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शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

ढ़ाई आखर प्रेम के....

14 फरवरी / ‘वेलेंटाइन डे’ विशेष

ढ़ाई आखर प्रेम के....
-राजेश कश्यप

‘प्रेम’ ! दिल की कितनी अथाह गहरी भावनाओं को झंकृत करता है, यह शब्द। इस शब्द के उच्चारण मात्र से ही दिल के तार मधुर झंकार करने लगते हैं। ‘प्रेम’ की अनुभूति दिल को गुदगुदा जाती है। ‘प्रेम’ के बारे में जितना भी लिखा या कहा जाए, कम ही रहेगा। ‘प्रेम’ की महत्ता को दर्शाती संत कबीर की ये विख्यात पंक्तियां दिल से स्वतः प्रस्फूटित हो उठती हैं:

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय !
ढ़ाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय !!

‘प्रेम’ को कभी भी भौतिक पैमाने पर नहीं आंका जा सकता और न ही ‘प्रेम’ की संपूर्ण परिभाषा को शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। ‘प्रेम’ को तो बस दिल की कोमल और गहरी भावनाओं से सहज रूप में अनुभव किया जा सकता है। ‘प्रेम’ के बारे में शाश्वत सत्य यह है कि ‘प्रेम’ किया नहीं जाता, हो जाता है! कुछ विद्वानों ने अपने दिल की अनुभूतियों के आधार पर ‘प्रेम’ की सुंदर अभिव्यक्तियां की हैं। यथा:

विक्टर हा्रगो के अनुसार, “जीवन एक पुष्प है और ‘प्रेम’ उसका मधु”। सर्वदानंद का मानना है, “प्रेम करना पाप नहीं है, पर प्रेम को लेकर पागल हो जाना अनुचित है। जो क्षणिक है और इसीलिए वासना पागलपन के साथ दूर हो जाती है। प्रेम गंभीर है और उसका अस्तिव कभी नहीं मिटता।” कहानी एवं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार, “प्रेम जब आत्म-समर्पण का रूप लेता है, तभी प्यार है, उसके पहले अय्याशी।” आचार्य रजनीश का मानना है, “प्रेम एक दान है, भिक्षा नही। प्रेम मांग नहीं है, भेंट है। प्रेम भिखारी नहीं, सम्राट है। जो मांगता है, उसे प्रेम नहीं मिल सकता। जो बांटता है, उसे ही ‘प्रेम’ मिलता है।” शरतचन्द्र मानते हैं, “प्रेम दिल का सौदा है, बस की बात नहीं।” कुशवाहाकान्त मानते हैं, “प्रेम की भंगिमाएं छिपाए नहीं छिपतीं।” वाल्टर स्कॉट के मुताबिक, “अश्रुपूर्ण प्रेम अत्यंत लुभावना होता है।” जे.रूक्स के विचारानुसार, “सच्चा प्रेम तो वहीं है, जहां शरीर दो हों और मन एक।” बेली का मानना है, “जीवन का मधुरतम आनंद और कटुतम वेदना ‘प्रेम’ ही है।”
सन्त कबीर का मानना था कि, ‘सच्चा प्रेम कभी प्रति-प्रेम नहीं चाहता’। मीर तकी मीर के विचार में, “जिस प्यार में प्यार करने की कोई हद नहीं होती और किसी तरह का पछतावा भी नहीं होता, वहीं उसका सच्चा रूप है।” राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी कहते थे कि, “प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है, न कभी झुंझलाता है और न ही कभी बदला लेता है।” महान दार्शनिक अरस्तु ने प्रेम के मूल तत्व को समझाते हुए बताया कि, “जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन का सही रूप है।” कन्फ्यूशियस ने तो यहां तक कहा कि, “प्यार आत्मा की खुराक है।” महान विचारक बेकन की नजरों में, “प्यार समर्पण और जिम्मेदारी का दूसरा नाम है।” इसी प्रकार जॉर्ज बनार्ड शॉ का भी यही मानना रहा कि, “जीवन में प्रेम का महत्व वही है, जो फूल में खूशबू का होता है।”
शायरों ने भी प्रेम’ की अनुभूतियों को अपनी शायरियों में बखूबी पिरोया है। कुछ बानगियां देखिए:

मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं!
ये वो नगमा है, जो हर साज पर गाया नहीं जाता!! (मखमूर देहलवी)
चाहत नहीं छुपेगी, इसे लाख छुपाओ !
खुशबू पे किसी फूल के पहरा नहीं होता !! (नरोत्तम शर्मा)
ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे !
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है !! (जिगर मुरादाबादी)
मुहब्बत की नहीं जाती, मुहब्बत हो जाती है !
ये शोला खुद भड़क उठता है, भड़काया नहीं जाता !! (मखमूर देहलवी)
इश्क ने ‘गालिब’ निकम्मा कर दिया !
वरना हम भी आदमी थे काम के !! (मिर्जा गालिब)

‘प्रेम दिवस’/‘वेलेंटाइन डे’ के प्रति पश्चिमी अधारणाएं

‘प्रेम’ अब एक ‘पर्व’ के रूप में भी मनाया जाने लगा है। ‘होली’, ‘दीपावली’, पर्वों की भांति जवां दिलों का ‘प्रेम-पर्व’, ‘वेलेन्टाईन-डे’ भी पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश के युवा वर्ग में काफी लोकप्रिय हो चला है। ‘वेलेन्टाईन-डे’ मनाने के पीछे अनेक धारणाएं प्रचलित हैं। एक धारणा के अनुसार ‘प्रेम’ के नाम पर वेलेन्टाईन नामक पादरी को इस दिन फांसी की सजा दी गई थी। उसी पादरी की स्मृति में उसके नाम से ‘वेलेन्टाईन-डे’ पर्व मनाया जाने लगा।
यूनानियों का एक अति लोकप्रिय देवता था, ‘क्यूपिड’, जिसे ‘प्रेम का देवता’ माना जाता है। यह प्रेम का देवता एक सुन्दर शिशु के रूप में धनुष बाण लिए चित्रित किया मिलता है। किवदंती के अनुसार, ईसा मसीह की मृत्यु के तीन सौ साल बाद तक रोम के शासकों की यह जिद्द थी कि लोग पुराने युनानी देवी-देवताओं को मानें, ईसाईयत को बिल्कुल नहीं। लेकिन वेलेंटाइन डे नामक पादरी ने यह सब स्वीकार न किया। इसी आरोप में रोमन सम्राट क्लाडियस ने उसे मृत्यु दण्ड की सजा सुना दी।
जब वेलेंटाइन जेल में था तो उसने एक अनोखा चमत्कार कर दिखाया। वेलेंटाइन जिस जेल में कैद था, उसी जेल में जेलर की बेटी से प्रेम करने लगा। आश्चर्य की बात यह थी कि जेलर की बेटी बिल्कुल अंधी थी। वेलेंटाइनने चमत्कार करके अपनी अंधी प्रेमिका की आंखों की ज्योति वापस ला दी और अगले ही दिन वेलेंटाइन को मृत्युदण्ड की सजा दे दी गई। माना जाता है कि उसी वेलेंटाइन ने अपनी मृत्यु के एक दिन पहले अपनी प्रेमिका को पहला प्रेम-पत्र लिखकर अपने प्यार का इजहार किया था। उस अभागे प्रेम वेलेंटाइन की स्मृति में ‘वेलेंटाइन डे’ मनाया जाने लगा।
‘वेलेंटाइन’ मनाने की एक अन्य धारणा भी ईसाई पादरी से ही जुड़ी है। लेकिन यह पादरी इटली से संबंध रखता था। वह चोरी-छिपे उस समय की प्रचलित परंपरा एवं रीति-रिवाज के विरूद्ध रोमन युवक-युवतियों की शादी करवाया करता था। किवदंती है कि उस पादरी को इस जुर्म के लिए 14 फरवरी के दिन जिन्दा जला दिया गया था।
एक अन्य धारणा के मुताबिक, प्राचीन रोम में एक अनोखा त्यौहार मनाया जाता था। यूनानी लोग इस पर्व के दिन खूब सज-धजकर इकट्ठे होते और सबके सामने अपने प्रेम का इजहार करते। युवक अपनी-अपनी प्रेमिका का नाम बोलते और अपने दिल की मलिका बना लेते। इस तरह यह त्यौहार युवा लोगों में खूब प्रचलित होता चला गया।

