250 कश्यप परिवारों पर पुलिस-प्रशासन ने ढ़ाया कहर
गत 15 मई, 2015 की सुबह हरियाणा के गुड़गाँव जिले के गाँव फतेहपुर झाड़सा, सैक्टर-47 के 250 गरीब परिवारों पर स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने जमकर कहर ढ़ाया। इन परिवारों का कसूर सिर्फ इतना था कि ये 150 साल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी बसे अपने आशियानों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। ये लोग लंबे समय से जिला प्रशासन, प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार से लगातार गुहार लगा रहे थे कि उन्हें उजाड़ा न जाये और यहीं गुजर-बसर करते रहने दिया जाए, क्योंकि इसके अलावा उनका और कहीं अन्य ठौर-ठिकाना नहीं है। लेकिन, उनकीं गुहार किसी भी स्तर पर नहीं सुनी गई और अंततः गत 15 मई को पुलिसिया बर्बर कार्यवाही के जरिये इन्हें न केवल बेघर कर दिया गया, अपितु अनेक अमानवीय अत्याचार ढ़ाए। केवल इतना ही नहीं, जो भी इन्हें बचाने अथवा सहारा देने आया, उनको भी बख्शा नहीं गया और उनपर भी पुलिस ने जमकर कहर ढ़ाया। जो भी बच्चा, बूढ़ा, जवान, महिला, जज्चा पकड़ में आया, उन्हें मार-मार कर अधमरा कर दिया गया। दर्जनों आँसू गैस के गोले छोड़ गये। सैकड़ों रबड़ के फायद ग्रामीणों पर किये गए। ग्रामीणों के वाहनों को बुरी तरह तोड़ दिया गया और दो ऑटो को आग के हवाले कर दिया। मासूम बच्चों की चीखों का भी बेरहम पुलिसकर्मियों और मौके पर मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों का कलेजा जरा भी नहीं पसीजा। मात्र तीन दिन पहले बड़े ऑपरेशन से बच्चा जनने वाली प्रसूता को भी नहीं बख्शा गया और उन्हें घसीटकर बाहर खण्डहरों में फेंक दिया गया। पुलिस की इस दमनात्मक कार्यवाही में घायलों को पुलिस हिरासत में लेने के बाद भी भयंकर यातनाएं दी गईं और मानवीय अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया। चारों तरफ हाहाकार, आग, धुँआ, चीख-चिल्लाहट, मारा-मारी, मासूम एवं अबोध बच्चों की हृदयविदारक चीखें, पुलिसकर्मियों के डण्डों की कड़कड़ाहट का माहौल कई घण्टों तक बना रहा। जिसने भी इस हृदयविदारक नजारे को देखा, सिहर उठा।
आप भी देखिये ये पुलिस द्वारा की गई बर्बर कार्यवाही के
विध्वसंक एवं हृदयविदारक खौफनाक नजारे:-
देखिये इस बर्बर कार्यवाही के बाद विध्वंसक मंजर
हमदर्दी जताने आई नगर पार्षद निशा सिंह पर भी ढ़ाया जुल्म
जैसे ही नगर निगम के वार्ड 30 की पार्षद एवं आप पार्टी की नेता निशा सिंह को गरीब ग्रामीणों पर पुलिस की बर्बर कार्यवाही की सूचना मिली तो वे ग्रामीणों के समर्थन में गाँव फतेहपुर जा पहुँची। यहाँ पर उनकीं पुलिस-प्रशासन से तीखी नांेकझोंक भी हुई। इसी बीच, पुलिस की दमनात्मक कार्यवाही से अपने आशियाने बचाने के लिए ग्रामीणों ने भी विरोध करना शुरू कर दिया। बाद में पुलिस ने हिंसक झड़पों के बाद पार्षद निशा सिंह को ग्रामीणों को पुलिस के खिलाफ उकसाने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की बर्बर कार्यवाही के बीच, निगम पार्षद गम्भीर रूप से घायल हों गई और उन्हें सिविल अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इस बीच पुलिस ने निशा सिंह को गिरफ्तार करने की लाख कोशिश की, लेकिन सिविल अस्पताल के डॉक्टरों ने उनकीं गम्भीर हालत को देखते हुए निशा सिंह को रीलिव नहीं किया। आरडब्लूए पदाधिकारियों और सिटीजन काउंसिल प्रेसिडेंट आर.एस. राठी सहित स्थानीय लोगों एवं समाजसेवियों ने पार्षद निशा सिंह की गिरफ्तारी का सख्त विरोध किया है और यह विरोध निरन्तर उग्र होता जा रहा है।
क्या है मामला?
