हरियाणा - विशेष रिपोर्ट/किसान आत्महत्या
किसान आत्महत्या को मजबूर |
हरियाणा के किसानों की दर्दनाक दास्ताँ : भाग-1
-राजेश कश्यप
क्या हरियाणा का किसान कायर है? क्या वह अपराधी है? क्या उसे अपने बीवी-बच्चों की कोई फिक्र नहीं है? क्या खून-पसीना बहाकर और धरती की छाती चीरकर देश के लिये अन्न उपजाने वाला किसान एकाएक गैर-जिम्मेदार हो गया है? चौंकिए नहीं! ऐसा सोचने और समझने का अपराध स्वप्र में भी नहीं किया जा सकता। लेकिन, यह सब सोचने समझने का अपराध जाने-अनजाने में हरियाणा प्रदेश के कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ कर बैठे हैं। मंत्री महोदय ने ऐसी संकीर्ण मानसिकता का परिचय तब दिया जब पत्रकारों द्वारा गत मार्च-अप्रैल माह में हुई बेमौसमी बारिश और भयंकर ओलावृष्टि से हुई फसलों की तबाही के बाद आत्महत्या कर रहे किसानों को लेकर सवाल पूछा गया। कृषि मंत्री की संवेदनहीनता की इंतहा देखिए कि फसलों की तबाही और भारी कर्ज की बेबसी के चलते मौत को गले लगाने वाले किसानों पर गम्भीर कटाक्ष एवं सवालिया निशान लगाते हुए कह डाला कि 'आत्महत्या करना अपराध है। कोई भी आत्महत्या करने वाला व्यक्ति जिम्मेदारी से भागकर अपने नादान बच्चों और अबोध पत्नी पर बोझ डालकर चला जाता है। सरकार जैसी कोई संस्था ऐसे कायर आदमी के साथ खड़ी नहीं हो सकती।'
कृषि मंत्री की इस शर्मनाक टिप्पणी पर प्रतिरोध होना ही था, सो हुआ। अखिल भारतीय किसान यूनियन ने अपना सख्त विरोध दर्ज करवाते हुए ऐलान कर डाला कि यदि कृषि मंत्री यह समझ रहे हैं कि किसान रूपयों के लालच में आकर आत्महत्या कर रहे हैं तो वे खुद आत्महत्या करके दिखाएं, यूनियन कृषि मंत्री के परिवार को एक करोड़ रूपया देगी। उधर, बर्बाद हुई फसल की गिरदावरी न होने से दु:खी होकर फांसी खाकर आत्महत्या करने वाले फतेहाबाद जिले के चन्दडक़लां गाँव के किसान सूरजभान के पीडि़त परिवार का दर्द भी कृषि मंत्री के बयान से छलक आया। मृतक किसान के नाराज परिजनों ने कहा है कि यदि कृषिमंत्री ओपी धनखड़ आत्महत्या करें तो अपनी सात एकड़ जमीन उसके परिवार के नाम कर देंगे। हरियाणा के पीडि़त और व्यथित किसानों के घावों पर नमक छिडक़ने वाले कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ को अपनी ही पार्टी के आलाकमान से कड़ी झिडक़ी खानी पड़ी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हमित शाह ने कृषि मंत्री के बयान से किनारा करते हुए कहा कि 'धनखड़ के बयान से भाजपा सहमत नहीं है, पार्टी के नेताओं को ऐसे बेतुके बयान देने से बचना चाहिए।' आलाकमान की डांट खाने के बाद कृषि मंत्री ने एकदम यू-टर्न लिया और उन्हें अन्नदाता अपराधी से आराध्य नजर आने लगे। उन्होंने अपने विवादित बयान के लिए मीडिया को दोषी ठहराने के बाद कहा कि मेरे लिये किसान आराध्य हैं, सबसे पहले मैं किसान हूँ, राजनीति और मंत्री पद मेरे लिए बाद की बात है।
