‘स्वर्ण जयन्ती वर्ष 2015’ /
1 नवम्बर - स्थापना दिवस विशेष
हरियाणा की वर्तमान परिस्थितियां एवं भविष्य की चुनौतियां
-राजेश कश्यप
स्वर्ण जयन्ती वर्ष 2015 : लेखक द्वारा तैयार मौलिक लोगो |
50वें हरियाणा स्थापना दिवस की पावन वेला पर आप सबको हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाएं!!!
-राजेश कश्यप
‘हरि’ का ‘हरियाला’ प्रदेश हरियाणा अपनी स्थापना के पचासवें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। हरियाणा की सरकार ने इस गौरवमयी वर्ष को ‘स्वर्ण जयन्ति वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय लेते हुए वर्ष भर विभिन्न गतिविधियां एवं कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है। ऐसे में प्रदेश के अतीत का स्मरण, वर्तमान परिस्थितियों पर मन्थन और भविष्य की संभावित चुनौतियों पर गहन चिन्तन करने का सुनहरी अवसर स्वत: मिल गया है।
सर्वविद्यित है कि ‘हरि’ की क्रीड़ा स्थली, परम तपस्वियों, साधकों, सन्तों, ऋषियों, मुनियों, विद्वानों, शूरवीर योद्धाओं और महान विभूतियों की जन्म स्थली तथा ‘गीता ज्ञान’ के उद्भव का साक्षी हरियाणा अपनी प्राचीनता, पावनताा एवं प्रगतिशीलता का पर्याय है। इस प्रदेश की गौरवमयी संस्कृति का साक्षी पौराणिक एवं पुरातात्विक इतिहास प्रचूर मात्रा में विद्यमान है। इस पावन धरा पर ब्रह्मऋषियों द्वारा किए गए वैदिक ऋचाओं के उद्घोष, दर्शन-शास्त्र-पुराण एवं स्मृतियों के निर्माण और भारतीय संस्कृति के ताने-बाने का सृजन एवं विकास की अमिट दास्तां वेद, उपनिषद एवं पुरातात्विक अभिलेखों में अंकित है।
भाषायी आधार पर चले लम्बे राजनीतिक संघर्ष के बाद हरियाणा प्रदेश संविधान के सातवें संशोधन द्वारा भारतवर्ष के सत्रहवें राज्य के रूप में मंगलवार, 1 नवम्बर 1966 को भौगोलिक मानचित्र पर उदित हुआ। संयुक्त पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा प्रदेश ने अनेक जटिल चुनौतियों एवं विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही स्थापना के इन पचास वर्षों के अनूठे सफर में अनेक गौरवमयी उपलब्धियों को हासिल करने एवं नित नए कीर्तिमान स्थापित करने के अवसर भी मिले। कुल मिलाकर, आज हरियाणा प्रदेश राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आदि हर क्षेत्र में सुदृढ़ है।
यद्यपि हरियाणा प्रदेश की झोली में अनेक गौरवमयी उपलब्धियां शोभायमान हैं, तथापि कुछ जटिल एवं विकट चुनौतियां भी चिढ़ाने वाली मौजूद हैं। मसलन, दलित-दबंग प्रकरण, जाट आरक्षण समीकरण, बढ़ता अपराधिकरण, कन्या-भू्रण हत्या, नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन, नशा, शिक्षा का गिरता स्तर, गहराता कृषि संकट, ऑनर किलिंग, संकीर्ण व साम्प्रदायिक सियासत आदि ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं, जो हरियाणा प्रदेश की स्वर्णिम आभा और स्वर्ण जयन्ती वर्ष की खुशियों को फीका करने वाले हैं। इन सबके साथ ही प्रदेश की राजधानी, एसवाईएल का पानी, निरन्तर बढ़ता कर्ज आदि हरियाणा प्रदेश के लिये बेहद विकट चुनौतियां नित नये कीर्तिमानों पर भारी पड़ रहे हैं। ऐसे में यदि इन सब मुद्दों का समय रहते निराकरण नहीं होता है, तो इनके दूरगामी और घातक परिणाम सिद्ध हो सकते हैं।
हरियाणा के गत पचास वर्षों में अधिकतर तीन लालों चौधरी देवीलाल, चौधरी भजन लाल व चौधरी बंसीलाल का राजनीतिक प्रभुत्व रहा है, जिसमें, ‘आया राम गया राम’ की राजनीति भी बखूबी हावी रही। लालों की इस तिकड़ी को तोडऩे में चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को कामयाबी मिली और वे वर्ष 2005-14 के दौरान सत्तारूढ़ रहे। हुड्डा के एकछत्र स्थापित राज को ध्वस्त करके एक वर्ष पूर्व भाजपा के मनोहर लाल खट्टर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में एक नया इतिहास कायम करने में कामयाब हुए। इस समय सत्ता पक्ष एवं विपक्ष में अभूतपूर्व टकराव देखने को मिल रहा है। पक्ष-विपक्ष की यह राजनीतिक खींचातानी प्रदेश के स्वर्ण जयन्ती वर्ष को औपचारिकता की दलदल में न धकेल दे, इस डर का सहज अहसास हो रहा है।
पिछले कुछ समय से दलित-दबंग प्रकरणों ने प्रदेश की छवि को बुरी तरह धुमिल किया हुआ है। मिर्चपुर काण्ड, गोहाना काण्ड, सूनपेड काण्ड जैसे ज्वलंत दलित-प्रकरण प्रदेश के स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष के रंगोत्सव को कहीं न कहीं प्रभावित करने वाले हैं। जिस तरह से छोटी-छोटी घटनाएं देखते ही देखते साम्प्रदायिक एवं जातीय बवण्डर का विकराल रूप धारण करने लगी हैं, वह हरियाणा प्रदेश के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।