दरअसल, वर्तमान गाँव फतेहपुर (झाड़सा) हरियाणा के गुड़गाँव जिले के सैक्टर 47 में पड़ता है। यह पहले झाड़सा गाँव की पंचायत का हिस्सा था। सदियों पहले यहाँ पर एक बड़ा तालाब था और चारों तरफ घने जंगल खड़े थे। इस जगह पर ‘कश्यप’ जाति (जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘धीवर’ कहा जाता है) के बेहद गरीब परिवार आकर रहने लगे। उन्होंने इस तालाब में ‘सिंघाड़े’ उगाकर गुजर-बसर करना शुरू कर दिया। इसके कारण इस जगह का नाम ‘दोखर ढ़ाणी’ भी पड़ गया। इन गरीब परिवारों ने मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन-निर्वाह शुरू कर दिया। बाद में उन्होंने धीरे-धीरे जंगलों को साफ करके झोंपड़ी डालकर रहने लगे। पंचायत की रहनुमाई में इन गरीब परिवारों ने पिछले 50 से अधिक वर्षों से अपना अलग गाँव फतेहपुर के रूप में विकसित कर लिया था। यहाँ के परिवारों के राशन कार्ड से लेकर तमाम सरकारी कागजात गाँव फतेहपुर (झाड़सा) निवासी के रूप में बनाये गए। इस समय इस गाँव में 250 घर बस चुके थे। ग्रामीणों ने दस्तावेजों का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2011 में स्थानीय हुडा अधिकारी डॉ. प्रवीण कुमार दहिया ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि इस गाँव में 207 घर हैं और यह 150 से अधिक वर्षों से बसा हुआ है। ये लोग मजदूरी करके, चाय की दुकानें चलाकर, परचून की दूकानें खोलकर, रेहड़ी लगाकर, ऑटो व स्कूल वैन चलाकर और ठेके की जमीनों पर सब्जी उगाकर बेहद संघर्षमयी जीवन-निर्वाह कर रहे थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1996 में इस गाँव (फतेहपुर) की 17 एकड़ जमीन का हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) विभाग ने अधिग्रहण कर लिया था। वर्ष 2005 में इसका मुआवजा घोषित करके खजाने में जमा करा दिया गया था। लेकिन, तत्कालीन ग्राम पंचायत ने यह मुआवजा उठाने से मना कर दिया, क्योंकि यहाँ पर गरीबों का एक पूरा गाँव उजड़ने का सवाल था। बाद में, सरकार ने इस जमीन (गाँव) को नगर निगम में शामिल कर दिया। नगर निगम ने हुडा के घोषित मुआवजे को उठा लिया। इस तरह से येन-प्रकारेण इस जमीन पर अंततः हुडा विभाग का कानूनन मालिकाना हक आ गया। इसके बाद हुडा ने इस जमीन पर सेक्टर-बिल्डरों के सुविधार्थ पक्का सड़क मार्ग विकसित करने का प्रस्ताव पारित कर दिया। इसके लिए हुडा विभाग ने जब भी इन ग्रामीणों को सदियों से बसे अपने आशियाने छोड़कर चले जाने का फरमान सुनाया तो सब ग्रामीणों ने मिलकर कड़ा विरोध किया और इसे उन्हें एक साजिश के तहत बेघर एवं बर्बाद करने का आरोप लगाया। इसके बावजूद, हुडा विभाग ने स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस की सहायता से कड़े कदम उठाते हुए जबरदस्ती गाँव की जमीन पर कब्जा हासिल करने का प्रयास किया। इसके