गेहूँ की फसल की बर्बादी के कारण गत अपै्रल माह में 72 किसान जिन्दगी की जंग हार गए, जिसमें दो महिला किसान भी शामिल हैं। इनमें 21 किसानों की जान आत्महत्या, 50 किसानों की हृदयघात (हार्टअटैक)और 1 किसान की ब्रैनहैम्रेज होने की वजह से गई। भिवानी जिले में सर्वाधिक 14 किसान जिन्दगी की जंग हार गये। इसके बाद सोनीपत (12 किसान) और हिसार (10 किसान) का स्थान आता है। यह आंकड़ा रूकने का नाम नहीं ले रहा है और प्रतिदिन दो से तीन किसान आत्महत्या कर रहे हैं अथवा हृदयघात का शिकार हो रहे हैं। लेकिन, यह सब हरियाणा सरकार को दिखाई ही नहीं दे रहा। इसीलिए, केन्द्र सरकार को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में प्रदेश में किसानों द्वारा आत्महत्या किये जाने से साफ तौरपर इंकार कर दिया। इसी रिपोर्ट के आधार पर केन्द्रीय कृषि मंत्री डॉ.संजीव बाल्याण ने लोकसभा में जवाब दिया था कि प्रदेश के रिकाडऱ् के अनुसार अभी तक एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है।
सबसे बड़ी विडम्बना का विषय है कि किसानों की आत्महत्या को हरियाणा सरकार स्वीकार करने के लिए ही तैयार नहीं है। सरकार को किसानों की मौतों पर संदेह है। सोनीपत के भाजपा सांसद रमेश कौशिक ने तो यहां तक कह चुके हैं कि चाहे कोई किसी तरह से मर जाये, उसे किसान आत्महत्या से जोड़ दिया जाता है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि उनकी पृष्ठभूमि गाँव की है और मुझे पता है कि आत्महत्या के पीछे कोई एक कारण नहीं, कई कारण हो सकते हैं। अंबाला के भाजपा सांसद रत्नलाल कटारिया का मानना है कि उनकीं सरकार में अभी तक चिडिय़ा को भी बुखार नहीं हुआ है। प्रदेश सरकार की इस कुटिल मंशा का भी कड़ा विरोध हुआ और सरकार की भारी भत्र्सना हुई। काफी हद तक किरकिरी करवाने के बाद हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने आधिकारिक रूप से महज 7 किसानों की आत्महत्या को मन मसोसकर स्वीकार किया है। जिस प्रदेश के किसानों की आत्महत्याओं एवं हृदयघात की घटनाओं का ग्राफ मात्र एक माह में 70 को भी पार कर जाये और प्रदेश सरकार के सिर में जूं तक भी नहीं रेंगे तो इसे क्या कहा जायेगा?
यदि प्रदेश सरकार किसानों की मौतों एवं आत्महत्याओं पर जरा भी संवेदनशील होती और पीडि़त परिवारों को तत्काल आर्थिक सहायता देकर मरहम लगाती और उनका दु:ख बंटाती। सरकार की तरफ से सहानुभूति जताना तो दूर की बात सहायता राशि देने के लिए भी संकोच कर रही है। प्रदेश के कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ का स्पष्ट कहना है कि किसान, खेतीहर मजदूर सामाजिक सुरक्षा बीमा में आत्महत्या करने वाले किसानों को शामिल नहीं किया जा सकता। इससे पहले वे यहां तक बड़ी बेरूखी के साथ कह चुके हैं कि 'मृतक किसानों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा से प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ सकती हैं।' कृषि मंत्री के ऐसे बयानों से स्पष्ट झलकता है कि हरियाणा का किसान सिर्फ रूपयों के लालच में आत्महत्या कर रहा है।
सबसे बड़ा यक्ष प्रश्र यह है कि सर्वाधिक आशावान और उम्मीदों के सहारे जीवन जीने वाले किसान का एकाएक धैर्य क्यों टूट गया है? हर बड़ा नुकसान या हादसा झेलना वाला किसान 'कोई बात नहीं भगवान सब भली करेंगे' या फिर 'भगवान और देगा!' जैसे उम्मीद भरे जज्बात रखने वाला वह किसान इतना नाउम्मीद क्यों हो गया है कि उसे मौत को गले लगाने के सिवाय और कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा है? क्या इस यक्ष प्रश्र का किसी राजनीतिक व्यक्ति के पास जवाब है? क्या अनगर्ल टिप्पणियां करके किसानों के घावों पर नमक छिडक़ने वाले कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ जैसे नेता इस प्रश्र का जवाब ढूंढऩे की जरा-सी भी जहमत उठाएंगे? यदि, सत्ता में बैठे लोग ऐशोआराम छोडक़र और पूरी गम्भीरता के साथ इस विषय पर मंथन करें तो उन्हें किसानों के मर्ज का का सहज अहसास हो जायेगा और उन्हें किसानों के प्रति अशोभनीय टिप्पणी करने का जरूर मलाल होगा।