भारतीय अवधारणाएं

अगर ‘वेलेन्टाईन-डे’ मनाने के पीछे भारतीय धारणा का अवलोकन करें तो यह सबसे अलग है। भारतीय धारणा प्रकृति के परिवर्तन से जुड़ी हुई है। भारतीय परंपरानुसार फरवरी माह में बसंत ऋतु जैसी सुनहरी मनोहारी ऋतु अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। साहित्यकारों ने भी इस समय को ‘प्रेम का समय व ऋतु को ‘प्रेम-ऋतु’ का नाम दिया है’। हमारे समाज में भी मान्यता है कि इस समय ‘प्रेम’ का उन्माद भी खूब चढ़ जाता है। इसलिए विवाह आयोजनों में भी तेजी आ जाती है। चूंकि ‘वेलेन्टाईन-डे’ को ‘प्रेम-पर्व’ का नाम दिया गया है, तो इसे युवा प्रेमियों ने पश्चिमी संस्कृति का अंग होने के बावजूद दिल से स्वीकार किया है। कहना न होगा कि हमारे यहां ‘प्रेम’ की अविरल धारा हमेशा बहती रही है। ‘हीर-रांझा’, ‘सोनी-महीवाल’, ‘लैला-मजनूं’, ‘सीरी-फरहाद’ आदि बहुत से प्रेमी अपने अटूट प्रेम के दम पर ‘प्रेम’ के इतिहास में अमर एवं अमिट हो गए।

‘प्रेम-पथ’ के अमर ‘पथिक’

प्रेम-ग्रन्थ के अमर प्रेमियों में एक ‘हीर-रांझा’ की जोड़ी प्रमुख है। तख्त हजारा के सरदार का आशिक मिजाज बेटा रांझा बारह वर्ष की उम्र में ही अपने सपनों की मल्लिका को ढूंढ़ने लग गया था। उसकी तलाश ‘हीर’ को देखकर, जो कि राजा की लड़की थी, पूरी हो गई। किसी तरह रांझा ‘हीर’ के घर नौकरी पाने में सफल हो गया। उसने मुलाकातों ही मुलाकातों में ‘हीर’ को अपने प्रेम में बांध लिया। जब ‘हीर’ के चाचा को इसकी भनक लगी तो उसने ‘हीर’ की शादी किसी दूसरे गाँव में जबरदस्ती कर दी। अब तो ‘हीर’ भी तड़प उठी और ‘रांझे’ का तो बुरा हाल ही हो गया। वह अपने प्रेम के वशीभूत फकीर बन ‘हीर’ की ससुराल में जा पहुंचा। भिक्षा लेने के नाम पर वह ‘हीर’ से मिलने लगा। ‘हीर’ के ससुरालियों ने उसे ‘हीर’ सहित गाँव निकाला दे दिया। जब वहां के राजा को हकीकत का पता चला तो उसने ‘हीर’ के ससुरालियों को ‘हीर’ रांझा को देने का आदेश दे डाला। राजा के डर से ससुरालियों ने राजा का आदेश तो मान लिया, लेकिन उन्होंने ‘हीर’ को जहर दे दिया। ‘हीर’ के मरने की खबर सुनकर रांझा भी तड़प-तड़प् कर प्राण छोड़ गया।

 प्रेम के अमर ग्रन्थ के पन्नों में ‘लैला-मजनूं’ का अटूट प्रेम भी दर्ज है। अरब देश के ये प्रेमी पहली बार एक मदरसे में मिले थे और पहली ही नजर में प्यार कर बैठे। उनके घरवालों को यह नागवारा गुजरा। परिणास्वरूप ‘लैला’ की शादी किसी अन्य के साथ कर दी गई। ‘लैला’ की जुदाई में ‘कैस’ मारा-मारा फिरने लगा और लोगों में ‘मजनूं’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। उधर ‘लैला’ के यह बताने पर कि वह केवल और केवल ‘कैस’ यानि ‘मजनूं’ से प्रेम करती है और उसके सिवाय वह किसी को छूएगी भी नही ंतो उसके शौहर ने उसे तलाक दे दिया। ‘लैला’ के गम में जंगल में भटकते ‘मजनूं’ के पास लैला जा पहुंची और इस तरह उनका मिलन हो गया। लेकिन उनकी किस्मत में यह मिलन ज्यादा समय तक नहीं लिखा था। ‘लैला’ की माँ उसे ‘मजनूं’ से छुड़ाकर घर ले गई और उसे घर में कैद कर दिया। इसके बाद दोनों सच्चे प्रेमियों को भारी वियोग सहना पड़ा। बाद में वे दोनों तड़पते-तड़पते दम तोड़ गए।