तहत, कई बार ग्रामीणों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ। बताया जाता है कि अब तक 11 बार ऐसी घटनाएं घट चुकीं थीं। इस बीच इन गरीब ग्रामीणों ने स्थानीय प्रशासन से लेकर प्रदेश और केन्द्र सरकार तक उन्हें उजाड़ने से बचाने की निरन्तर गुहार लगाई, लेकिन हर स्तर पर उनकीं गुहार अनसुनी कर दी गई। इन परिवारों ने स्थानीय नेताओं से लेकर अनेक समाजसेवी संगठनों के समक्ष भी अपना दुःखड़ा रोया, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया और अंततः गत 15 मई को हजारों पुलिस कर्मियों की विध्वंसक और क्रूरतम कार्यवाही के जरिये हुडा विभाग ने इन गरीब ग्रामीणों को उजाड़ने और बेहद खौफनाक सजा देने में कामयाबी हासिल कर ही ली। कुल मिलाकर संक्षिप्त रूप में कहा जाये तो इस शर्मनाक एवं अति निंदनीय घटनाक्रम के पीछे मूल कारण झाड़सा पंचायत की सहमति से तीन-चार पीढ़ी से बसे हुए गरीब परिवारों की झुग्गी-झोपड़ियों को तोड़कर स्थानीय बिल्डरों के लिए आलिशान रास्ता बनाना रहा।
पुलिस ने दो दर्जने अधिक महिलाओं और पुरूषों को लिया हिरासत में और 200 गरीब ग्रामीणों पर लगाई जान से मारने जैसी गम्भीर धाराएं
पुलिस ने गाँव फतेहपुर के गरीब ग्रामीणों पर विध्वंसक एवं बर्बर कार्यवाही के बाद मौके पर ही एक दर्जन महिलाओं सहित लगभग 50 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है। इसके साथ ही, निगम पार्षद निशा सिंह, कांग्रेसी नेता प्रदीप जैलदार, एडवोकेट खजान सिंह, मोहन, महेन्द्र, रामकिशन कश्यप सहित 200 अज्ञात लोगों पर कई संगीन धाराओं के तहत केस दर्ज किया है, जिनमें जान से मारने, सरकारी काम में बाधा डालने, सरकारी कर्मचारी से मारपीट करने जैसे अनेक संगीन आरोप लगाए गए हैं।
मानवाधिकारों का हुआ खुला उल्लंघन!
1. नोटिस देने की औपचारिकता भर की गई!
पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए आसपास के इलाके में छुपे खौफजदा ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि उन्हें अपना कीमती सामान और मासूम बच्चों, वृद्धों एवं प्रसूताओं को सुरक्षित जगह पहुँचाने का समय भी नहीं दिया और सुबह उठने से पहले ही हजारों पुलिसकर्मियों की फौज भूखे भेड़ियों की तरह उनपर टूट पड़ी। ग्रामीणों ने बताया कि एक दिन पहले शाम को पाँच बजे के आसपास उनके मकानों पर एक नोटिस चस्पा किया गया, जिस पर न किसी अधिकारी के हस्ताक्षर थे और न ही जगह अथवा तिथि का जिक्र था। इसमें ग्रामीणों को जगह छोड़ने के लिए मात्र 24 घण्टों का समय दिया गया था। लेकिन, नोटिस में दी गई इन 24 घण्टों की यह मोहलत भी नहीं दी गई और सुबह होते ही मात्र 10-12 घण्टों के बाद उन पर बर्बर हमला बोल दिया गया। इसमें मासूम बच्चों, प्रसूताओं, वृद्धाओं और बुजुर्गों को गम्भीर चोंटें आईं।
2. नोटिस के सन्दर्भ में अपील को किया अनसुना!