हरियाणा प्रदेश की सामाजिक एकता एवं सौहार्द भावना सदियों से एक मिसाल रही है। ‘कृषि क्रांति’ की अपार सफलता और सहकारिता के उद्भव में हरियाणा प्रदेश का सामाजिक सौहार्द मुख्य आधार रहा है। विडम्बना का विषय है कि इसी सामाजिक सौहार्द में जातीय आरक्षण के रूप में खतरनाक सेंध लग चुकी है। एक तरफ जाट बिदादरी पिछड़ा वर्ग में शामिल होने के लिए किसी भी हद को पार करने के लिए सिर पर कफन बांधे हुए है तो दूसरी तरफ पिछड़ी जातियां अपने सत्ताईस प्रतिशत आरक्षण से किसी भी तरह की छेड़छाड़ को रोकने के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए कमर कसे हुए हैं। इस जातिगत प्रतिस्पद्र्धा के चलते एक तरफ जहां, सशस्त्र जाट सेना बनाने जैसी भावनाओं का उद्भव हुआ है, वहीं दूसरी तरफ पिछड़ा वर्ग ब्रिगेड की बुनियाद रखी जा चुकी है। यदि प्रदेश के सामाजिक सौहार्द में लगी आरक्षण की लगी सेंध का समय रहते समुचित समाधान नहीं किया गया तो स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष के रंग में भंग पड़ सकता है।
हरियाणा की प्राचीनता एवं पावनता बेहद प्रचलित रही है। लेकिन, जिस तरह से गर्भ में ही बड़े पैमाने पर मासूम व निर्दोष कन्याओं की निर्मम हत्याएं बेहिचक की जा रही हैं, जिस तरह से लड़कियों व महिलाओं की अस्मत से खुलेआम खिलवाड़ करने के मामले प्रकाश में आ रहे हैं और जिस तेजी से अपहरण, लूट, हत्या और बलात्कार के मामलों के ग्राफ में दिनोंदिन बढ़ौतरी दर्ज की जा रही है, वह प्रदेश की प्राचीनता व पावनता पर गहरी कालिख लगा रही है।
‘ऑनर किलिंग’ और खाप पंचायतों के कथित तुगलकी फरमानों ने भी प्रदेश की गौरवमयी छवि को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। गाँव-गौत्र-गोहाण्ड की परंपरागत मान-मर्यादा की अक्षुण्ता बनाये रखने के मिशन में जुटी खाप पंचायतें संवैधानिक नजरिये से खलनायकी के खांचे में सिमटती दिखाई दे रही हैं, जोकि प्रदेश की सामाजिक संस्कृति का क्षरण ही कहा जायेगा। पुरानी और नई पीढ़ी के बीच यह वैचारिक टकराव अनेक युवा व युवतियों की जिन्दगियों को लील चुका है। पिछलेे डेढ़-दो दशक से ‘ऑनर किलिंग’ की शर्मनाक घटनाएं व खानों की खतरनाक छवि राष्ट्रीय पटल पर सुर्खियां बटोर रही हैं। यह सब प्रदेश की स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष की उपलब्धियों व कीर्तिमानों की स्वर्णिम आभा को मन्द करने वाली हैं।
यह निर्विवादित सत्य है कि ‘कल्चर’ के नाम पर ‘एग्रीकल्चर’ की पहचान रखने वाले हरियाणा प्रदेश ने अनेक सांस्कृतिक आयाम स्थापित किये हैं। लेकिन, कुछ ऐसे नकारात्मक पहलू भी हैं, जो इन पर पानी फेरने वाले हैं। ‘जड़ै दूध दही का खाणा-वो मेरा हरियाणा’ के मूलमंत्र का साक्षी हरियाणा न केवल अपने मूल खान-पान बल्कि, रहन-सहन, गीत-संगीत, ओढऩा-पहनना, रीति-रिवाज आदि सब बदल चुका है। यहां की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण का मोहताज बन गई हैं। प्रदेश की नई व आधुनिक युवा पीढ़ी की स्मार्ट सोच व सपने अपनी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को इतिहास के पन्नों में दफन करने पर तुली है। यह सब स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष मना रहे हरियाणा प्रदेश के लिए काफी टीस देने वाला विषय कहा जा सकता है। लेकिन, इस टीस का अहसास करना, प्रदेश की विशाल एवं गौरवमयी संस्कृति के हित के लिए बेहद जरूरी है।
कुल मिलाकर, स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष के दौरान हरियाणा प्रदेश की गौरवमयी उपलब्धियों व कीर्तिमानों का यशोगान करने के साथ-साथ यदि वर्तमान परिस्थितियों व भविष्य की संभावित चुनौतियों पर भी गहन चिन्तन-मन्थन करने पर जोर दिया जाये तो बेहद सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। यदि हर प्रदेशवासी संकीर्ण व निजी स्वार्थ भावनाओं से ऊपर उठकर पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ प्रदेश की उन्नति एवं समृद्धि में अपना योगदान सुनिश्चित करने का संकल्प लें तो निश्चित तौरपर हम अपनी हर विकट परिस्थितियों एवं जटिल चुनौतियों से सहजता से पार पाने में सक्षम होंगे और एक नये हरियाणा के नवनिर्माण की राह प्रशस्त करने में कामयाब होंगे।
(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।
स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com
(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में दो हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)
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