रजभूषण यादव, सी.मैन चमन सिंह को महावीर चक्र से सुशोभित
किया गया। इनके अलावा युद्ध में दुश्मन को छठी का दूध याद दिलाने के लिए मेजर अमरीक
सिंह, ग्रेनेडियर अमृत, लेफ्टि. कमाण्डर इन्द्र सिंह, फ्लाईग आॅफिसर जय सिंह अहलावत,
मेहर शेर सिंह, हवलदार खजान सिंह, स्क्वार्डन लीडर जीवा सिंह, सवार जयसिंह, गर्नर टेकराम,
कमोडोर विजय सिंह शेखावत को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
सन् 1999 में भारत ने कारगिल में घुसपैठ करने का दुःसाहस
किया तो भारत माँ के लालों ने ‘कारगिल आॅपे्रशन विजय’ के तहत पाकिस्तानी घुसपैठियों
को पीठ दिखाकर भागने के लिए विवश कर दिया। भारत माँ क इन लालों में हरियाणा की पावन
मिट्टी में जन्में अनेक शूरवीर शामिल थे। ‘कारगिल आॅप्रेशन विजय’ 21 मई से 14 जुलाई,
1999 तक चला। इसमें कुल 348 शूरवीरों ने शहादत दी, जिनमें हरियाणा के 80 रणबांकुरे
शामिल थे। हरियाणा के रणबांकुरों ने देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर
करने में तनिक भी संकोच नहीं किया। इसकी पुष्टि इसी तथ्य से हो जाती है कि इस युद्ध
में 17 जाट के 12 जवान तथा 18 गे्रनेडियर के 12 जवान एक ही दिन में शहीद हुए।
‘कारगिल आॅप्रेशन विजय’ में भिवानी जिले के जवानों ने
सर्वाधिक शहादतें दीं। इसके बाद महेन्द्रगढ़ के दस, फरीदाबाद के बारह, रोहतक के दस,
फरीदाबाद के सात, रेवाड़ी के छह, गुड़गाँव के पाँच तथा शेष अन्य जिलों के जवानों की शहादतें
दर्ज हुईं। ‘कारगिल आॅप्रेशन विजय’ में अद्भूत शौर्य प्रदर्शन करने वाले लेफ्टि. बलवान
सिंह को महावीर चक्र और सूबेदार रणधीर सिंह व लांस हवलदार रामकुमार को मरणोपरांत वीर
चक्र से सम्मानित किया गया। इनके अलावा हवलदार हरिओम, नायक समुन्द्र सिंह, नायक बलवान
सिंह, लांस नायक रामकुमार, सिपाही सुरेन्द्र सिंह तथा लांस हवलदार बलवान सिंह को सेना
मेडल से अलंकृत किया गया। इन सब युद्धांे के अलावा आतंकवाद से लोहा लेने में भी हरियाणा
के वीरों की अह्म भूमिका रही है, जिसमें मुख्य रूप से सेकिण्ड लेफ्टि. राकेश सिंह व
मेजर राजीव जून के नाम सर्वोपरि स्थान पर आते हैं। ये दोनों वीर योद्धा 22 गे्रनेडियर
रेजीमेंट के थे और दोनों को अशोक चक्र से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया। ‘हरियाणा वीर
एवं शहीदी दिवस’ देश पर तन-मन-धन अर्पण करने वाले और अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले
सभी जाने-अनजाने वीरों, सूरमाओं, रणबांकुरों और शहीदों को कोटिशः सादर नमन।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)
(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं
समीक्षक।
सम्पर्क सूत्र :
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com
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