2500 पुलिसकर्मियों के दस्तों से घिर जाने के बाद जब ग्रामीण नोटिस में दी गई 24 घण्टे की मोहलत पूरा होने की अपील करने के लिए गए तो उन्हें बुरी तरह से पीटा गया और थाने ले जाकर बुरी तरह प्रताड़ित किया गया।
3. एक प्रसूता, जिसने तीन दिन पहले बड़े ऑपरेशन के बाद बच्चे को जन्म दिया था, उसे भी नहीं बख्शा गया। अब यह प्रसूता खुले आसमान के नीचे बाहर खेतों में जमीन पर पड़ी है।
4. पिछले तीन दिन से मासूम बच्चे अपनी माताओं से मिलने के लिए रो रहे हैं। एक दो साल की बिटिया तो अपनी माँ-माँ कहकर बेसुध हुई जा रही है। इस बच्ची की माँ को पुलिस ने हिरासत मंे लिया हुआ है।
5. पुलिस की विध्वसंक और बर्बर कार्यवाही के दौरान घायल हुए लोगों का कोई उपचार नहीं करवाया गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि जो भी व्यक्ति उपचार करवाने जाता है तो पुलिस उन्हें दबोच लेती है और जेल में डालकर बुरी तरह प्रताड़ित करती है।
6. पुलिस की दमनात्मक कार्यवाही के उपरांत उजड़ चुके घायल लोगों के पास न पैसा है और न खाने के लिए आटा। सब बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भूखे-प्यासे मर रहे हैं और कहीं पुलिस उन्हें गिरफ्तार न कर ले, इसके लिए आसपास के इलाकों में खौफजदा होकर छुपने को विवश हैं। कई लोगों की हालत गम्भीर हो चुकी हैं।
7. मासूम बच्चों की पढ़ाई चौपट हो चली है। उनके कपड़े, किताबें आदि सब सामान हुडा विभाग ने मलबे में दबा दिये हैं। बच्चों को रोटी तक नसीब नहीं हैं तो स्कूल कैसे जा पाएंगे?
8. सभी ग्रामीणों के परिवार एक-दूसरे से बिछुड़े हुए हैं। किसी को भी एक-दूसरे की खैर-खबर नहीं है।
9. हुडा विभाग द्वारा जेसीबी मशीनों के जरिए सारे मकान जमींदोज कर दिये गए हैं। इस दौरान रूपये, आभूषण और सभी घरेलू उपकरण सरेआम लूट लिये गए और बाकी को मलबे में दबा दिया गया।
10. ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने किसी व्यक्ति के माध्यम से मानवाधिकार आयोग तक अपना दर्द पहुँचाया है, लेकिन इसके बावजूद उनकीं सुध कोई नहीं लेने आया है।
अदालत के स्वतः संज्ञान की राह तक रहे ग्रामीण!
गाँव फतेहपुर के ग्रामीण अब भी न्याय माँग रहे हैं और उन पर हुए बेइंतहा जुल्मों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान लेने की राह तक रहे हैं। उन्हें पूरा विश्वास है कि मानवाधिकार आयोग अथवा राष्ट्रपति महोदय एवं अदालतें स्वतः संज्ञान लेंगीं और उन्हें न्याय देंगीं।
क्या हैं वर्तमान हालात?
गाँव फतेहपुर के गरीब ग्रामीण पुलिस की बर्बर कार्यवाही के बाद न केवल पूरी तरह उजड़ चुके हैं, बल्कि भूख, प्यास और पुलिस के खौफ से बिल्कुल टूट चुके हैं। उनका धैर्य निरन्तर टूटता चला जा रहा है और स्थानीय प्रशासन एवं प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र की मोदी सरकार के प्रति भी उनका गुस्सा सभी हदें पार करता चला जा रहा है। इन सब हालातों के बीच पीड़ित 250 परिवार सामूहिक आत्महत्या की कगार पर पहुँच रहे हैं। यदि प्रशासन, सरकार एवं समाजसेवी संगठनों ने उन्हें सहारा नहीं दिया तो पीड़ित ग्रामीण बेहद गम्भीर कदम उठाने को मजबूर हो सकते हैं। इसके साथ ही कई सामाजिक संगठनों के उग्र होने की भी पूर्ण संभावना है। इन सब हालातों को देखते हुए हालात और भी गम्भीर हो सकते हैं।
राष्ट्रपति भवन के बाहर सामूहिक आत्मदाह
कर सकते हैं पीड़ित परिवार!
बातचीत के दौरान पीड़ित लोगों ने सरकार एवं प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई है और उन्हें न्याय देने, पुनः बसाने और उन्हें हुये नुकसान की भरपाई करवाने की मार्मिक अपील की है। यदि ऐसा नहीं होता है तो वे राष्ट्रपति भवन के आगे जाकर बीवी-बच्चों के साथ सामूहिक आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए भी मजबूर हो सकते हैं।
इसी सन्दर्भ में सुनिए इन पीड़ितों का दुःख-दर्द:
नोट : यह रिपोर्ट 16 मई, 2015 को मौके पर पहुंचकर और पीड़ितों के दुःख -दर्द साँझा करने के उपरांत मिली जानकारियों के आधार पर तैयार की गयी है.
- राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, समीक्षक एवं समाजसेवी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your Comments