‘वेलेंटाइन डे’ का विरोध और बदलता दृष्टिकोण

आधुनिकता के इस दौर में भी भारतीय संस्कृति में ऐसे प्रेमियों को पश्चिमी संस्कृति का दास व अपनी संस्कृति का दुश्मन करार दिया जा रहा है। कुछ राजनीतिक लोगों द्वारा ‘वेलेंटाइन डे’ मनाने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं के साथ मारपीट व अभद्र व्यवहार भी किया जा रहा है। इसके बावजूद प्रेमी बेधड़क अपने प्रेम का इजहार किसी न किसी तरह इस दिन कर जाते हैं। ‘वेलेंटाइन डे’ का जहां हमारे यहां विरोध हुआ है, वहीं धीरे-धीरे ‘वेलेंटाइन डे’ के प्रति सकारात्मक विचारधारा भी बढ़ती चली जा रही है। यह कटु सत्य है कि काफी युवा लोग ‘प्रेम’ के नाम पर अच्छे खासे भटके हुए हैं. ‘प्रेम’ के नाम पर वे सिर्फ शारीरिक आकर्षण में बंधते हैं। काफी युवा लोग सिर्फ ‘सेक्स’ की भूख को शांत करने के लिए ही ‘प्रेम’ का ढ़ोंग रचते हैं। अधिकतर युवाओं के लिए ‘प्रेम-प्यार’ सब ‘टाईम-पास’ बन गया है। इन्हीं भावनाओं के चलते युवा ‘प्रेम’ से छल करके अपना विश्वास तो खोते ही हैं, साथ ही ‘प्रेम’ की पाक-पवित्र भावना को भी अपमानित करते हैं। कुछ युवा लोग ‘वेलेंटाइन डे’ के दिन प्रेम का इजहार करने के साथ ही मर्यादा की सभी सीमाएं लांघने के लिए उतावले नजर आते हैं।
युवा प्रेमियों में इस तरह की प्रवृत्ति निश्चय ही पश्चिमी संस्कृति की उपज है। इसके अलावा अश्लील साहित्य, सिनेमा एवं अन्य सामग्री भी युवाओं को ‘प्रेम’ के नाम पर ‘सेक्स’ के भूखे भेड़िये तैयार कर रही है। अश्लील सामग्री केवल काम-पिपासा की प्रवृत्ति को ही जन्म देती है। काम-पिपास के चलते ही आज ‘प्रेम’ एक फरेब बनकर रह गया है और सिर्फ शारीरिक भूख मिटाने का जरिया सा बन गया है। इन्हीं कुप्रवृत्तियों के चलते आज छेड़खानियां, बलात्कार, दैहिक शोषण जैसे मामलों में बाढ़-सी आई हुई है। इन सबके चलते ही भारतीय समाज ‘वेलेंटाइन डे’ को स्वीकार नहीं कर पा रहा है।
कुल मिलाकर युवा प्रेमी ‘प्रेम’ तो करें, ‘प्रेम’ करना पाप अथवा अपराध नहीं है, लेकिन पवित्र एवं सच्चा प्रेम करें। युवा लोग ‘प्रेम’ को ‘प्रेम’ ही रहने दें। ‘प्रेम’ को छल, फरेब, विश्वासघात, वासना आदि से एकदम दूर रखें। सच्चा प्रेम ईश्वर की आराधना है। इसलिए अति उन्मुकत्ता, स्वछन्दता एवं अमर्यादित आचरण आपकी इस आराधना को आलोचना का पात्र बना सकता है। इसलिए आप अपने प्रेम का इजहार करें लेकिन सामाजिक मर्यादाओं और सीमाओं का सम्मान रखते हुए । आपका सच्चा एवं सात्विक पवित्र ‘प्रेम’ अत्यन्त प्रगाढ़ हो ! ‘हैप्पी-वेलेन्टाईन डे’!!! (नोट: लेखक स्वतंत्र पत्रकार है।)

(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक

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राजेश कश्यप
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