हाल फिलहाल काफी जद्दोहद के बाद गत मार्च और अपै्रल में हुई बेमौसमी बारिश और भयंकर ओलावृष्टि के कारण खराब हुई फसलों की गिरदावरी रिपोर्ट आ चुकी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा प्रदेश में कुल 13 लाख, 20 हजार, 677 एकड़ फसल बर्बाद हो गई, जिसमें 10 लाख, 64 हजार एकड़ गेहूँ की फसल और 3 लाख, 16 हजार एकड़ में रबी की अन्य फसलें शामिल हैं। 24 अपै्रल को सरकार के पास सभी 21 जिलों में हुई गिरदावरी की रिपोर्ट प्रदेश सरकार के पास पहुँची। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 2 लाख, 44 हजार, 555 एकड़ में गेहूँ की 100 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई, जबकि 1 लाख, 46 हजार, 243 एकड़ गेहूँ की फसल में 51 से 75 प्रतिशत नुकसान हुआ है। इसके साथ ही 6 लाख, 73 हजार, 987 एकड़ गेहूँ की फसल में 26 से 50 फीसदी का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा नुकसान पलवल में हुआ है। इस बार प्रदेश में गेहूँ उत्पादन 25 प्रतिशत तक गिरने की संभावना जताई गई है। गौरतलब है कि हरियाणा सरकार द्वारा करवाई गई इस गिरदावरी से प्रदेश के किसान सन्तुष्ट नहीं हैं। कई स्थानों पर किसान स्पष्ट तौरपर आरोप लगा रहे हैं कि उनकीं गिरदावरी ठीक ढ़ंग से नहीं हुई है या फिर उनकी गिरदावरी नहीं हुई है अथवा पटवारियों ने अपनी मनमर्जी से ही रिपोर्ट तैयार की है। हरियाणा सरकार को ऐसी शिकायतों का निवारण भी प्राथमिकता के साथ करने की आवश्यकता है।
हरियाणा सरकार पट्टे पर खेती करने वाले किसानों के संशय को भी दूर नहीं कर पाई है। हरियाणा प्रदेश में कम से कम 30 प्रतिशत जमीन पट्टे पर लेकर काश्तकार खेती करते हैं। जमीन के मालिक द्वार इस सन्दर्भ में कोई दस्तावेज नहीं दिया जाता। यह सब जुबानी करार होता है। ऐसे में पट्टे पर खेती करने वाले किसानों की सुध भी सरकार को लेनी चाहिए और उसे जमीनों के मालिकों के रहम पर नहीं छोडऩा चाहिए।
गौरतलब है कि हरियाणा प्रदेश में 93 प्रतिशत किसान हैं खेती करते हैं और 7 प्रतिशत किसान बागवानी करते हैं। इस समय हरियाणा के किसानों पर राष्ट्रीय, निजी और सहकारी बैंकों का करीब 28500 करोड़ रूपये का कर्ज है। इसके अलावा हरियाणा के सहकारी बैंको का किसानों पर करीब 4,000 करोड़ रूपया कर्ज है। इस तरह कुल मिलाकर प्रदेश के किसानों पर 32,000 करोड़ रूपये का कर्ज है। बर्बाद फसलों और किसानों की दयनीय हालत को देखते हुए स्टेट लेवल बैंकर्स समिति ने इस कर्ज राशि को एक साल के लिए स्थगित करने का निर्णय लिया है।
जिलावार जान देने वाले किसानों का विवरण
1. रोहतक -04
2. कैथल - 03
3. पानीपत -02
4. जीन्द - 09
5. फरीदाबाद -02
6. भिवानी - 14
7. सोनीपत - 11
8. झज्जर - 04
9. हिसार - 10
10. रेवाड़ी - 04
11. फतेहाबाद - 01
12. पलवल - 02
13. करनाल - 02
14. पंचकूला - 02
15. महेन्द्रगढ़ - 01
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